गैंडों का शिकार रोकने के लिए लगाए रेडियोएक्टिव चिप
२६ जून २०२४
दक्षिण अफ्रीका में गैंडों के सींगों में रेडियोएक्टिव पदार्थ डाल दिया गया है ताकि उनके शिकार को रोका जा सके.
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दक्षिण अफ्रीका में वैज्ञानिकों ने जीवित गैंडों के सींगों में इंजेक्शन से रेडियोएक्टिव पदार्थ डालने की एक नई योजना शुरू की है. इसका मकसद खतरे में पड़े इन जीवों को शिकारियों से बचाना है. वैज्ञानिकों का कहना है कि रेडियोएक्टिव पदार्थ की मदद से चौकियों पर इन गैंडों के सींगों को आसानी से पकड़ा जा सकेगा.
इंटरनेशनल राइनोसोरस फाउंडेशन के एक अनुमान के मुताबिक दक्षिण अफ्रीका में लगभग 15 हजार गैंडे रहते हैं. दुनिया के सबसे अधिक गैंडे दक्षिण अफ्रीका में ही पाए जाते हैं लेकिन वहां इनका सबसे ज्यादा शिकार भी होता है. एशिया में गैंडों के सींगों की भारी मांग है क्योंकि वहां इनका इस्तेमाल पारंपरिक दवाएं बनाने में किया जाता है. दक्षिण अफ्रीका के शिकारी गैंडों को मारकर उनके सींग काट लेते हैं और उन्हें एशियाई बाजारों में बेचा जाता है.
इस्तेमाल नहीं हो सकेंगे सींग
दक्षिण अफ्रीका के उत्तर पूर्व में वॉटरबर्ग इलाके में जानवरों के लिए लिंपोपो अनाथालय है, जहां गैंडों को रखा जाता है. विदवॉटर्सरैंड यूनिवर्सिटी की रेडिएशन एंड हेल्थ फिजिक्स यूनिट के डाइरेक्टर जेम्स लारकिन ने इस परियोजना की शुरुआत की है.
हाथियों और गैंडों के रक्षक रिचर्ड लीकी
केन्या में 1972 में मिले एक कंकाल ने मानव इतिहास की नई इबारत लिख दी. कंकाल खोजने वाली और उसकी डिटेलिंग करने वाली टीम के प्रमुख थे रिचर्ड अर्सकिन फ्रेयर लीकी. उनका 2 जनवरी, 2022 को 77 साल की उम्र में निधन हो गया.
तस्वीर: Siegfried Modola/Reuters
20 लाख साल पुराना कंकाल
साल 1972 में जीवाश्म विज्ञानियों की एक टीम उत्तरी केन्या की तुर्काना झील में इंसानी जीवाश्मों की खोज में जुटी थी. इसी झील के पास एक कंकाल पाया गया, जिसका अध्ययन करने पर पता चला कि यह करीब 20 लाख साल पुराना है. वैज्ञानिकों ने इसे होमो रूडोल्फेंसिस नाम दिया. मानव इतिहास की खोज के क्षेत्र में यह कंकाल मील का पत्थर साबित हुआ.
तस्वीर: Siegfried Modola/Reuters
मानव इतिहास को दी नई इबारत
केन्या में 1972 में मिले इस बेहद पुराने कंकाल ने मानव इतिहास की नई इबारत लिख दी. कंकाल खोजने वाली टीम के प्रमुख और इस कंकाल की डीटेलिंग करने वाले शख्स थे रिचर्ड अर्सकिन फ्रेयर लीकी. 2 जनवरी, 2022 को 77 साल की उम्र में उनका निधन हो गया.
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बताया कि अफ्रीका से दुनिया में फैला इंसान
लीकी के नेतृत्व में खोजे गए होमो रूडोल्फेंसिस ने ही इस धारणा को बल दिया कि आज जो इंसान धरती के तमाम हिस्सों पर काबिज हैं, उनका जन्मस्थान अफ्रीका ही है. हालांकि, इन खोजों के क्रम में उनका कई वैज्ञानिकों और संस्थाओं से टकराव भी हुआ.
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जीवाश्म विज्ञानी से जीव संरक्षक तक
अपने कई कामों और उससे भी ज्यादा अपने तौर-तरीकों के लिए दुनियाभर में मशहूर हुए रिचर्ड ने करियर की शुरुआत एक जीवाश्म विज्ञानी के तौर पर की थी. बाद में वह जीव संरक्षक, प्रशासक, सुधारक और राजनेता भी भूमिका में भी रहे. उन्होंने केन्या के नेशनल म्यूजियम और केन्या वाइल्डलाइफ सर्विस में कई पदों पर काम किया. 2004 में उन्होंने 'वाइल्डलाइफ डायरेक्ट' नाम का एक एनजीओ भी बनाया.
