अफगानिस्तान में 15 राजनयिक मिशनों ने तालिबान के बढ़ते हमले के बीच संघर्ष विराम का आग्राह किया है. यह अपील ऐसे समय में की गई है जब तालिबान इलाकों पर तेजी से कब्जा कर रहा है.
विज्ञापन
तालिबान और अफगान सरकार के बीच सोमवार, 19 जुलाई को दोहा में शांति समझौता नहीं होने के बाद अफगानिस्तान में नाटो के प्रतिनिधि के साथ-साथ 15 देशों के राजनयिक मिशनों ने तालिबान से जंग रोकने की अपील है.
अफगान सरकार और तालिबान के प्रतिनिधियों ने शनिवार और रविवार को कतर की राजधानी दोहा में शांति वार्ता में हिस्सा लिया, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद संघर्ष विराम नहीं हो सका.
राजनयिक मिशनों का क्या कहना है?
अफगानिस्तान में लगभग 15 राजनयिक मिशनों द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है, "तालिबान की कार्रवाई सीधे उनके इस दावे को नकारती है कि वे दोहा में शांति और बातचीत के माध्यम से संघर्षों को हल करने के लिए प्रतिबद्ध हैं."
बयान में आगे कहा गया, "ईद के मौके पर तालिबान को बेहतरी के लिए अपने हथियार डालने चाहिए और दुनिया को बताना चाहिए कि वे वास्तव में शांति प्रक्रिया के लिए प्रतिबद्ध हैं."
बयान को अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जर्मनी और फ्रांस के साथ-साथ अन्य कई सरकारों द्वारा समर्थित किया गया है. नाटो के वरिष्ठ नागरिक प्रतिनिधि ने इस बयान का समर्थन किया है.
विज्ञापन
तालिबान का आगे बढ़ना जारी
हाल की ईद की छुट्टियों के दौरान तालिबान ने छोटी अवधि के युद्धविराम की घोषणा यह कहते हुए की थी कि वे अफगानों को शांति के साथ कुछ समय बिताना देना चाहते हैं.
अफगानिस्तान से विदेशी सैनिकों की वापसी की घोषणा के बाद से तालिबान ने सरकारी बलों पर हमलों की एक श्रृंखला शुरू करने में कोई समय बर्बाद नहीं किया है, जो अब भी जारी है. इस बीच तालिबान ने सुरक्षाबलों से कई प्रमुख क्षेत्रों पर कब्जा ले लिया है. आधे से अधिक देश अब उनके नियंत्रण में है.
सोमवार के बयान में अधिकारों के उल्लंघन की भी निंदा की गई है, जैसे हाल ही में क्षेत्रों में स्कूलों और मीडिया कंपनियों को बंद करने की कोशिशों का भी जिक्र किया गया है. तालिबान ऐसी कार्रवाइयों से इनकार कर चुका है.
सोमवार को तालिबान लड़ाकों ने काबुल के दक्षिण में स्थित उरुजगान प्रांत के देहरावुड जिले पर नियंत्रण का दावा किया था. तालिबान ने पहले ही हेरात प्रांत के 17 जिलों पर कब्जा कर लिया है, जबकि हेरात शहर की घेराबंदी की जा रही है. राष्ट्रपति अशरफ गनी ने सोमवार को हेरात की राजधानी का दौरा किया था.
देखें: कोरोना से ज्यादा भुखमरी से मर रहे लोग
कोरोना से ज्यादा भुखमरी से मर रहे लोग
गैर सरकारी संस्था ऑक्सफैम का कहना है कि दुनिया भर में हर एक मिनट में 11 लोगों की मौत भूख के कारण हो जाती है. विश्व में अकाल जैसी परिस्थितियों का सामना करने वालों की संख्या में पिछले वर्ष की तुलना में छह गुना वृद्धि हुई.
तस्वीर: Florian Lang/Welthungerhilfe
कोरोना पर भी भारी भुखमरी
ऑक्सफैम ने अपनी ताजा रिपोर्ट का शीर्षक "हंगर वायरस मल्टीप्लाइज" दिया है. गैर सरकारी संस्था ऑक्सफैम का कहना है कि भुखमरी के कारण मरने वाले लोगों की संख्या कोविड-19 के कारण मरने वाले लोगों की संख्या से अधिक हो गई है. कोविड-19 से दुनिया में हर एक मिनट में करीब सात लोगों की मौत होती है.
