इंडोनेशिया के एक द्वीप पर मिली बांह की एक छोटी सी हड्डी से पता चलता है कि वहां लाखों साल पहले करीब एक मीटर ऊंचे इंसान रहा करते थे.
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वैज्ञानिकोंको इंडोनेशिया के एक द्वीप पर मिली बांह की एक छोटी सी हड्डी से पता चलता है कि "हॉबिट्स" नामक प्राचीन मानवों का आकार छोटा होना तब शुरू हुआ जब वे लगभग दस लाख साल पहले इस द्वीप पर पहुंचे थे. नए शोध में पाया गया है कि इन इंसानों का आकार लगभग 101 सेंटीमीटर यानी 3.3 फुट तक था.
इन छोटे कद के होमो फ्लोरेसिएन्सिस के बारे में अभी भी कई रहस्य हैं. पहली बार इन हड्डियों के अवशेष 2003 में फ्लोरेस द्वीप पर मिले थे. ऐसा माना जाता है कि औजारों का उपयोग करने वाले होमिनिन्स लगभग 50,000 साल पहले तक इस द्वीप पर रहते थे. यह तब की बात है जब हमारी प्रजाति होमो सेपियन्स पहले से ही पृथ्वी पर, विशेष रूप से ऑस्ट्रेलिया में, बस चुकी थी.
सिर्फ एक मीटर ऊंचाई
करीब 60,000 साल पुराने दांत और जबड़े की हड्डी से वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया था कि ये "हॉबिट्स" लगभग 1.06 मीटर (3.5 फीट) लंबे थे. लेकिन द्वीप पर एक खुले क्षेत्र में मिली ऊपरी भुजा की हड्डी और कुछ दांतों की खोज से पता चला है कि लगभग 700,000 साल पहले कुछ हॉबिट्स सिर्फ एक मीटर लंबे थे. यह अध्ययन ‘नेचर कम्यूनिकेशंस‘ पत्रिका में प्रकाशित हुआ है.
हड्डी इतनी छोटी थी कि पहले अंतर्राष्ट्रीय शोधकर्ताओं की टीम ने सोचा कि यह किसी बच्चे की होगी. लेकिन अध्ययन के सह-लेखक और ऑस्ट्रेलिया के ग्रिफिथ विश्वविद्यालय के पुरातत्वविद् एडम ब्रूम ने एएफपी को बताया कि यह वयस्क होमिनिन की अब तक की सबसे छोटी ह्यूमरस यानी बांह की हड्डी है.
शोध के सह-लेखक, टोक्यो यूनिवर्सिटी के यूसुके कैफु ने समाचार एजेंसी एपी को दिए इंटरव्यू में कहा, "हमें उम्मीद नहीं थी कि हमें इतनी पुरानी जगह से और भी छोटे व्यक्तियों के अवशेष मिलेंगे."
बर्फ में 5,300 सालों से दबा पाषाण युग का मानव "ओट्जी"
हजारों सालों से एक ग्लेशियर में दबे "ओट्जी" की खोज सितंबर 1991 में हुई थी, लेकिन वह आज भी लोगों की जिज्ञासा का केंद्र बना हुआ है.
तस्वीर: Picture-alliance/dpa/M. Rattini/Port au Prince Pictures
सनसनीखेज खोज
जर्मन कपल एरिका और हेल्मुट साइमन को नौ सितंबर को ओट्ज्टाल ऐल्प्स पहाड़ों में बर्फ में जमा हुआ एक मानव मिला. यह जगह ऑस्ट्रिया और इटली की सीमा पर कहीं स्थित थी. शुरू में समझा गया कि यह शायद किसी हाइकर का शव है जिसकी किसी वजह से अचानक मौत हो गई होगी लेकिन बाद में पता चला कि यह पाषाण युग के एक आदमी का शरीर है, जो 5,300 सालों से बर्फ में पड़ा हुआ है. फिर इसे "ओट्जी" का उपनाम दिया गया.
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आकर्षण का केंद्र
कई सालों की सौदेबाजी के बाद एरिका को दक्षिणी टायरॉल राज्य की सरकार से 2,04,899 डॉलर का इनाम मिला. तब तक उनके पति का देहांत हो चुका था. वो पहाड़ों में हाइक करते हुए एक हादसे में मारे गए थे, जिसकी वजह से "ओट्जी के श्राप" जैसी बातें भी चल निकलीं. इसके बावजूद कोविड से पहले बोल्जानो स्थित पुरातत्व संग्रहालय में "ओट्जी" को हर साल देखने आने वालों की संख्या 3,00,000 के आस पास हो गई थी.
तस्वीर: Robert Parigger/APA/dpa/picture alliance
कैसा दिखता होगा
"ओट्जी" के शरीर को संग्रहालय में 99 प्रतिशत आर्द्रता वाले एक बर्फीले कमरे में रखा जाता है. उस पर नियमित रूप से रोगाणु-हीन पानी का छिड़काव किया जाता है. अगर शरीर में कुछ बदलाव हुए तो उनका पता लगाने के लिए एक तोलन यंत्र भी लगा हुआ है. इसे निरीक्षण के लिए सामान्य तापमान के माहौल में कम ही लाया जाता है और वो भी बहुत ही कम समय के लिए. इस तस्वीर के जरिए कल्पना की गई है कि "ओट्जी" कैसा दिखता होगा.
