अमेरिका में ल्युकेमिया से पीड़ित एक महिला का एचआईवी पूरी तरह ठीक हो गया है. एचआईवी से ठीक होने वाली यह पहली महिला बन गई है. अब तक तीन ही लोग एचआईवी से ठीक हो पाए हैं.
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अमेरिका में डॉक्टरों ने एचआईवी पीड़ित एक महिला को ठीक कर दिया है. शोधकर्ताओं ने बताया कि स्टेमसेल ट्रांसप्लांट के एक जरिए इस महिला का इलाज हुआ. स्टेमसेल एक ऐसे व्यक्ति ने दान किए थे जिसके अंदर एचआईवी वायरस के खिलाफ कुदरती प्रतिरोध क्षमता थी.
मध्य आयुवर्ग की यह महिला श्वेत-अश्वेत माता पिता की संतान है. इस मामले को डेनवर में हुई कॉन्फ्रेंस ऑन रेट्रोवायरसऐंड ऑपर्चुनिस्टिक इंफेक्शंस में पेश किया गया. शोधकर्ताओं ने बताया कि इस मामले में उन्होंने जो तरीका अपनाया, उसका इस्तेमाल पहले कभी नहीं हुआ है और यह ज्यादा लोगों के लिए लाभदायक हो सकता है.
कमाल का कंडोम
कंडोम के बारे में दुनिया में कई भ्रांतियां हैं. गर्भ-निरोध के लिए इसकी उपयोगिता और यौन-संक्रमण वाली बीमारियों से बचा सकने की इसकी क्षमता की वजह से यह जरूरी है कि यह स्थिति बदले. जानिए कंडोम से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें.
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खुल कर बात जरूरी
सेक्स के बारे में आज भी खुलकर बात नहीं होती. सेक्स से संबंधित साहित्य, फिल्में या पॉर्नोग्राफिक वीडियो की बढ़ती बिक्री इस बात का प्रमाण हैं कि लोगों की इस विषय में बहुत अधिक दिलचस्पी तो है, लेकिन सुरक्षित सेक्स, यौन संक्रमणों या गर्भापात जैसे विषय अब भी टैबू समझे जाते हैं.
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एचआईवी का खतरा
दुनिया में सबसे अधिक एचआईवी संक्रमित लोग दक्षिण अफ्रीका में है. लगभग हर 10 में से एक व्यक्ति एड्स के साथ जी रहा है. स्थिति की गंभीरता को देखते हुए सरकारी स्वास्थ्य विभाग वहां कई रंगों और सुगंध वाले मुफ्त कंडोम बंटवाते हैं.
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एड्स को मिटाएगी जानकारी
दुनिया भर के मेडिकल विशेषज्ञ इस बात को मानते हैं कि 50 साल के अंदर एड्स को पूरी तरह मिटाना संभव है. लेकिन सबसे बड़ी मुश्किल है कि इसके खतरे वाले हाई-रिस्क ग्रुप को सुरक्षित और शिक्षित किए बिना ऐसा मुमकिन नहीं होगा.
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फीमेल कंडोम
आसानी से उपलब्ध होने के बावजूद पश्चिमी देशों तक में अभी महिलाओं के लिए बने खास कंडोम को ज्यादा लोकप्रियता नहीं मिली है. एड्स के गंभीर खतरे का सामना करने वाले अफ्रीकी देश मोजांबिक में कुछ एनजीओ फीमेल कंडोम को बढ़ावा देने पर जोर लगा रहे हैं.
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खतने से बचाव
अफ्रीकी देश यूगांडा में 1980 के दशक में कुल जनसंख्या के करीब 30 फीसदी लोग एचआईवी से संक्रमित पाए गए. 2005 तक संक्रमण की दर गिर कर 6.5 प्रतिशत पर आ गई. लेकिन फिर से बढ़ते इंफेक्शनों का सामना करने के लिए डॉक्टर वयस्क पुरुषों में खतने की सलाह दे रहे हैं.
