कॉप28 समझौते के अधिकांश शुरुआती मसौदे, जलवायु उत्सर्जनों के लिए जिम्मेदार जीवाश्म ईंधन के “फेजडाउन या फेजआउट” से संबंधित हैं. अंतिम दस्तावेज पर भी विवाद होना तय है. इसमें अंतर क्या है- और इसका कोई मतलब भी है?
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जीवाश्म ईंधनों से मिलने वाली ऊर्जा, वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जनों के लिए जिम्मेदार है. इस मुद्दे पर, संयुक्त राष्ट्र सम्मेलनों में सबकी राय हमेशा बंटी रही है.
इस बार का सम्मेलन, तेल और गैस उद्योग में अग्रणी देश, संयुक्त अरब अमीरात में हो रहा है. ऐसे में मुद्दे ने पहले की अपेक्षा ज्यादा ध्यान खींचा है.
संयुक्त अरब अमीरात की सरकारी तेल कंपनी एडनॉक के मालिक और कॉप28 जलवायु वार्ताओं की अध्यक्षता कर रहे सुल्तान अल-जबर ने उन मीडिया रिपोर्टों का खंडन किया है जिनमें वो उस वैज्ञानिक सर्वसम्मति पर सवाल खड़ते दिख रहे हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग को रोकने के लिए कोयला, तेल और गैस को फेजआउट करना होगा.
4 दिसंबर को पत्रकारों से बात करते हुए, अल-जबर ने जोर देकर कहा कि उनकी टिप्पणियों को संदर्भ से काटकर पेश किया गया. उन्होंने दावा किया कि उनका पूरा ध्यान, वैश्विक तापमान को पूर्व औद्योगिक स्तरों से डेढ़ डिग्री सेल्सियस ऊपर, सीमित रखने का तरीका खोजने में लगा है.
उन्होंने कहा, "मैंने बार बार कहा है कि जीवाश्म ईंधनों का फेजडाउन और फेजआउट, लाजमी है. ये होकर रहेगा."
फेजआउट, फेजडाउनः अंतर क्या है?
ये सिर्फ शब्दों का हेर-फेर हो सकता है लेकिन दोनों शब्द अर्थपूर्ण हैं.
जीवाश्म ईंधनों को फेज डाउन करने का मतलब ये है कि देश अपने यहां जीवाश्म ईंधनों का इस्तेमाल कम करते हुए पवन, सौर, हाइड्रो और परमाणु जैसी ज्यादा जलवायु-अनुकूल ऊर्जा को जगह देने पर सहमत होंगे. लेकिन इसमें ये अर्थ भी निहित है कि जलवायु परिवर्तन पर काबू पाने की कोशिशों के बीच जीवाश्म ईंधन, दुनिया के ऊर्जा उपयोग का हिस्सा बना रहेगा.
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फेजआउट से आशय ऊर्जा के लिए जीवाश्म ईंधनों के इस्तेमाल को पूरी तरह रोक देने से है. अभी तक इस कार्य योजना को पिछले जलवायु सम्मेलनों के प्रतिनिधियों के बीच ज्यादा समर्थन नहीं मिला, खासतौर पर राजस्व के लिए तेल और गैस के निर्यात पर निर्भर देशों से.
अमेरिका, रूस और सउदी अरब जैसे प्रमुख तेल उत्पादक देश, जीवाश्म ईंधनों के इस्तेमाल को खत्म करने की मांग का विरोध करते आए हैं. पिछले ही दिनों, 4 दिसंबर को सउदी अरब के ऊर्जा मंत्री अब्दुलाजीज बिन सलमान ने कहा कि वो जीवाश्म ईंधनों के इस्तेमाल में कमी लाने पर "बिल्कुल भी सहमत नहीं."
उन्होंने ब्लूमबर्ग टीवी से कहा, "और आपको यकीन दिलाता हूं कि सरकारों में एक भी व्यक्ति नहीं जो ये मानता है."
इस साल की शुरुआत में, संयुक्त अरब अमीरात की पर्यावरण मंत्री मरियम अल्महीरी ने तेल, गैस और कोयले का दोहन न रोककर, ईंधनों से निकलने वाले उत्सर्जन को फेजआउट करने का प्रस्ताव रखा. उनकी दलील थी कि फेजआउट से सिर्फ उन देशों का नुकसान होगा जो अपनी अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ाने के लिए जीवाश्म ईंधनों पर निर्भर हैं.
