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विज्ञानसंयुक्त राज्य अमेरिका

दशकों बाद चांद के लिए रवाना हुआ अमेरिका का मून लैंडर

८ जनवरी २०२४

पैरग्रिन-1 लैंडर के मार्फत दशकों बाद नासा चांद पर पहुंच रहा है. बोइंग और लॉकहीड का यह साझा उपक्रम चांद पर पहली व्यावसायिक लैंडिंग होगी. इस अभियान में वैज्ञानिक उपकरणों के अलावा इंसानी अवशेष भी भेजे गए हैं.

चंद्र ग्रहण के दौरान काठमांडू में ली गई चांद की एक तस्वीर
नासा की 'कर्मशियल लूनर पेलोड सर्विसेज' के तहत रवाना हुआ यह पहला अभियान है. सीएलपीएस के अंतर्गत नासा, अपने वैज्ञानिक उपकरणों को चांद पर पहुंचाने के लिए निजी कंपनियों को पैसा देती है. तस्वीर: Prakash Mathema/AFP

आधी सदी से भी ज्यादा वक्त बाद अमेरिका का पहला लैंडर चांद के लिए रवाना हुआ. 8 जनवरी को यूनाइटेड लॉन्च अलायंस (यूएलए) के वुल्कन सेंटोर रॉकेट के साथ पैरग्रिन 1 लैंडर कुल 20 पेलोड लेकर चांद की ओर निकला. इनमें से पांच पेलोड में नासा के वैज्ञानिक उपकरण हैं, बाकी 15 अलग-अलग ग्राहकों के हैं.

पैरग्रिन 1 लैंडर को अमेरिका की स्पेस रोबोटिक्स कंपनी 'एस्ट्रोबोटिक टेक्नॉलजी' ने बनाया है. कंपनी के प्रमुख जॉन थॉर्नटन ने इस उपलब्धि पर कहा, "हम बहुत उत्साहित हैं. हम चांद पर पहुंचने वाले हैं!" योजना के मुताबिक, पैरग्रिन 23 फरवरी को लैंड होगा. यह अभियान सफल रहा, तो यह चांद की सतह पर उतरने वाला पहला व्यावसायिक लैंडर होगा.

व्यावसायिक कंपनियों की बढ़ती भूमिका

यूएलए, एक अमेरिकी एयरोस्पेस निर्माता कंपनी है. यह लॉकहीड मार्टिन स्पेस और बोइंग डिफेंस, स्पेस एंड सिक्यॉरिटी (बीडीएस) का साझा उपक्रम है. नासा और अमेरिकी रक्षा विभाग, यूएलए के मुख्य ग्राहकों में हैं. अंतरिक्ष के क्षेत्र से जुड़ी यह कंपनी इलॉन मस्क की स्पेसएक्स की प्रतिद्वंद्वी मानी जा रही है. 

स्पेसएक्स का फाल्कन 9 रॉकेट, नोवा-सी मून लैंडर को लेकर चांद पर जाएगा. इस लैंडर को अमेरिका की स्पेस कंपनी 'इंट्यूटिव मशीन्स' ने बनाया है. यह लैंडर चांद के दक्षिणी ध्रुव के नजदीक मालापेर्ट ए नाम के क्रेटर के किनारे उतरने की कोशिश करेगा. इस अभियान को नवंबर 2023 में लॉन्च होना था, लेकिन फिर तारीख आगे बढ़ा दी गई.    

8 जनवरी को लॉन्च हुआ मिशन, नासा की 'कर्मशियल लूनर पेलोड सर्विसेज' (सीएलपीएस) के तहत रवाना हुआ यह पहला अभियान है. सीएलपीएस के अंतर्गत नासा, अपने वैज्ञानिक उपकरणों को चांद पर पहुंचाने के लिए निजी कंपनियों को पैसा देती है. इस मिशन में पैरग्रिन विकसित करने और अपने उपकरण चांद पर पहुंचाने के लिए नासा ने एस्ट्रोबोटिक को करीब 11 करोड़ डॉलर का भुगतान किया है. इस अभियान में भेजे गए नासा के उपकरण चांद पर विकिरण का स्तर, चुंबकीय क्षेत्र और एक्सोस्फीयर को मापेंगे.

