कैप्टन राकेश शर्मा की अंतरिक्ष यात्रा के 40 साल बाद एक भारतीय अंतरिक्ष में जा रहा है. भारतीय वायुसेना के फाइटर पायलट शुभांशु शुक्ला अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन जाने वाले दल में शामिल हैं.
ग्रुप कैप्टेन शुभांशु शुक्ला आइएसएस के लिए जा रहे अगले मिशन का हिस्सा हैं.तस्वीर: AXIOM SPAC/AFP
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अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) में शामिल होने वाले पहले भारतीय शुभांशु शुक्लाके साथ भारत की अंतरिक्ष की महत्वाकांक्षाएं भी ऊंची उड़ान भरेंगी. उत्तर प्रदेश के लखनऊ में पले बढ़े 39 साल के शुक्ला अमेरिका की एक प्राइवेट कंपनी एक्सिओम स्पेस के चार सदस्यों वाले मिशन का हिस्सा हैं. इसे 11 जून को स्पेसएक्स के क्रू ड्रैगन कैप्सूल के जरिए फ्लोरिडा के कैनेडी स्पेस सेंटर से लॉन्च किया जाना है.
शुभांशु शुक्ला आईएसएस में शामिल होने वाले पहले और पृथ्वी की कक्षा में पहुंचने वाले दूसरे भारतीय होंगे. शुक्ला की यह यात्रा 1984 में कैप्टन राकेश शर्मा के रूसी सोयूज यान में उड़ान भरने के चार दशक बाद हो रही है. भारतीय अंतरिक्ष विभाग के अनुसार, "शुक्ला का मिशन प्रतीकात्मकता से आगे बढ़कर रणनीतिक महत्व रखता है. इस बार ध्यान संचालन क्षमता और वैश्विक एकीकरण पर है."
शुक्ला ने 2020 में रूस के यूरी गगारिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर में तीन दूसरे भारतीयों के साथ प्रशिक्षण लिया, और फिर बेंगलुरु के इसरो केंद्र में आगे की ट्रेनिंग की. इस मिशन को भारत अपनी मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मान रहा है. शुक्ला ने हाल ही में 'द हिंदू' अखबार से बातचीत में कहा था, "मैं सच में मानता हूं कि भले ही मैं व्यक्तिगत रूप से अंतरिक्ष की यात्रा कर रहा हूं, लेकिन यह 1.4 अरब लोगों की यात्रा है."
शुभांशु शुक्ला केवल दूसरे ऐसे भारतीय हैं जो अंतरिक्ष में जा रहे हैंतस्वीर: AXIOM SPACE/AFP
शुभांशु शुक्ला ने उम्मीद जताई कि यह मिशन भारत में एक पूरी पीढ़ी की जिज्ञासा को जगाएगा और भविष्य में ऐसे कई मिशनों के लिए प्रेरित करेगा. वायुसेना में ग्रुप कैप्टन (जो सेना में कर्नल या नौसेना में कैप्टन के समकक्ष होता है) शुक्ला इस कमर्शियल मिशन के पायलट होंगे. यह मिशन अमेरिकी अंतरिक्ष और अनुसंधान एजेंसी (नासा) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की साझेदारी में हो रहा है.
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गगनयान की दिशा में एक कदम और
भारत के अंतरिक्ष विभाग ने इस मिशन को अपनी महत्वाकांक्षाओं का "एक निर्णायक अध्याय" बताया है. विभाग ने शुक्ला को 2027 में प्रस्तावित भारत की पहली मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान "गगनयान" के लिए "शीर्ष दावेदारों में से एक" बताया है.
विभाग ने लॉन्च से पहले कहा, "उनकी यात्रा सिर्फ एक उड़ान नहीं है, बल्कि यह संकेत है कि भारत अंतरिक्ष अन्वेषण के एक नए युग में साहसिक कदम रख रहा है." भारतीय मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, इस मिशन के लिए भारत ने 6 करोड़ डॉलर से अधिक का भुगतान किया है.
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही 2040 तक मानव को चंद्रमा पर भेजने की योजना की घोषणा कर चुके हैं. इसरो ने मई में कहा कि वह इस साल के अंत तक एक मानवरहित कक्षीय मिशन लॉन्च करेगा, जिसके बाद 2027 की शुरुआत में पहला मानवयुक्त मिशन भेजा जाएगा.
एक्सियोम मिशन 4 के तहत शुक्ला की यात्रा और आईएसएस पर करीब 14 दिन का प्रवास भारत के लिए "अमूल्य" अनुभव लेकर आएगा. मिशन की कमान नासा की पूर्व अंतरिक्ष यात्री पेगी व्हिटसन के हाथ में होगी. उनके साथ यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) के पोलैंड के स्लावोश उजनांस्की-विस्निवस्की और हंगरी के टिबोर कापू भी होंगे.