तस्वीर: Laetitia Bezain/AP/picture alliance
एक साल में बढ़ी संख्या
रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले एक साल में अकाल जैसे हालात का सामना करने वाले लोगों की संख्या पूरी दुनिया में छह गुना बढ़ गई है. ऑक्सफैम अमेरिका के अध्यक्ष और सीईओ एबी मैक्समैन के मुताबिक, "आंकड़े चौंका देने वाले हैं, लेकिन हमें यह याद रखना चाहिए कि ये आंकड़े अकल्पनीय पीड़ा का सामना करने वाले अलग-अलग लोगों से बने हैं. यहां तक की एक व्यक्ति भी बहुत अधिक है."
तस्वीर: Eshete Bekele/DW
15.5 करोड़ लोगों के सामने खाद्य असुरक्षा का संकट
ऑक्सफैम की रिपोर्ट में कहा गया कि दुनिया में करीब 15.5 करोड़ लोग खाद्य असुरक्षा के भीषण संकट का सामना कर रहे हैं. यह आंकड़ा पिछले साल के आंकड़ों की तुलना में दो करोड़ ज्यादा है. इनमें से करीब दो तिहाई लोग भुखमरी के शिकार हैं और इसका कारण है उनके देश में चल रहा सैन्य संघर्ष.
तस्वीर: Jack Taylor/Getty Images
कोविड और जलवायु परिवर्तन का भी असर
एबी मैक्समैन का कहना है, "आज कोविड-19 के कारण आर्थिक गिरावट और निरंतर संघर्षों और जलवायु संकट ने दुनिया भर में 5.20 लाख से अधिक लोगों को भुखमरी की कगार पर पहुंचा दिया है." उन्होंने कहा वैश्विक महामारी से निपटने के बजाय युद्धरत गुट एक दूसरे से लड़ाई लड़ रहे हैं. जिसका सीधा असर ऐसे लाखों लोगों पर पड़ता है जो पहले से ही मौसम से जुड़े आपदाओं और आर्थिक झटकों से कराह रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/M. Hamoud
महामारी में भी सैन्य खर्च
ऑक्सफैम का कहना है कि महामारी के बावजूद वैश्विक सैन्य खर्च बढ़कर 51 अरब डॉलर हुआ है. यह राशि भुखमरी को खत्म करने के लिए संयुक्त राष्ट्र को जितने धन की जरूरत है उसके मुकाबले कम से कम छह गुना ज्यादा है.
तस्वीर: Ismail Hakki/AFP/Getty Images
इन देशों में स्थिति बेहद खराब
रिपोर्ट में उन देशों को शामिल किया गया है जो भुखमरी से "सबसे ज्यादा प्रभावित" हैं. इसमें अफगानिस्तान, इथियोपिया, दक्षिण सूडान, सीरिया और यमन शामिल हैं. इन सभी देशों में संघर्ष जारी है.
ऑक्सफैम का कहना है कि भुखमरी को युद्ध के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. लोगों को भोजन और पानी से वंचित रखकर, मानवीय सहायता में बाधा पहुंचाकर भुखमरी को युद्ध के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. ऑक्सफैम के मुताबिक जब उनके बाजारों, खेतों और जानवरों पर बमबारी हो रही हो तो वे सुरक्षित रूप से नहीं रह सकते या भोजन नहीं तलाश सकते हैं.
तस्वीर: Nabeel al-Awzari/REUTERS
संघर्ष रोकने की अपील
संस्था ने सरकारों से हिंसक संघर्षों को रोकने का आग्रह किया है. संस्था ने सरकारों से संघर्षों को विनाशकारी भूख पैदा करने से रोकने की अपील की है. उसने कहा है कि सरकारें यह सुनिश्चित करें कि जरूरतमंदों तक राहत एजेंसियां पहुंच सकें और दान देने वाले देशों से कहा है कि वह यूएन के प्रयासों को तुरंत निधि दें.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Buchanan
8 तस्वीरें1 | 8
दूर-दूर तक शांति का संकेत नहीं
अफगान सरकार के प्रतिनिधियों और तालिबान के राजनीतिक नेतृत्व ने कहा है कि वे दोहा शांति वार्ता के तहत जल्द ही फिर मिलेंगे. दोनों ने यह भी आश्वासन दिया है कि वे सरकारी संपत्ति को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे. दोहा में तालिबान के प्रवक्ता मोहम्मद नईम ने उन मीडिया रिपोर्टों से इनकार किया जिसमें कहा गया है कि तालिबान ईद के मौके पर कैदियों की रिहाई के बदले युद्धविराम के लिए सहमत हो गए हैं.
सोमवार को अफगानिस्तान के लिए अमेरिका के शांति दूत जलमय खलीलजाद ने इस्लामाबाद का दौरा किया और प्रधानमंत्री इमरान खान और पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा से मुलाकात की. अमेरिकी दूतावास के एक बयान में कहा गया, "अफगानिस्तान और तालिबान के बीच एक व्यापक राजनीतिक समझौते की तात्कालिकता पर खलीलजाद ने जोर दिया है."
