स्पेन में 20 प्रतिशत महिला टैक्सी या बस ड्राइवर के मुकाबले में केवल 4 प्रतिशत महिलाएं ही ट्रक चलाती हैं. सड़क पर महिलाओं के लिए ट्रक चलाना आसान नहीं है क्योंकि उन्हें इस काम के लिए परिवार से दूर जाना होता है.
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ट्रक ड्राइवर के रूप में काम करना बेगोना उरमेनेटा के लिए हमेशा आसान नहीं रहा है, लेकिन वे अपने पेशे से प्यार करती हैं और कहती हैं कि स्पेन को उनके जैसे लोगों की पहले से कहीं ज्यादा जरूरत है क्योंकि यूरोप में माल ढुलाई करने वाले ट्रक ड्राइवरों की भारी कमी है.
59 वर्षीय तलाकशुदा, दो बच्चों की मां और दो बच्चों की दादी 26 साल से लंबी दूरी की लॉरी चला रही हैं. वे मछली से लेकर खतरनाक सामानों को पहुंचाती आई हैं. बेगोना उरमेनेटा कहती हैं, "आपको निश्चित रूप से बार-बार खुद को साबित करना होता है. जब मैंने शुरू किया, तो वे कहते थे...बेगोना एक लड़की है, वह फ्रिज नहीं ले जा सकती, वह पैलेट नहीं ढो सकती."
पूर्वी स्पेन के वेलेंसिया की रहने वाली उरमेनेटा कहती हैं, "अगर इससे वे खुश होते हैं, तो उन्हें यह कहने देना चाहिए. क्योंकि अब तक मैं यह सब कर सकती हूं, अगर नहीं कर पाती हूं तो मदद मांगती हूं."
स्पेन में 20 प्रतिशत महिला टैक्सी या बस ड्राइवर के मुकाबले में केवल 4 प्रतिशत महिलाएं ही ट्रक चलाती हैं. सरकार ने अधिक महिलाओं और युवाओं को ऐसे क्षेत्र में आकर्षित करने की दृष्टि से उपायों की समीक्षा करने का आदेश दिया है, जहां काम शारीरिक रूप से मांग वाला और अक्सर अकेले ही काम करना हो सकता है. यह पेशा चालकों को लंबे समय तक घर और परिवार से दूर ले जा सकता है.
पाकिस्तान: एक कबायली महिला का आतंकवाद से संघर्ष
अफगान सीमा से लगे पाकिस्तान के मोहमंद जिले में रहने वाली बसुआलिहा का पति और बेटा आतंकी हमलों में मारे गए थे. आज जब इलाके में तालिबान के लौटने का डर फैलता जा रहा है, 55-वर्षीय बसुआलिहा किसी तरह अपने हालात से लड़ रही हैं.
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एक कठिन जीवन
पाकिस्तान की कबायली महिलाओं के लिए जिंदगी कठिन है. 55 साल की विधवा बसुआलिहा के लिए आतंकवादी हमलों में 2009 में अपने बेटे और 2010 में अपने पति को खो देने के बाद जिंदगी और दर्द भरी हो गई. वो अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली जिले मोहमंद में गलनाइ नाम के शहर में रहती हैं. 2001 में अमेरिका के अफगानिस्तान पर आक्रमण के बाद इस इलाके पर तालिबान के विद्रोह का बड़ा बुरा असर पड़ा था.
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हर तरफ से हमले
बसुआलिहा के बड़े बेटे इमरान खान की 23 साल की उम्र में एक स्थानीय "शांति समिति" ने हत्या कर दी थी. बसुआलिहा ने डीडब्ल्यू को बताया कि वो समिति एक तालिबान-विरोधी समूह थी और उसके लोगों ने उनके बेटे को आतंकवादियों की मदद करने के शक में मार दिया था. पिछले कुछ सालों में यहां थोड़ी शांति आई है, लेकिन तालिबान के लौटने की संभावना से यहां फिर से डर का माहौल कायम हो गया है.
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एक हिंसक दौर
अगले ही साल छह दिसंबर 2010 को बसुआलिहा के पति अब्दुल गुफरान की एक सरकारी इमारत पर आत्मघाती बम विस्फोट में जान चली गई. उन्होंने बताया कि उनके पति अपने बेटे की मौत का मुआवजा लेने वहां गए थे. हमले में बीसियों लोग मारे गए थे. बसुआलिहा कहती हैं कि कबायली इलाकों में पति या किसी और व्यस्क मर्द के बिना एक महिला की जिंदगी खतरों और जोखिमों से भरी हुई होती है.
