मोदी सरकार के तीन मंत्री ब्रसेल्स में भारत-ईयू व्यापार और तकनीक परिषद की शीर्ष बैठक में हिस्सा ले रहे हैं. बैठक से बड़ी घोषणाओं की उम्मीद नहीं की जा रही है, लेकिन ईयू के एक नियम को लेकर दोनों पक्षों के बीच तनाव है.
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इस परिषद की घोषणा 2022 में यूरोपीय आयोग की प्रमुख उर्सुला फोन डेय लायन की भारत यात्रा के दौरान हुई थी. फरवरी 2023 में आधिकारिक रूप से परिषद की स्थापना की गई और अब बेल्जियम में इसकी पहली शीर्ष बैठक हो रही है.
परिषद का उद्देश्य भारत और ईयू के बीच व्यापार और तकनीक के क्षेत्रों में रणनीतिक संबंधों को बढ़ाना. इसमें कई कार्य समूह हैं जिनके जरिए दोनों पक्ष कनेक्टिविटी, ग्रीन टेक्नोलॉजी और लचीले सप्लाई चेन जैसे अति आवश्यक क्षेत्रों में मिल कर काम करेंगे.
ईयू का कार्बन टैक्स
भारत की तरफ से विदेश मंत्री एस जयशंकर, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल और इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव इसके सह-अध्यक्ष हैं. ईयू की तरफ से एग्जेक्टिव वाइस प्रेजिडेंट मार्गरेथ वेस्तागेर और वाल्दिस दोमब्रोव्सकिस सह-अध्यक्ष हैं.
ब्रसेल्स बैठक में ये सभी नेता हिस्सा ले रहे हैं. वैष्णव की जगह राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर हिस्सा ले रहे हैं. बैठक में कई महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा होगी, जिनमें भारत और ईयू के बीच मुक्त व्यापार संधि पर चल रही बातचीत भी शामिल है.
बैठक के दौरान जिस विवादास्पद विषय पर चर्चा हो सकती है वो है हाल ही में ईयू द्वारा मंजूर किया गया ईयू कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म. इसके तहत जनवरी 2026 से दूसरे देशों से ईयू आने वाले कुछ उत्पादों पर एक तरह का कार्बन टैक्स लगेगा.
व्यापार में अवरोधक?
यह टैक्स उन देशों के उत्पादों के आयात पर लगेगा जहां उत्पादन मुख्य तौर पर कोयले से मिलने वाली ऊर्जा पर निर्भर है. इनमें भारत भी शामिल है, लिहाजा भारत से स्टील, एल्यूमीनियम, सीमेंट और खाद जैसे उत्पाद ईयू निर्यात करने वाली कंपनियों को यह कर भरना पड़ेगा. इससे उत्पादों का दाम भी बढ़ सकता है.
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भारत इस कर का विरोध कर रहा है. सरकार ने कहा है कि यह व्यापार के रास्ते में एक अवरोधक है और इससे विश्व व्यापार संगठनों के नियमों का उल्लंघन भी हो सकता है. अब देखना होगा कि ब्रसेल्स बैठक में इस कर पर बातचीत आगे बढ़ती है या नहीं.
लेकिन बैठक सामरिक लिहाज से दोनों पक्षों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. भारत और ईयू आपसी व्यापारिक रिश्तों को और गहरा करने की कोशिश कर रहे हैं. दोनों पक्षों के बीच मुक्त व्यापार संधि पर बातचीत सालों पहले शुरू हुई थी. यह बातचीत बीच में कुछ सालों तक आगे नहीं बढ़ पाई लेकिन इसे हाल ही में फिर से शुरू किया है.
व्यापार और तकनीक परिषद का उद्देश्य भी दोनों पक्षों के व्यापारिक संबंधों को बढ़ाना ही नजर आता है. ऐसे में परिषद के तहत पहली शीर्ष बैठक बेहद महत्वपूर्ण है.
