फ्रांस और ब्रिटेन के बीच आप्रवासियों को लेकर विवाद
२६ नवम्बर २०२१
फ्रांस ने ब्रिटेन की गृह मंत्री प्रीति पटेल से प्रवासी संकट पर आयोजित एक बैठक में शामिल होने का निमंत्रण वापस ले लिया है. इसके पहले ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने इस संकट के दौरान फ्रांस के रवैये की आलोचना की थी.
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जॉनसन ने फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों को एक चिट्ठी लिखी थी जिसकी फ्रांस ने निंदा की है. फ्रांस के गृह मंत्री जेराल्ड दारमानिन के एक करीबी सूत्र ने चिट्ठी को "अस्वीकार्य और साझेदारों के बीच चल रही बातचीत के भाव के विरुद्ध" बताया.
फ्रांसीसी सरकार के प्रवक्ता गेब्रियल अत्तल ने एक मीडिया संस्थान को बताया, "दारमानिन ने पटेल से कह दिया कि अब उनका स्वागत नहीं है." ब्रिटेन की सरकार ने कहा है कि उससे उम्मीद है कि फ्रांस इस फैसले पर पुनर्विचार करेगा. ब्रिटेन के यातायात मंत्री ग्रांट शप्पस ने बीबीसी न्यूज को बताया, "कोई देश इस संकट से अकेले नहीं जूझ सकता है इसलिए मुझे उम्मीद है कि फ्रांसीसी इस पर पुनर्विचार करेंगे."
कुछ ही दिनों पहले दोनों देश के बीच स्थित इंग्लिश चैनल में एक नाव के डूब जाने से 27 लोगों की मौत हो गई थी. इनमें 17 पुरुष, सात महिलाएं और तीन किशोर लड़कियां शामिल थीं.
स्थानीय मछुआरों के मुताबिक बुधवार को मौसम बहुत ज्यादा ठंडा था लेकिन सामान्य से ज्यादा संख्या में प्रवासी ब्रिटेन के लिए रवाना हो गए क्योंकि समुद्र शांत था. बुधवार को विमोरो के नजदीक प्रवासियों के एक समूह को रबर वाली एक नौका लेकर समुद्र की ओर जाते देखा गया. यही समूह 30 किलोमीटर समुद्र पार कर कई घंटों में दक्षिणी इंग्लैंड के डंजीनेस में उतरता देखा गया.
अफगानिस्तान, इराक और कई और देशों से भागने वाले प्रवासी अक्सर इस तरह भरी हुई नावों में इस तरह की जोखिम भरी यात्रा करते हैं. लेकिन ब्रिटेन और फ्रांस के बीच स्थित इस संकरे से समुद्री मार्ग में यह अभी तक की सबसे बुरी दुर्घटना थी. हादसे के बाद जॉनसन ने कहा था कि इसमें फ्रांस की गलती थी और दारमानिन ने ब्रिटेन पर "खराब आप्रवासी प्रबंधन" का आरोप लगाया था.
इस के बाद ब्रेक्सिट के बाद लागू हुए व्यापार नियमों और मछली पकड़ने के अधिकारों को लेकर पहले से लड़ रहे फ्रांस और ब्रिटेन के बीच झगड़ा बढ़ गया था. शुक्रवार 26 नवंबर को फ्रांसीसी मछुआरों ने सेंट-माइलो में एक छोटे से ब्रिटिश जहाज को रुकने से रोक दिया. उनकी कैलेस के बंदरगाह और चैनल की सुरंग दोनों को ब्लॉक करने की भी योजना है. दोनों स्थान ब्रिटेन और यूरोप के बीच व्यापार के बड़े केंद्र हैं.
सीके/ (रॉयटर्स)
दुनिया भर से खतरों से भाग रहे शरणार्थियों की लाचारी
युद्ध, उत्पीड़न, प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन के खतरे के परिणामस्वरूप, दुनिया भर में अनुमानित आठ करोड़ लोग सुरक्षा की तलाश में अपने देश से भागने को मजबूर हुए हैं. इस दौरान सबसे ज्यादा दर्द बच्चों को झेलना पड़ा है.
