यूरोपीय देश संभावित युद्ध के लिए तैयार हो रहे हैं. जर्मनी ने अपने यहां बम शेल्टरों के नेटवर्क को और बड़ा करने की योजना बनाई है.
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रूस-यूक्रेन युद्ध और बढ़ते अंतरराष्ट्रीय तनाव के बीच जर्मनी और नाटो देशों ने अपनी सुरक्षा तैयारियां तेज कर दी हैं. जर्मनी ने नागरिक सुरक्षा के लिए नए शेल्टर बनाने की योजना बनाई है. वहीं, बर्लिन में नाटो देशों के रक्षा मंत्रियों ने यूक्रेन को सैन्य मदद बढ़ाने का वादा किया.
जर्मनी ने "बंकर प्लान" के तहत सार्वजनिक और निजी इमारतों को शेल्टरों में बदलने की योजना बनाई है. इनमें बेसमेंट, अंडरग्राउंड पार्किंग और मेट्रो स्टेशन शामिल होंगे. इसके अलावा, एक मोबाइल एप तैयार किया जाएगा, जो लोगों को नजदीकी शेल्टर का पता बताएगा.
गृह मंत्रालय ने बताया कि यह योजना बढ़ते सुरक्षा खतरों को देखते हुए बनाई जा रही है. हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि यह कब तक तैयार होगी. नागरिक सुरक्षा संगठनों ने इस कदम का स्वागत किया है और अधिक तेजी से आश्रय निर्माण की मांग की है.
इस समय जर्मनी में 579 सार्वजनिक शेल्टर हैं, जिनमें 4.8 लाख लोगों को जगह दी जा सकती है. विशेषज्ञों का कहना है कि यह संख्या मौजूदा खतरों को देखते हुए काफी कम है. नागरिक सुरक्षा समूह 5,000 लोगों के लिए नए बड़े आश्रय बनाने की मांग कर रहे हैं. जर्मनी में लोगों के बीच रूस के साथ युद्ध को लेकर चिंता बढ़ी है.
रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से जर्मनी में सुरक्षा तैयारियों पर ध्यान बढ़ा है. "ऑपरेशन प्लान जर्मनी" के तहत संघीय सरकार, राज्य प्राधिकरण, सेना और आपातकालीन सेवाएं संकट के समय देश की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम कर रही हैं. जर्मनी ने हाल ही में अपनी सैन्य ताकत बढ़ाने के लिए भी कई कदम उठाए हैं.
बर्लिन में रक्षा मंत्रियों की बैठक
इसी दिन जर्मनी, फ्रांस, पोलैंड, इटली और ब्रिटेन के रक्षा मंत्रियों ने बर्लिन में यूरोपीय रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने पर चर्चा की. बैठक में यूक्रेन को अधिक सैन्य सहायता देने पर सहमति बनी.
नाटो के 75 साल: कोल्ड वॉर से यूक्रेन वॉर तक
नाटो 75 साल का हुआ. तनाव और असुरक्षा से भरे शीत युद्ध के लंबे दशकों से लेकर यूक्रेन युद्ध के बाद यूरोप में सुरक्षा की बदलती तस्वीर तक, देखिए नाटो का सफर.
तस्वीर: Monika Skolimowska/dpa/picture alliance
12 संस्थापक देश
4 अप्रैल 1949 को 12 देशों ने मिलकर नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन (नाटो) का गठन किया. ये संस्थापक देश थे: अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, बेल्जियम, डेनमार्क, फ्रांस, आइसलैंड, इटली, लक्जमबर्ग, नीदरलैंड्स, नॉर्वे और पुर्तगाल.
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वॉशिंगटन में दस्तखत हुए
इन 12 देशों के विदेश मंत्रियों ने वॉशिंगटन के डिपार्टमेंटल ऑडिटोरियम में समझौते पर दस्तखत किए. इसे वॉशिंगटन ट्रीटी के नाम से भी जाना जाता है. हस्ताक्षर समारोह के पांच महीनों के भीतर सदस्य देशों की संसद ने समझौते पर कानूनी मुहर लगा दी. इस तरह ये देश संधि में कानूनी और राष्ट्रीय प्रतिबद्धता के साथ दाखिल हुए.
