क्या बूढ़ा दिखाने वाली फेसऐप से यूजर की निजता को खतरा है
१८ जुलाई २०१९
सोशल मीडिया पर फेसऐप छाई हुई है. जवान और बूढ़े दिखाने समेत कई सारे फिल्टर वाली इस ऐप से यूजर्स की प्राइवेसी को खतरा बताया जा रहा है. एक अमेरिकी सांसद ने तो इसे प्रतिबंधित कर इसकी एफबीआई से जांच करवाने की मांग की है.
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फेसऐप नाम की इस ऐप में फोटो एडिट किए जाते हैं. लेकिन ये फोटो एडिटिंग दूसरे ऐप से थोड़ी अलग है. यह आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर काम करती है. इस वजह से इस ऐप की फोटो एडिटिंग ज्यादा वास्तविक लगती है. साथ ही, इसमें कुछ फिल्टर ऐसे हैं जो आपको बुढ़ापा या जवानी का लुक भी दे सकते हैं. इस वजह से ये ऐप ज्यादा ही मशहूर हो रहा है. बुढ़ापे और जवानी के अलावा नई हेयरस्टाइल, दाढ़ी का स्टाइल, चश्मा लगाने और मेकअप जैसे फिल्टर भी इस ऐप में दिए गए हैं. ये ऐप 2017 में पहली बार लॉन्च की गई थी.
रूस आधारित इस ऐप के नियम और शर्तों से यूजर्स की निजता में सेंध लगने की बात सामने आई है. पहले ये बात बस सोशल मीडिया के यूजरों के बीच ही थी लेकिन अमेरिकी सीनेट में नेता चक शूमे ने इस ऐप को प्रतिबंधित करने और इसकी जांच एफबीआई से करवाने की बात कही है. शूमे का कहना है कि यह ऐप निजता के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी खतरा है. यह ऐप यूजर का डाटा चोरी कर रही है. उन्होंने कहा कि अमेरिकी नागरिकों की संवेदनशील जानकारी इस ऐप के जरिए लीक हो रही हैं.
हालांकि इस ऐप को बनाने वाली कंपनी ने इन आरोपों से इंकार किया है. कंपनी का कहना है कि तस्वीरों को क्लाउड पर प्रोसेस किया जाता है जिससे वो अच्छे से एडिट की जा सकें. तस्वीर के प्रोसेस होने के 48 घंटे बाद इसे सर्वर से डिलीट कर दिया जाता है.
ऐसा क्या है शर्तों में
ऐप के इस्तेमाल की शर्तों में लिखा है कि फेसऐप को लगातार, हमेशा के लिए, नॉनएक्सक्लूसिव, बिना किसी रॉयल्टी के, पूरी दुनिया में, पूरी तरह से देय, इस्तेमाल किए जाने के लिए हस्तांतरणीय लाइसेंस दिया जाता है जो यूजर के डाटा को अपने हिसाब से इस्तेमाल कर सके. इसे वह किसी और को बेच सकता है. इसे अपने हिसाब से बदल सकता है. इसे किसी भी मीडिया फॉरमेट में इस्तेमाल कर सकता है. वो इसे हाल में उपलब्ध या आने वाले समय में आए किसी भी प्लेटफॉर्म पर इस्तेमाल कर सकता है. इसके लिए यूजर को किसी तरह का कोई भुगतान या मुआवजा नहीं दिया जाएगा.
इस जटिल भाषा को आसान करने पर समझ आता है कि अगर आपने कभी एक फोटो एडिट करने के लिए इस ऐप का इस्तेमाल किया तो वह तस्वीर कंपनी द्वारा किसी भी काम में ली जा सकती है. यह कंपनी के प्रचार से लेकर किसी भी काम आ सकती है. बड़ी बात यह है कि इसकी जानकारी भी यूजर को नहीं दी जाएगी. हो सकता है कंपनी आने वाले दिनों में आपकी तस्वीर किसी प्रचार कंपनी को बेच दे जो कहीं शराब के विज्ञापन के साथ आपकी तस्वीर लगाकर बेचे और आपको पता भी ना चले.
