जापान में इस हफ्ते सालाना वेतन बढ़ाने पर बात हो रही है. लेकिन टोक्यो के एक नागरिक को कोई उम्मीद नहीं है. उनका वेतन हर साल चार डॉलर यानी करीब सवा तीन सौ रुपये ही बढ़ना है.
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जापान के टोक्यों में अकाउंटेंट मासामितु ने सालों से सिनेमा में कोई फिल्म नहीं देखी है. वह बाहर घूमने नहीं जा सकते और घर के बाहर खाना खाना तो कभी कभार ही हो पाता है. और ऐसा बरसों से हो रहा है. लगभग 25 लाख रुपये सालाना की उनकी तन्ख्वाह से घर का खर्च निकलना ही मुश्किल से हो पाता है. दस साल से उनका वेतन सालाना करीब 305 रुपये ही बढ़ा है.
50 साल के मासामितु बताते हैं, "मैं बचत नहीं कर सकता. बुढ़ापे के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं है. मुझे बस काम करते रहना होगा." मासामितु ने अपना पूरा नाम इसलिए नहीं बताया कि कहीं उनकी छोटी सी इवेंट प्लानिंग कंपनी के अधिकारी नाराज ना हो जाएं. वह कहते हैं, "यहां से रिटायर होने के बाद मैं कुछ भी कर लूंगा. जो भी मिल जाए. शायद एक सिक्यॉरिटी गार्ड का काम कर लूंगा."
बड़ी संख्या में मजबूर लोग
मासामितु जैसी हालत जापान के छोटे और मध्यम दर्जे के उद्योगों में काम करने वाले बहुत से लोगों की है. 2020 में इन उद्योगों में औसत वेतन 38,515 डॉलर यानी लगभग 30 लाख रुपये सालाना था. और 1990 के दशक से इसमें कोई खास बदलाव नहीं हुआ है. इस कारण विकसित देशों के औसत वेतन (49,165 डॉलर) के मुकाबले जापान की हालत काफी खराब है.
देश के प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा ने लाभ कमा रहीं कंपनियों से आग्रह किया है कि इस बार के सालाना अप्रेजल में कर्मचारियों की तन्ख्वाह बढ़ाएं. फिलहाल देश की सभी बड़ी कंपनियों के प्रबंधक मिल बैठकर यूनियनों के साथ वेतन और काम के हालात आदि पर चर्चा कर रहे. इस चर्चा के बाद दिशा-निर्देश बनाए जाएंगे जो ज्यादातर कंपनियों के लिए मान्य होते हैं. यह चर्चा इस हफ्ते खत्म हो जाने की संभावना है.
मुश्किल से मिली दूसरी नौकरी
मासामितु एक प्रशिक्षित अकाउंटेंट हैं. 43 साल की उम्र में उन्होंने तब नौकरी बदली थी जबकि उनकी कंपनी ने वेतन में कटौती की थी. यह एक अनूठा कदम था क्योंकि आमतौर पर जापानी कर्मचारी नौकरियां नहीं बदलने के लिए जाने जाते हैं.
लैंटर्न पहनकर खाएं खाना
टोक्यो के एक होटल का कोविड-सुरक्षित होकर खाना खाने का यह तरीका लोगों को खूब लुभा रहा है. देखिए, क्या है ‘लैंटर्न डाइनिंग एक्सपीरियंस’
तस्वीर: Kim Kyung-Hoon/REUTERS
कैसे हो कोविड से सुरक्षा
कोरोना के जमाने में रेस्तरां में सुरक्षित खाना भी बड़ी समस्या है. जापान में रेस्तरां में सोशल डिस्टेंसिंग के जो उपाय किए गए उनमें टोक्यो के शीबुया रेस्तरां में रोबोट की सेवाएं भी शामिल थीं.
टोक्यो के ओटेमाची इलाके में होशीनोया रेस्तरां में कोविड-सुरक्षित होकर भोजन करने के लिए एक और तरीका इस्तेमाल किया जा रहा है. ये तरीका है लैंटर्न की सुरक्षा में भोजन का.
तस्वीर: Kim Kyung-Hoon/REUTERS
सुरक्षा के लिए
खाना खाने वाले लोगों को ये खासतौर पर तैयार की गईं लैंटर्न पहना दी जाती हैं जो ग्राहकों को एक दूसरे से सुरक्षित कर देती हैं.
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पारंपरिक अनुभव
ये लैंटर्न जापान के पारंपरिक दस्तकारों द्वारा तैयार की गई हैं. इस होटल को चलाने वाले होशीनोया परिवार की कोशिश अपने ग्राहकों को जापानी पारंपरिक अनुभव उपलब्ध करवाना है.
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महंगा है अनुभव
होटल में रुकने वाले ग्राहकों को इस अनुभव के लिए लगभग 260 डॉलर (करीब 20 हजार रुपये) देने होते हैं. इस कीमत में कई तरह का खाना उपलब्ध है, जो पारंपरिक जापानी तरीकों से बनाया जाता है.
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बल्ब भी है
हर लैंटर्न लगभग 75 सेंटीमीटर चौड़ी और 102 सेंटीमीटर ऊंची है. लैंटर्न के अंदर एक बल्ब भी लगा है जिससे बहुत सादी सी रोशनी चेहरे पर और खाने की प्लेट पर पड़ती है.