तस्वीर: dapd
किसका "ओट्जी"?
"ओट्जी" की खोज की अहमियत जैसे ही स्पष्ट हुई ऑस्ट्रिया और इटली के बीच इस बात पर झगड़ा शुरू हो गया कि उसे कौन रखेगा. अंत में एक सर्वेक्षण में पाया गया कि उसे दोनों देशों के बीच की सीमा से 92.56 मीटर दूर, इटली की सीमा के अंदर पाया गया था.
तस्वीर: AP
शरीर पर टैटू
"ओट्जी" के शरीर पर 61 टैटू पाए गए. क्रॉस और रेखाएं वाले इन टैटूओं को बनाने वाले ने "ओट्जी" की त्वचा को काट दिया था और बाद में घावों को सख्त कोयले से भर दिया था. यह काफी दर्द भरा तरीका रहा होगा. "ओट्जी" की मौत उसके कंधे में एक तीर के लग जाने से हुई थी. जब उसके शरीर की खोज हुई, वह तीर तब भी उसके शरीर में गड़ा हुआ था.
"ओट्जी" के पेट में जो भी था उसका भी गहन अध्ययन किया गया और पता चला कि उसे अपनी मौत से ठीक पहले काफी गरिष्ठ और चर्बीयुक्त खाना खाया था. इस भोजन में अनाज की एक काफी पुराना किस्म "आइनकॉर्न गेहूं" और बकरे का मांस मिला.
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आधुनिक तकलीफें
"ओट्जी" को ऐसी कई स्वास्थ्य समस्याएं थीं जो आज भी पाई जाती हैं. उसे दांतों का खराब होना, लाइम बीमारी और शरीर में पिस्सू होना जैसी समस्याएं थीं. उसे लैक्टोज असहनशीलता भी थी और आग के आस पास काफी ज्यादा वक्त बिताने से उसके फेंफड़े किसी सिगरेट पीने वाले के फेंफड़ों जैसे हो गए थे. उसे हेलिकोबैक्टर पाइलोरी नाम की पेट की समस्या भी थी और हृदय रोग भी थे.
तस्वीर: dpa
"ओट्जी" 2.0"
"ओट्जी" के बारे में और लोग जान सकें इस उद्देश्य से अप्रैल 2016 में उसकी एक प्रति बनाई गई. इटली के युरैक रिसर्च सेंटर के शोधकर्ताओं ने एक थ्रीडी प्रिंटर की मदद से राल का इस्तेमाल कर उसकी एक प्रति बनाई. उसके बाद अमेरिकी पैलियो आर्टिस्ट गैरी स्ताब ने उसकी बारीकियों को उभारा. वो अब न्यू यॉर्क के कोल्ड स्प्रिंग हार्बर लैबोरेटरी के डीएनए लर्निंग सेंटर में है. (टॉर्स्टन लैंड्सबर्ग)
2016 में, शोधकर्ताओं को नई जगह से मिले जबड़े की हड्डी और दांतों का अध्ययन करने के बाद संदेह हुआ कि पहले के रिश्तेदार हॉबिट्स से भी छोटे हो सकते थे. एक छोटी भुजा की हड्डी के टुकड़े और दांतों के और विश्लेषण से पता चलता है कि ये पूर्वज 2.4 इंच (6 सेंटीमीटर) और छोटे थे और 700,000 साल पहले मौजूद थे.
कैसे छोटे हुए हॉबिट्स?
यह खोज वैज्ञानिकों के बीच चल रही एक गर्म बहस को और तेज कर सकती है कि आखिर होमो फ्लोरेसिएन्सिस का आकार इतना छोटा कैसे हुआ. एक पक्ष का मानना है कि ये "हॉबिट्स" पहले से ही छोटे होमिनिन से विकसित हुए, जो लगभग दस लाख साल पहले फ्लोरेस पहुंचे थे जबकि दूसरे पक्ष का मानना है कि हमारे पूर्वज होमो इरेक्टस, जो हमारे समान आकार के थे और पूरे एशिया में फैले हुए थे, इस द्वीप पर फंस गए और अगले 300,000 वर्षों में छोटे होमो फ्लोरेसिएन्सिस में विकसित हो गए.
इस नई खोज के पीछे के शोधकर्ता मानते हैं कि यह खोज दूसरे सिद्धांत का मजबूत समर्थन करती है. ब्रूम ने कहा कि इन प्राचीन मनुष्यों का आकार "आइलैंड ड्वार्फिज्म" नामक एक प्रसिद्ध विकासवादी घटना के अनुसार काफी कम हो गया. इस प्रक्रिया में, बड़े जानवर समय के साथ अपने सीमित परिवेश के अनुकूल होने के लिए छोटे हो जाते हैं. इस उष्णकटिबंधीय द्वीप पर अन्य छोटे स्तनधारी भी रहते थे, जिनमें हाथी के आकार का एक छोटा रिश्तेदार भी शामिल था.