इसके अलावा ऐप की शर्तों में लिखा है कि फेसऐप को ये अनुमति दी जाती है कि वह किसी भी सामग्री का इस्तेमाल कर सकेगा चाहे उसके साथ किसी का नाम, आवाज, पहचान या कोई और निजी चीज जुड़ी हुई है. मतलब इस ऐप पर जिसकी भी तस्वीर आएगी उसका पूरा अधिकार यूजर फेसऐप को दे रहा है. साथ ही वह अपनी पहचान उजागर करने की अनुमति भी दे रहा है. जो यूजर की निजता के लिए एक बड़ा खतरा है. इसके अलावा शर्तों में लिखा है कि ऐप पर कुछ भी पोस्ट करने का मतलब है कि वह सामग्री पब्लिक होगी और उस सामग्री के साथ जो भी जानकारी होगी वो भी सार्वजनिक हो जाएगी. कुछ यूजर्स का आरोप है कि फेसऐप द्वारा उनकी गैलरी से तस्वीरें अपने सर्वर पर अपलोड की जा रही हैं.
ऐप बनाने वाली कंपनी का क्या कहना है
फेसऐप बनाने वाली कंपनी ने इस विषय पर एक बयान जारी किया है. बयान में कहा गया है,"हम तस्वीरों को क्लाउड पर अपलोड करते हैं लेकिन इसकी मुख्य वजह परफॉर्मेंस और ट्रैफिक. हम यह तय करना चाहते हैं कि एक यूजर बार-बार एक ही तस्वीर अपलोड नहीं करता रहे. इसलिए अपलोड की गई अधिकतर तस्वीरें अपलोड होने के 48 घंटे बाद डिलीट कर दी जाती हैं. हम यूजर का डाटा किसी थर्ड पार्टी के साथ साझा नहीं करते हैं. हम यूजर के डाटा जिसमें कुकीज, लॉग फाइल, डिवाइस की पहचान, लोकेशन और इस्तेमाल का डाटा शामिल है, को फेसऐप को बनाने वाली कंपनी के स्वामित्व वाली दूसरी पार्टियों के साथ साझा करता है. इसका उपयोग सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए किया जाएगा. डाटा को सिर्फ उन्हीं थर्ड पार्टियों के साथ साझा किया जाएगा जो फेसऐप की गुणवत्ता सुधार के लिए काम करती हैं. हम किसी यूजर की गैलरी से सिर्फ उसी तस्वीर को अपलोड करते हैं जिसे यूजर चाहता है."
हालांकि फेसऐप को इस्तेमाल करने के नियम और शर्तों में 48 घंटे के अंदर क्लाउड से तस्वीरें डिलीट करने का जिक्र नहीं है. इसके साथ ही ऐप की शर्तों में लिखा है कि इन तस्वीरों का इस्तेमाल उन सभी देशों में किया जा सकता है जहां फेसऐप काम करता है. फेसऐप आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और न्यूरल नेटवर्क तकनीक पर काम करता है. ऐसे में काम करने के लिए इसे ज्यादा जानकारी चाहिए होती है. कंपनी ने बयान जारी कर सफाई दी है और चल रहे विवादों को कम करने की कोशिश की है.
खैर, जो भी विवाद चल रहा हो लेकिन यूजर्स इस ऐप का जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं. डाटा के मुताबिक एपल ऐप स्टोर पर 121 देशों में इस समय फेसऐप डाउनलोड किए जाने के हिसाब से नंबर 1 बना हुआ है. गूगल प्ले स्टोर से इस ऐप को अब तक 10 करोड़ से ज्यादा बार डाउनलोड किया जा चुका है. आम यूजर्स के अलावा कई सेलेब्रिटी भी इसका इस्तेमाल कर रहे हैं.