ब्रिटेन ने जीता कूड़ा उठाने का विश्व कप
इस सप्ताह जब दुनिया भर से 21 टीमें टोक्यो में सबसे पहले 'स्पोगोमी विश्व कप' में कूड़ा इकट्ठा करने के लिए जमा हुईं, तो ब्रिटेन शीर्ष पर रहा. इस चैंपियनशिप का उद्देश्य पर्यावरण के मुद्दों के बारे में जागरूकता फैलाना था.
तस्वीर: Kim Kyung-Hoon/REUTERS
क्या है "स्पोगोमी"
स्पोगोमी शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है. स्पोगोमी नाम अंग्रेजी के शब्द "स्पोर्ट" और कचरे के लिए जापानी शब्द "गोमी" के मेल से आया है.
तस्वीर: Kim Kyung-Hoon/REUTERS
बढ़ती लोकप्रियता
गेम को सबसे पहले 2008 में जापान में शुरू किया गया था. सिर्फ इस साल पूरे जापान में 230 से अधिक खेलों का आयोजन किया गया. लेकिन विश्व कप का आयोजन पहली बार किया गया है.
तस्वीर: Kim Kyung-Hoon/REUTERS
प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ जागरूकता
इस विश्व कप के आयोजक निप्पॉन फाउंडेशन ने कहा कि विश्व कप का आयोजन पर्यावरणीय मुद्दों, खासकर महासागरों में प्लास्टिक प्रदूषण बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए किया गया था.
तस्वीर: Kim Kyung-Hoon/REUTERS
चैंपियन बनी ब्रिटेन की टीम
इस प्रतियोगिता में विश्व के 21 देशों की टीमों ने भाग लिया. लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने के लिए टोक्यो में स्पोगोमी विश्व कप का आयोजन किया गया. ब्रिटेन की टीम ने इस खिताब को जीता.
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दूर-दूर से आए प्रतियोगी
हालांकि विश्व कप का आयोजन जापान में किया गया था, लेकिन ऑस्ट्रेलिया और यहां तक कि दुनिया के दूसरी तरफ ब्राजील के प्रतिनिधि भी इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए आए थे. हर टीम में तीन सदस्य थे.
तस्वीर: Kim Kyung-Hoon/REUTERS
साफ-सफाई के लिए जापान दुनिया भर में मशहूर
जापान साफ-सफाई के लिए दुनिया भर में जाना जाता है. नतीजा ये हुआ कि वर्ल्ड कप में बाकी टीमों को काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा. लेकिन हर किसी को आश्चर्यचकित करते हुए ब्रिटिश टीम 'द नॉर्थ विल राइज अगेन' ने चैंपियन का दर्जा हासिल करने के लिए 57.27 किलोग्राम कचरा इकट्ठा किया. जापान दूसरे स्थान पर रहा.
तस्वीर: Kim Kyung-Hoon/REUTERS
समुद्र में प्लास्टिक की बाढ़
अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संगठन (आईयूसीएन) के मुताबिक समुद्र में हर साल कम से कम 14 मिलियन टन प्लास्टिक आता है. इस प्लास्टिक को जानवर निगल रहे हैं. यही प्लास्टिक खाद्य श्रृंखला यानी फूड चेन में प्रवेश कर रहा है और पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुंचा रहा है.
तस्वीर: The Ocean Cleanup/abaca/picture alliance
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अल्महीरी ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, "अक्षय ऊर्जा बहुत तेजी से आगे बढ़ते हुए अपनी जगह बना रही है लेकिन हम उस स्थिति में अभी नहीं पहुंचे हैं कि जीवाश्म ईंधनों का इस्तेमाल बंद कर सकें और सिर्फ साफसुथरी और अक्षय ऊर्जा पर ही निर्भर हो जाएं."
उन्होंने कहा, "हम लोग अभी संक्रमण में हैं और इसे न्यायसंगत और व्यवहारिक होना चाहिए क्योंकि सभी देशों के पास संसाधन नहीं हैं." संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की नवंबर 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक संयुक्त अरब अमीरात की सरकारी तेल कंपनी एडनॉक ने 2027 तक अपनी तेल उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए 150 अरब डॉलर निवेश की योजना बनाई है.