अमेरिका की एयरोस्पेस कंपनी 'इंट्यूटिव मशीन्स' का नोवा-सी लैंडर भी चांद के लिए रवाना होने वाला है. नोवा-सी, नासा के आर्टेमिस 3 मिशन के लिए स्काउट का काम करेगी.तस्वीर: NASA via AP/picture alliance

आर्टेमिस 2 और 3 की तैयारी

इस लैंडर में कुछ नॉन-साइंटिफिक चीजें भी हैं. इनमें माउंट एवरेस्ट की चट्टान का एक टुकड़ा, बिटकॉइन से लोड एक सिक्का, दुनियाभर के हजारों बच्चों के भेजे संदेशों से भरा जापान का एक लूनर ड्रीम कैप्सूल और इंसानी डीएनए नमूनों वाले 265 कैप्सूल शामिल हैं. इनमें ऑरिजनल स्टार ट्रैक सीरीज के निर्माता और कई किरदारों के अवशेष भी शामिल हैं.

नासा अपने अंतरिक्षयात्रियों को चांद पर उतारने की तैयारी कर रहा है. उसका नया आर्टेमिस प्रोग्राम अगले कुछ साल में ही चांद की सतह पर इंसानों को उतारने की कोशिश में जुटा है. 2024 खत्म होने से पहले इस अभियान का पहला चरण 'आर्टेमिस 2' रवाना होने की उम्मीद है. यह एक लूनर फ्लाईबाय मिशन होगा, जिसमें चार अंतरिक्षयात्री चांद के पास पहुंचकर उसकी निगरानी करेंगे. इसके बाद आर्टेमिस 3 अभियान अंतरिक्षयात्रियों को लेकर चांद की जमीन पर उतरेगा.

एस्ट्रोबोटिक और इंट्यूटिव मशीन्स, दोनों ही अभियान नासा के कर्मशियल लूनर पेलोड सर्विसेज (सीएलपीएस) का हिस्सा हैं. सीएलपीएस के अंतर्गत नासा, रोबोटिक पेलोड्स को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड कराएगा. नासा अपने अंतरिक्षयात्रियों को यहीं उतारना चाहता है. तस्वीर: नासा के अपोलो 16 मिशन में लूनर रोविंग मशीन. आखिरी तीनों अपोलो अभियानों में एलआरवी का इस्तेमाल किया गया था. तस्वीर: NASA

फिर से लगी होड़

1960-70 के दशक में अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ के बीच लगी अंतरिक्ष की होड़ में चांद एक अहम पड़ाव बना. सितंबर 1959 में सोवियत संघ का लूना2 चांद पर लैंड होने वाला पहला अंतरिक्षयान बना, लेकिन असली बाजी मारी अमेरिका ने. 16 जुलाई, 1969 को नासा के अपोलो 11 मिशन ने पहली बार इंसान को चांद की सतह पर उतारा.

नील आर्मस्ट्रॉन्ग और बज आल्ड्रिन का चांद की जमीन पर पैर धरना पूरी इंसानी सभ्यता के लिए एक यादगार उपलब्धि बना. कई दशकों बाद अब फिर से चांद पर पहुंचने की होड़ छिड़ी है. पिछले साल भारत ने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर उतारकर ऐतिहासिक कामयाबी पाई.

इस साल मई में चीन भी चांद के सुदूर हिस्से पर चंगे-6 अभियान भेजने की तैयारी कर रहा है. चीन का मकसद पहली बार चंद्रमा के "फार साइड" नमूने जमा करना है. चीन का लूनर प्रोग्राम 2007 में चंगे-1 और 2010 में चंगे-2 के साथ शुरू हुआ था. उसके अब तक के अभियान रोबोटिक रहे हैं. 2019 में वह चांद के "फार साइड" में रोवर भेजने वाला पहला देश बना. वह 2030 तक चांद पर अंतरिक्षयात्री उतारना चाहता है. साथ ही, उसकी योजना साल 2040 तक चांद के दक्षिणी ध्रुव पर एक स्थायी रिसर्च स्टेशन बनाने की भी है.

चांद पर कारोबार की बेशुमार उम्मीदें

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एसएम/आरएस (एपी)

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