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उम्मीद का दामन
बसुआलिहा को अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है. उनके गांव में गैस, बिजली की स्थिर आपूर्ति और इंटरनेट जैसी सुविधाएं नहीं हैं लेकिन पति और बेटे की मौत के बावजूद उन्होंने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा. उन्हें सरकार से मदद के रूप में 10,000 रुपये हर महीने मिलते थे, लेकिन को सिर्फ इस पर निर्भर नहीं रहना चाहती थीं. सरकारी मदद 2014 में बंद भी हो गई.
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सिलाई का काम
बसुआलिहा चाहती हैं कि उनके बाकी बच्चों को उचित शिक्षा मिले. उन्होंने बताया, "यह आसान नहीं था. एक बार तो मुझे ऐसा लगने लगा था कि मेरी जिंदगी बेकार है और मैं इस समाज में नहीं रह सकती हूं." आज कपड़ों की सिलाई उनकी कमाई का एक अहम जरिया है. वो महिलाओं के लिए सूट सिलती हैं और हर सूट के लिए 150-200 रुपए लेती हैं.
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मर्द का साथ अनिवार्य
बसुआलिहा कहती हैं, "मेरे पति की मौत के बाद मैं रोटियां बनाती थी और मेरी छोटी बेटियां उन्हें मुख्य सड़क पर बेचा करती थीं. फिर मेरी बेटियां थोड़ी बड़ी हो गईं और हमारे इलाके में लड़कियों का 'इधर उधर घूमना' बुरा माना जाता है." वो कहती हैं कि इसके बाद उन्होंने रजाइयां और कंबल सिलना और उन्हें बेचना शुरू किया. जब भी वो बाजार जाती हैं उनके साथ एक मर्द जरूर होना चाहिए, चाहे वो किसी भी उम्र का हो.
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और हिंसा होने वाली है?
पाकिस्तान के उत्तरी और उत्तर-पश्चिमी कबायली इलाकों में ऐसे हजारों परिवार हैं जो हिंसा के शिकार हुए हैं. बसुआलिहा के देवर अब्दुर रजाक कहते हैं उन्हें आज भी याद है जब मियां अब्दुल गुफरान तालिबान के हमले में मारे गए. वो उम्मीद कर रहे हैं कि कबायली इलाके एक बार फिर हिंसा और उथल पुथल में ना डूब जाएं. (सबा रहमान)
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स्पेन में अब लॉरी चालक की औसत आयु 50 है. उरमेनेटा का मानना है कि 10 वर्षों के भीतर देश के माल की ढुलाई के लिए कोई भी नहीं होगा. उन्होंने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "आज स्पेन में 10,000 से 20,000 ट्रक ड्राइवरों की कमी कुछ भी नहीं है, यह हिमशैल का सिरा है."
उरमेनेटा कई-कई घंटे अकेले सड़क पर ट्रक चलाती हैं और इस काम में उन्हें किसी तरह की कोई परेशानी नहीं आती. उन्होंने अपने ट्रक की विंडस्क्रीन पर एक चिन्ह रखा है, जिसमें लिखा है "महिला ट्रक चालक- मेरा पेशा, मेरा जुनून."
ट्रक ड्राइवरों की कमी किसी भी तरह से स्पेन तक ही सीमित नहीं है, जैसा कि पहले अनुभव की गई आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधानों से प्रदर्शित होता है, इस साल जब वैश्विक अर्थव्यवस्था कोरोना वायरस महामारी और इसके कारण हुए लॉकडाउन से उभरने में लगी है.
यूरोपियन रोड ट्रक चालक एसोसिएशन के मुताबिक अकेले यूरोप में लगभग 4,00,000 ट्रक ड्राइवरों की कमी है. उरमेनेटा कहती हैं कि उन्हें कम उम्मीद है कि युवा लोगों को ऐसे मांग वाले काम के लिए आकर्षित किया जा सकता है जो अपेक्षाकृत खराब वेतन की पेशकश करते हैं. वे कहती हैं, "कारखाने की नौकरियां बहुत अधिक आकर्षक हैं. लोग रोज शाम घर जा पाते हैं."
