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राजनीतिअफ्रीका

दुश्मनों के दांत खट्टे करने वाली वाली अफ्रीका की रानियां

३० सितम्बर २०२२

घने जंगल, उनमें पलने वाले जानवर और मिट्टी में दबे खनिज से अफ्रीका की तस्वीर बनती है. इसी अफ्रीका ने कई वीरांगनाओं को भी पैदा किया है जिन्होंने बड़ी बहादुरी से यूरोपीय देशों से लोहा लिया और लोगों को गुलामी से बचाया.

अफ्रीका की बहादुर रानियां
अफ्रीका को गुलामी से बचाने के लिये लड़ने वाली रानियांतस्वीर: picture alliance/CPA Media Co. Ltd

अफ्रीका की काली महिलाओं ने युद्ध के मैदान में अद्भुत वीरता दिखाई लेकिन उनकी बहादुरी और नेतृत्व कौशल के बारे में कम ही चर्चा होती है. ज्यादातर को इतिहास के पन्नों में वह जगह नहीं मिली जिसकी वो हकदार थीं. इनमें से एक ने तो केवल महिलाओं की सेना बना कर यूरोपीय हमलावरों का मुकाबला किया.

क्वीन अमानिरेनास

ईसापूर्व 40 से ईसा पूर्व 10 तक नूबियान इलाके में कुश पर क्वीन अमानिरेना ने राज किया. इसे ही आज सूडान कहा जाता है. ईसापूर्व 30 में जब रोमन सम्राट ऑगस्टस ने मिस्र पर कब्जा किया तो उनकी अगली योजना कुश पर हमले की थी. हलांकि उससे पहले ही अमानीरेनास ने रोमनों पर अचानक हमला कर दिया.

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30,000 सैनिकों के साथ क्वीन अमानीरेनास ने रोमनों को भारी चोट पहुंचाई और उनके अधीन रहे तीन शहरों पर कब्जा कर लिया. हालांकि रोमनों ने जल्दी ही बड़ी ताकत के साथ जवाबी हमला किया और कुश की राजधानी को ध्वस्त कर दिया. हजारों लोगों को गुलाम बना कर बेच दिया गया. पांच साल तक दोनों तरफ से हमले और संघर्षों का दौर चलता रहा.

आखिरकार जंग खत्म करने के लिये बातचीत शुरू हुई और फिर युद्ध का अंत हुआ. दोनों पक्षों का काफी नुकसान हुआ और एक तरह से कोई भी विजेता नहीं था. क्वीन अमानिरेनास रोमन साम्राज्य को रोकने में सफल हुईं और अपने पड़ोसियों से इस मामले में अलग थीं कि उन्होंने कभी रोमन साम्राज्य को कर नहीं दिया.

क्वीन एनजिंगा एमबेंडेतस्वीर: picture alliance/Mary Evans Picture Library

क्वीन एनजिंगा एमबेंडे

17वीं सदी में पुर्तगाली शासन जब गुलामों के कारोबार के लिये अफ्रीका में कदम बढ़ा रहा था तो उनका सामना क्वीन एनजिंगा एमबेंडे से हुआ. वो एमबुंडु लोगों की महारानी थीं. कुशल राजनेता होने के साथ ही महानी एक निपुण सैन्य रणनीतिज्ञ भी थीं. उनका शासन जिस हिस्से में था उसे आज अंगोला कहा जाता है.

गुलामों की बढ़ती मांग को देखते हुए पुर्तगालियों ने एंमबुंडु के करीब एक उपनिवेश कायम किया. साल 1626 में पुर्तगालियों के बढ़ते दखल के कारण एमबुंडु के राजा ने आत्महत्या कर ली. इसके बाद एनजिंगा ने देश की बागडोर संभाली. इससे पहले रानी एनजिंगा ने अपने भाई के कहने पर पुर्तगालियों के साथ एक समझौता किया था. हालांकि पुर्तगालियों ने उनके रानी बनने पर यह समझौता तोड़ दिया. रानी ने बिना लड़े देश का अधिकार सौंपने से इनकार किया और पुर्तगालियों के दुश्मन डचों से अस्थायी संधि कर ली.

इसके बाद रानी ने सेना खड़ी की और पुर्तगालियों से जम कर लोहा लिया. कई दशकों तक यह लड़ाई चलती रही लेकिन पुर्तगाली कभी उन्हें जीत नहीं सके. यहां तक कि 60 साल की उम्र भी वो उनसे टक्कर लेती रहीं. पुर्तगालियों ने कई बार उन्हें गिरफ्तार करने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो सके. 80 साल से ज्यादा की उम्र में उनकी स्वाभाविक मौत हुई लेकिन पूरी जिंदगी उन्होंने अपने लोगों को गुलाम बनने से बचाये रखा.

दाहोमे अमेजनतस्वीर: picture alliance/CPA Media Co. Ltd

दाहोमे अमेजन

ग्रीक पौराणिक कथाओं में महिला सेनानियों की एक नस्ल का जिक्र मिलता है. उन्हीं के नाम पर दाहोमे अमेजन को यह नाम मिला. यह दाहोमे यानी आज के बेनिन में महिला सैनिकों की एक रेजिमेंट थी. 16वीं शताब्दी में इनका गठन हुआ. अमेजन को युद्ध में अदम्य साहस और पीड़ा सहने की अद्भुत क्षमता के लिये जाना जाता है.

