"खतना होने पर लगा कि मैं जिंदा लाश बन गई"
७ फ़रवरी २०२०शादिया अब्देलमोनिम के तीसरे बच्चे के जन्म के बाद जब वे बेहोशी की हालत में थीं तब उनकी दाई ने बिना उनकी अनुमति के उनका खतना कर दिया. इससे उन्हें एक बड़ा झटका लगा और वे किसी पर भरोसा करने की स्थिति में नहीं रहीं. लेकिन उन्हें वह पल अच्छे से याद है जब उन्हें महसूस हुआ कि असल में उनके साथ क्या हुआ है.
"मैं टॉयलेट जाना चाहती थी लेकिन मुझे कुछ गलत लग रहा था. मुझे भयानक दर्द हो रहा था और मैं चल भी नहीं पा रही थी. जब मैंने देखा कि उसने क्या कर दिया है तो मुझे गहरा आघात लगा. उसने सब काट कर फिर सिल दिया था. मुझे कुछ समझ नहीं आया कि मुझे क्या करना चाहिए."
शादिया पहले से ही सूडान में महिलाओं के खतने की प्रथा के विरोध में लड़ रही थीं, उस समय अपनी उम्र के 30 के दशक में थीं. वे अपनी तीनों बेटियों को लेकर लगातार डर में रहने लगीं. वे उन्हें बिल्कुल भी अपनी नजरों से दूर नहीं रहने देना चाहती हैं. वे कहती हैं, "कोई औरत दूसरी औरत के साथ ऐसा कैसे कर सकती है? खतना होने के बाद ऐसा लग रहा था जैसे में किसी मृत शरीर में रह रही हूं." यह कहते हुए शादिया की आंखें भर आईं.
खतने से हो सकती कई शारीरिक समस्याएं
शादिया 2015 में जर्मनी आईं. उन्हें बर्लिन के डेजर्ट फ्लावर सेंटर मेडिकल चैरिटी में खतने के बाद पैदा हुईं मेडिकल समस्याओं के लिए मदद मिली. जैसे एक ऑपरेशन जिससे नुकसान को कुछ कम किया जा सके. इस मेडिकल सेंटर की डॉक्टर श्ट्रून्त्स कहती हैं "खतने के बाद कई महिलाएं अपने ब्लैडर को खाली करने में परेशानी महसूस करती हैं. महावारी में उनका खून ठीक से नहीं बहता है. कुछ के लिए सेक्स करना नामुमकिन हो जाता है. कई महिलाओं के दो शारिरिक अंग आपस में जुड़ जाते हैं जो सामान्य परिस्थितियों में नहीं होता है. जैसे कि महिलाओं की योनि और मलद्वार आपस में जुड़ सकते हैं. इससे बचने के लिए उन्हें अपनी योनि में स्टूल लगवाना होता है. इसके साथ जीना बेहद ही मुश्किल होता है."
शादिया ने डेजर्ट फ्लावर सेंटर में अपना ऑपरेशन करवाया. वे कहती हैं कि अब उन्हें कम दर्द होता है और वे फिर से संपूर्ण महिला की तरह महसूस करने लगी हैं. अब वे खतने के विरुद्ध अपना अभियान जर्मनी से ही चला रही हैं.
शादिया इस बर्बर परंपरा के बारे में अच्छे से जानती हैं. यह खतना जोन कहे जाने वाले अफ्रीका और एशिया के उन इलाकों के बाहर भी मौजूद है जहां यह परंपरा बहुत सामान्य सी बात है. जर्मनी में करीब 70 हजार महिलाओं का खतना हो चुका है और करीब 17 हजार लड़कियां खतना होने की राह पर हैं. डॉक्टर श्ट्रून्त्स बताती हैं कि अफ्रीकी देशों से पलायन होकर जर्मनी आते लोग इस संख्या के बढ़ने की एक बड़ी वजह हैं. जर्मनी में खतने पर पूरी तरह प्रतिबंध है. लेकिन कई लोग छुट्टियों में अपने मुल्क वापस जाते हैं. वहां ऐसा होता है या फिर कई लोग अपने बच्चों का चुपके से खतना कर देते हैं.
अगर जर्मनी में किसी के खतना होने का पता चलता है तो परिवार को सजा हो सकती है. कई लोगों को इस नियम का पता नहीं है और कई लोग डरते नहीं हैं. शादिया कई सारे ऐसे फेसबुक ग्रुप्स में सक्रिय हैं जहां महिलाएं खतने के बारे में बात करती हैं और इस कुप्रथा से अपनी बच्चियों को बचाने की योजना बनाती हैं. शादिया को लगता है कि जानकारी की कमी होना इसका एक बड़ा कारण है. वे कहती हैं, "अगर इन परिवारों को सच में पता हो कि ऐसा करने से उनके जर्मनी में रहने पर संकट आ सकता है, तो वे ऐसा शायद ना करें. यहां जर्मन सरकार बहुत कुछ कर सकती है. हालांकि अलग-अलग भाषा बोलने वाले लोगों की वजह से प्रचार प्रसार बड़े खर्च वाला होगा. इस वजह से लोगों तक पहुंचना एक समस्या हो सकती है."
स्कूलों में शिक्षकों को ट्रेनिंग देने से बनेगा काम?
टेरे दे फेम चैरिटी संसथा की शारलोटे वाइल कहते हैं कि परिवारों को लक्षित कर चलाया गया कैंपेन मदद कर सकता है, "इसके अलावा हमें ऐसे पेशेवरों को ट्रेनिंग देनी चाहिए जो ऐसी बच्चियों के संपर्क में आते हैं जिनके खतने की आशंका हो. कई सारे टीचर्स को भी इस मुद्दे की जानकारी नहीं है. वे उन संकेतों को नहीं पहचान पाते जो किसी बच्ची के खतने से पहले मिलते हैं. कई बार वे इस मुद्दे को संवेदनशील तरीके से सामने नहीं रख पाते हैं."
वाइल इस कुप्रथा को खत्म करने के लिए एक एंटी-खतना फंड स्थापित करने की मांग करती हैं जिससे वे ऐसा करने वाले समुदायों में जागरूकता फैला सकें. वे कहती हैं, "हमें समझना चाहिए कि हजारों साल पुरानी परंपरा एक-दो साल में खत्म नहीं की जा सकती है." इस मुद्दे पर बर्लिन में सरकार एक खतना विरोधी फंड बना रही है और एक खतना विरोधी केंद्र की स्थापना कर रही है जो इस साल में शुरू हो जाएगा.
मेलिना ग्रुंडमान/ऋषभ शर्मा
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