एए/वीके (रॉयटर्स)
परंपरा को तोड़तीं थाईलैंड की महिला मुक्केबाज
कोविड-19 की वजह से बैंकॉक के लुम्पिनी स्टेडियम में थाई मुक्केबाजी की प्रतियोगिताएं 20 महीनों से स्थगित थीं. अब ये दोबारा शुरू हुई हैं और पहली बार महिला मुक्केबाजों को रिंग में उतरने की इजाजत दी गई है.
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मुक्केबाजी और सट्टा
बैंकॉक का लुम्पिनी स्टेडियम थाई मुक्केबाजी या म्वे थाई के लिए मशहूर है. कोविड-19 महामारी के पहले हजारों दर्शक स्टेडियम को भर दिया करते थे. लेकिन इतनी भीड़ सिर्फ मुक्केबाजी देखने के लिए नहीं जुटती थी. यहां जम कर सट्टेबाजी होती थी. वो भी इतनी की कभी कभी सट्टेबाज एक ही दिन में लाखों डॉलर तक कमा लेते थे. थाईलैंड में जुआ और सट्टा लगभग हर जगह गैर कानूनी है.
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कोविड में मिला मौका
महामारी के दौरान लुम्पिनी बंद रहा लेकिन अब यह खुल गया है और लगभग क्रांतिकारी बदलावों के साथ खुला है. स्टेडियम की मालिक थाईलैंड की शाही सेना का कहना है कि उसने इस अवधि को एक मौके में बदल दिया. मेजर जनरल रोन्नावत रुअंगसवत कहते हैं, "अखाड़े का पूरी तरह से नवीनीकरण कर दिया गया है, सट्टा प्रतिबंधित कर दिया गया है और महिलाओं को भी मुक्केबाजी में भाग लेने की अनुमति दे दी गई है."
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सट्टेबाजी को रोका जा सकता है?
मेजर जनरल रोन्नावत रुअंगसवत ने आगे कहा, "हम इस खेल को साफ करना चाहते हैं और उम्मीद करते हैं कि थाईलैंड में दूसरे स्टेडियम भी ऐसा ही करेंगे. उन्होंने कहा कि सट्टेबाजी की वजह से कभी कभी खिलाड़ियों को हारने के पैसे दिए जा रहे थे. लेकिन विशेषज्ञों को अभी भी संदेह है. विश्व म्वे थाई संगठन के जेड सिरिसोमपन ने चेतावनी दी, "लोग ऑनलाइन सट्टेबाजी करने लगेंगे. सट्टा म्वे थाई के डीएनए का हिस्सा है."
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परंपराओं से लड़ाई
लेकिन एक और बदलाव है जो ज्यादा व्यापक लग रहा है. अभी तक महिलाओं के लिए रिंग को छूना भी वर्जित था. एक अंधविश्वास था कि मासिक धर्म वाले शरीरों की वजह से वो जादू टूट जाएगा जो रिंग की रक्षा करता है. लेकिन अब कई स्टेडियम महिलाओं को भी हिस्सा लेने दे रहे हैं. लुम्पिनी में अभी तक महिलाओं को लड़ने की इजाजत नहीं थी.
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अखाड़े में गर्व
21 साल की कुलनत ओर्नोक कहती हैं, "हमें बहुत गर्व है कि हम यहां पर लड़ने वाली पहली महिलाएं बनीं. हम सालों से और ज्यादा बराबरी के लिए लड़ाई कर रही हैं." लेकिन इसके अलावा उनके लिए इसका आर्थिक पहलू भी महत्वपूर्ण है. वे कहती हैं, "मैंने लगभग एक साल से एक भी मैच नहीं लड़ा था. मैं एक मैच में 100 डॉलर तक कमा लेती थीं, लेकिन अभी कई महीनों से मेरे पास अपने परिवार का ख्याल रखने के लिए कुछ भी नहीं था."
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बराबरी के लिए संघर्ष जारी
27 साल की ऑस्ट्रेलियाई सेलेस्ट मुरिएल हानसेन कुलनत ओर्नोक से हार गईं, लेकिन वो फिर भी संतुष्ट थीं." उन्होंने कहा, "हमने बहुत लंबा रास्ता तय किया है. ये सिर्फ एक मैच नहीं था, उससे कहीं ज्यादा था." (फिलिप बोल)