ट्रांसजेंडर को रोजगार देने वाली कंपनियों को टैक्स में राहत
८ जून २०२१
ट्रांसजेंडर लोगों को काम पर रखने वाली बांग्लादेशी कंपनियों को टैक्स में छूट दी जा सकती है. क्योंकि सरकार उन लोगों की नौकरी की संभावनाओं को बढ़ावा देना चाहती है. इसे समुदाय के लोगों के लिए सकारात्मक कदम बताया जा रहा है.
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बांग्लादेश के वित्त मंत्री एएचएम मुस्तफा कमाल ने हाल ही में संसद में बयान दिया कि अगर कोई कंपनी अपने यहां कुल कर्मचारियों में 10 प्रतिशत या कम से कम 100 ट्रांसजेंडरों को काम पर रखती है तो उसे टैक्स में सीधे छूट मिलेगी. इस प्रस्ताव के बारे में कमाल ने संसद में कहा, "तीसरा लिंग समुदाय हाशिए पर है और समाज का वंचित वर्ग है." बांग्लादेश में ट्रांसजेंडर समुदाय दशकों से समाज से कटा हुआ है. कमाल ने कहा, "दूसरों की तुलना में, थर्ड जेंडर समुदाय पिछड़ रहा है...और मुख्यधारा के समाज से बाहर निकल गया है. इसमें सक्रिय लोगों को शामिल कर सामाजिक समावेश सुनिश्चित किया जा सकता है. ऐसे लोगों को उत्पादन-उन्मुख व्यवसाय में रोजगार दिया जा सकता है."
अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि दक्षिण एशियाई देशों में ट्रांसजेंडर अक्सर कम उम्र में ही अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर होते हैं. उन्हें ना तो अच्छी शिक्षा मिल पाती है और ना ही नौकरी. आखिरकार उन्हें भीख मांग कर या गरीबी में अपना जीवन बिताना पड़ता है. पिछले साल नवंबर में ढाका में किन्नर समुदाय के लोगों की इस्लामी शिक्षा के लिए केंद्र खोला गया था. इसके मौलवी अब्दुर्रहमान आजाद कहते हैं, "जो लोग ट्रांसजेंडर होते हैं वे भी इंसान होते हैं, उन्हें भी शिक्षा का अधिकार है. उन्हें भी सम्मानजनक जिंदगी जीने का अधिकार है."
योजनाओं से ज्यादा की जरूरत
बांग्लादेश सरकार का अनुमान है कि देश में 11,500 ट्रांसजेंडर हैं जबकि अधिकार समूहों का कहना है कि उनकी आबादी एक लाख से अधिक हो सकती है. 2013 में सरकार ने ऐतिहासिक फैसले में एलजीबीटी प्लस को तीसरे लिंग की मान्यता दी थी, लेकिन उनकी हालत में सुधार नहीं आया है और समलैंगिक सेक्स अब भी गैर कानूनी है.
अधिकार समूहों ने नए प्रस्ताव का स्वागत किया, जिसके संसद से पारित होने की उम्मीद है, लेकिन समूहों ने सरकार से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया यह प्रस्ताव ठीक से क्रियान्वित किया जाए. अधिकार समूह संपोर्कर नोया सेतु की जोया शिकदर कहती हैं, "ऐसी कई घोषणाएं हैं जो कि ट्रांसजेंडर समुदाय के समर्थन में की जाती हैं, लेकिन उनमें से ज्यादातर योजनाएं काम नहीं करतीं. सरकार को इन योजनाओं पर नजर रखने की जरूरत है."
इसी साल मार्च में देश में पहली ट्रांसजेंडर न्यूज एंकर ने समाचार पढ़कर इतिहास रचा था. 29 वर्षीय तश्नुआ आनन ने ट्रांसजेंडर लोगों के लिए नौकरी में आरक्षण और नियोक्ताओं के लिए जागरूकता प्रशिक्षण सत्र आयोजन की मांग की है. उन्होंने कहा, "यह एक अच्छी पहल है, लेकिन ये कदम बहुत बड़े पैमाने पर उठाए जाने चाहिए. ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों को भी अपने कौशल को विकसित करने की जरूरत है, तभी जाकर उन्हें नौकरी पर रखा जा सकता है."
एए/वीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
एक ट्रांसजेंडर बनीं जर्मनी की अगली टॉपमॉडल
एक ट्रांसजेंडर, एक शरणार्थी, एक सुडौल मॉडल - जर्मनी की सबसे लोकप्रिय सौंदर्य प्रतियोगिता का स्वरूप बदलता जा रहा है. प्रतियोगिता के आयोजक शायद यह संदेश देना चाह रहे हैं कि असली सुंदरता ऊपरी नहीं बल्कि अंदरूनी होती है.
