मध्य प्रदेश के खरगोन में रामनवमी पर हुई हिंसा के दौरान इब्रिस खान की हत्या के आरोप में पांच लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है. इब्रिस खान दंगों के बाद से लापता थे. उनका शव आठ दिनों बाद इंदौर के एक मुर्दाघर में मिला.
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खरगोन पुलिस ने पत्रकारों को बताया कि दंगों की रात सात-आठ लोगों ने 28 साल के इब्रिस खान की हत्या कर दी थी. कार्यकारी पुलिस अधीक्षक रोहित काशवानी ने बताया कि हमलावरों ने 'धार्मिक उन्माद' में खान को मार डाला था.
शव जब अगले दिन बरामद हुआ तो उसकी पहचान नहीं हो पाई और खरगोन में शवों को बर्फ में रखने वाले मुर्दाघरों के अभाव की वजह से शव को 120 किलोमीटर दूर इंदौर मुर्दाघर में भेज दिया गया.
काशवानी ने बताया कि हत्या के आरोप में दिलीप, संदीप, अजय कर्मा, अजय सोलंकी और दीपक प्रधान नाम के पांच लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है, लेकिन तीन और फरार हैं. उन्होंने यह भी बताया कि गिरफ्तार किए गए पांचों लोगों ने अपना अपराध कबूल कर लिया है.
मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया है कि चश्मदीद गवाहों ने भी इस बात की पुष्टि की है कि उन्होंने जिन लोगों को इब्रिस पर हमला करते देखा था, ये पांच लोग उनमें शामिल थे. कुछ मीडिया रिपोर्टों में यह भी बताया गया है कि इब्रिस के परिवार ने पुलिस पर भी हत्या में शामिल होने का आरोप लगाया है.
इब्रिस के भाई इख्लाक ने पत्रकारों के सामने दावा किया कि उनके भाई को आखिरी बार खरगोन में पुलिस की ही हिरासत में देखा गया था. उन्होंने बताया कि जब उन्होंने मीडिया के सामने जाने की धमकी दी तब जा कर पुलिस ने इब्रिस की जानकारी उसके परिवार को दी. पुलिस ने इन आरोपों पर अभी कुछ नहीं कहा है.
इब्रिस की मौत खरगोन में हुए दंगों में सामने आने वाला हत्या का पहला मामला है. दंगे 10 अप्रैल को शहर में रामनवमी के अवसर पर एक शोभायात्रा निकाले जाने के दौरान हुए थे.
दंगों में शामिल होने के संदेह में अभी तक कम से कम 150 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है, जिनमें से कइयों के मकान और दुकानें अवैध अतिक्रमण बता कर स्थानीय प्रशासन ने तुड़वा दिए. शहर में अभी भी कर्फ्यू लगा हुआ है. 21 अप्रैल को कर्फ्यू में छह घंटों की ढील दी गई थी.
दिल्ली दंगे: तब और अब
दिल्ली दंगों के एक साल बाद दंगा ग्रस्त इलाकों में लगता है कि पीड़ित परिवार आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन क्या इस तरह की हिंसा का दर्द भुलाना आसान है? तब और अब के बीच के फर्क की पड़ताल करती डीडब्ल्यू की कुछ तस्वीरें.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
दहशत का एक साल
दिल्ली दंगों के एक साल बाद, क्या हालात हैं दंगा ग्रस्त इलाकों में.
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चेहरे पर कहानी
एक दंगा पीड़ित महिला जिनसे 2020 में पीड़ितों के लिए बनाए गए एक शिविर में डीडब्ल्यू ने मुलाकात की थी. अपनों को खो देने का दर्द उनकी आंखों में छलक आया था.
तस्वीर: DW/S. Ghosh
एक साल बाद
यह महिला भी उसी शिविर में थी और कुछ महीने बाद अपने घर वापस लौटी. अब वो और उनका परिवार अपने घर की मरम्मत करा उसकी दीवारों पर नए रंग चढ़ा रहा है, लेकिन उनकी आंखों में अब भी दर्द है.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
आगजनी
दंगों में हत्याओं के अलावा भारी आगजनी भी हुई थी. शिव विहार तिराहे पर स्थित इस गैराज और उसमें खड़ी गाड़ियों को भी आग के हवाले कर दिया गया था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
एक साल बाद गैराज किसी और को किराए पर दिया जा चुका है. स्थानीय लोगों का दावा है बीते बरस नुकसान झेलने वालों में से किसी को भी अभी तक हर्जाना नहीं मिला है.
