1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

आजादी के 75 साल बाद भी जारी है नरबलि की परंपरा!

प्रभाकर मणि तिवारी
६ अप्रैल २०२३

भारत के कई राज्यों से आज भी बीच बीच में नरबलि की खबरें सामने आती हैं. असम पुलिस ने पांच साल की जांच के बाद ऐसे एक मामले का खुलासा किया है.

कामाख्या मंदिर, असम
तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari /DW

असम में एक महिला की बलि के आरोप में पांच लोग गिरफ्तार/केरल में दो महिलाएं बनी नरबलि की शिकार/छत्तीसगढ़ के रायपुर में नरबलि के आरोप में तांत्रिक को फांसी/झारखंड के लातेहार में दो बच्चों की बलि…..

यह सुर्खियां इस बात का सबूत हैं कि वर्ष 1828 से 1833 तक बंगाल के गवर्नर जनरल और उसके बाद दो साल देश के गर्वनर रहे विलियम बेंटिक ने भले काली पूजा के मौके पर दी जाने वाली नरबलि की कुप्रथा का अंत कर दिया हो, उसके करीब दो सदियों बाद यानी देश की आजादी के 75 साल बाद भी कई इलाकों में नरबलि की कुप्रथा जस की तस है. यह हालत तब है जब देश के आठ राज्यों में अंधविश्वास और जादू-टोने से संबंधित मामलों से निपटने के लिए कानून बनाए गए हैं.

"डायन" से "शेरनी" बनने की पद्मश्री छूटनी महतो की कहानी

इस कड़ी में सबसे ताजा मामला असम की राजधानी गुवाहाटी से सामने आया है. यहां एक महिला की बलि चढ़ाने के आरोप में पुलिस ने पांच लोगों को गिरफ्तार किया है. यह गिरफ्तारी उस घटना के करीब चार साल बाद की गई है. गुवाहाटी के पुलिस आयुक्त दिगंत बोरा बताते हैं, "वर्षों तक दर्जनों लोगों से चली पूछताछ के बाद यह मामला सामने आया है. जिस महिला की हत्या की गई वह पश्चिम बंगाल के हुगली जिले की रहने वाली थी." 18 जून की रात को भूतनाथ में एक कपाली पूजा आयोजित की गई थी, जिसमें लगभग 12 लोगों ने भाग लिया था, जिसमें पीड़िता भी शामिल थी. पूजा करने वाले लोगों ने शराब का सेवन किया था. पीड़िता को भी शराब पिलाई गई. इसके बाद उन्होंने कामाख्या के श्मशान घाट का दौरा किया और वहां दूसरी पूजा की. पुरुषों का समूह तब कामाख्या में जय दुर्गा मंदिर गया और मानव बलि के नाम पर पीड़िता का सिर काट दिया.

असम में कामाख्या मंदिरतस्वीर: Prabhakar Mani Tewari /DW

सामने आए नरबलि के कई मामले

असम में इससे पहले भी कथित नरबलि के मामले सामने आते रहे हैं. वर्ष 2021 में राज्य के आदिवासीबहुल चाय बागान इलाके में एक तांत्रिक ने चार साल के एक शिशु की कथित रूप से बलि चढ़ा दी थी. इसमें उस बच्चे के पिता की भी मिलीभगत थी. इसी तरह करीब तीन साल पहले बराक घाटी में 55 साल के एक व्यक्ति की कथित रूप से बलि चढ़ाने के मामले में पुलिस ने तीन महिलाओं समेत 11 लोगों को गिरफ्तार किया था.

बिहार में डायन बता महिलाओं पर अत्याचार

बीते साल अक्तूबर में दिल्ली पुलिस ने दो व्यक्तियों को छह साल के एक बच्चे की बलि देने के आरोप में गिरफ्तार किया था. यह दोनों मजदूरी करते थे. उन्होंने पुलिस को बताया था कि धन कमाने के मकसद से अफीम के नशे में उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए बच्चे की हत्या कर दी थी.

प्रगतिशील समझे वाले पश्चिम बंगाल के भी कुछ इलाकों से नरबलि या शिशु बलि की खबरें मिलती रहती हैं. अभी बीते महीने राजधानी कोलकाता में सात साल की एक बच्ची की कथित बलि के आरोप में पुलिस ने एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया था. इस घटना के बाद इलाके में कई दिनों तक हंगामा होता रहा था. पुलिस जांच से इस बात का पता चला है कि यह मामला नरबलि से जुड़ा है. हत्यारे को बिहार के एक तांत्रिक ने नरबलि देने को कहा था.