शुक्ला एक अनुभवी फाइटर पायलट हैं, जो रूसी सुखोई और मिग विमानों को उड़ाने का अनुभव रखते हैं. अगर किसी कारण से वह उड़ान नहीं भर पाए, तो उनकी जगह लेने के लिए 48 साल के ग्रुप कैप्टन प्रसांत बालकृष्णन नायर को भी ट्रेन किया गया है और इस मिशन पर भेजा जा सकता है.
शुभांशु शुक्ला समेत चार लोगों को इस यात्रा के लिए ट्रेन किया गया हैतस्वीर: AXIOM SPACE/AFP
हमें चांद चाहिए: कहानी, इंसान और चांद की
इंसानी विकास का क्रम, चांद को देखने-समझने की क्रमवार यात्रा भी है. इसके पड़ावों में कौतुक भी है, भक्ति भी. वो कभी प्रेम-कामना का रूपक है, कभी भाग्य बांचने की कक्षा. देखिए इस यात्रा की कुछ झलकियां.
हजारों साल पहले जब हमारे पुरखे रात के आसमां को तकते होंगे, तो दूर ऊंचाई में दिखता होगा एक रोशन गोला. कभी उजली रोशनी में डूबा, कभी मलाई की परत सा पीला, तो कभी बुझा-बुझा, निस्तेज. घटता-बढ़ता. दिन में दिखने वाले उस भभकते गोल से बिल्कुल अलग, जिसकी रोशनी में आंखें चौंधिया जाती हैं. तब चांद विस्मय और कौतुक का विषय रहा होगा.
तस्वीर: darkfoxeluxir/Imago Images
पहला कैलेंडर
सुबह होती है. सूरज उगता है. दिन ढलता है. चांद उगता है. हमारे लिए इस क्रम में कुछ नया नहीं, कोई कौतुहल नहीं. लेकिन प्राचीन मानवों के लिए यह तयशुदा चक्र समय मापने का एक भरोसेमंद जरिया था. इंसानों का सबसे शुरुआती कैलेंडर. कैंब्रिज आर्कियोलॉजिकल जर्नल में छपे एक पेपर में शीत युग के कुछ गुफा चित्रों को चांद पर आधारित कैलेंडरों का सबसे शुरुआती साक्ष्य माना गया.
तस्वीर: BORJA SUAREZ/REUTERS
जब इंसान शिकारी था...
शीत युगीन कई गुफा चित्रों में खास तरह के डॉट और डैश मिलते हैं, जो जानवरों के चित्र के नजदीक बने हैं. शोधकर्ताओं का कहना है कि ये चिह्न अलग-अलग मौसमों में जानवरों के बर्ताव को दिखाते हैं. चूंकि तब मानव शिकार पर निर्भर थे, ऐसे में प्रजनन चक्र जैसी जानकारियां उनके लिए बेहद अहम थीं. अनुमान है कि इन जानकारियों के लिए लूनर कैलेंडर का इस्तेमाल किया जाता था.
तस्वीर: RAMI AL SAYED/AFP
चंद्र देवता
आगे चलकर जब मानव सभ्यताएं विकसित हुईं, तो कई जगहों पर चांद धार्मिक-आध्यात्मिक मान्यताओं का हिस्सा बना. मसलन प्राचीन मिस्र में खोंसू, चंद्रमा के देवता माने जाते थे. विश्वास था कि इंसान के मरने के बाद की यात्रा में खोंसू उन्हें बुरी शक्तियों से बचाते हैं. सुमेरियन सभ्यता में नाना/सेन को चंद्रमा का देवता माना जाता था. वो सबसे लोकप्रिय देवताओं में थे.
तस्वीर: MAURO PIMENTEL/AFP
आज भी होती है चंद्रमा की पूजा
कई संस्कृतियों में चांद को पूजे जाने का भी चलन रहा है. प्राचीन रोम में देवी लूना, चंद्रमा का ही दिव्य रूप थीं. रूस ने चंद्रमा पर जो मिशन भेजा, उसका नाम भी लूना ही था. भारत के कई हिस्सों में आज भी चंद्रमा की पूजा होती है. यहूदी परंपरा में "रोश होदेश" चांद का महीना माना जाता है. इसकी शुरुआत शुक्लपक्ष के चांद की पहली झलक से शुरू होती है. इस्लाम में भी रमजान और ईद का चांद के देखे जाने से नाता है.
