बांग्लादेश की राजनीति एक नए अध्याय की तरफ बढ़ रही है. ऐसे में यह सवाल भी उठ रहा था कि पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना अपने देश वापस लौटेंगी या नहीं. अब उनके बेटे सजीब वाजिद जॉय ने कहा है कि वो जरूर लौटेंगी.
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शेख हसीना के बांग्लादेश छोड़ कर भारत में शरण लेने के बाद से उनके बेटे सजीब वाजिद जॉय उनकी तरफ से मीडिया से बात करते रहे हैं. लेकिन ऐसा लग रहा है कि जैसे जैसे समय बीतता जा रहा है, जॉय के बयान बदलते जा रहे हैं.
उन्होंने शुरुआती टिप्पणियां में हसीना के बांग्लादेश लौटने की संभावना से इनकार किया था, लेकिन अब उन्होंने कहा है कि पूर्व प्रधानमंत्री निश्चित रूप से अपने देश वापस लौटेंगी. बांग्लादेश में एक अंतरिम सरकार का गठन हो चुका है और देश का नियंत्रण कितने दिनों तक इस सरकार के हाथों में रहेगा, इसकी घोषणा नहीं की गई है.
जॉय के बदलते बयान
जॉय ने मंगलवार, छह अगस्त को डीडब्ल्यू के साथ बातचीत में कहा था कि शेख हसीना की भारत छोड़ कर कहीं भी जाने की कोई योजना नहीं है.
उन्होंने यह भी कहा था कि हसीना इस बात से बेहद दुखी हैं कि "जिस देश के लिए उनके पिता और परिवार के कई सदस्यों ने अपनी जान दे दी, वो खुद जेल भी गईं, मेहनत की, देश का इतना विकास किया, उस देश के लोगों ने उन्हें इस तरह से बेइज्जत किया और उन पर हमला किया."
जॉय ने उसी दिन भारतीय टीवी चैनल वियोन से तो यहां तक कहा था कि बांग्लादेश के लोग "कृतघ्न" हैं, "बांग्लादेश अगला पाकिस्तान होगा", "शेखा हसीना कभी वापस नहीं लौटेंगी" और उनके परिवार और उनकी पार्टी अवमि लीग ने अब बांग्लादेश के लोगों को उनके हाल पर छोड़ देने का फैसला कर लिया है.
लेकिन दो ही दिनों बाद, जॉय के बयान काफी बदल गए हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा कि अवामी लीग और बीएनपी बांग्लादेश की सबसे बड़ी पार्टियां हैं और उनके बिना देश में लोकतंत्र संभव नहीं है.
जॉय की राजनीतिक आकांक्षा
भारतीय अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में जॉय ने यहां तक कहा कि जैसे ही बांग्लादेश में चुनावों की घोषणा हो जाएगी, शेखा हसीना देश लौट जाएंगी. उन्होंने कहा कि अवामी लीग चुनावों में हिस्सा लेगी और जीत भी सकती है.
साथ ही उन्होंने खुद भी राजनीति में आने की बात की. उन्होंने अखबार को बताया कि बांग्लादेश में इस समय नेतृत्व का अभाव है और "अगर मेरे राजनीति में आने की जरूरत पड़ेगी तो मैं पीछे नहीं हटूंगा."
बांग्लादेश: शेख हसीना के हाथ से कैसे फिसल गई सत्ता
बांग्लादेश के इतिहास में सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहीं शेख हसीना को भीषण हिंसा और छात्रों के आंदोलन के कारण इस्तीफा देकर देश छोड़ना पड़ना. आखिर कैसे सत्ता उनके हाथों से फिसल गई. उनके राजनीतिक सफर पर एक नजर.
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शेख हसीना ने कैसे गंवाई सत्ता
5 अगस्त, 2024 को शेख हसीना ने बांग्लादेश के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और सेना के विमान में सवार होकर भारत पहुंच गईं. जुलाई की शुरूआत से ही बांग्लादेश में हजारों छात्र देश के अलग-अलग हिस्सों में मौजूदा कोटा सिस्टम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे.
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कोटा सिस्टम का विरोध
साल 2018 तक बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में 56 फीसदी सीटों में कोटा लागू था. इसमें 30 प्रतिशत स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों और उनके बच्चों के लिए, 10 प्रतिशत महिलाओं, 10 फीसदी पिछड़े जिलों के लोगों, पांच फीसदी अल्पसंख्यकों और एक प्रतिशत कोटा विकलांगों के लिए था. इस तरह सभी भर्तियों में केवल 44 फीसदी सीटें ही बाकियों के लिए खाली थीं.
