दुनिया के पहले टेक्स्ट मैसेज यानी एसएमएस की नीलामी पेरिस में हुई. इस एसएमएस की कीमत 91 लाख रुपये से अधिक लगाई गई. इसको एक अनाम शख्स ने खरीदा है.
विज्ञापन
पेरिस के एगट्स नीलामी घर ने कहा कि 1992 में मोबाइल फोन पर भेजा गया पहला एसएमएस मंगलवार को नीलामी में एनएफटी के रूप में 1,21,600 डॉलर यानी 91 लाख 15 हजार रुपये से अधिक में बिका. इस पहले एसएमएस के खरीदार की पहचान का खुलासा नहीं किया गया है. इस एसएमएस की नीलामी एनएफटी यानी नॉन फंजीबल टोकन के रूप में हुई. इस एसएमएस को एनएफटी में तब्दील कर दिया गया है.
पहला एसएमएस वोडाफोन के कर्मचारी रिचर्ड जार्विस को "मेरी क्रिसमस" की बधाई के लिए भेजा गया एक 15 कैरेक्टर का संदेश था. प्रोग्रामर नील पापवर्थ ने अपने सहयोगी जार्विस को उस समय संदेश भेजा था, जब वे कंपनी की क्रिसमस पार्टी में शामिल थे. इस एसएमएस का खरीदार बिटक्वॉइन के बाद दूसरी सबसे बड़ी क्रिप्टोकरेंसी एथर में भुगतान करेगा.
एनएफटी क्या है?
एनएफटी यानी नॉन फंजीबल टोकन. अर्थव्यवस्था में फंजीबल संपत्ति उसे कहते हैं जो हाथ से ली-दी जा सके. जैसे आपके पास 100 रुपये का नोट है, जिसे देकर आप 50-50 रुपये के दो नोट ले सकते हैं. यह फंजीबल संपत्ति है. तो इसके उलट नॉन-फंजीबल हुआ, जिसका ठोस आधार पर लेन-देन ना हो सके. यानी उसकी कीमत कुछ ऐसी है कि उसके बदले कुछ लिया दिया नहीं जा सकता.
यह कोई घर भी हो सकता है, कोई पेंटिग या कोई तस्वीर हो सकती है. ऐसी चीजें दूसरी नहीं हैं, तो इनकी असल कीमत तय करना मुश्किल है. डिजिटल जगत में ऐसी चीजों को सामान्य चीजों की तरह खरीदा बेचा जा सकता है. इसके बदले डिजिटल टोकन मिल जाएंगे, जिन्हें एनएफटी कहा जाता है. एनएफटी को ब्लॉकचेन तकनीक के जरिए संभाला जाता है.
हर दिन 50 करोड़ डॉलर छापने वाली फैक्ट्री
पिछले 150 साल से यह फैक्ट्री अमेरिकी डॉलर छाप रही है. आइए आपको ले चलते हैं द ब्यूरो ऑफ एंग्रेविंग एंड प्रिंटिंग यानी बीईपी में जहां अमेरिकी डॉलर की छपाई होती है. यहां आज भी डिजिटल दुनिया के चिन्ह कम ही दिखाई देते हैं.
तस्वीर: DW/Marek/Steinbuch
नोट की फैक्ट्री
अमेरिका की सबसे बड़ी मनी फैक्ट्री को वॉशिंगटन में साल 1862 में बनाया गया. इसका मुख्यद्वार भव्य है और चूनापत्थर के विशाल खंभों पर टिका है. यह आकृति किसी किले का अहसास दिलाती है.
तस्वीर: DW/Marek/Steinbuch
डॉलर क्लॉक
हर साल 10 लाख से ज्यादा लोग कड़ी निगरानी वाले गलियारे से हो कर प्रिंटिंग रूम से गुजरते हैं. जब आप बीईपी की इमारत के अंदर होते हैं तो आप को बार बार लालची दानव यानी मैमन (धन के देवता) की याद दिलाई जाती है, जिसका यहां बोलबाला है, यहां तक कि इस विशाल घड़ी में भी आपको डॉलर ही दिखेंगे.