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आर्टिकल पांच और साझा सुरक्षा
समवेत सुरक्षा और एक-दूसरे के लिए खड़ा होना, नाटो के मूलभूत सिद्दांतों में है. ट्रीटी का आर्टिकल पांच साझा सुरक्षा की गारंटी देता है. इसके मुताबिक, सदस्य देश सहमति देते हैं कि यूरोप या उत्तरी अमेरिका में एक या एक से ज्यादा सदस्य देशों पर हथियारबंद हमले की स्थिति में इसे पूरे ब्लॉक पर हमला माना जाएगा.
तस्वीर: Monika Skolimowska/dpa/picture alliance
एक पर हमला, सब पर हमला
हमले की स्थिति में हर सदस्य संयुक्त राष्ट्र चार्टर के आर्टिकल 51 में दर्ज निजी या सामूहिक आत्मरक्षा के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए उस सदस्य देश की मदद करेगा, जिसपर हमला हुआ है. सभी सदस्य नॉर्थ अटलांटिक इलाके की सुरक्षा बरकरार रखने और हनन की स्थिति में इसे वापस कायम करने के लिए जरूरत पड़ने पर सशस्त्र सेना और हथियारों का भी इस्तेमाल करेंगे.
तस्वीर: MDR/BR/DW
9/11 के बाद आर्टिकल पांच का इस्तेमाल
आर्टिकल पांच यह भी कहता है कि जो जवाबी कदम उठाए जाएंगे, उनकी सूचना तुरंत सुरक्षा परिषद को दी जाएगी. जब परिषद अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा वापस कायम करने की दिशा में जरूरी कदम उठा लेगा, उसके बाद नाटो की ओर से की जा रही कार्रवाई रोक दी जाएगी. अब तक नाटो ने आर्टिकल पांच का इस्तेमाल केवल 9/11 के आतंकी हमले के बाद किया है.
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नाटो में विस्तार
नाटो में समय-समय पर विस्तार होता रहा है. अब तक विस्तार के 10 चरण रहे हैं. पहली बार 1952 में समूह का विस्तार हुआ, जब ग्रीस और तुर्की ब्लॉक में शामिल हुए. फिर 6 मई 1955 को जर्मनी (तत्कालीन फेडरल रिपब्लिक ऑफ जर्मनी, या वेस्ट जर्मनी) नाटो का 15वां सदस्य बना. 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद पूर्वी यूरोप के कई देश नाटो में आए. ये दो चरणों में हुआ.
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शीतयुद्ध के बाद का विस्तार
साल 1999 में हुए पोस्ट-कोल्ड वॉर के पहले विस्तार में चेकिया, हंगरी और पोलैंड सदस्य बने. फिर मार्च 2004 में बुल्गारिया, एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, रोमानिया, स्लोवाकिया और स्लोवेनिया को नाटो की सदस्यता मिली. नाटो के सबसे नए सदस्य हैं फिनलैंड (अप्रैल 2023) और स्वीडन (मार्च 2024). इस तरह नाटो में अब 32 सदस्य हैं.
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बालकन्स पर रूस के साथ तनाव
2009 में अल्बानिया और क्रोएशिया, 2017 में मॉन्टेनीग्रो और 2020 में नॉर्थ मैसिडोनिया नाटो के सदस्य बने. ये बालकन देश हैं. बाल्कन्स का इलाका लंबे समय से रूस और पश्चिमी देशों के बीच तनाव की वजह रहा है. पश्चिम की ओर से यूरोपीय संघ और नाटो यहां विस्तार करना चाहते हैं, वहीं रूस भी अपने इस पूर्व प्रभावक्षेत्र में सहयोगी तलाश रहा है.
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रूस का नाटो पर विस्तारवाद का आरोप
ऐसे में रूस लंबे समय से बालकन्स में नाटो के विस्तार का विरोध करता रहा है. वह इसे नाटो की विस्तारवादी नीति बताता है और अपनी सुरक्षा के लिए खतरा मानता है. 2014 में क्रीमिया पर रूसी कब्जे के बाद मॉस्को का नाटो से विरोध और गहराता गया. फरवरी 2022 में यूक्रेन पर हमले के बाद तनाव अपने चरम पर पहुंच गया.