इन महिला सैनिकों का अपने साम्राज्य में सामाजिक और राजनीतिक रूप से काफी असर था. अपने साम्राज्य को मजबूत करने के लिये अमेजन ने यूरोपीय औपनिवेशिक ताकतों से भी सहयोग किया. क्षेत्रीय लड़ाइयों में पकड़े गये दुश्मनों को वो उन्हें बेच देते और उसके बदले में हथियार और दूसरे सामान हासिल करते. 18वीं सदी के मध्य में उनकी संख्या 1000-6000 के बीच थी.

1892 में जब फ्रेंच ने दाहोमे पर हमला किया तो अमेजन ने उन्हें कड़ी टक्कर दी. फ्रेंच सैनिकों ने भी उनकी बहादुरी का जिक्र किया है. यूरोपीय और अमेजन के बीच लड़ाई चलती रही लेकिन बाद में अफ्रीकी महिला योद्धा संख्या बल के आगे पराजित हुईं और फिर कुछ सालों में वो लगभग खत्म हो गईं.

लैंगिक समानता को पश्चिमी देशों की खूबी माना जाता है जबकि सच्चाई यह है कि बेनिन में यूरोपीय शासन महिलाओं के लिए बाधा बन कर सामने आया. फ्रांसीसियों ने ना सिर्फ अमेजन का सैन्य बल खत्म किया बल्कि महिलाओं की शिक्षा और राजनीतिक भागीदारी पर भी रोक लगा दी. आज पश्चिमी जिस महिला बराबरी का दंभ भरते हैं वह बेनिन और उस जैसे कई देशों में उनके आने से पहले फलता फूलता रहा है.

क्वीन नैनी तस्वीर: Janusz Pieńkowski/PantherMedia/Imago Images

क्वीन नैनी

जमैका के मरून की रानी थीं क्वीन नैनी. गुलाम रहे इन लोगों ने अंग्रेजों से अपनी आजादी के लिए संघर्ष किया. क्वीन नैनी का बचपने में ही घाना से अपहरण हो गया. उसके बाद उन्हें जमैका में गुलाम बना दिया गया. वहां से वो भाग निकलीं और ब्लू माउंटेन इलाके में शरण लिये गुलामों के पास चली गईं. क्वीन नैनी ने वहां अद्भुत नेतृत्व और सैन्य कौशल दिखाया. उन्हीं गुलामों को संगठित कर वो मरून बस्ती की महारानी बन गईं. क्वीन नैनी मरून लोगों को गुरिल्ला युद्ध में पारंगत किया.

दर्जनों लड़ाइयों में इसी गुरिल्ला पद्धति से संघर्ष करके क्वीन नैनी ने 800 से ज्यादा गुलामों को आजाद कराया. उनकी रणनीति बेहद कारगर और हमला बहुत चौंकाऊ होता था. भारी हथियारों से लैस ब्रिटिश सैनिक उनके आगे टिक नहीं पाते. उनके हमलों का ही नतीजा था कि 1740 में आखिरकार अंग्रेजों को मरून के साथ संधि करनी पड़ी और उनकी आजादी का रास्ता बना. जमैका में 500 डॉलर के नोटों पर उनकी तस्वीर है.

या असांतेवा

या असांतेवा समृद्धशाली अशांति साम्राज्य की रानी थीं. आधुनिक युग में इसे घाना कहा जाता है. महारानी के रूप में या असांतेवा पर साम्राज्य की सबसे पवित्र वस्तु सुनहरे तख्त की रक्षा करने की आधिकारिक जिम्मेदारी भी थी. माना जाता था कि ठोस सोने से बने इस तख्त में देश की आत्मा निवास करती है. यह तख्त साम्राज्य के शाही और दैवीय राजगद्दी का भी प्रतीक था. 1886 में जब ब्रिटिश सेना ने हमला किया तो उन्होंने यह तख्त सौंपने की मांग की लेकिन रानी ने इससे इंकार किया और अपनी के साथ अंग्रेजों से भिड़ गईं. युद्ध के लिए अपनी सेना का आह्वान करते हुए जो उन्होंने उद्घोष किया था वह आज भी प्रेरणा जगाता है.

कई महीनों तक चली लड़ाई में अंग्रेजी फौज की हालत बिगड़ गई लेकिन जब वो हार के करीब थे तभी हजारों की संख्या में अतिरिक्त सैनिक टैंकों के साथ उनकी मदद के लिये आ पहुंचे और तब वो असांतेवा की सेना को परास्त करने में सफल हुए. युद्ध के मैदान में अपने सैनिकों के साथ लड़ती रानी असांतेवा को गिरफ्तार कर लिया गया. बाकी बची जिंदगी उन्हें निर्वासित होकर सेशल्स में बितानी पड़ी और फिर वहीं उनकी मौत हुई.

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