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नहीं रहे ‘मंडल मसीहा’ शरद यादव

१३ जनवरी २०२३

जनता दल युनाइटेड के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव का निधन हो गया है. यादव का कोई युग तो नहीं रहा उन्होंने पिछड़ों की राजनीति की और उसके लिए हमेशा याद किए जाएंगे.

शरद यादव
शरद यादवतस्वीर: Prakash Singh/AFP/Getty Images

शरद यादव नहीं रहे. आमतौर पर उनके कद का इंसान जब गुजरता है तो कहा जाता है कि एक युग खत्म हो गया. लेकिन सिद्धांतों से बंधे साफ-सुथरी राजनीति करने वाले शरद यादव के बारे में ऐसा कहना शायद संभव नहीं. ऐसा तो नहीं हुआ कि शरद यादव का कोई युग रहा हो, लेकिन वह भारत की राजनीति का ऐसा सितारा बने रहे, जो कभी ओझल नहीं हुआ और हमेशा प्रासंगिक बना रहा.

पूर्व जेडीयू अध्यक्ष शरद यादव का 75 साल की उम्र में  गुड़गांव के एक अस्पताल में निधन हो गया. फोर्टिस अस्पताल की ओर से जारी एक बयान में बताया गया कि जब उन्हें अस्पताल लाया गया तभी से वह बेहोश थे और उनसे कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल रही थी.

अस्पताल ने कहा, "जब जांच की गई तो उनकी नब्ज नहीं चल रही थी. रक्तचाप भी नहीं था. उन्हें सीपीआर दिया गया. पूरी कोशिशों के बावजूद उन्हें वापस नहीं लाया जा सका और रात 10.19 बजे मृत घोषित कर दिया गया.”

बिहार में आखिर दागियों के बिना क्यों नहीं बनती सरकार

उनके निधन की खबर आने पर भारत के प्रधानमंत्री से लेकर पक्ष और विपक्ष के तमाम बड़े नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी है. नरेंद्र मोदी ने ट्विटर पर लिखा, "श्री शरद यादव जी के निधन से पीड़ा हुई. अपने लंबे सार्वजनिक जीवन में उन्होंने एक सांसद और एक मंत्री के तौर पर अलग पहचान बनाई. वह डॉ. लोहिया के आदर्शों से प्रेरित थे. उनके साथ हुए संवाद को मैं हमेशा याद रखूंगा.”

शरद यादवतस्वीर: Sajjad Hussain/AFP/Getty Images

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपने शोक संदेश में यादव को "दशकों तक बने रहे एक उत्कृष्ट सांसद” के रूप में याद किया जिन्होंने "राजनीति में समानता को मजबूत किया.”

आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने अपने ट्वीट में उन्हें मंडल मसीहा कहा है. बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने लिखा, "मंडल मसीहा, राजद के वरिष्ठ नेता, महान समाजवादी नेता, मेरे अभिभावक आदरणीय शरद यादव जी के असामयिक निधन की खबर से मर्माहत हूं. कुछ कह पाने में असमर्थ हूं. माता जी और भाई शांतनु से वार्ता हुई. दुःख की इस घड़ी में संपूर्ण समाजवादी परिवार परिजनों के साथ है."

कम उम्र में बड़ा काम

सात बार लोक सभा और चार बार राज्य सभा के सांसद रहे यादव कुछ समय से बीमार चल रहे थे. 1 जुलाई 1947 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में जन्मे शरद यादव ने जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से गोल्ड मेडल के साथ डिग्री हासिल की थी. पढ़ाई के दौरान ही वह राजनीति में सक्रिय हो गए थे. वह समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया से प्रेरित थे. 1970 के दशक में उन्होंने कई राजीनतिक आंदोलनों में हिस्सा लिया और जेल भी गए.

राजनीति में उनकी एंट्री भी खासी नाटकीय थी. 1974 में जब जेपी आंदोलन फैलना शुरू हो गया था तो जबलपुर के कांग्रेस सांसद का निधन हो गया. तब जयप्रकाश नारायाण ने विपक्ष के साझा उम्मीदवार के तौर पर युवा कॉलेज छात्र को प्रत्याशी बनाने का फैसला किया और इस तरह शरद यादव ने पहला चुनाव लड़ा. 27 साल के युवा यादव ने कांग्रेस उम्मीदवार को हराकर इतिहास रचा और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.

भारतीय राजनीति में शरद यादव का योगदान मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करवाने में अहम भूमिका के लिए याद किया जाएगा. भले ही वह पले बढ़े मध्य प्रदेश में लेकिन अपनी राजनीति का केंद्र उन्होंने बिहार को बनाया. 1990 में लालू प्रसाद यादव को वहां का मुख्यमंत्री बनवाने में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. अपने एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने तो राम सुंदर दास को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला कर लिया था लेकिन उन्होंने तब के उप प्रधानमंत्री चौधरी देवी लाल को इस बात के लिए तैयार किया कि जनता दल के दावेदारों के बीच मुकाबले से ही मुख्यमंत्री चुना जाए.

अपनों से अलगाव

वही दौर था जब शरद यादव पटना जाते तो लालू यादव और नीतीश कुमार उनकी अगुआई के लिए हवाई अड्डे पर आते थे. फिर एक समय वह भी आया जब लालू यादव और शरद यादव आमने सामने हो गए. मधेपुरा से लालू ने उन्हें चुनाव में हरा दिया था. इस वक्त सिंगापुर में इलाज करवा रहे लालू यादव ने शरद यादव को याद करते हुए एक वीडियो साझा किया है. उन्होंने कहा कि उनके और शरद यादव के बीच कई बार मतभेद रहे लेकिन कड़वाहट कभी नहीं आई.

लालू यादव ने कहा, "उनके साथ स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव, नीतीश कुमार और मैंने समाजवाद की राजनीति राम मनोहर लोहिया और कर्पूरी ठाकुर से सीखी. हम कई मौकों पर एक दूसरे से लड़े लेकिन हमारे बीच कड़वाहट कभी नहीं आई.”

अपने राजनीतिक करियर के आखरी वर्षों में ऐसे दिन भी आए कि शरद यादव राज्य सभा का चुनाव हार गए और बहुत से जानकार कहते हैं कि ऐसा नीतीश कुमार के कारण हुआ. बाद में वह नीतीश कुमार का साथ छोड़कर लालू यादव की पार्टी राजद में शामिल हो गए.

उससे पहले जनता दल में टूट होने से जनता परिवार बिखर गया और शरद यादव उस धड़े के साथ गए जो बाद में एनडीए का हिस्सा बनकर भारतीय जनता पार्टी के साथ सरकार में रहा. तब यादव एनडीए के संयोजक रहे और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री बने.

रिपोर्टः विवेक कुमार

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