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सेक्स पर धारावाहिक
लेखक और निदेशक बियी बन्डैले नाइजीरिया में अमेरिकी टीवी सीरियल सेक्स-एड की तर्ज पर एक धारावाहिक बनाते हैं. शुगा नाम का ये सीरियल मनोरंजक तरीके से यौन स्वास्थ्य के प्रति रवैया बदलने पर आधारित है.
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सुपर कंडक्टिव - ग्रैफीन कंडोम
कंडोम के क्षेत्र में नई नई खोजें हो रही हैं. 2004 में जिस अति प्रवाहकीय, अति मजबूत पदार्थ ग्रैफीन की खोज के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था, अब उसका एक महत्वपूर्ण इस्तेमाल सामने आया है. इससे बेहतर कंडोम बनाने की कोशिश हो रही है.
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लेटेक्स का स्रोत
दुनिया भर के करीब 40 फीसदी कंडोम लेटेक्स से बनते हैं. लेटेक्स रबड़ के पेड़ों से निकाला जाता है. ब्राजील के अमेजन के जंगल और चीन में इनका बहुत बड़ा भंडार है.
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डॉक्टरों ने पहली बार गर्भनाल के खून का इस्तेमाल महिला के ल्युकेमिया का इलाज करने के लिए किया. महिला 14 महीने से स्वस्थ है और उसे एचआईवी के लिए भी दवाओं की जरूरत नहीं पड़ी है.
पहली बार महिला का इलाज
इससे पहले दो ऐसे मामले हुए हैं जब एचआईवी मरीज ठीक हो गए. उनमें से एक मामला श्वेत पुरुष का था जबकि दूसरा एक दक्षिण अमेरिकी मूल के पुरुष का. इन दोनों का भी स्टेमसेल ट्रांसप्लांट हुआ था लेकिन वे स्टेमसेल वयस्क लोगों से लिए गए थे.
अंतरराष्ट्रीय एड्स सोसाइटी की अध्यक्ष शैरन लेविन ने एक बयान में इस प्रयोग की सफलता पर संतोष जाहिर किया. उन्होंने कहा, "अब इलाज की तीसरी रिपोर्ट आ रही है. और पहली बार किसी महिला को ठीक किया गया है.”
यह इलाज अमेरिका में जारी एक विशेष अध्ययन के तहत किया गया. यह अध्ययन लॉस एंजेल्स की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी की डॉ. इवोन ब्राइसन और बाल्टीमोर की जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी की डॉ. डेब्रा परसॉड के नेतृत्व में चल रहा है. इस अध्यन का मकसद एचआईवी से पीड़ित 25 लोगों का स्टेमसेल ट्रांसप्लांट के जरिए कैंसर या अन्य गंभीर बीमारियों का इलाज करना है.
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कैसे हुआ इलाज?
जो मरीज इस ट्रायल में हिस्सा ले रहे हैं, पहले उनकी कीमोथेरेपी की जाती है ताकि कैंसर कोशिकाओं को खत्म किया जा सके. उसके बाद डॉक्टर विशेष जेनेटिक म्यूटेशन वाले व्यक्ति से स्टेमसेल लेकर उसे मरीज के शरीर में ट्रांसप्लांट करते हैं. शोधकर्ताओं का मानना है कि इस ट्रांसप्लांट के बाद मरीजों में एचआईवी के प्रति रोधक क्षमता विकसित हो जाती है.
लेविन ने बताया कि एचआईवी पीड़ित ज्यादातर लोगों के लिए बोन मैरो ट्रांसप्लांट उचित इलाज नहीं है. उन्होंने कहा, "रिपोर्ट बताती है कि एचआईवी का इलाज संभव है और जीन थेरेपी भविष्य में एचआईवी के इलाज की कारगर रणनीति हो सकती है.”
ना कोरोना, ना हंटा, ये हैं दुनिया के सबसे खतरनाक वायरस
इस वक्त पूरी दुनिया कोरोना के खौफ में है. लेकिन मृत्यु दर के हिसाब से देखा जाए तो और भी कई वायरस हैं जो कोरोना से भी ज्यादा खतरनाक हैं. बच के रहिए इनसे.