तस्वीर: MARTIN BERNETTI/AFP
गीत, साहित्य, कविताएं...
लोक परंपरा और साहित्य में चांद के दर्जनों रूप हैं. बच्चों की लोरी में वो चंदा मामा है. बाल कृष्ण की कहानी में यशोदा चांद दिखाकर उन्हें बहलाती हैं. पुराने समय से लेकर आज तक, साहित्य और गीत-संगीत में चांद कई तरह के रूपकों में इस्तेमाल होता आ रहा है. हिंदी फिल्मी गानों को ही लीजिए, तो चांद की उपमा वाले दर्जनों गाने आपको मुंहजुबानी याद होंगे.
1960 के दशक में जब चांद पर जाने की होड़ शुरू हुई, तो यह वाकई मानव सभ्यता के लिए बड़ी छलांग थी. सोवियत संघ और अमेरिका, दोनों दौड़ जीतना चाहते थे. सितंबर 1959 में सोवियत संघ का लूना2 चांद पर लैंड होने वाला पहला अंतरिक्षयान बना. इसके बाद कई "फर्स्ट" वाले पल आए. जैसे, पहली सॉफ्ट लैंडिंग. चांद की सतह की पहली तस्वीर. चांद के पास से पहली बार गुजरना.
तस्वीर: NASA/CNP/AdMedia/picture alliance
वन स्मॉल स्टेप फॉर अ मैन...
फिर आई चांद के इतिहास की सबसे यादगार तारीख: 16 जुलाई, 1969. इसी दिन नासा के अपोलो 11 मिशन ने पहली बार इंसान को चांद की सतह पर उतारा. नील आर्मस्ट्रॉन्ग और बज आल्ड्रिन ने चांद की जमीन पर पैर धरा. बाद में अपना अनुभव बताते हुए नील ने ऐतिहासिक पंक्ति कही: वन स्मॉल स्टेप फॉर अ मैन, वन जाइंट लीप फॉर मैनकाइंड. तस्वीर में: चांद की जमीन पर नील आर्मस्ट्रॉन्ग के जूते का निशान.
तस्वीर: NASA/Heritage Images/picture alliance
इतना अविश्वसनीय कि बहुतों को अब भी संदेह
यह इतनी अद्भुत उपलब्धि थी, इतनी हैरतअंगेज कि कई लोग आज तक इसपर यकीन नहीं कर पाए हैं. कन्सपिरेसी थिअरीज के कई मुरीद आज भी कहते हैं कि वो लैंडिंग एक झूठ थी. उनके तर्कों की एक मिसाल: जब चांद पर गुरुत्वाकर्षण नहीं है, तो झंडा फहराया कैसे? 2019 का एक चर्चित वायरल वीडियो है, जिसमें बज आल्ड्रिन ऐसे ही एक "लैंडिंग डिनायर" से नाराज होकर उसे घूंसा मारते हैं.
तस्वीर: NASA/Zuma/picture alliance
फिर से दौड़ लगी है...
अगस्त 2007 में एक रूसी झंडे की खूब चर्चा हुई. यह झंडा आर्कटिक की तलछटी में लगाया गया था. वहां के संसाधनों में हिस्सेदारी के लिए यह रूस की सांकेतिक दावेदारी मानी गई. तब पश्चिमी देशों ने रूस को याद दिलाया कि ये 15वीं सदी नहीं है कि झंडा गाड़ो और कहो, आज से ये जमीन हमारी! हाल के दशकों में चंद्रमा के लिए फिर से एक दौड़ शुरू हुई है. तो क्या चंदा किसी दिन रूप और शीतलता के रूपकों से हटकर संसाधन बन जाएगा?
तस्वीर: ingimage/IMAGO
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तेजी से बढ़ता भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम
पिछले एक दशक में भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम तेजी से बढ़ा है. कम लागत में बड़ी उपलब्धियां हासिल कर भारत ने अंतरिक्ष की दुनिया में अपनी जगह बनाई है. अगस्त 2023 में भारत रूस, अमेरिका और चीन के बाद चंद्रमा पर यान उतारने वाला चौथा देश बना.
शुक्ला की पत्नी और बेटे समेत सभी भारतवासी उनकी वापसी का इंतजार करेंगे. शुक्ला के परिवार में उनके माता पिता के अलावा दो बहनें हैं. उनकी बड़ी बहन शुची एक स्कूल टीचर हैं. अंग्रेजी दैनिक 'टाइम्स ऑफ इंडिया' से बातचीत में उन्होंने कहा, "सिर्फ यह सोचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं कि मेरा भाई जल्द ही अंतरिक्ष में होगा."