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दहशत
गैराज पर हमला इतना अचानक हुआ था कि उसकी देख-रेख करने वाले को बर्तनों में पका हुआ खाना छोड़ कर भागना पड़ा था. दंगाइयों ने पूरे घर को जला दिया था.
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एक साल बाद
कमरे की मरम्मत कर उसे दोबारा रंग दिया गया है. देख-रेख के लिए नया व्यक्ति आ चुका है. फर्नीचर नया है, जगह वही है.
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बर्बादी
दंगों में इस घर को पूरी तरह से जला दिया गया था. तस्वीरें लेने के समय भी जगह जगह से धुआं निकल रहा था.
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एक साल बाद
साल भर बाद भी यह घर उसी हाल में है. यहां कोई आया नहीं है. मलबा वैसे का वैसा पड़ा हुआ है. दीवारों पर कालिख भी नजर आती है.
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सब लुट गया
दंगाइयों ने यहां से सारा सामान लूट लिया था और लकड़ी के ठेले को आग लगा दी थी. जाने से पहले दंगाइयों ने वहां के घरों को भी आग के हवाले कर दिया था.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
जिंदगी अब धीरे धीरे पटरी पर लौट रही है. नया ठेला आ चुका है और उसे दरवाजे के बगल में खड़ा कर दिया गया है. अंदर एक कारीगर काम कर रहा है.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
सड़क पर ईंटों की चादर
दंगों के दौरान जाफराबाद की यह सड़क किसी जंग के मैदान जैसी दिख रही थी. दो दिशाओं से लोगों ने एक दूसरे पर जो ईंटों के टुकड़े और पत्थर फेंके थे वो सब यहां आ गिरे थे.
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एक साल बाद
आज यह कंक्रीट की सड़क बन चुकी है. जन-जीवन सामान्य हो चुका है. आगे तिराहे पर भव्य मंदिर बन रहा है.
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दुकान के बाद दुकान लूटी गई
मुस्तफाबाद में एक के बाद एक कर सभी दुकानें लूट ली गई थीं. हर जगह सिर्फ खाली कमरे और टूटे हुए शटर थे.
तस्वीर: Syamantak Ghosh/DW
एक साल बाद
आज उस इलाके में दुकानें फिर से खुल गई हैं. लोग आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन मुश्किल से गुजर-बसर हो रही है.
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बंजारे भी नहीं बच पाए
इस दीवार के सहारे झुग्गी बना कर और वहां चाय बेचकर यह बंजारन अपना जीविका चला रही थी. दंगाइयों ने इसकी चाय की छोटी सी दुकान को भी नहीं छोड़ा था.
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एक साल बाद
उसी लाल दीवार के सहारे बंजारों ने नए घर बना तो लिए हैं, लेकिन वो आज भी इस डर में जीते हैं कि रात के अंधेरे में कहीं कोई फिर से आग ना लगा दे.
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टायर बाजार
गोकुलपुरी का टायर बाजार दंगों में सबसे बुरी तरह से प्रभावित जगहों में था. लाखों रुपयों का सामान जला दिया गया था.
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एक साल बाद
टायर बाजार फिर से खुल चुका है. वहां फिर से चहलकदमी लौट आई है लेकिन दुकानदार अभी तक दंगों में हुए नुक्सान से उभर नहीं पाए हैं.
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जंग का मैदान
जाफराबाद, मुस्तफाबाद, शिव विहार समेत सभी इलाकों की शक्ल किसी जंग के मैदान से कम नहीं लगती थी. जहां तक नजर जाती थी, सड़क पर सिर्फ ईंट, पत्थर और मलबा था.
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एक साल बाद
साल भर बाद यह सड़क किसी भी आम सड़क की तरह लगती है, जैसे यहां कुछ हुआ ही ना हो. लेकिन लोगों के दिलों के अंदर दंगों का दर्द और मायूसी आज भी जिंदा है. (श्यामंतक घोष)