तस्वीर: Maxim Shemetov/REUTERS
यूक्रेन में जारी युद्ध का गहरा असर
यूक्रेन युद्ध ने यूरोप में सुरक्षा की भावना को गहराई तक हिला दिया है. यूक्रेन को मदद चाहिए, ना केवल फंड बल्कि सैन्य साजो-सामान भी. ऐसे में अभी नाटो के आगे सबसे बड़ी चुनौती यह है कि युद्ध के बीच कीव को किस तरह मदद मुहैया कराई जाए.
नाटो सीधे तौर पर युद्ध का हिस्सा नहीं बन सकता, लेकिन यूक्रेन में रूस को बढ़त पूरी क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए अकल्पनीय चुनौती होगी. ऐसे में नाटो देशों के बीच यूक्रेन को दी जाने वाली सहायता के प्रारूप, स्वभाव और आकार पर बातचीत जारी है. रूस के साथ समीकरण नाटो की सबसे बड़ी चुनौतियों में है.
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जर्मन रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियस ने कहा, "हमें यूक्रेन को इतनी ताकतवर स्थिति में लाना होगा कि वह मजबूती से काम कर सके.” उन्होंने नाटो देशों के बीच बेहतर तालमेल की जरूरत पर जोर दिया.
पोलिश रक्षा मंत्री वाडिसॉ कोजिनियाक कामिश ने यूरोपीय रक्षा खर्च बढ़ाने की मांग की. उन्होंने कहा, "यूरोप को अपने प्रयासों को और मजबूत करना होगा. हमें बड़े लक्ष्यों पर काम करना होगा.” पोलैंड इस साल अपने जीडीपी का 4.2 फीसदी रक्षा पर खर्च करेगा, जिसे अगले साल 4.7 फीसदी तक बढ़ाया जाएगा.
फ्रांसीसी रक्षा मंत्री सेबास्टियन लेकरुं ने घोषणा की कि फ्रांस आने वाले हफ्तों में यूक्रेन को मिस्ट्राल एयर डिफेंस सिस्टम देगा. उन्होंने कहा कि यूरोप को सुरक्षा के लिए दीर्घकालिक योजना बनानी होगी.
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उभरते खतरों का सामना
बैठक में रूस-यूक्रेन युद्ध से जुड़े नए खतरों पर भी चर्चा हुई. इनमें रूस द्वारा उत्तर कोरियाई सैनिकों की तैनाती और नई मध्यम दूरी की मिसाइल "ओरेश्निक" का परीक्षण शामिल है.
पिस्टोरियस ने कहा कि रूस की धमकियां केवल यूक्रेन तक सीमित नहीं हैं. उन्होंने कहा, "रूस का खतरा जर्मनी और नाटो देशों पर भी है. हमें इन्हें गंभीरता से लेना होगा.”
यूक्रेन के कितने काम आएगा कुर्स्क
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बैठक में नाटो के नए मिशन "एनएसएटीयू" की भी चर्चा हुई, जो जनवरी में शुरू होगा. यह मिशन पश्चिमी देशों की सैन्य मदद को बेहतर ढंग से समन्वित करने का प्रयास करेगा.
मंत्रियों ने यूरोप में रक्षा ढांचे को मजबूत करने की जरूरत पर भी चर्चा की. पिस्टोरियस ने कहा कि नाटो को अपनी "क्षमता की खामियां" पूरी करनी होंगी.
पोलिश रक्षा मंत्री ने मौजूदा हालात को द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का सबसे बड़ा खतरा बताया. उन्होंने कहा, "आज हमारे पास समय है. जल्द ही समय खत्म हो जाएगा.”
हाल ही में अमेरिका ने यूक्रेन को अपनी मिसाइलों को इस्तेमाल की इजाजत दी थी, जिसके बाद रूस ने अपनी परमाणु नीति में बदलाव किया. इससे दुनियाभर मेंपरमाणु युद्ध को लेकर चिंता बढ़ गई है.
नाटो देशों ने नए तकनीकी विकास, जैसे एआई से लैस ड्रोन और बेहतर गोला-बारूद उत्पादन को प्राथमिकता दी है. इन प्रयासों का मकसद नाटो को भविष्य के खतरों से निपटने के लिए तैयार करना है.