केरल पुलिस ने बीते साल अक्तूबर में दो महिलाओं की नरबलि के आरोप में एक डॉक्टर दंपती और एक तांत्रिक को गिरफ्तार किया था. इस मामले ने लंबे अरसे तक सुर्खियां बटोरी थी. उसके बाद राज्य की पिनयारी विजयन सरकार ने राज्य में अंधविश्वास से जुड़ी कुप्रथाओं पर अंकुश लगाने के लिए नया कानून बनाने की जरूरत बताई थी.

डायन प्रथा से लड़ने वाली झारखंड की छूटनी महतोतस्वीर: Aamir Ansari/DW

सिर्फ कानून बनाने से क्या होगा

सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि अगर महज कानून बना देने से यह कुप्रथा खत्म हो जाती तो देश के जिन आठ राज्यों- बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडीशा ,असम, राजस्थान,महाराष्ट्र और कर्नाटक में यह कब की खत्म हो चुकी होती. बिहार देश का पहला राज्य है जिसने वर्ष 1999 में महिलाओं को डायन घोषित किए जाने और उनको प्रताड़ित किए जाने के खिलाफ प्रिवेंशन ऑफ विच (डायन) प्रैक्टिस कानून, 1999बनाया था.

झारखंड में भी ऐसा ही एक कानून मौजूद है. पूर्वोत्तर राज्य असम में भी वर्ष 2015 से ही विच हंटिंग (प्रोहिबिशन, प्रिवेंशन एंड प्रोटेक्शन) एक्ट लागू है. बावजूद इसके इन राज्यों से ऐसी घटनाएं सामने आती रहती हैं.

कानून नहीं, सामाजिक जागरूकता से खत्म होगी डायन प्रथा

केरल में बीते साल अक्तूबर में दो महिलाओं की कथित बलि के मामले के सामने आने के बाद राज्य सरकार की ओर से जारी एक बयान में कहा गया था कि रूह कंपा देने वाली ऐसी घटनाओं को सिर्फ कानून से नहीं रोका जा सकता है, इसके लिए समाज में इसके प्रति जागरूकता लाना जरूरी है.

समाजशास्त्री प्रोफेसर धीरेन कुमार गांगुली कहते हैं, "महज कानूनों से ही अगर अपराध खत्म हो जाता तो देश इस समय अपराध-मुक्त होता. लेकिन आजादी के इतने लंबे अरसे बाद भी अगर विभिन्न खासकर पिछड़े इलाकों में नरबलि या शिशु बलि जैसी कुप्रथा जारी है तो इसकी जड़ें मानसिकता, पिछड़ेपन और अशिक्षा में शिपी हैं. खासकर आदिवासी-बहुल पिछड़े इलाकों में पारंपरिक चिकित्सा की जगह लोग ओझा-सोखा या झोला छाप चिकित्सकों पर ही ज्यादा भरोसा करते हैं. उनके बहकावे में आकर लोग निर्दोष इंसान की हत्या जैसा जघन्य अपराध करने को भी तैयार हो जाते हैं."

कुरीतियों के पीछे गरीबी और अशिक्षा भी एक बड़ी वजहतस्वीर: Payel Samanta/DW

क्या कहते हैं इतिहासकार

कामाख्‍या बार देउरी समाज के सचिव भूपेश कुमार शर्मा कहते हैं, "मंदिर या इसके आसपास के इलाकों में नरबलि की परंपरा नहीं रही. यह मंदिर को बदनाम करने की कुछ लोगों की साजिश हो सकती है. वह बताते हैं कि किसी जमाने में यहां दुर्गापूजा के समय नरबलि की परंपरा का जिक्र जरूर मिलता है. लेकिन अंबुवाची मेले के दौरान ऐसी कोई परंपरा कभी थी ही नहीं."

असम के एक कॉलेज में अंग्रेजी पढ़ाने वाले और "कामख्याः एक समाज-सांस्कृतिक अध्ययन" शीर्षक पुस्तक लिखने वाले निहार रंजन मिश्र कहते हैं, "कुछ पौराणिक ग्रंथों में नर बलि की परंपरा का जिक्र जरूर मिलता है. लेकिन वह परंपरा बहुत पहले खत्म हो गई. मेरा अनुमान है कि असम में 15वीं सदी में नव-वैष्णव सुधारों  के बाद इसे पूरी तरह खत्म कर दिया गया था."

राज्य के मंदिरों पर शोध करने वाले सूर्य दास कहते हैं, "इतिहास में इस बात का कोई ठोस सबूत नहीं मिलता कि कामाख्या मंदिर में कभी नर बलि की परंपरा थी. कालिका पुराण में इसका जिक्र जरूर है. लेकिन सब कुछ रहस्य के गहरे आवरण में छिपा है."

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें