‘कभी ना सोने वाला शहर’ का तमगा न्यूयॉर्क और दुनिया को कितना नुकसान पहुंचा रहा है, इसका पता रात की रोशनी के कारण होने वाले नुकसान से चलता है.
न्यूयॉर्क टाइम्स स्क्वेयरतस्वीर: picture alliance/AP
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न्यूयॉर्क में सालाना जलवायु सप्ताह के दौरान जमा हुए पर्यावरण कार्यकर्ताओं, राजनेताओं और उद्योगपतियों ने जिन मुद्दों पर चर्चा की, उनमें न्यूयॉर्क शहर में रात की रोशनी भी शामिल है.
इन्हीं रोशनियों के कारण न्यूयॉर्क के लिए कहा जाता है, यह शहर कभी सोता नहीं है. लेकिन यह बात पर्यावरण के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं को परेशान कर रही है और उनकी चिंता इस बात से और बढ़ रही है कि इन रोशनियों से होने वाले नुकसान के बारे में जागरूकता बेहद कम है.
एलईडी की रोशनी से घट जाती है तारों की चमक!
एलईडी लाइट ऊर्जा की बड़ी बचत करती हैं. इनकी रोशनी ज्यादातर नीली और ठंडी होती है. इसका मतलब है कि शहरों के ऊपर का आकाश ज्यादा से ज्यादा चमकीला हो रहा है, और ऐसी स्थिति को लाइट पॉल्यूशन या फिर रोशनी प्रदूषण कहते हैं.
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साफ आकाश
इस तरह का नजारा देखने के लिए ज्यादातर लोगों को काफी लंबी दूरी तय करनी पड़ेगी. सभ्यता से दूर कहीं समंदर किनारे या फिर पहाड़ों में. जहां कहीं इंसान हैं वहां रोशनी के कृत्रिम स्रोत भी मौजूद हैं. ये आकाश को चमकादार बनाते हैं और इसका नतीजा यह होता है कि सितारों की चमक फीकी पड़ जाती है. सितारे हल्के होते होते एक दिन नजरों से दूर हो जाते है.
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सस्ती और चमकदार रोशनी वाली एलईडी
नये जमाने के लैम्प अब ज्यादा ऊर्जा की खपत नहीं करते. इसलिए अब लोग उनका जम कर इस्तेमाल करते हैं. जाहिर है कि इसके कुछ दूसरे नतीजे भी होंगे. एलईडी की रोशनी में अक्सर कोल्ड ब्लू वेवलेंथ की रोशनी होती है. यह वे तरंगें हैं जो रोशनी के प्रदूषण को तेज करती हैं.
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संरक्षित क्षेत्र में बिजली बंद
यूरोपीयन सदर्न ऑब्जर्वेटरी यानि ईएसओ चिली के विशेष संरक्षित क्षेत्र में हैं. यहां घरों के बाहर कृत्रिम रोशनी जलाने की मनाही है. ईएसओ इंसानी बस्तियों से काफी दूर है. हालांकि शहर के पास मौजूद वेधशालाओं यानि ऑबर्जर्वेटरी को प्रकाश के उत्सर्जन से जूझना पड़ता है. यही वजह है कि शहरों में रोशनी का प्रदूषण रोकने के लिए पीली गर्म रोशनी स्ट्रीट लाइट के रूप में इस्तेमाल की जाती है.
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पहले...
जर्मन रिसर्च सेंटर फॉर जियोसाइंसेज, द लाइबनित्स इंस्टीट्यूट और द यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर एंड बॉल्डर के रिसर्चरों ने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन से मिले आंकड़ों और तस्वीरों का इस्तेमाल कर परिवर्तन को जानने की कोशिश की. यह नजारा 2010 में आईएसएस कैलगरी/कनाडा से लिया गया.
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... और बाद में
वही नजारा 2015 में. कोई भी देख सकता है कि लाइटिंग सिस्टम ने पूरे शहर में क्या बदलाव कर दिया है. कुछ सड़क और जुड़ गये हैं. वैज्ञानिक जिस रेडियोमीटर का इस्तेमाल प्रकाश की तीव्रता नापने के लिए करते हैं, वह नीले स्पेक्ट्रम की रोशनी सही तरीके से नहीं बता पा रहा है. इसका मतलब है कि जितना पता चल पा रहा है, उससे कहीं ज्यादा तेज है रोशनी.
तस्वीर: GFZ Potsdam
बढ़ती जा रही है रोशनी
यह उपकरण वीजिबल इन्फ्रारेड इमेजिंग रेडियोमीटर है. इसका रिजॉल्यूसन 750 मीटर था. इसके आंकड़े बता रहे हैं कि कृत्रिम स्रोत से आ रही रोशनी की तीव्रता हर साल करीब 2.2 फीसदी की दर से बढ़ी है 2012 से 2016 के बीच.
तस्वीर: NASA
रोशनी का अर्थव्यवस्था से क्या लेना?
दुनिया भर में रोशनी बढ़ने को मोटे तौर पर देशों के जीडीपी में इजाफे से जुड़ा माना जाता है. उभरती अर्थव्यवस्थाओं में इन दोनों चीजों को बहुत तेजी से बढ़ते देखा जा सकता है.
तस्वीर: NASA/GSFC/Craig Mayhew & Robert Simmon
रोशनी बदल देती है भीतरी घड़ी को
कृत्रिम रोशनी जानवरों और पेड़ पौधों की जिंदगी बदल देती है. शहरों में रहने वाले परिंदों के सोने का अभ्यास बदल गया है. कृत्रिम रोशनी में रहने वाले पौधों के विकास की अवधि बढ़ जाती है.
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स्मार्ट लैम्प
सवाल अब भी कायम है, क्या शहरों में पूरी रात स्ट्रीट लाइट को जलाए रखने की जरूरत है? भले ही एलईडी बहुत ज्यादा बिजली खर्च नहीं करती लेकिन हमें उन्हें जब जरूरत ना हो तो बंद कर देना चाहिए. जो रोशनी हलचल से चालू हो जाए उसे विकल्प बनाया जा सकता है. आपात स्थिति के लिए थोड़ी कम चमकीली रोशनी भी चल सकती है.
तस्वीर: DW/L. Hansen
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इंटरनेशनल डार्क-स्काई एसोसिएशन (IDA) के निदेशक रस्किन हार्टली कहते हैं, "चमकदार जगमगाती रोशनियां ऊर्जा की वाहियात बर्बादी है, जिसका कुदरत पर सीधा असर होता है, यह बात समझने में अभी काफी समय लगेगा."
अमेरिका के ऊर्जा मंत्रालय के मुताबिक चारदीवारी के बाहर जगने वाली लाइटों से अमेरिका में हर दिन इतनी बिजली खर्च होती है जितनी साढ़े तीन करोड़ घरों को रोशन करने के लिए काफी होगी. मंत्रालय कहता है कि किसी एक पल में सिर्फ एक फीसदी कृत्रिम रोशनी लोगों तक पहुंचती है. यानी 99 फीसदी रोशनी इंसानों के किसी इस्तेमाल में नहीं आती.
हर मुद्दे पर चर्चा हो
सिर्फ न्यूयॉर्क शहर में कितनी सार्वजनिक रोशनी बर्बाद हो रही है, इसका कोई अनुमान उपलब्ध हीं है लेकिन उपग्रहों से मिलीं तस्वीरों के अध्ययन बताते हैं कि अमेरिका में पूरे यूरोप से ज्यादा बिजली बर्बाद होती है और देश में न्यूयॉर्क सबसे ज्यादा बिजली बर्बाद करने वाले शहरों में से है.
न्यूयॉर्क में पिछले 15 साल से पर्यावरण सप्ताह मनाया जा रहा है. हार्टली कहते हैं कि इस आयोजन में पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं के लिए धन उपलब्ध कराने से लेकर खाद्य क्षेत्र में कार्बन उत्सर्जन कम करने और लाइट पॉल्यूशन घटाने जैसे मुद्दों पर और गहन चर्चा की जरूरत है.
समाचार एजेंसी एएफपी से बातचीत में हार्टली कहते हैं, "संकट की विशालता को देखते हुए लोग चाहते हैं कि ऐसे उपाय खोजे जाएं जिनका जल्दी असर नजर आए. और अपने आसपास देखें तो सबसे साधारण उपाय ये हो सकता है कि कैसे हम व्यवस्था में हो रही बर्बादी को रोकें."
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कई समस्याएं
आईडीए का अनुमान है कि सार्वजनिक जगहों पर जलने वाली रोशनियां पूरी दुनिया में होने वाले कार्बन उत्सर्जन के कम से कम एक फीसदी के लिए जिम्मेदार हैं. लेकिन सिर्फ यही समस्या नहीं है.