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कैसे पहुंचे इंडोनेशिया?
शोधकर्ताओं का कहना है कि खोजे गए नए दांत भी होमो इरेक्टस के दांतों के छोटे संस्करण जैसे दिखते हैं. ब्रूम ने कहा, "अगर हम सही हैं, तो ऐसा लगता है कि होमो इरेक्टस किसी तरह गहरे समुद्र की बाधाओं को पार करके फ्लोरेस जैसे अलग-थलग द्वीपों तक पहुंच गए थे."
मिलिए नई तरह के आदिमानव से
इस्राएली पुरातत्वविदों ने कहा है कि उन्हें नई तरह का आदिमानव मिला है. उन्होंने कहा कि उन्हें जो अवशेष मिले हैं, वे किसी भी तरह की पहले से ज्ञात मानव जातियों से मिलते-जुलते नहीं हैं.
तस्वीर: Ammar Awad/REUTERS
नेशर रामला होमो
सांइस पत्रिका में छपे एक शोध में तेल अवीव यूनिवर्सिटी के मानवविज्ञानियों और पुरातत्वविदों ने इस नए प्रकार के आदिवासियों को ‘नेशर रामला होमो’ नाम दिया है. योसी जैंडर के नेतृत्व में छपे इस शोध में कहा गया है कि नेशर रामला होमो टाइप आदिमानवों की मुखाकृति नियान्डेरथल और होमो दोनों से मिलती है.
तस्वीर: Ammar Awad/REUTERS
ऐसा कोई नहीं
इस्राएली शोधकर्ताओं ने यह बात कही है जो रामाल्लाह शहर के नजदीक खुदाई कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि उन्हें जो अवशेष मिले हैं, वे किसी भी तरह की पहले से ज्ञात मानव जातियों से मिलते-जुलते नहीं हैं.
तस्वीर: Ammar Awad/REUTERS
कब हुए नेशर रामला
खोजियों को कुछ हड्डियां मिली हैं, जिनके अध्ययन से यह अनुमान लगाया गया है. इससे पता चलता है कि ये आदिमानव 140,000 से 120,000 साल पूर्व रहे होंगे.
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बिना ठोड़ी की खोपडी
शोध कहता है कि समानताओं के बावजूद इन आदिमानव का रूप आधुनिक मानव से एकदम अलग है. शोधकर्ता कहते हैं, “उनकी खोपड़ी का आकार एकदम अलग है. कोई ठोड़ी नहीं है और दांत बहुत बड़े हैं.” मानव हड्डियों के अलावा खोजियों को जानवरों की हड्डियों और पत्थरों के औजार भी मिले हैं.
तस्वीर: Ammar Awad/REUTERS
अब तक की समझ पर सवाल
पुरातत्वविद योसी जैंडर ने बताया, “मानव जीवाश्मों से जुड़ी जो पुरातात्विक चीजें मिली हैं, वे दिखाती हैं कि नेशर रामला होमो आदिमानवों के पास पत्थरों से बने औजारों की तकनीक थी. और बहुत संभव है कि वे स्थानीय होमोसेपियन्स से संपर्क में थे. हमने कभी सोचा भी नहीं था कि मानव इतिहास के इतने बाद के दौर में होमोसेपियन्स के साथ पुरातन आदिमानव भी धरती पर गुजरे होंगे.”
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नया मानव इतिहास
नेशर रामला की खोज उस सिद्धांत पर भी सवाल उठाती है कि नियान्डरथल दक्षिण की ओर जाने से पहले यूरोप में उभरे थे. तेल अवीव यूनिवर्सिटी के मानवविज्ञानी इस्राएल हेर्षकोवित्स कहते हैं, “हमारी खोज यह कहती है कि पश्चिमी यूरोप के मशहूर नियानडरथल असल में लेवांत इलाके में रहने वाले लोगों की ही संतानें थीं, ना कि वहां से लोग यहां आए.”
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एक बार जब ये प्राचीन मनुष्य द्वीप पर फंस गए, तो वे सैकड़ों हजारों वर्षों तक जीवित रहे और "अजीब नए रूपों" में विकसित हो गए. ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू इंग्लैंड के पुरातत्वविद् मार्क मूर, जो इस अध्ययन में शामिल नहीं थे, ने कहा कि इस खोज का मतलब है कि अब हम "आत्मविश्वास से कह सकते हैं" कि होमो इरेक्टस सिद्धांत अधिक संभावित है.
मूर ने हॉबिट्स द्वारा उपयोग किए जाने वाले पत्थर के औजारों का अध्ययन किया है. उन्होंने एएफपी को बताया, "यह तकनीक हमारी इस रिश्तेदार प्रजाति को जैविक विकास की शक्तियों से बचा नहीं सकी. "हॉबिट्स" का सिर्फ 300,000 वर्षों में इतना बदल जाना प्राकृतिक चयन की शक्ति की याद दिलाता है."
मूर कहते हैं, "इन होमिनिन्स के इस समूह की विकासवादी कहानी वास्तव में महाकाव्य है."