मारबुर्ग वायरस
इसे दुनिया का सबसे खतरनाक वायरस कहा जाता है. वायरस का नाम जर्मनी के मारबुर्ग शहर पर पड़ा जहां 1967 में इसके सबसे ज्यादा मामले देखे गए थे. 90 फीसदी मामलों में मारबुर्ग के शिकार मरीजों की मौत हो जाती है.
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इबोला वायरस
2013 से 2016 के बीच पश्चिमी अफ्रीका में इबोला संक्रमण के फैलने से ग्यारह हजार से ज्यादा लोगों की जान गई. इबोला की कई किस्में होती हैं. सबसे घातक किस्म के संक्रमण से 90 फीसदी मामलों में मरीजों की मौत हो जाती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
हंटा वायरस
कोरोना के बाद इन दिनों चीन में हंटा वायरस के कारण एक व्यक्ति की जान जाने की खबर ने खूब सुर्खियां बटोरी हैं. यह कोई नया वायरस नहीं है. इस वायरस के लक्षणों में फेफड़ों के रोग, बुखार और गुर्दा खराब होना शामिल हैं.
तस्वीर: REUTERS
रेबीज
कुत्तों, लोमड़ियों या चमगादड़ों के काटने से रेबीज का वायरस फैलता है. हालांकि पालतू कुत्तों को हमेशा रेबीज का टीका लगाया जाता है लेकिन भारत में यह आज भी समस्या बना हुआ है. एक बार वायरस शरीर में पहुंच जाए तो मौत पक्की है.
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एचआईवी
अस्सी के दशक में एचआईवी की पहचान के बाद से अब तक तीन करोड़ से ज्यादा लोग इस वायरस के कारण अपनी जान गंवा चुके हैं. एचआईवी के कारण एड्स होता है जिसका आज भी पूरा इलाज संभव नहीं है.
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चेचक
इंसानों ने हजारों सालों तक इस वायरस से जंग लड़ी. मई 1980 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने घोषणा की कि अब दुनिया पूरी तरह से चेचक मुक्त हो चुकी है. उससे पहले तक चेचक के शिकार हर तीन में से एक व्यक्ति की जान जाती रही.
तस्वीर: cc-by/Otis Historical Archives of National Museum of Health & Medicine
इन्फ्लुएंजा
दुनिया भर में सालाना हजारों लोग इन्फ्लुएंजा का शिकार होते हैं. इसे फ्लू भी कहते हैं. 1918 में जब इसकी महामारी फैली तो दुनिया की 40% आबादी संक्रमित हुई और पांच करोड़ लोगों की जान गई. इसे स्पेनिश फ्लू का नाम दिया गया.
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डेंगू
मच्छर के काटने से डेंगू फैलता है. अन्य वायरस के मुकाबले इसका मृत्यु दर काफी कम है. लेकिन इसमें इबोला जैसे लक्षण हो सकते हैं. 2019 में अमेरिका ने डेंगू के टीके को अनुमति दी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/EPA/G. Amador
रोटा
यह वायरस नवजात शिशुओं और छोटे बच्चों के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक होता है. 2008 में रोटा वायरस के कारण दुनिया भर में पांच साल से कम उम्र के लगभग पांच लाख बच्चों की जान गई.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
कोरोना वायरस
इस वायरस की कई किस्में हैं. 2012 में सऊदी अरब में मर्स फैला जो कि कोरोना वायरस की ही किस्म है. यह पहले ऊंटों में फैला, फिर इंसानों में. इससे पहले 2002 में सार्स फैला था जिसका पूरा नाम सार्स-कोव यानी सार्स कोरोना वायरस था. यह वायरस 26 देशों तक पहुंचा. मौजूदा कोरोना वायरस का नाम है सार्स-कोव-2 है और यह दुनिया के हर देश तक पहुंच चुका है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/AP/NIAID-RML
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अध्ययन बताता है कि इस इलाज की सफलता का मुख्य सूत्र एचआईवी-प्रतिरोधक कोशिकाओं का मरीज के शरीर में सफल ट्रांसप्लांट हैं. लेविन कहती हैं, "इन तीनों मामलों को अगर एक साथ देखा जाए, तो सभी मिलकर ट्रांसप्लांट के अलग-अलग तत्वों की इलाज में अहमियत को उजागर करते हैं.”