खलीलजाद का पाकिस्तान दौरा ऐसे समय में हुआ है जब अफगानिस्तान ने पाकिस्तान से अपने राजदूत को वापस बुला लिया है. दोनों देशों के बीच आरोपों का नया सिलसिला छिड़ गया है. अफगान सरकार का आरोप है कि पाकिस्तान तालिबान को शरण दे रहा है.
एए/वीके (एएफपी, रॉयटर्स)
पुलित्जर विजेता भारतीय पत्रकार दानिश सिद्दीकी की मौत
फोटोजर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी की अफगानिस्तान में मौत हो गई है. अफगान सुरक्षा बलों और तालिबान के बीच हिंसक भिड़ंत में उनकी जान चली गई.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
पुलित्जर से सम्मानित
हाल ही में अफगानिस्तान के बदलते हालातों और हिंसा के अलावा, उन्होंने इराक युद्ध और रोहिंग्या संकट की भी कई यादगार तस्वीरें ली थीं. सन 2010 से समाचार एजेंसी रॉयटर्स के लिए काम करने वाले दानिश सिद्दीकी को 2018 में रोहिंग्या की तस्वीरों के लिए ही पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
अफगान बल के साथ
विदेशी सेनाओं के अफगानिस्तान से निकलने और तालिबान के फिर से वहां कब्जा जमाने के इस दौर में हर दिन हिंसक घटनाएं हो रही हैं. ऐसे में अफगान सुरक्षा बलों के साथ मौजूद पत्रकारों के जत्थे में शामिल सिद्दिकी मरते दम तक अफगानिस्तान से तस्वीरें और खबरें भेजते रहे.
तस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS
कोरोना की नब्ज पर हाथ
हाल ही में भारत में कोरोना संकट की उनकी ली कई ऐसी तस्वीरें देश और दुनिया के मीडिया में छापी गईं. खुद संक्रमित होने का जोखिम उठाकर वह कोविड वॉर्डों से बीमार लोगों के हालात को कैमरे में कैद करते रहे.
तस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS
भगवान का रूप डॉक्टर
कोरोना काल में सिद्धीकी की ऐसी कई तस्वीरें आपने समाचारों में देखी होंगी जिसमें एक फोटो पूरी कहानी कहती है. महामारी के समय दानिश सिद्दीकी की ली ऐसी कई तस्वीरें इंसान की दुर्दशा और लाचारी को आंखों के सामने जीवंत करने वाली हैं.
तस्वीर: Danish Siddiqui/REUTERS
लाशों के ऐसे कई अंबार
जहां एक लाश का सामना किसी आम इंसान को हिला देता है वहीं पत्रकारिता के अपने पेशे में सिद्धीकी ने ना केवल लाशों के अंबार के सामने भी हिम्मत बनाए रखी बल्कि पेशेवर प्रतिबद्धता के बेहद ऊंचे प्रतिमान बनाए. कोरोना की दूसरी लहर के चरम पर दिल्ली के एक श्मशान की फोटो.
तस्वीर: DANISH SIDDIQUI/REUTERS
कश्मीर पर राजनीति
भारत की केंद्र सरकार ने पांच अगस्त 2019 को जब जम्मू-कश्मीर राज्य का विशेष राज्य का दर्जा रद्द कर उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटा, उस समय भी ड्यूटी कर रहे फोटोजर्नलिस्ट सिद्दीकी ने वहां की सच्चाई पूरे विश्व तक पहुंचाई.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
सीएए विरोध के वो पल
केंद्र सरकार के नागरिकता संशोधन कानून के विरोध प्रदर्शनों से उनकी खींची ऐसी कई तस्वीरें दर्शकों के मन मानस पर छा गईं थी. जैसे 30 जनवरी 2020 को पुलिस की मौजूदगी में जामिया यूनिवर्सिटी के बाहर प्रदर्शन करने वालों पर बंदूक तानने वाले इस व्यक्ति की तस्वीर.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
समर्पण पर गर्वित परिवार
जामिया यूनिवर्सिटी के शिक्षा विभाग में प्रोफेसर उनके पिता अख्तर सिद्दीकी ने डॉयचे वेले से बातचीत में बताया कि दानिश सिद्दीकी "बहुत समर्पित इंसान थे और मानते थे कि जिस समाज ने उन्हें यहां तक पहुंचाया है, वह पूरी ईमानदारी से सच्चाई को उन तक पहुंचाए." घटना के समय दानिश सिद्दीकी की पत्नी और बच्चे जर्मनी में छुट्टियां मनाने आए हुए थे.