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क्यों सड़कों पर आए छात्र
2018 में सरकार ने एक सर्कुलर जारी कर कोटा सिस्टम को खत्म करने की घोषणा की. इसके अंतर्गत स्वतंत्रता सेनानियों और उनके परिवारजनों के लिए आरक्षित 30 फीसदी कोटा को भी खत्म करने की बात कही गई. इसके खिलाफ 2021 में हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की गई. 5 जून, 2024 को हाई कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया कि वह संबंधित सर्कुलर को रद्द करे और स्वतंत्रता सेनानियों के लिए चले आ रहे 30 फीसदी कोटा को कायम रखे.
इसके बाद देश के कई हिस्सों में छात्रों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया. इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट जा पहुंचा. 21 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि 93 फीसदी नौकरियों में भर्तियां योग्यता के आधार पर की जाएं. कोर्ट ने कहा 1971 के आंदोलन में शामिल रहे सेनानियों के परिजनों को सिर्फ पांच फीसदी आरक्षण मिले.
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हिंसा और इस्तीफे की मांग
जुलाई से चल रहा छात्रों का आंदोलन सुप्रीम कोर्ट के फैसले से शांत नहीं हुआ और यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में छात्रों का विरोध प्रदर्शन जारी रहा. छात्र संगठनों ने चार अगस्त को पूर्ण असहयोग आंदोलन शुरू करने की घोषणा की थी.
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हसीना के इस्तीफे के पहले क्या हुआ
4 अगस्त को हुई हिंसा में 94 लोग मारे गए. जिनमें 13 के करीब पुलिस वाले थे. सरकार ने प्रदर्शनों को रोकने के लिए सड़कों पर सेना को उतार दिया लेकिन छात्र पीछे नहीं हटे और हसीना के इस्तीफे की मांग की. 5 अगस्त को छात्र संगठनों ने ढाका में लॉन्ग मार्च का एलान किया. जब प्रदर्शनकारी पीएम आवास की ओर बढ़ने लगे तो हसीना ने सेना के विमान में सवार होकर देश छोड़ दिया.
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बांग्लादेश पर मजबूत पकड़
दक्षिण एशियाई देश बांग्लादेश में 76 साल की शेख हसीना दुनिया की सबसे लंबे समय तक सत्ता में रहने वालीं सरकार प्रमुख थीं. शेख हसीना पहली बार 1996 में प्रधानमंत्री बनी और 2008 में वापस लौटीं और 5 अगस्त, 2024 तक पद पर बनी रहीं.
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हसीना पर आरोप
शेख हसीना पर सत्ता में 15 साल रहने के दौरान विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी, अभिव्यक्ति की आजादी पर दमन और असहमति पर दमन के आरोप लगे. उन पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे. लेकिन हसीना सरकार इन आरोपों को खारिज करती रही.
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विरासत में मिली राजनीति
शेख हसीना को राजनीति विरासत में मिली. उनके पिता शेख मुजीबुर्रहमान ने 1971 में पाकिस्तान से आजादी के लिए बांग्लादेश की लड़ाई का नेतृत्व किया था. 1975 में सैन्य तख्तापलट में उनके परिवार के अधिकांश लोगों के साथ उनकी हत्या कर दी गई थी. हसीना भाग्यशाली थीं कि उस समय वह यूरोप की यात्रा पर थीं. 1947 में दक्षिण-पश्चिमी बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) में जन्मी हसीना पांच बच्चों में सबसे बड़ी हैं.
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भारत में निर्वासित जीवन
शेख हसीना वर्षों तक भारत में निर्वासन में रहीं. फिर बांग्लादेश वापस चली गईं और अवामी लीग की प्रमुख चुनी गईं. उन्होंने 1973 में ढाका विश्वविद्यालय से बंगाली साहित्य में ग्रैजुएशन की और अपने पिता और उनके छात्र समर्थकों के बीच मध्यस्थ के रूप में राजनीतिक अनुभव हासिल किया.
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हसीना और आम चुनाव
शेख हसीना जनवरी, 2024 में लगातार चौथी बार चुनाव जीतीं. इस चुनाव का मुख्य विपक्षी दल और उनकी प्रतिद्वंद्वी बेगम खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने बहिष्कार किया था. इस चुनाव में बड़े पैमाने पर धांधली के आरोप लगे.