अल्महीरी का सुझाव है कि कार्बन को रोके रखने और उसे सोखने की तकनीक का इस्तेमाल करते हुए जीवाश्म ईंधन के उत्सर्जनों को खत्म किया जा सकता है. उनके मुतबाकि तेल, गैस और कोयले का उत्पादन करते हुए भी देश ग्लोबल वॉर्मिंग से लड़ सकते हैं.
लेकिन आलोचकों का कहना है कि ये तरीका बहुत ज्यादा महंगा पड़ेगा. रिसर्च कंपनी ब्लूमबर्गएनईएफ के मुताबिक, आज महज 0.1 फीसदी से भी कम वैश्विक उत्सर्जन इस तकनीक की मदद से रोका जा रहा है, ऐसे में, आने वाले समय में लगता नहीं कि ये तकनीक, किसी ठोस समाधान का अहम हिस्सा बन पाएगी.
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फेजआउट की मांग अपेक्षाकृत नई
वैज्ञानिक शोध जगत, वर्षों से जीवाश्म ईंधनों को इस्तेमाल को जलवायु परिवर्तन से जोड़ता आया है. लेकिन जलवायु सम्मेलन के प्रतिनिधियों ने उन्हें हटाने की योजनाओं के बारे में आधिकारिक रूप से हाल तक कुछ भी नहीं कहा.
सिर्फ दो साल पहले ग्लासगो में हुए कॉप 26 में वार्ताकार "कोयले की ऊर्जा और जीवाश्म ईंधनों की बेकार सब्सिडी में कटौती करने" को पहली बार राजी हुए थे.
सिर्फ एक प्रतिशत अमीर करते हैं पांच अरब गरीबों जितना कार्बन उत्सर्जन
एक नई रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के सबसे अमीर लोगों में से एक प्रतिशत करीब पांच अरब सबसे गरीब लोगों के बराबर कार्बन का उत्सर्जन करते हैं. जलवायु परिवर्तन को रोकने में कुछ लोगों की जिम्मेदारी दूसरों से ज्यादा होनी चाहिए.
तस्वीर: Charles M Vella/ZUMAPRESS.com/picture alliance
उत्सर्जन में भी असंतुलन
दुनिया के एक प्रतिशत सबसे अमीर लोग (7.7 करोड़) दुनिया के 16 प्रतिशत उत्सर्जन के जिम्मेदार हैं. यह आय के हिसाब से दुनिया के 66 प्रतिशत सबसे गरीब लोगों (5.11 अरब) के उत्सर्जन के बराबर है. अमीरों और गरीबों के बीच उत्सर्जन की खाई की यह रिपोर्ट अंतरराष्ट्रीय नॉन-प्रॉफिट ऑक्सफैम इंटरनेशनल ने बनाई है.
तस्वीर: Kurt Desplenter/dpa/picture alliance
कैसे निकाला आंकड़ा
वैश्विक स्तर पर सबसे अमीर एक प्रतिशत लोगों को चिन्हित करने के लिए परचेजिंग पावर पैरिटी का इस्तेमाल किया गया. यानी अमेरिका में इसकी कसौटी 1,40,000 डॉलर होगी जब कि केन्या में यही कसौटी करीब 40,000 डॉलर होगी.
तस्वीर: Fatih Aktas/AA/picture alliance
देशों के अंदर स्थिति और गंभीर
देशों के अंदर भी इस असंतुलन की बड़ी गंभीर तस्वीर निकल कर आई. उदाहरण के तौर पर, फ्रांस में एक प्रतिशत सबसे अमीर सिर्फ एक साल में इतना उत्सर्जन करते हैं जितना सबसे गरीबों में से 50 प्रतिशत लोग 10 सालों में करते हैं. इस रिपोर्ट का आधार है स्टॉकहोम एनवायरनमेंट इंस्टिट्यूट द्वारा की गई रिसर्च.
तस्वीर: Christopher Furlong/Getty Images
एक बनाम 1, 270
अकेले 'लूई वितों' के अरबपति संस्थापक और फ्रांस के सबसे अमीर व्यक्ति बर्नार आर्नो का कार्बन पदचिन्ह एक औसत फ्रांसीसी व्यक्ति से 1,270 गुना ज्यादा है. लॉसन कहते हैं, "आप जितने ज्यादा अमीर हों, आपके लिए आपके निजी और निवेश संबंधी उत्सर्जन कम करना उतना ही आसान होता है. आपको तीसरी गाड़ी की, छुट्टियों में चौथे टूर की और सीमेंट उद्योग में निवेश बनाये रखने की जरूरत नहीं है."