न्यूयॉर्कि सिटी ऑडबन संस्था में संरक्षण और विज्ञान निदेशक डस्टिन पैटरिज बताते हैं कि न्यूयॉर्क शहर "अटलांटिक फ्लाईवे" नामक उस रास्ते में पड़ता है जहां से हर साल करोड़ों प्रवासी पक्षियों गुजरते हैं. वह कहते हैं कि कृत्रिम रोशनियां पक्षियों को शहर की ओर आकर्षित करती हैं. इस कारण दिन वे में पक्षी इमारतों के शीशों में पेड़-पौधों की छवियां देखते हैं और दीवारों से टकरा जाते हैं. रात के वक्त वे रोशनी के कारण चमकती इमारतों की दीवारों से टकराते हैं.
भारत में घट रही है पंछियों की आबादी
भारत में पक्षियों की कई प्रजातियां खतरे में हैं. हाल ही में आई "स्टेट ऑफ इंडियाज बर्ड्स 2023" में ऐसी 178 प्रजातियों की पहचान की गई, जिन्हें संरक्षण में प्राथमिकता देने की जरूरत बताई गई. जानिए, रिपोर्ट की खास बातें.
तस्वीर: ingimage/IMAGO
बर्डवॉचर्स का डेटा
इस रिपोर्ट में 942 प्रजातियों के पक्षियों की स्थिति की समीक्षा की गई है. इसके लिए 30 हजार से ज्यादा बर्डवॉचर्स के अपलोड किए गए डाटा को इस्तेमाल किया गया है. बर्डवॉचर, यानी ऐसे शौकीन जो पक्षियों को उनकी कुदरती आबोहवा में देखते हैं. भारत 2020 से पक्षियों की स्थिति की नियमित समीक्षा कर रहा है. इसी साल स्टेट ऑफ इंडियाज बर्ड्स ने अपनी पहली रिपोर्ट जारी की थी. तस्वीर में: इंडियन रोलर
तस्वीर: ingimage/IMAGO
संरक्षण की जरूरत
रिपोर्ट में कई ऐसी प्रजातियों की पहचान की गई है, जिन्हें संरक्षित श्रेणी में रखे जाने की जरूरत है. 178 प्रजातियों को संरक्षण प्राथमिकता में सबसे ऊपर रखा गया है. 323 प्रजातियों को मध्यम और 441 प्रजातियों को निम्न प्राथमिकता श्रेणी रखा गया है. इनमें कई ऐसी प्रजातियां भी हैं, जिनके बारे में माना जाता था कि वो आम हैं और बड़े इलाके में पाई जाती हैं.
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गिद्धों की स्थिति चिंताजनक
उच्च संरक्षण प्राथमिकता की सूची में रडी शेलडक, कॉमन टील, ग्रेटर फ्लेमिंगो, सारस क्रेन, कॉमन ग्रीनशांक, इंडियन वल्चर जैसे पक्षी शामिल हैं. इंडियन वल्चर, रेड हेडेड वल्चर और वाइट रंप्ड वल्चर, गिद्धों की ये तीन प्रजातियां बेहद संकटग्रस्त हैं. शिकारी पक्षी और बगुलों की संख्या में बड़ी गिरावट दर्ज की गई है.
तस्वीर: laurenpretorius /IMAGO
मोर की हालत ठीक
रिपोर्ट में 217 ऐसी प्रजातियां भी हैं, जिनकी संख्या स्थिर है या बढ़ रही है. एशियाई कोयल और मोर की स्थिति भी अच्छी है. बया, जो कि आमतौर पर दिखती रहती हैं, की हालत भी अपेक्षाकृत स्थिर है. रिपोर्ट में राज्यवार आंकड़ा भी है कि किन राज्यों में किन पक्षियों के संरक्षण पर सबसे ज्यादा और तत्काल ध्यान देने की जरूरत है.
तस्वीर: Stuart Franklin/Getty Images
प्रवासी पक्षी
माइग्रेट्री पक्षी बहुत अद्भुत यात्री होते हैं. हर साल अपने प्रजनन और प्रवास की जगहों के बीच लंबी-लंबी यात्राएं करते हैं. कई यूरेशियन प्रजातियों के लिए भारत एक अहम नॉन-ब्रीडिंग ठिकाना है.
तस्वीर: Arrush Chopra/NurPhoto/IMAGO
कई खतरे हैं राह में
कई प्रजातियां ऐसी हैं, जिनकी समूची आबादी अपनी सर्दियां भारतीय उपमहाद्वीप में बिताती हैं. पाया गया कि ये प्रवासी परिंदे भी चरम मौसमी घटनाओं, भूख और शिकार जैसे खतरों का सामना कर रहे हैं. गैर-प्रवासी पक्षियों की तुलना में इनकी संख्या ज्यादा तेजी से गिर रही है.