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निरंकुश शासन के आरोप
बीएनपी और मानवाधिकार समूहों का कहना है कि हसीना की सरकार ने जनवरी, 2024 में हुए चुनाव से पहले 10,000 विपक्षी पार्टी कार्यकर्ताओं को झूठे आरोपों में गिरफ्तार किया था. इस चुनाव का विपक्ष ने बहिष्कार किया था. जैसे-जैसे समय बीतता गया, वह निरंकुश होती गईं और उनके शासन में राजनीतिक विरोधियों और कार्यकर्ताओं की सामूहिक गिरफ्तारी, जबरन गायब होना और न्यायेतर हत्याओं के आरोप लगे.
तस्वीर: Mohammad Ponir Hossain/REUTERS
शेख हसीना और खालिदा जिया के बीच संघर्ष
हसीना ने अपनी राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी बीएनपी की प्रमुख खालिदा जिया के साथ हाथ मिला लिया और लोकतंत्र के लिए एक विद्रोह का नेतृत्व किया, जिसने 1990 में सैन्य शासक हुसैन मोहम्मद इरशाद को सत्ता से उखाड़ फेंका. लेकिन जिया के साथ गठबंधन लंबे समय तक नहीं चला और दोनों महिलाओं के बीच तीखी प्रतिद्वंद्विता जारी रही.
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कमजोर हो चुकीं खालिदा जिया
शेख हसीना और खालिदा जिया के बीच कई सालों से राजनीतिक संघर्ष चला आ रहा है. 78 साल की जिया दो बार प्रधानमंत्री रह चुकी हैं और फरवरी 2018 में भ्रष्टाचार के एक मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद से जेल में हैं. उनकी तबीयत बिगड़ती जा रही है और 2019 में उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था. बांग्लादेश के राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने 5 अगस्त, 2024 को जिया को रिहा करने का आदेश दिया.
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हसीना के भारत के साथ संबंध
भारत और बांग्लादेश के बीच बेहद मजबूत संबंध हैं. जब कभी भी बांग्लादेश को जरूरत पड़ी तो भारत उसके साथ खड़ा नजर आया. दोनों देशों के बीच पिछले 53 सालों से द्विपक्षीय संबंध हैं. 2023 में भारत में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन में भारत ने बांग्लादेश को विशेष अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया था. हसीना के पीएम रहते हुए दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़ा है.
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हालांकि इससे पहले के अपने सभी बयानों में उन्होंने कहा था कि वो राजनीति में नहीं आना चाहते. अब अपने इस नए बयान के जरिए उन्होंने राजनीति में कदम रखने की संभावना को भी जन्म दे दिया है.
जॉय का जन्म 1971 ढाका में बांग्लादेश की आजादी की जंग के दौरान ही हुआ था. 1975 में जब उनके नाना शेख मुजीबुर रहमान और उनके परिवार के कई सदस्यों की एक सैन्य तख्तापलट के दौरान हत्या कर दी गई, उस समय वो अपनी मां, अपने पिता और अपनी मौसी के साथ तत्कालीन पश्चिमी जर्मनी में थे.
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भारत में पले बढ़े
1981 में उनकी मां तो बांग्लादेश की राजनीति में कदम रखने देश वापस लौट गईं लेकिन उन्हें साथ नहीं ले गईं. जॉय भारत में पले बढ़े. बाद में उच्च शिक्षा के लिए वो अमेरिका चले गए और फिर वहीं बस गए. बताया जाता है कि वो वाजिद कंसल्टिंग नाम से अपनी ही एक कंपनी चलाते हैं.
2008 में अवामी लीग ने बांग्लादेश में आईटी ढांचा मजबूत करने के लिए डिजिटल बांग्लादेश अभियान शुरू किया था, जिसकी बागडोर जॉय के ही हाथों में थी. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक 2010 में उन्होंने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता भी ले ली थी. हसीना के कार्यकाल में उनका बांग्लादेश आना-जाना लगा रहता था.
अब उन्हें अपनी मां के उत्तराधिकारी के रूप में देखा जा रहा है. अपने ताजा बयानों में उन्होंने यह भी दावा किया है कि हसीना देश छोड़ना नहीं चाह रही थीं लेकिन जॉय ने फोन पर बात कर उन्हें मनाया और तब जाकर पांच अगस्त को वो विमान में सवार हुईं.