अब दूसरे रास्ते से भारत जाने की तैयारी में है फॉक्सकॉन
१२ जुलाई २०२३
वेदांता के साथ 1,600 अरब रुपयों के सेमीकंडक्टर समझौते से हटने के बाद भी फॉक्सकॉन भारत में निवेश को लेकर उत्सुक है और नये साझीदार तलाश रही है.
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ताइवानी कंपनी फॉक्सकॉन ने कहा है कि भले ही उसका वेदांता के साथ अनुबंध टूट गया है लेकिन उसने भारत में चिप बनाने का अपना इरादा छोड़ा नहीं है. मंगलवार को फॉक्सकॉन ने कहा कि वह भारत की सेमीकंडक्टर उत्पादन योजना के तहत छूट के लिए अप्लाई करेगी.
इसी हफ्ते फॉक्सकॉन भारतीय कंपनी वेदांता के साथ साझा उपक्रम में भारत में चिप बनाने के समझौते से बाहर निकल गयी थी. 1,600 अरब रुपये की इस परियोजना के बंद हो जाने को भारत के चिप निर्माण के लिए दुनिया का बड़ा केंद्र बनने की उम्मीदों को झटके के तौर पर देखा गया. लेकिन फॉक्सकॉन ने कहा है कि उसका इरादा बदला नहीं है और अब वह दूसरे रास्ते का इस्तेमाल करना चाहती है.
इरादा नहीं बदला
फॉक्सकॉन इलेक्ट्रॉनिक्स सामान बनाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी है. मंगलवार को उसने कहा कि वह भारत की ‘मॉडीफाइड प्रोग्राम फॉर सेमीकंडक्टर्स एंड डिस्प्ले फैब इकोसिस्टम' योजना के तहत छूट के लिए अप्लाई करेगी. 10 अरब डॉलर की इस योजना में भारत में सेमीकंडक्टर बनाने वाली कंपनी को पूंजी लागत में 50 फीसदी तक की छूट का प्रावधान है.
एक बयान में फॉक्सकॉन ने कहा, "हम सही साझीदारों की तलाश सक्रियता से कर रहे हैं. फॉक्सकॉन भारत में काम करने के लिए प्रतिबद्ध है और उसे सफलतापूर्वक सेमीकडंक्टर निर्माण के लिए एक मजबूत वातावरण के रूप में देखती है.”
हालांकि इसका अर्थ यह होगा कि फॉक्सकॉन को फिर से शून्य से शुरुआत करनी होगी. फॉक्सकॉन और वेदांता की सेमीकंडक्टर फैक्ट्री बनाने का समझौता टूटने से एक महत्वाकांक्षी योजना का अंत हो गया है. इसके साथ ही चिप निर्माण को भारत सरकार की प्राथमिकता पर भी सवाल खड़े हो गये हैं. पिछले साल ही भारतीय प्रधानमंत्री ने कहा था कि चिप निर्माण के साथ भारत में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के उद्योग का नया युग शुरू होगा. उन्होंने वेदांता और फॉक्सकॉन के समझौते को एक "महत्वपूर्ण कदम” बताया था.
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समझौता टूटा है, सपना नहीं
मीडिया रिपोर्ट्स हैं कि फॉक्सकॉन भारत को अपने निर्माण केंद्र के रूप में इस्तेमाल करना चाहती है और इसके लिए भारत व विदेशों में कई कंपनियों से बातचीत कर रही है. समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने एक अज्ञात सूत्र के हवाले से लिखा है, "कंपनी भारत में बनी रहेगी, बस उसके लिए नये साझीदार खोजेगी.”
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भारत अपने सेमीकंडक्टर उद्योग को 2026 तक 63 अरब डॉलर का बनाने का लक्ष्य रखता है. लेकिन अब तक इस ओर ज्यादा प्रगति नहीं हो पायी है. उसकी ‘मॉडीफाइड प्रोग्राम फॉर सेमीकंडक्टर्स एंड डिस्प्ले फैब इकोसिस्टम' योजना के लिए पिछले साल वेदांता और फॉक्सकॉन के ज्वाइंट वेंचर के अलावा सिंगापुर की आईजीएसएस वेंचर्स और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के एक समूह आईएसएमसी ने भी अप्लाई किया था लेकिन कोई परियोजना अब तक सिरे नहीं चढ़ पायी है.