तस्वीर: Matthias Balk/dpa/picture alliance
मिलिए विजेता ऐलेक्स से
जर्मनी के कोलोन की रहनी वालीं ऐलेक्स मरिया पीटर सौंदर्य प्रतियोगिता "जर्मनीज नेक्स्ट टॉप मॉडल" के इतिहास में उसे जीतने वाली पहली ट्रांसजेंडर महिला बन गई हैं. जीत के बाद 23 वर्षीय ऐलेक्स ने कहा, "अलग होने के बारे में जितना हम अपने आप से स्वीकार करते हैं, वो उससे ज्यादा सामान्य है."
सुंदरता का समावेशी अवतार
"समावेश" अब एक वैश्विक नारा है और इस कार्यक्रम ने इसे अपने लोगों में एक '*' जोड़ कर शामिल किया. '*' कई लिंग आधारित भूमिकाओं के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक चिन्ह है. ऐसी महिलाएं जो अलग होने की वजह से पहले अधिकारहीन थीं वो अब इस प्रतियोगिता से जुड़ सकती हैं. शरणार्थी, सुडौल महिलाएं और ट्रांसजेंडर - सब को यहां स्पॉटलाइट में एक मौका मिला.
सुडौल और सुंदर
यूक्रेन में पैदा हुई 21 वर्षीय डाशा पांच साल की उम्र से जर्मनी में रह रही हैं. उनका वजन 85 किलो है और वो कहती हैं कि सारी जिंदगी उन्हें लोग परेशान करते रहे और इसी वजह से वो सिर्फ जीतना ही नहीं बल्कि एक अहम संदेश देना चाहती थीं. आत्मविश्वास से भरी डाशा कहती हैं, "मैं एक आदर्श स्थापित करना चाहती हूं और जिन्हें सताया जाता है उनकी मदद करना चाहती हूं."
सपनों का पूरा होना
2015 में, सूलीन अपने परिवार के साथ अपने देश सीरिया से भाग कर तुर्की होते हुए जर्मनी आ गई थीं. जींस की एक कंपनी के लिए मॉडलिंग करते वक्त 20 वर्षीय सूलीन की आंखें भर आई थीं. वो अब एक मॉडल हैं और उन्होंने इस प्रतियोगिता में तीसरा स्थान हासिल किया है. वो कहती हैं, "मैं वो लड़की हूं जो अपने सपनों को पूरा नहीं कर पा रही थी. अब मैं यहां हूं और अपने सपने को जी रही हूं."
कद की भी समस्या
पांच फीट छह इंच लंबी रोमिना को आप "छोटी" तो नहीं कहेंगे, लेकिन प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए पांच फुट सात इंच का कद अनिवार्य होता है. प्रतियोगिता के लिए प्राकृतिक रूप से ही सुंदर होने के बावजूद रोमिना काइली जेनर जैसे सितारों की नकल करती थीं. उन्होंने अपने होंठों में बोटॉक्स के इंजेक्शन तक लगवाए थे. अब वो ऐसी लड़कियों की मदद करना चाहती हैं जो बिना सोचे समझे सोशल मीडिया के ट्रेंड के पीछे भागती हैं.
शरीर के रंग के परे
सारा नूरू के माता-पिता एथियोपिया से यूरोप आए थे. वो कहती हैं कि वो बवेरिया के एर्डिंग नगर के एक अस्पताल में पैदा होने वाली पहली अश्वेत बच्ची थीं. वो 2009 में इस प्रतियोगिता को जीतने वाली पहली अश्वेत मॉडल बनीं. उन्होंने उसके बाद एक लंबा सफर तय किया और आज वो अपने माता-पिता के मूल देश में विकास की परियोजनाओं से जुड़ी हुई हैं.
तस्वीर: Felix Heyder/dpa/picture-alliance
मॉडलों का सर्कस?
यह प्रतियोगिता 2006 से चल रही है और तब से सुप्रसिद्ध जर्मन सुपरमॉडल हाइडी क्लूम इसकी होस्ट हैं. कई सालों तक इसके मंच पर अधिकतर श्वेत, पतली और लंबी टांगों वाली लंबी महिलाओं को जगह दी जाती थी. ट्रांसजेंडर, कम साइज की और सुडौल महिलाओं की यहां कोई जगह नहीं थी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Kusch
अंदरूनी सुंदरता
इस प्रतियोगिता के जर्मनी में कई प्रशंसक हैं. खास कर युवा लड़कियां तो कार्यक्रम और उसके मॉडलों को अपना आदर्श मानती हैं. लेकिन आलोचक कहते हैं कि किशोरावस्था में अक्सर लड़कियां इस कार्यक्रम में दुबली और अस्वस्थ मॉडलों की नकल करती हैं जिससे यह संदेश जाता है कि सुंदरता शिक्षा से ज्यादा जरूरी है. इस साल भी महिलावादियों ने कार्यक्रम में "महिलाओं के शरीरों के कामुकीकरण" का विरोध किया. (सुजैन कॉर्ड्स)