तस्वीर: Satyajit Shaw/DW
बिजली की तारें भी खतरनाक
पाया गया कि ओपन हैबिटाट में रहने वाले पक्षियों की संख्या में बहुत गिरावट आई है. ओपन हैबिटाट में ग्रासलैंड, रेगिस्तान जैसे खुले कुदरती ईकोसिस्टमों के अलावा खेतों, चारागाहों जैसे मानव-निर्मित पारिस्थितिकी तंत्र भी शामिल हैं. ऐसे इलाकों में रहने वाले पक्षियों के लिए कई खतरें हैं. जैसे बिजली की तारें, पवनचक्कियां, कुत्ते-बिल्ली जैसे शिकारी जानवर, कीटनाशक, अवैध शिकार, कारोबार, शहरीकरण.
तस्वीर: Satyajit Shaw/DW
दुनियाभर में पक्षियों पर खतरा
आईयूसीएन की रेड लिस्ट बताती है कि दुनियाभर में पक्षियों की 49 फीसदी प्रजातियों की आबादी घट रही है. ये गिरावट लॉन्ग टर्म और शॉर्ट टर्म, दोनों तरह की है. कई आम समझी जाने वाली प्रजातियां संख्या में घट रही हैं. उनपर एकदम से विलुप्त होने का खतरा भले ना हो, लेकिन घटती आबादी के इकोलॉजी पर कई गंभीर प्रभाव होंगे.
तस्वीर: Channi Anand/AP Photo/picture alliance
जैव विविधता में लगातार गिरावट
सोचिए, अगर आने वाली पीढ़ियां हाथी ना देख पाएं? गौरैया बस किताबों में दिखे? ये भीषण तो होगा ही, पर्यावरण और ईकोसिस्टम के लिए भी गंभीर नतीजे होंगे. दुनियाभर में जैव विविधता लगातार घट रही है. केवल पक्षी नहीं, स्तनपायी, सरीसृप, मछलियां, जंगली जीव, समुद्री जीव हर श्रेणी के जीवों की आबादी गिर रही है. ताजा लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट के मुताबिक, इन जीवों की आबादी में 1970 से अब तक औसतन 69 फीसदी की कमी आई है.
तस्वीर: Satyajit Shaw/DW
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पार्टरिज कहते हैं, "न्यूयॉर्क में हर साल करीब ढाई लाख पक्षी दीवारों से टकराने के कारण मारे जाते हैं." ये पक्षी ईकोसिस्टम का बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. कनाडा से ये अपनी यात्राएं शुरू करते हैं और दक्षिण अमेरिका तक जाते हैं. पूरे रास्ते में ये पक्षी बीजों को बिखेरते जाते हैं.
पार्टरिज बताते हैं, "आप शाम को न्यूयॉर्क में अपनी खिड़की से बाहर देखिए. आपको जैव विविधता संरक्षण और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई का एक आसान उपाय नजर आएगा."
कोशिशें जारी हैं
लाइट पॉल्यूशन का असरआसमान में नजर आने वाले सितारों की संख्या पर भी पड़ता है. सितारों को निहारने में होने वाली मुश्किलों के कारण ही आईडीए की स्थापना की गयी थी.
हार्टली कहते हैं, "करोड़ों प्रकाश वर्ष की यात्रा करके हम तक पहुंचने वाली रोशनी को आखरी पल में मार दिया जाता है. वह (शहर की रोशनी में) गुम हो जाती है. समाज के लिए यह कितना बड़ा नुकसान है!"
क्यों नहीं दिखते आसमान में तारे
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इस प्रदूषण के कारण मनुष्य की सेहत पर होने वाले असर के बारे में भी कुछ अध्ययन किये गये हैं. उदाहरण के लिए कुछ तरह के कैंसर के मामले बढ़ने को शरीर के 24 घंटे के चक्र में आने वाली बाधाओं से जोड़कर देखा जाता है. साथ ही, कृत्रिम रोशनी के कारण मच्छर और उनसे होने वाली बीमारियां भी बढ़ती हैं.
2021 में न्यूयॉर्क प्रशासन ने एक कानून लागू किया था जिसके तहत प्रवासी पक्षियों की यात्रा के समय सरकारी इमारतों की गैरजरूरी लाइटों को रात 11 बजे से सुबह 6 बजे तक बंद रखने का नियम बनाया गया था. लेकिन सरकारी इमारतें शहर की कुल इमारतों का एक छोटा सा हिस्सा हैं. इसी साल मई में एक विधेयक लाया गया है, जिसमें इस नियम को सारी इमारतों पर लागू करने का प्रस्ताव है. लेकिन फिलहाल वह प्रस्ताव लंबित है.