आईएसएमएस ने अपनी योजना में चिप निर्माता टावर सेमीकंडक्टर्स को साझीदार बनाया है. लेकिन तीन अरब डॉलर की उसकी योजना तब अधर में लटक गयी जबकि इंटेल कंपनी ने टावर का अधिग्रहण शुरू कर दिया. आईजीएसएस की तीन अरब डॉलर की योजना इसलिए लटक गयी क्योंकि वह अपनी अर्जी दोबारा भेजना चाहता है.
कैसी है वेदांता की हालत
फॉक्सकॉन ने कहा है कि समझौता टूटना कोई नकारात्मक बात नहीं है. अपने बयान में कंपनी ने कहा, "दोनों ही पक्ष इस बात पर सहमत थे कि परियोजना उचित गति से आगे नहीं बढ़ रही थी और ऐसी चुनौतियां थीं जिनसे पार पाना आसान नहीं था. लेकिन यह कोई नकारात्मक बात नहीं है.”
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स्टार्टअप के दौर में जहां हर रोज देश में नई कंपनियां खुल रही हैं और बंद हो रही हैं तो वहीं आज देश में तमाम ऐसी कंपनियां भी चल रही हैं जिनकी उम्र 100 साल से भी ज्यादा है. डालते हैं एक नजर इन कंपनियों पर.
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जेसॉप एंड कंपनी
ब्रिटिश इंजीनियर विलियम जेसॉप ने इस कंपनी की स्थापना साल 1788 में की थी. पहले इसे ब्रीन एंड कंपनी कहा जाता था. कोलकाता का हावड़ा पुल बनाने का श्रेय भी इसी कंपनी को जाता है. हालांकि आज यह कंपनी रुइया समूह में शामिल है.
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बॉम्बे डाइंग कंपनी
साल 1879 में कंपनी की स्थापना की गई थी. डायिंग कारोबार में बड़े नुकसान झेलने के बाद कंपनी ने खुद को टेक्सटाइल कारोबार की तरफ मोड़ लिया. यह वह दौर था जाब भारतीय कपड़ा कंपनियों ने चीन के निर्माताओं से माल निर्यात करना बंद कर दिया था. अभिनेत्री प्रीति जिंटा के साथ अफेयर के चलते सुर्खियों में आए नेस वाडिया साल 2011 तक बॉम्बे डाइंग के ज्वाइंट मैनेजिंग डायरेक्टर भी रहे.
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डाबर
आयुर्वेदिक दवाओं को बेचने वाली इस कंपनी को साल 1884 में शुरू किया गया था. इसके संस्थापक एसके बर्मन पेशे से एक डॉक्टर थे. इस कंपनी को बाजार में अपनी पहचान में लंबा संघर्ष करना पड़ा. लेकिन साल 1990 के बाद से कंपनी के कामों में तेजी आई. आज इस कंपनी में सात हजार से भी अधिक लोग काम करते हैं.
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किर्लोस्कर ब्रदर्स
साल 1888 में लक्ष्मणराव किर्लोस्कर ने इस कंपनी की नींव रखी थी. पहले यह महज एक ट्रेडिंग कंपनी के रूप में स्थापित की गई थी. लेकिन आज यह देश में पंप और वॉल्व बनाने वाली 1.4 अरब डॉलर की सबसे बड़ी कंपनी है. आज कंपनी के चैयरमेन है संजर किर्लोस्कर.
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ब्रिटानिया
साल 1892 में कलकत्ता के एक गुप्ता परिवार ने महज 295 रुपये से बिस्कुट बनाने वाली इस दुकान को शुरू किया था. दुकान बढ़ी और यह भारत में मशीन से बिस्कुट बनाने वाली पहली कंपनी बन गई. दूसरे विश्व युद्ध मे लड़ने वाली सेनाओं को यह कंपनी बिस्कुट भेजा करती थी जिससे इसकी अच्छी कमाई हुई. वाडिया इंटरप्राइज के अंदर आने वाली इस कंपनी में आज तीन हजार से भी अधिक लोग काम करते हैं.