तस्वीर: Susan Walsh/AP Photo/picture alliance
कंपनियों का उत्सर्जन
इस रिपोर्ट में सिर्फ व्यक्तिगत खपत की बात की है, लेकिन यह भी कहा गया है कि "सुपर अमीरों की व्यक्तिगत खपत कंपनियों में उनके निवेश के चलते निकले उत्सर्जन के आगे बौनी पड़ जाती है." ऑक्सफैम के पुराने शोध ने दिखाया है कि 'स्टैंडर्ड एंड पूअर 500' सूचकांक की कंपनियों के औसत के मुकाबले अरबपतियों के प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों में निवेश की संभावना दोगुनी है.
तस्वीर: Kevin Frayer/Getty Images
सबकी जिम्मेदारी बराबर नहीं
रिपोर्ट के सह-लेखक मैक्स लॉसन के मुताबिक जलवायु संकट से लड़ना एक साझा चुनौती है लेकिन हर व्यक्ति इसके लिए बराबर रूप से जिम्मेदार नहीं है. इसीलिए सरकारी नीतियों को इसी हिसाब से बनाने की जरूरत है. उनके मुताबिक सरकारों को ऐसी जलवायु नीति लानी चाहिए जो उन लोगों से सबसे ज्यादा त्याग करवाए जो सबसे ज्यादा उत्सर्जन करते हैं.
तस्वीर: Juancho Torres/AA/picture alliance
कड़े कदमों की जरूरत
इसके लिए कुछ कड़े कदमों की जरूरत है. जैसे एक साल में 10 से ज्यादा उड़ानें भरने पर टैक्स लगाया जा सकता है. या नॉन-ग्रीन निवेशों पर ग्रीन निवेशों के मुकाबले काफी ज्यादा टैक्स लगाया जा सकता है. (एएफपी)
तस्वीर: MARK RALSTON/AFP/Getty Images
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एक साल बाद, मिस्र में हुई संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता में यूरोपीय संघ और छोटे द्वीप देशों समेत 80 से ज्यादा देशों के समूह ने सभी जीवाश्म ईंधनों को शामिल करने के लिए उस शब्दावली को अपग्रेड पर सहमति जताई थी. लेकिन तेल, गैस और कोयला उत्पादक देशों की ओर से उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा.
2022 में लगे झटके के बावजूद, अभियान चलाने वालों को उम्मीद है कि सितंबर में जारी हुई संयुक्त राष्ट्र की पहली ग्लोबल स्टॉकटेक रिपोर्ट दुबई में प्रतिनिधियों के बीच, कार्रवाई के लिए माहौल बनाएगी. ये रिपोर्ट वैश्विक तापमान को सीमित करने के लिए दुनिया की सामूहिक प्रगति की समीक्षा करती है. संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट में "अक्षय ऊर्जा को बढ़ाने और तमाम जीवाश्म ईंधनो को फेजआउट यानी हटाने" का आह्वान किया गया है. बहुत से जलवायु समूह और वैज्ञानिक भी मानते हैं कि यही होना चाहिए.
एडवोकेसी के संगठन ऑयल चेंज इंटरनेशनल के रोमेन लाउलालेन ने डीडब्ल्यू को बताया, "कुछ साल पहले तक, तेल और गैस उत्पादक देशों के प्रभाव की वजह से, कॉप में जीवाश्म ईंधन को फेजआउट करने के फैसले पर सोचना भी दूभर था."
प्लास्टिक कचरे को कैसे कम किया जा सकता है?
प्लास्टिक सस्ता है और हल्का भी. लेकिन पर्यावरण पर इसका बोझ बढ़ता ही जा रहा है. कैसे कम किया जा सकता है प्लास्टिक कचरे को? केन्या में एक शिखर सम्मेलन में इसके तरीके खोजने की कोशिश हो रही है.
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तीव्र प्रदर्शन
ये ऐक्टिविस्ट केन्या की राजधानी नैरोबी में इकट्ठा हुए हैं वैश्विक प्लास्टिक उत्पादन में कटौती की मांग करने के लिए. बीते एक साल में 175 देशों के बीच इसे लेकर 2024 तक संयुक्त राष्ट्र की एक संधि के लक्ष्य को हासिल करने पर सहमति हुई है.