यूरोपीय देशों में ऐसे फैली है असमानता
यूरोप के देशों की भारत के राज्यों से तुलना की जा सकती है. इन देशों का आकर लगभग भारत के राज्यों जैसा ही है. हर देश की अलग भाषा, अलग खानपान और यहां तक कि अलग जीवन स्तर भी.
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बुल्गारिया
यूरोपीय संघ के सदस्य देशों में बुल्गारिया सबसे गरीब देश है. यहां भ्रष्टाचार भी सबसे व्यापक है. जर्मनी ट्रेड एंड इनवेस्ट (GTAI) के अनुसार, 2018 में यहां औसत आय केवल 580 यूरो प्रति माह थी. यूरोपीय संघ में शामिल होने के बाद से कई युवा लोगों ने देश छोड़ दिया. इनमें बहुत से पढ़े-लिखे लोग भी शामिल थे.
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रोमानिया
यूरोपीय संघ की आर्थिक रैंकिंग में नीचे से दूसरे स्थान पर है रोमानिया. यूरोपीय परिषद के अनुसार 2019 में यहां औसत आमदनी 1050 यूरो थी, जबकि उसी दौरान जर्मनी में यह 3994 यूरो थी.
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ग्रीस
आसमान से गिरे खजूर पर अटके, यह कहावत ग्रीस के लिए सही बैठती है. यह देश कर्ज संकट से अभी पूरी तरह उबरा भी नहीं था कि कोरोना की मार पड़ गई. ग्रीस मुख्य रूप से पर्यटन पर निर्भर है, जो इस दौरान ना के बराबर रहा है.
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फ्रांस
2018 के आंकड़ों के अनुसार यहां औसत रूप से हर व्यक्ति के पास 26,500 यूरो की संपत्ति है. जर्मन लोगों की तुलना में यह 10,000 यूरो ज्यादा है. वजह यह है कि फ्रांस में बहुत से लोग दो-दो घरों के मालिक हैं.
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इटली
ना कोई विकास, ना ही कोई सुधार. पिछले कुछ सालों में इटली की स्थिति को इन शब्दों में बयान किया जा सकता है. कोरोना की मार सबसे ज्यादा इटली को ही पड़ी. वह ईयू के राहत पैकेज के एक बड़े हिस्से की उम्मीद कर रहा है.
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स्पेन
सकल घरेलू उत्पाद में यहां लगभग 15 प्रतिशत योगदान पर्यटन का है. इस उद्योग को कोरोना के कारण भारी नुकसान हुआ. और अब जब लोगों ने एक बार फिर स्पेन जाना शुरू कर दिया है, तो कोरोना की दूसरी लहर का खतरा बन गया है.
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स्वीडन
यहां के लोग जितने संपन्न हैं, उतना ही ज्यादा इन्हें टैक्स भी चुकाना पड़ता है. जब कोरोना स्वीडन तक पहुंचा, तो सरकार ने लॉकडाउन ना करने का फैसला किया. नतीजतन काफी मौतें भी हुईं. टैक्स दरों के बावजूद स्वीडन में लोगों के पास औसत 27,511 यूरो है, यानी फ्रांस से भी ज्यादा.
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नीदरलैंड्स
स्वीडन, डेनमार्क ऑस्ट्रिया और नीदरलैंड्स - इन चार देशों के समूह को यूरोप में "किफायती चार" के नाम से जाना जाता है. इन्होंने पहले इटली की आर्थिक मदद करने से इनकार किया, फिर ईयू के कोरोना राहत पैकेज के मामले में भी ये चारों जरूरतमंद देशों की मदद करने से बचते दिखे. नीदरलैंड्स के लोगों के पास औसतन 60,000 यूरो की संपत्ति है.
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जर्मनी
जर्मनी के बारे में कहा जा सकता है कि जर्मनी की सरकार अमीर है, लोग नहीं. आर्थिक प्रदर्शन के लिहाज से यह ईयू का बेहतरीन देश है लेकिन यहां के लोगों के पास औसत रूप से महज 16,800 यूरो की ही संपत्ति है. आर्थिक रूप से कमजोर इटली के लोगों की संपत्ति भी इससे दोगुना है.