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सेंचुरी टेक्सटाइल्स एंड इंडस्ट्रीज
साल 1897 में नौरोसजी एन वाडिया ने इस कंपनी की शुरुआत की थी. नौरोसजी, बॉम्बे डायिंग कंपनी के मालिक नुस्ली वाडिया के दादा थे. अमेरिकी गृहयुद्ध के दौरान कॉटन की बढ़ती मांग को देखने के बाद वाडिया ने यह कंपनी खड़ी की थी. लेकिन तीन दशक बाद बाजार में इसके मुख्य प्रतिस्पर्धी चुन्नीलाल मेहता ने इसे खरीद लिया. और, मेहता के बाद आरडी बि़ड़ला ने इसे खरीद लिया. तब से आज तक यह कंपनी बिड़ला समूह के पास है.
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गोदरेज
साल 1897 में आर्देशर गोदरेज और उनके भाई पिरोजशा गोदरेज ने इस कंपनी की स्थापना की थी. आर्देशर प्रोडक्ट्स में नयापन लाने के लिए मशहूर थे. कारोबार को समझने के लिए उन्होंने विदेशों की यात्रा और कई नई तकनीकों को कंपनी में इस्तेमाल किया. साल 1911 में जब किंग जॉर्ज पंचम और उनकी रानी मेरी, दिल्ली की यात्रा पर आए तो उनके कीमती सामानों को गोदरेज की तिजोरियों में ही रखा गया.
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शालीमार पेंट्स
साल 1902 में बनी यह कंपनी दक्षिण एशिया की सबसे पुरानी पेंट कंपनी है. आज तमाम सरकारी कंपनियां मसलन राष्ट्रपति भवन, एनटीपीसी, भारतीय रेलवे, बीपीसीएल और आईओसी इसके नियमित ग्राहक बने हुए हैं. आज इस कंपनी में तीन हजार से भी अधिक लोग काम कर रहे हैं.
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टाटा स्टील लिमिटेड
साल 1907 में जमशेदजी टाटा ने इस कंपनी की शुरू किया था. कंपनी ने देश की पहली पंचवर्षीय योजना के तहत होने वाले कई निर्माण कार्यों के लिए स्टील की आपूर्ति की.आज यह दुनिया की 12वीं सबसे बड़ी स्टील कंपनी है. टाटा समूह के अंतर्गत आने वाली इस कंपनी में आज 74 हजार से ज्यादा लोग काम करते हैं.
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टीवीएस
टीवीएस मोटर कंपनी आज दुपहिया वाहन बनाने वाली भारत की तीसरी सबसे बड़ी कंपनी है. लेकिन जिस वक्त इसे शुरू किया गया था उस दौर में घोड़े गाड़ी और बग्घियों पर चलने वाले जमींदारों को गाड़ियां बेचना आसान नहीं था. इस कंपनी की स्थापना साल 1911 में टीवी सुंदरम अयंगर ने की थी. लेकिन इसने अच्छे से काम साल 1912 से शुरू किया. टीवीएस सुंदरम समूह के अंदर आने वाली इस कंपनी का टर्नओवर आज चार अरब से भी अधिक है.
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पहले भी मीडिया में ऐसी खबरें आ चुकी थीं कि वेदांता की वित्तीय स्थिति को लेकर भारत सरकार और फॉक्सकॉन दोनों ही संतुष्ट नहीं थे. वेदांता की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक 31 मार्च तक कंपनी पर 452.6 अरब डॉलर का कर्ज था जो बीते एक साल में दोगुना हो गया था. ऐसा लाभांश के भुगतान और पूंजी खर्च के कारण हुआ था.
हालांकि वेदांता का कहना है कि उसकी वित्तीय हालत अच्छी है और किसी तरह की चिंता की कोई वजह नहीं है. लेकिन इसी साल रेटिंग एजेंसी मूडीज ने लंदन स्थित वेदांता की मूल कंपनी वेदांता रिसॉर्सेज की रेटिंग कम कर दी थी और चेतावनी दी थी कि वह कर्ज चुकाने में नाकाम हो सकती है. वेदांता के अध्यक्ष अनिल अग्रवाल ने हालांकि इस चेतावनी को खारिज करते हुए कहा था कि ऐसा होने की कोई संभावना नहीं है.