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पर्यटक लगभग गायब
कोविड महामारी से पहले 2019 में लगभग 80 लाख पर्यटक जापान की राजधानी टोक्यो घूमने पहुंचे थे. पूरे जापान में पर्यटकों की संख्या तीन करोड़ से ज्यादा थी. 2021 में सिर्फ दो लाख 45 हजार 900 लोगों ने जापान की यात्रा की.
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मौजूदा नौकरी भी मासामितु को बड़ी मुश्किल से मिली थी. उन्हें कई जगह इंटरव्यू देने पड़े और नाकामी हासिल हुई जिसके बाद उन्हें यह नौकरी इस शर्त पर मिली कि वेतन में हर साल 500 येन यानी लगभग 323 रुपये ही बढ़ाए जाएंगे.
वह बताते हैं, "मेरी उम्र को देखते हुए मेरा आधार वेतन बहुत बुरा नहीं था. कई जगहों पर तो इससे भी कम वेतन मिल रहा है. मुझे कहा गया कि दस साल तक 500 येन सालाना बढ़ेंगे और उसके बाद 5,000 येन सालाना बढ़ाए जाएंगे."
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बदलाव की उम्मीद नहीं
भत्ते आदि मिलाकर मासामितु का मासिक वेतन लगभग ढाई लाख येन यानी डेढ़ लाख रुपये से कुछ ज्यादा बनता है. उन्हें हर छह महीने पर बोनस के रूप में दो महीने का वेतन भी मिलता है. वह कहते हैं, "दुर्भाग्य की बात है कि यह बढ़ता नहीं है जबकि मैं खूब मेहनत कर रहा हूं."
इस वेतन से मासामितु अपना घर चलाते हैं. उनकी पत्नी पार्ट टाइम काम करती हैं जबकि उनकी एक बेटी है जो इस वर्ष हाई स्कूल पास कर जाएगी. मनोरंजन के वह अपने दोस्तों के साथ यूट्यूब पर देखकर योग करते हैं. कभी-कभी वह योग करने के लिए जिम का एक दिन का पास भी खरीद लेते हैं. मासामितु कहते हैं, "मैं एक औऱ बच्चा चाहता था लेकिन इस एक बच्चे ने ही हमारा सब ले लिया."
2022 में सबसे ताकतवर पासपोर्ट
हेनली इंडेक्स के मुताबिक जापान और सिंगापुर दुनिया के सबसे ताकतवर पासपोर्ट हैं. अफगानिस्तान का पासपोर्ट सबसे नीचे है. सूची में और कौन-कौन से देश टॉप में हैं, देखिए...
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जापान, सिंगापुर सबसे ताकतवर
एशियाई देशों जापान और सिंगापुर के पासपोर्ट धारक 192 देशों की यात्रा बिना पहले से वीजा लिए कर सकते हैं, जो इन्हें दुनिया का सबसे ताकतवर पासपोर्ट बनाता है.
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नंबर 2
जर्मनी और दक्षिण कोरिया नंबर दो पर हैं. इनके पासपोर्ट धारक 190 देशों की बिना पहले वीजा लिए यात्रा कर सकते हैं.
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नंबर 3
चार यूरोपीय देश फिनलैंड, इटली, लग्जमबर्ग और स्पेन के पासपोर्ट 188 देशों की यात्रा के अधिकार के साथ तीसरे नंबर पर हैं.
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नंबर 4
चौथे नंबर पर भी यूरोपीय देशों का कब्जा है. ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, फ्रांस, नीदरलैंड्स और स्वीडन के पासपोर्ट पर 188 देशों की वीजा-फ्री यात्रा की जा सकती है.
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नंबर 5
आयरलैंड और पुर्तगाल के पासपोर्ट 187 देशों की वीजा फ्री यात्रा का अधिकार देते हैं.
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नंबर 6
बेल्जियम, न्यूजीलैंड, नॉर्वे, स्विट्जरलैंड, युनाइटेड किंग्डम और अमेरिका के पासपोर्ट नंबर 6 पर हैं. ये लोग 186 देशों में बिना पहले से वीजा लिए जा सकते हैं.
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नंबर 7
ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, चेक रिपब्लिक, ग्रीस और माल्टा के पासपोर्ट पर 185 देशों की यात्रा वीजा फ्री की जा सकती है.
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नंबर 8
183 देशों की वीजा फ्री यात्रा के अधिकार के साथ हंगरी और पोलैंड के पासपोर्ट नंबर 8 पर हैं.
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नंबर 9
लिथुआनिया और स्लोवाकिया के पासपोर्ट हेनली पासपोर्ट इंडेक्स में नंबर 9 पर हैं. इन्हें 182 देशों की वीजा फ्री यात्रा का अधिकार है.
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नंबर 10
एस्टोनिया, लातविया और स्लोवेनिया के पासपोर्ट धारक 181 देशों की यात्रा बिना पहले से वीजा लिए कर सकते हैं.
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भारत की रैंकिंग सुधरी
इस सूची में भारत अब 90 से उछलकर 83वें नंबर पर आ गया है. भारत के पासपोर्ट पर 60 देशों की वीजा फ्री यात्रा का अधिकार है, जो पिछले साल के 58 देशों से ज्यादा है.
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मासामितु को किसी तरह के बदलाव की ज्यादा उम्मीद नहीं है. उन्हें नहीं लगता कि प्रधानमंत्री किशिदा की अपील का कोई असर होगा. वह कहते हैं, "इस तरह की चीजें उन लोगों तक कम ही पहुंचती हैं जो मेरे जैसी जगहों पर हैं. नेता लोग कहते तो बहुत कुछ हैं पर होता कुछ नहीं है."