पूर्वोत्तर में बाढ़ की हालत बिगड़ी, अब तक 46 की मौत
५ जून २०२५
पूरे देश में जहां मानसून आने पर लोगों के चेहरों पर खुशी नजर आती है वहीं असम के लोगों में डर बैठ जाता है. पिछले साल तीन-तीन बार बाढ़ की मार झेलने के बाद इस साल भी मानसून की शुरुआत में ही बाढ़ का प्रकोपचालू है. अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर में राहत और बचाव कार्यों में सेना और असम राइफल्स की मदद ली जा रही है.
राहत शिविरों में 40 हजार लोग
इलाके में तैनात एनडीआरएफ के एक अधिकारी ने डीडब्ल्यू को बताया, "बाढ़ और जमीन धंसने के कारण इलाके में कई जगह नेशनल हाइवे पर आवाजाही ठप हो गई है. ब्रह्मपुत्र समेत इलाके की तमाम नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं. अरुणाचल प्रदेश में पुल टूट जाने के कारण कई गांवों का संपर्क देश के बाकी हिस्सों से कट गया है. राज्य में सौ साल से भी पुराने ब्रिजों को लोगों की जीवनरेखा कहा जाता है.
पश्चिम बंगाल से सटे सिक्किम में भी बाढ़ और इससे जुड़ी घटनाओं में कम से कम चार लोगों की मौत हो चुकी है. असम में बाढ़ से 21 जिलों के 15 सौ से ज्यादा गांव पानी में डूब गए हैं. करीब 40 हजार लोगों को सरकार की ओर से खोले गए 190 राहत शिविरों में रखा गया है. सबसे ज्यादा 18 मौतें इसी राज्य में हुई हैं. पूर्वोत्तर में नौ लाख से ज्यादा लोग बाढ़ से प्रभावित हैं."
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने इस सप्ताह बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित कछार इलाके का दौरा किया. उन्होंने राहत शिविरों में रहने वालों से भी मुलाकात की और उनको सरकार की ओर से हरसंभव मदद मुहैया कराने का भरोसा दिया.
असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के एक अधिकारी डीडब्ल्यू को बताते हैं, "अब तक 15 हजार हेक्टेयर से ज्यादा इलाके में फसलें नष्ट हो चुकी हैं और हजारों घरों को नुकसान पहुंचा है. राज्य में तमाम नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं. लगातार होने वाली बारिश ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है."
भूस्खलन ने बढ़ाई मुश्किलें
पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे के एक प्रवक्ता ने डीडब्ल्यू को बताया, "कई इलाकों में भूस्खलन और पटरियों के पानी में डूब जाने की वजह रेल सेवाएं भी प्रभावित हुई हैं. पर्वतीय इलाकों से गुजरने वाले गुवाहाटी-सिलचर रूट पर भी खतरा मंडरा रहा है."
इसी तरह अरुणाचल प्रदेश में भी हालत गंभीर बनी हुई है. राज्य में अब तक 12 लोगों की मौत हो चुकी है. बुधवार रात से जमीन धंसने की वजह से कई सड़कें बंद हो गई हैं. इससे राहत और बचाव कार्य में भी बाधा पहुंची है.
इलाके के बाकी राज्यों में भी स्थिति बेहतर नहीं है. ज्यादातर राज्यों के पर्वतीय इलाके में होने के कारण नुकसान ज्यादा हुआ है. खासकर कई जगह भूस्खलन की घटनाओं में आम लोगों को जान गंवानी पड़ी है. राज्य में प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए गठित स्टेट इमरजेंसी ऑपरेशन सेंटर (एसईओसी) के मुताबिक, ईस्ट कामेंग, लोअर सुबनसिरी, लांगडिंग, लोहित और अंजाव जिला में 12 लोगों की मौत हो चुकी है.
दिबांग वैली जिला बाढ़ और भूस्खलन से सबसे ज्यादा प्रभावित है. इलाके में एक ब्रिज टूटने के कारण कई गांवों का संपर्क कट गया है. वहां सेना के हेलिकॉप्टरों के जरिए राहत पहुंचाने की कोशिश की जा रही है. हालांकि खराब मौसम के कारण इसमें बाधा आ रही है.
मिजोरम में बाढ़ और भूस्खलन से पानी की पाइप टूट जाने के कारण राज्य के कई इलाकों में पीने के पानी की किल्लत पैदा हो गई है. टैंकरों के जरिए लोगों तक पानी पहुंचाया जा रहा है.
बीते छह वर्षों में लगभग 900 लोगों की मौत
असम में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2019 से अब तक बाढ़ में करीब नौ सौ लोगों की मौत हो चुकी है. अकेले 2022 में ही 278 लोग मारे गए थे. पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि असम में बाढ़ की ऐसी हालत तब है जब मानसून अभी पूरी तरह राज्य में पहुंचा भी नहीं है. ऐसे में आगे पैदा होने वाली परिस्थिति का अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है.
पर्यावरणविद मनोज कुमार गोस्वामी डीडब्ल्यू से कहते हैं, "जलवायु परिवर्तन, बड़े पैमाने पर होने वाले भूमि कटाव और तटबंधों की मरम्मत और रखरखाव में कमी ने स्थिति को बेहद गंभीर बना दिया है."
उनका कहना है कि ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों पर बने चार सौ से ज्यादा तटबंध सात दशक से भी ज्यादा पुराने हो चुके हैं. यही वजह है कि मानसून की पहली बारिश में ही उनमें दरारें पैदा होने लगती है.
एक अन्य पर्यावरणविद डॉ. निकिता ठाकुरिया ने डीडब्ल्यू से कहा, "सरकारी उदासीनता और बाढ़ से बचाव की ठोस योजना लागू नहीं होने के कारण तटवर्ती इलाकों में रहने वाले लाखों लोगों को साल के कम से कम तीन महीने विस्थापन का शिकार होना पड़ता है. इससे उनकी आजीविका भी बुरी तरह प्रभावित होती है. साल में कम से कम तीन बार विस्थापित होना उनकी नियति बन गई है."