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माता-पिता भी जीवाश्म विज्ञानी
रिचर्ड के पिता लुई लीकी और मां मेरी डगलस लीकी भी जीवाश्म विज्ञानी थीं. उनकी सोहबत का ही असर था कि रिचर्ड बचपन में ही जीवाश्मों और इनकी खोजों से रूबरू होने लगे थे. मानवता की शुरुआत का पता लगाने के क्षेत्र में ही उन्होंने सबसे ज्यादा समय काम किया.
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शिकारियों को मरवा दी गोली
1989 में रिचर्ड को केन्या में हाथियों और गैंडों के शिकार पर रोक लगाने की जिम्मेदारी सौंपी गई, जो दांत और सींग की वजह से शिकारियों का निशाना बन रहे थे. इन जीवों के संरक्षण के लिए रिचर्ड ने बेहद आक्रामक ढंग से काम किया. शिकारियों को गोली मारने जैसे नियम बनाए गए. रिचर्ड ने हाथी-दांत और गैंडों के सींग के एक बड़े से ढेर को राष्ट्रपति के हाथों जलवाया. इन तस्वीरों ने दुनियाभर में सुर्खियां बटोरी थीं.
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निजी जिंदगी तकलीफों भरी
निजी जीवन वे चुनौतियों और तकलीफों से भी जूझे. 11 की उम्र में घोड़े से गिरने की वजह से उनके सिर की हड्डी टूट गई थी. जवानी में उन्हें किडनी ट्रांसप्लांट करना पड़ा. 1993 में उनका विमान क्रैश हो गया था, जिसे वे खुद उड़ा रहे थे. इस हादसे के बाद उनके पैर काटकर अलग करने पड़े. लेकिन रिचर्ड आखिरी वक्त तक अपने मकसद और काम में डटे रहे. उनका एक बयान मशहूर हुआ करता था, "मुझे लगता है कि दबाव मुझे सूट करता है."
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उन्होंने बताया कि सींग में दो छोटे रेडियोएक्टिव चिप लगाए गए हैं और इस प्रक्रिया में गैंडों को कोई दर्द नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि रेडियोएक्टिव मटीरियल की खुराक इतनी कम है कि इससे जानवरों की सेहत पर कोई असर नहीं होगा.
यूनिवर्सिटी के विज्ञान विभाग की डीन नित्या चेट्टी कहती हैं कि रेडियोएक्टिव चिप के कारण ये सींग कहीं भी इस्तेमाल नहीं किए जा सकेंगे क्योंकि यह मटीरियल इंसान के लिए जहरीला है.
फरवरी में देश के पर्यावरण मंत्रालय ने कहा था कि अवैध कारोबार को काबू करने की तमाम कोशिशों के बावजूद 2023 में 499 गैंडे मार दिए गए. यह 2022 के मुकाबले 11 फीसदी ज्यादा है.
सेहत का पूरा ख्याल
‘राइसोटॉप' नाम की इस योजना के तहत पहले चरण में 20 गैंडों को रेडियोएक्टिव चिप लगाए जाएंगे. ये चिप इतने शक्तिशाली होंगे कि अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर लगे न्यूक्लियर डिटेक्टर इन्हें पकड़ पाएंगे. लारकिन ने कहा कि ये डिटेक्टर न्यूक्लियर आतंकवाद को रोकने के लिए लगाए गए थे.
दुनियाभर में ऐसे हजारों डिटेक्टर लगे हैं. इनके अलावा हवाई अड्डों या अन्य अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर तैनात बॉर्डर एजेंटों के पास रेडिएशन डिटेक्टर होते हैं जो रेडियोएक्टिव पदार्थों को पकड़ सकते हैं.
ब्लैक मार्केट में गैंडों के सींगों की भारी मांग है और इनकी कीमत सोने और कोकेन के बराबर हो सकती है. गैंडों के लिए बनाए गए लिंपोपो अनाथालय की संस्थापक एरी वान डेवेंटर कहती हैं कि शिकार रोकने की कई कोशिशें नाकाम हो चुकी हैं, जिनमें गैंडों के सींग हटा देना या उन पर जहर लगा देना आदि शामिल हैं.
लगभग विलुप्त हो चुकी गैंडा प्रजाति को बचाने की कोशिश
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डेवेंटर कहती हैं, "हो सकता है शिकार रोकने की यह कोशिश कामयाब हो जाए. यह अब तक आया सबसे अच्छा आइडिया है.”
परियोजना की मुख्य अधिकारी जेसिका बाबिच कहती हैं कि सभी वैज्ञानिक और नैतिक मूल्यों और नियमों को ध्यान में रखा जा रहा है और आखिरी चरण में जानवरों की देखभाल पर ध्यान दिया जाएगा. वैज्ञानिक उनके खून के नमूने लेंगे ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ये विशाल प्राणी सुरक्षित हैं. उनके सींग में रेडियोएक्टिव पदार्थ पांच साल तक रहेगा.