तस्वीर: DW/Marek/Steinbuch
हरी पत्ती का हरा रंग
डॉलर के नोट का हरा रंग शायद सबसे अहम और पुराना गुण है. यह रंग कैसे बनता है, यह अत्यंत गोपनीय तो है ही, इसका पेटेंट भी है. एड मेजिया उन चंद लोगों में से हैं जो इसके बारे में जानते हैं और वो छपाई पर नजर रखते हैं. उनकी यह मशीन हर घंटे डॉलर की 10 हजार शीट तैयार कर सकती है.
तस्वीर: DW/Marek/Steinbuch
वॉल्ट से बाहर निकाल कर सुखाना
इंस्पेक्टर लगातार छपाई पर नजर रखते हैं ताकि उसकी गुणवत्ता एक जैसी रहे. इन नोटों को सुखाने के लिए तीन दिन लगते हैं, इन्हें वॉल्ट में रखा जाता है. हर दिन करीब 56 करोड़ अमेरिकी डॉलर कीमत के नोट छापे जाते हैं. हर डॉलर के कागज और छपाई का खर्च 3.6 सेंट है.
तस्वीर: DW/Marek/Steinbuch
कम से कम दो लोग
अत्यंत सुरक्षित इस हिस्से में लगा यह निशान बताता है कि किसी को भी अकेले काम करने की इजाजत नहीं है. यह एक संयोग ही है कि बीईपी के कर्मचारियों का औसत वेतन 93 हजार डॉलर सालाना है, जो औसत अमेरिकी आय का करीब दोगुना है.
तस्वीर: DW/Marek/Steinbuch
अंतिम संख्या
दुनिया की शीर्ष मुद्रा बनने से पहले हर नोट पर एक नंबर अंकित होता है जो इसका सीरियल नंबर है. नंबर छापने वाली मशीन को इस काम के लिए हाथ से सेट किया जाता है.
तस्वीर: DW/Marek/Steinbuch
ढुलाई के लिए तैयार
इसके बाद एक और मशीन इस्तेमाल की जाती है जो नोटों को छांटती, गिनती और 20, 50 और 100 डॉलर के बंडल बनाती है. 10 बंडल एक साथ रख कर प्लास्टिक में लपेटे जाते हैं. फिर एक कर्मचारी इन्हें ट्रॉली में जमा करता है और इस तरह से रखता है कि यूनीक सीरियल नंबर वाला स्टिकर दिखता रहे.
तस्वीर: DW/Marek/Steinbuch
सबसे जरूरी सुरक्षा
बीईपी के करीब 2000 कर्मचारियों की सुरक्षा छपाई की जटिल प्रक्रिया के दौरान सबसे अहम है. छपाई की मशीनों को इस लाल बटन या फिर सेंसर के जरिए एक झटके में बंद किया जा सकता है.
तस्वीर: DW/Marek/Steinbuch
सेंट्रल बैंक
जब तक ये डॉलर सेंट्रल बैंक नहीं पहुंच जाते और बैंक उनके नंबर इस्तेमाल के लिए जारी नहीं कर देता, ये नोट महज कागज के टुकड़े ही हैं, यानी इन पर कीमत चढ़ाना बैंक का काम है.
(रिपोर्ट: आन्या श्टाइनबूख, मिषाएल मारेक)
तस्वीर: picture alliance/AP Images/J. Scott Applewhite
9 तस्वीरें1 | 9
रकम का क्या करेगा वोडाफोन
वोडाफोन ने कहा कि वह बिक्री की आय संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (यूएनएचसीआर) को दान करेगा. वोडाफोन ने यूएनएचसीआर के प्राइवेट सेक्टर पार्टनरशिप सर्विस के प्रमुख क्रिश्चियन शाके के हवाले से कहा, "प्रौद्योगिकी में हमेशा दुनिया को नया करने और बदलने की शक्ति रही है."
बयान के मुताबिक, "सामाजिक भलाई के लिए अभूतपूर्व तकनीक और आंदोलन के इस संयोजन के माध्यम से यूएनएचसीआर शरणार्थियों और उन लोगों की मदद करना जारी रख सकता है जिन्हें घर से भागने के लिए मजबूर किया गया है, जिससे उन्हें अपने जीवन को बदलने, अपने प्रियजनों और समुदायों के लिए बेहतर भविष्य बनाने का अवसर मिलता है."
इसी साल विश्व प्रसिद्ध नीलामी घर 'क्रिस्टी' ने एक पूरी तरह से डिजिटल आर्टपीस को बेचा था. ब्रिटिश नीलामी घर ने पूरी तरह से डिजिटल तस्वीरों के एक कोलाज 'बीपल' को रिकॉर्ड 6.9 करोड़ डॉलर में बेचा था.
