रिपोर्ट: बेहतर खाद्य उत्पादन से बच सकते हैं खरबों डॉलर
१ फ़रवरी २०२४
एक रिपोर्ट के मुताबिक बेहतर खाद्य उत्पादन और उपभोग से सालाना खरबों डॉलर बचाए जा सकते हैं.
तस्वीर: Olena Mykhaylova/Zoonar/picture alliance
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एक नई रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में खाद्य उत्पादन से होने वाली पर्यावरणीय क्षति और भोजन के दुरुपयोग से मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों की कुल मात्रा सालाना वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 12 प्रतिशत है.
वैज्ञानिकों और अर्थशास्त्रियों के एक संघ के मुताबिक खाद्य उत्पादन और आपूर्ति को अधिक कुशल बनाने से दुनिया भर में 17.4 करोड़ समय से पहले होने वाली मौतों को रोका जा सकता है. शोधकर्ताओं का यह भी मानना है कि यह जलवायु-संबंधित लक्ष्यों को हासिल करने में मदद कर सकता है और अतिरिक्त पांच से दस ट्रिलियन डॉलर आर्थिक लाभ पैदा कर सकता है.
हालांकि, दुनिया भर में व्यापक खाद्य उत्पादन ने वैश्विक आबादी की पोषण संबंधी जरूरतों को आंशिक रूप से पूरा करने में मदद की है, जो 1970 के दशक से दोगुनी हो गई है.
बर्लिन शहर में खुद का भोजन उगाता भारतीय दंपत्ति
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इस हफ्ते प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक खराब आहार खाने से मोटापा या कुपोषण और उससे संबंधित पुरानी बीमारी हो सकती है. जबकि प्रदूषित खेती के तरीके ग्लोबल वार्मिंग और जैव विविधता को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे संभावित रूप से विनाशकारी प्रभावों के साथ जलवायु को खतरा होता है. इसके नतीजे में भविष्य में खाद्य उत्पादकता में कमी आने की संभावना है.
अमेरिका में ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन में अफ्रीका ग्रोथ इनिशिएटिव के अर्थशास्त्री और रिपोर्ट के प्रमुख लेखक वेरा सोंगवे ने कहा, "दुनिया में सबसे अच्छी खाद्य प्रणालियों में से एक है." लेकिन उन्होंने आगे कहा, "यह हमारी खाद्य उत्पादन प्रणाली, पर्यावरण प्रदूषण, लोगों के स्वास्थ्य और हमारी अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव के साथ आया है."
शोधकर्ताओं का अनुमान है कि मौजूदा प्रणाली में सुधार लाकर सालाना 15 ट्रिलियन डॉलर तक की बचत की जा सकती है. इसमें मधुमेह, उच्च रक्तचाप और कैंसर जैसी आहार संबंधी बीमारियों से होने वाली वार्षिक वित्तीय हानि लगभग 11 ट्रिलियन डॉलर शामिल है.
जबकि खाद्य उत्पादन विधियों से पर्यावरण प्रदूषण से जुड़ी लागत तीन ट्रिलियन डॉलर आंकी गई है. वैज्ञानिकों का मानना है कि यह ग्रह को नुकसान पहुंचाने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लगभग एक तिहाई के लिए जिम्मेदार है.
एए/सीके (एपी)
धरती को तबाह कर रहे हैं जहरीले कीटनाशक
खेती में कीटनाशकों का खूब इस्तेमाल होता है. विषैले रसायनों से भरे इन कीटनाशकों का हमारे भोजन, स्वास्थ्य, हवा और पानी पर गंभीर असर पड़ रहा है.
तस्वीर: Chandra Shekhar Karki/Greenpeace
जहर की चपेट में कामगार
दुनिया में हर साल कीटनाशकों के जहर से बीमार होने के 38 करोड़ से भी अधिक मामले सामने आते हैं. इनमें सबसे ऊपर है एशिया. फिर अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका का नंबर आता है. कीटनाशकों का इस्तेमाल करने वाले ज्यादातर किसान या कामगार छिड़काव के दौरान सुरक्षित रखने वाले कपड़े और मास्क भी नहीं पहनते हैं.
तस्वीर: Florian Kopp/imageBROKER/picture alliance
गंभीर बीमारियां
निकारागुआ के चिचिगाल्पा में कई पुरुषों को किडनी की गंभीर बीमारी है. गन्ने की खेतों में छिड़के जाने वाले पेस्टीसाइड्स इसकी वजह हैं. दुनिया भर में पीने के पानी और फूड चेन में कीटनाशकों का मिलना आम हो चुका है. कई शोध साबित कर चुके हैं कि इन कीटनाशकों के कारण भी कैंसर समेत कई बीमारियां फैल रही हैं.
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खतरे में जैव विविधता
अनचाहे कीटों और पौधों को मारने के लिए कीटनाशक और अन्य रसायन छिड़के जाते हैं. लेकिन इनकी चपेट में उस इलाके के सभी कीट और पौधे जाते हैं. मधुमक्खियों और चिड़ियों पर भी कीटनाशकों का बुरा असर देखा गया है. लंबे समय तक ऐसा होने पर उस इलाके से कीटों और पौधों की कई प्रजातियां उजड़ जाती हैं.
आंतों के फायदेमंद बैक्टीरिया पर हमला
एक अहम शोध के दौरान वैज्ञानिकों ने पाया कि केले के फूलों से रस चूसने वाले चमगादड़ों की आंत में अच्छे बैक्टीरिया घट गए. इनके उलट आहार के लिए जंगल पर निर्भर चमगादड़ों की आंत में ऐसे सूक्ष्मजीवों की संख्या अच्छी खासी थी. आंतों के अच्छे बैक्टीरिया इंसान और जानवरों के स्वास्थ्य में अहम भूमिका निभाते हैं
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खतरनाक कीटनाशकों के निर्यात पर रोक?
घातक रसायनों से बचाव के मामले में भारत के खेतों में काम करने वाले लोग यूरोप के मुकाबले पीछे हैं. यूरोप में कुछ बेहद जहरीले कीटनाशकों का इस्तेमाल करने पर बैन है, लेकिन यूरोपीय निर्माता बायर और बीएएसएफ को ऐसे जहरीले रसायनों का निर्यात करने की छूट है.
तस्वीर: Adam Berry/Getty Images
बिना रसायानों के खेती
रासायनिक कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल को रोकने के लिए अब कई देशों में ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. खेती के इस सैकड़ों साल पुराने तरीके में कीटों, पक्षियों और पशुओं के साथ मिलकर स्वस्थ ईकोसिस्टम बरकरार रखा जाता है. भारत और नेपाल में गोमूत्र, गोबर और नीम का इस्तेमाल सदियों पुराना है. (ओएसजे/आरपी)