अपने ऑनलाइन एकाउंट की सुरक्षा के लिए यूजर पासवर्ड के अलावा टू फैक्टर ऑथेन्टिकेशन प्रक्रिया का इस्तेमाल करते हैं. इसमें सिक्युरिटी कोड फोन पर आ जाता है. लेकिन क्या फेसबुक जैसी कंपनी पर भरोसा किया जा सकता है.
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क्या है फीचर
फेसबुक का एक सिक्युरिटी फीचर है "टू फैक्टर ऑथेन्टिकेशन". फीचर का मकसद है यूजर के एकाउंट को हैकर्स से बचाना. इस सिस्टम में यूजर सबसे पहले अपने एकाउंट में लॉग-इन करता है और फिर अपना पासवर्ड डालता है. लेकिन इसके बाद यूजर की पहचान को पुख्ता करने के लिए दूसरे चरण में एक कोड यूजर के स्मार्टफोन पर भेजा जाता है. इसके बाद ही यूजर अपना फेसबुक एकाउंट एक्सेस करता है.
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ये हैं खामियां
फेसबुक के इस सिक्युरिटी फीचर में ढेर सारी खामियां हैं, जिसमें सबसे अहम है कि यह सब एक बाहर की कंपनी के प्लेटफॉर्म पर होता है. एक अमेरिकी स्टडी के मुताबिक जब यूजर अपने मोबाइल नंबर को फेसबुक पर रजिस्टर करता है तो वह अपने नंबर को मार्केटिंग से जुड़ी चीजों के लिए भी इस्तेमाल करने की इजाजत दे देता है.
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मार्केटिंग और बहुत कुछ
मार्केटिंग के अलावा, कंपनियां यूजर्स को फोन नंबर की मदद से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर तलाश भी कर सकती हैं. इसका मतलब है कि अगर आपके पास किसी का मोबाइल नंबर है तो आप उसका प्रोफाइल आसानी से खोज सकते हैं. हैरानी की बात है कि इस फीचर को बंद नहीं किया जा सकता, लेकिन अपने फेसबुक फ्रेंड्स और उनकी फ्रैंड्स लिस्ट के लिए इसे सीमित किया जा सकता है.
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क्या है डर
जर्मनी के हैम्बर्ग में डाटा प्रोटेक्शन कमिश्नर योहानस कास्पर कहते हैं कि फेसबुक लोगों की सिक्योरिटी से जुड़ी चिंता को भुना रहा है. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "फेसबुक यूजर्स से बिना पूछे डाटा इस्तेमाल कर रहा है जो यूरोपीय कानूनों का उल्लघंन हैं." वहीं फेसबुक इस पर कुछ और ही तर्क देता है.
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फेसबुक का तर्क
अमेरिकी मीडिया में फेसबुक के हवाले से कहा गया है कि फेसबुक का यह फीचर यूजर को मोबाइल नंबर के जरिए अपने ऐसे दोस्तों को ढूंढने का मौका देता है जो उनके परिचित तो हैं लेकिन फेसबुक पर जुड़े नहीं हैं. फेसबुक का कहना है जो भी इस प्रक्रिया को गलत समझता है वह अपना मोबाइल नंबर नेटवर्क से डिलीट कर दे.
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नया फीचर
इस बहस के बीच एक नया टू फैक्टर ऑथेन्टिकेशन फीचर लॉन्च किया गया है, जिसमें मोबाइल नंबर के बजाय किसी बाहर की कंपनी द्वारा तैयार की गई ऑथेन्टिकेशन ऐप इस्तेमाल की जाती है. ऐप इस्तेमाल को विशेषज्ञ ज्यादा सुरक्षित तरीका मान रहे हैं. वहीं फेसबुक अब भी अपने यूजर्स से टू फैक्टर ऑथेन्टिकेशन के इस्तेमाल के लिए कह रहा है.
तस्वीर: Reuters/D. Ruvic
बैंकिंग में इस्तेमाल
कुछ मामलों में विशेषज्ञ टू-फैक्टर प्रक्रिया के इस्तेमाल पर जोर देते रहे हैं. ऐसे फीचर आमतौर पर बैंकिंग में इस्तेमाल किए जाते हैं. लेकिन मोबाइल फोन के जरिए यूजर ऑथेन्टिकेशन को अब सुरक्षित नहीं माना जा रहा है क्योंकि यह फीचर काफी कुछ उस कंपनी पर निर्भर करता है जो इसे ऑपरेट करती है.
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हैकर्स का खतरा
एक खामी और भी है. स्मार्टफोन पर टेकस्ट मैसेज तब भी दिखाई देते हैं जब फोन स्टैंडबाय पर हो, साथ ही फोन पर आया सिक्योरिटी कोड से जुड़ा मैसेज इन्क्रिप्टेड मतलब किसी कोड में नहीं होता. ऐसे में हैकर्स के लिए ऐसे संदेशों को मॉनिटर करना बेहद आसान हो जाता है. ऐसी सब कमियों के चलते अब विशेषज्ञ टू-फैक्टर ऑथेन्टिकेशन के बजाय, ऑथेन्टिकेशन ऐप्स के इस्तेमाल की वकालत कर रहे हैं.
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मोबाइल नंबर से पहचान
विशेषज्ञ अब कहने लगे हैं कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर मोबाइल नंबर देना जोखिम भरा हो सकता है. अब कई कंपनियां यूजर से ईमेल एकाउंट सेट करने के लिए भी फोन नंबर मांगती हैं. जानकार कहते हैं कि मोबाइल नंबर किसी को पहचानने का सबसे बड़ा तरीका है. मोबाइल नंबर के जरिए कंपनियां यूजर की गतिविधियों पर नजर रख सकती हैं इसलिए डाटा पर निर्भर रहने वाली फेसबुक जैसी कंपनियां फोन नंबर पर जोर देती हैं.
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फीचर का विरोध
टेक उद्यमी जेरेमी बर्ज ट्विटर पर फेसबुक के इस फीचर का लंबे समय से विरोध कर रहे हैं. फेसबुक के पूर्व चीफ सिक्योरिटी ऑफिसर एलेक्स स्टामोस भी इस फीचर की आलोचना करते हैं. एलेक्स कहते हैं, "फेसबुक का टू फैक्टर फीचर इसकी विश्वसनीयता को खतरे में डाल रहा है." कुछ विशेषज्ञ तो ये भी मानते हैं कि ये फीचर राजनीतिक ताकतों का विरोध करने वाले ऐसे लोगों के लिए खतरा साबित हो सकते हैं जो गुमनाम रहना चाहते हैं.
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असंवेदनशील होते यूजर
फेसबुक के इस मॉडल के चलते जानकारों को एक और डाटा स्कैंडल का डर सताने लगा है. कास्पर को डर है कि फेसबुक से जुड़े ऐसे खुलासे यूजर्स को असंवेदनशील बना सकते हैं, और इस वजह से हो सकता है फेसबुक डाटा सिक्योरिटी जैसी बातों पर ध्यान न दे और अपने मौजूदा बिजनेस मॉडल पर कायम रहे.
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फेसबुक नहीं सुधरा
पिछले सालों में एलेक्स स्टामोस की तरह फेसबुक के कई बड़े अधिकारियों ने कंपनी को अलविदा कह दिया है. न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक फेसबुक छोड़ कर गए अधिकारी डाटा सिक्योरिटी से जुड़े मुद्दों पर कंपनी के साथ सहमत नहीं थे. यहां तक कि फेसबुक में चीफ सिक्योरिटी ऑफिसर का पद अब तक खाली पड़ा हुआ है. इससे कहीं न कहीं ऐसा लगता है कि डाटा सिक्योरिटी जैसे मुद्दों पर फेसबुक जैसी कंपनी गंभीर नहीं है.