तस्वीर: MONICAH MWANGI/REUTERS
रीसाइक्लिंग है बेहद जरूरी
संयुक्त राष्ट्र का लक्ष्य है 2040 तक प्लास्टिक प्रदूषण को गंभीर रूप से कम करना. केन्या ने इस दिशा में अग्रणी भूमिका निभाते हुए 2017 में प्लास्टिक की थैलियों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया. प्लास्टिक को अलग करने के सिस्टम भी लगाए गए हैं, जैसे गीताथुरु नदी में लगा हुआ यह सिस्टम. लेकिन कचरे का बनना अभी भी जारी है.
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प्लास्टिक से लबालब
प्लास्टिक की इन बोतलों को केन्या की गीताथुरु नदी से निकाला गया है. यूरोपीय प्लास्टिक उत्पादक संघ के मुताबिक, पिछले साल करीब 40 करोड़ टन प्लास्टिक का उत्पादन हुआ था. यह 2002 के मुकाबले दोगुना है. प्लास्टिक एक बार खुले में पहुंच जाए, उसके बाद वो पौधों और जानवरों के लिए गंभीर जोखिम बन जाता है.
तस्वीर: Gerald Anderson/AA/picture alliance
पानी से प्लास्टिक को निकालना
पानी का प्रदूषण जर्मनी में भी एक समस्या है. 2021 में अनुमान लगाया गया था कि करीब 41,700 किलो प्लास्टिक सिर्फ एल्बे नदी से समुद्र में पहुंच गया था. पर्यावरणीय संगठन कचरे को कम करने की कोशिश कर रहे हैं. जैसे की ग्रीनकयाक एनजीओ कचरा इकट्ठा करने के लिए नदी में जाने वाले लोगों को मुफ्त में कयाक का इस्तेमाल करने देता है.
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तुरंत कुछ नहीं हो सकता
प्लास्टिक की उम्र लंबी होती है और इस वजह से एक बड़ी समस्या पैदा होती है. उसे नष्ट होने में सदियां लग सकती हैं. अब अनिवार्य नियम लाए जाएंगे जो प्लास्टिक के उत्पादों के डिजाइन से लेकर प्लास्टिक के कचरे के निपटान और रीसाइक्लिंग पर लागू हो सकते हैं. कुछ चीजों के उत्पादन की मात्रा पर नियंत्रण भी लगाया जा सकता है.
तस्वीर: James Wakibia/Zumapress/picture alliance
आविष्कार की जननी की आवश्यकता
केन्या में स्थानीय लोग प्लास्टिक कचरे की कभी ना खत्म होने वाली समस्या का मुकाबला करने के लिए अलग अलग तरीके खोज रहे हैं. यह व्यक्ति एक "फ्लिपफ्लॉपी" बना रहा है, जो प्लास्टिक कचरे से बनी एक पारंपरिक नाव है. यह काम उस पहल का हिस्सा है जिसका लक्ष्य है उन नई संभावनाओं को दिखाना जो रीसाइक्लिंग से निकल सकती हैं.
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महासागरों के लिए उम्मीद
पुर्तगाल के कमारा दे लोबोस में एक सील के इस म्यूरल को प्लास्टिक कचरे से बनाया गया है. शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि केन्या में होने वाली बातचीत से प्लास्टिक को लेकर व्यवहार में बदलाव आएगा. वार्ताकार जोर देते रहे हैं कि लक्ष्य प्लास्टिक के इस्तेमाल की निंदा करना या प्लास्टिक को बैन करना नहीं है बल्कि यह पता लगाना है कि अलग अलग तरह के प्लास्टिक के उत्पादन को कितना सीमित किया जा सकता है. (क्लॉडिया डेन)
तस्वीर: Harry Laub/imageBroker/picture alliance
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2023 में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन पूरी दुनिया में रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने की आशंका है. संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने 1 दिसंबर को कॉप28 जलवायु बैठक का उद्घाटन करते हुए कहा कि कार्रवाई का समय आ गया है.
उन्होंने कहा, "जीवाश्म ईंधनों के पाइप से हम धरती की आग को नहीं बुझा सकते. इस बारे में विज्ञान स्पष्ट हैः आखिरकार, तमाम जीवाश्म ईंधनों को जलाना बंद करेंगे, तभी डेढ़ डिग्री की सीमा मुमकिन हो पाएगी. न कटौती से काम चलेगा, न कमी लाने से. फेजआउट ही अकेला उपाय है – एक स्पष्ट समयसीमा के साथ, डेढ़ डिग्री की जरूरत में निबद्ध."