एए/सीके (एएफपी)
दुनिया की सबसे बड़ी 3-डी पेंटिंग
फ्रांस के एक कलाकार ने स्विट्जरलैंड की वादियों में 3000 वर्ग मीटर बड़ी पेंटिंग रच दी है. कमाल की बात यह है कि यह पेंटिंग दो-चार हफ्तों में खुद-ब-खुद गायब हो जाएगी.
तस्वीर: picture-alliance/Keystone/V. Flauraud
हसीन वादियों में ये क्या
ये हैं स्विट्जरलैंड की लेजां वादियां. 1200 मीटर की ऊंचाई पर यहां एक कलाकार ने इन हसीन वादियों को अपने कैनवास में तब्दील कर दिया है. गौर से देखेंगे तो यहां आपको कुछ पेंट किया हुआ दिखाई देगा.
तस्वीर: picture-alliance/Keystone/V. Flauraud
हवा से दिखती है पेंटिंग
जमीन पर खड़े हो कर देखेंगे तो आपको शायद ही कुछ समझ में आएगा. इस तस्वीर को देखने के लिए हवा में लटकना जरूरी है. जैसे जैसे ऊंचाई पर जाएंगे आपको पहाड़ी पर बैठी एक लड़की दिखाई देगी. कोरोना संकट के बीच इस अनोखी तस्वीर को नाम दिया गया है "संकट के उस पार."
तस्वीर: picture-alliance/Keystone/V. Flauraud
सही एंगल से देखना जरूरी
इस तस्वीर का 3-डी इफेक्ट सिर्फ तब ही समझ में आता है जब प्लेन में सवार हो कर आप सही ऊंचाई और सही एंगल पर पहुंचें. वैसे प्लेन में ना बैठना चाहें तो ड्रोन कैमरे का इस्तेमाल भी कर सकते हैं. तब समझ में आएगा कि यह लड़की नीचे घाटी में क्या देख रही है.
तस्वीर: picture-alliance/Keystone/V. Flauraud
कैनवास के पीछे का चेहरा
यह हैं गिलोम लेग्रोस. कला जगत में इन्हें सेयप के नाम से जाना जाता है. कभी ये स्प्रे पेंटिंग किया करते थे और दीवारों पर ग्राफिटी बनाते थे. लेकिन पिछले पांच सालों से ये इस तरह की बड़ी बड़ी पेंटिंग बना रहे हैं.
तस्वीर: imago images/A. Morissard
पूरी तैयारी के साथ
इतनी बड़ी आकृति बनाने के लिए अच्छे से अच्छे कलाकार को मदद की जरूरत पड़ती है. यहां वे अपने असिस्टेंट लियोनेल के साथ मिल कर रंग तैयार कर रहे हैं. ये रंग पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं और प्राकृतिक रूप से विघटित हो सकते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Keystone/V. Flauraud
ब्रश से नहीं, पाइप से रंग
रंग तैयार हो जाने के बाद उसे स्प्रे किया जाता है. लेकिन कोई भी कलाकार यूं ही कहीं भी स्प्रे पपेंट करना शुरू नहीं कर सकता. पहाड़ी का यह हिस्सा उनके एक किसान दोस्त का है जिसने अपनी जमीन पर पेंटिंग बनाने की इजाजत दी है.
तस्वीर: picture-alliance/Keystone/V. Flauraud
सकारात्मक रहने का संदेश
कोरोना संकट के बीच यह कलाकार दुनिया को पॉजिटिव सोच का संदेश देना चाहता है. उनका कहना है कि इस संकट के बीत जाने के बाद पूरी दुनिया को मिल कर एक ही दिशा में देखना होगा, वैसे ही जैसे तस्वीर में यह लड़की देख रही है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/V. Flauraud
इतनी मेहनत लेकिन..
इस तरह की तस्वीर दो से चार हफ्ते तक ही टिक पाती है. धूप, बरसात और घास की बढ़ती लंबाई इसे खराब कर देंगे. जब घास काटी जाएगी तो पेंटिंग लगभग पूरी ही नष्ट हो जाएगी. लेकिन सेयप को इतने में ही संतुष्टि मिल जाती है.