तस्वीर: Guardia Civil/AP Photo/picture alliance
समुद्र में डूबने से बचाया
बच्चा सिर्फ कुछ महीने का था जब एक स्पेनिश पुलिस गोताखोर ने उसे डूबने से बचा लिया. मई के महीने में हजारों लोगों ने यूरोप पहुंचने के लिए मोरक्को से भूमध्य सागर पार करने की कोशिश की थी. ये लोग स्पेन के छोटे से एन्क्लेव सेउता पहुंच गए थे. इस तस्वीर से सेउता में प्रवासी संकट की असली झलक देखने को मिलती है.
तस्वीर: Guardia Civil/AP Photo/picture alliance
कोई उम्मीद नहीं
भूमध्य सागर दुनिया के सबसे खतरनाक प्रवास मार्गों में से एक है. कई अफ्रीकी शरणार्थी समुद्र के रास्ते यूरोप पहुंचने में विफल रहने के बाद लीबिया में फंसे हुए हैं. त्रिपोली में कई ऐसे युवा हैं जो पल-पल अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उन्हें अक्सर कठिन परिस्थितियों में काम करना पड़ता है.
तस्वीर: MAHMUD TURKIA/AFP via Getty Images
सूटकेस में बंद जिंदगी
बांग्लादेश में कॉक्स बाजार शरणार्थी शिविर दुनिया के सबसे बड़े आश्रयों में से एक है. यहां म्यांमार से भागकर आए रोहिंग्या मुसलमानों की एक बड़ी संख्या रहती है. वहां के एनजीओ बाल शोषण, ड्रग्स, मानव तस्करी, साथ ही बाल श्रम और बाल विवाह जैसे मुद्दों पर चिंता जताते हैं.
तस्वीर: DANISH SIDDIQUI/REUTERS
ताजा संकट
इथियोपिया के टिग्रे प्रांत में गृह युद्ध ने एक और शरणार्थी संकट पैदा कर दिया है. टिग्रे की 90 फीसदी आबादी विदेशी मानवीय सहायता पर निर्भर है. करीब 16 लाख लोग सूडान भाग गए हैं. इनमें 7,20,000 बच्चे शामिल हैं. ये शरणार्थी अस्थायी शिविरों में फंसे हुए हैं और वे अनिश्चित भविष्य का सामना कर रहे हैं.
तस्वीर: BAZ RATNER/REUTERS
शरणार्थियों को कहां जाना चाहिए?
तुर्की में फंसे सीरियाई और अफगान शरणार्थी अक्सर ग्रीक द्वीपों तक पहुंचने की कोशिश करते हैं. कई शरणार्थी ग्रीक द्वीप लेसबोस के मोरिया शरणार्थी शिविर में रहते थे. पिछले साल सितंबर में कैंप में आग लग गई थी. आग के बाद यह परिवार अब एथेंस आ गया है लेकिन अपने अगले गंतव्य के बारे में कुछ नहीं जानता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Y. Karahalis
एक कठिन जीवन
पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में 'अफगान बस्ती रिफ्यूजी कैंप' में रहने वाले अफगान बच्चों के लिए कोई स्कूल नहीं है. 1979 में अफगानिस्तान में सोवियत हस्तक्षेप के बाद से यह शिविर अस्तित्व में है. वहां रहने की व्यवस्था बेहद खराब है. शिविर में पीने का पानी और पर्याप्त आवास का अभाव है.
तस्वीर: Muhammed Semih Ugurlu/AA/picture alliance
सहायता संगठनों से महत्वपूर्ण समर्थन
वेनेजुएला के कई परिवार अपने देश में अपने भविष्य को धूमिल देखकर पड़ोसी देश कोलंबिया चले गए हैं. वहां वे एनजीओ रेड क्रॉस से चिकित्सा और खाद्य सहायता प्राप्त करते हैं. रेड क्रॉस ने सीमावर्ती शहर अरौक्विटा के एक स्कूल में एक अस्थायी शिविर बनाया है.
तस्वीर: Luisa Gonzalez/REUTERS
समाज में मिलने की कोशिश
कई शरणार्थी जर्मनी में अपने बच्चों के बेहतर भविष्य की उम्मीद करते हैं. कार्ल्सरूहे में लर्नफ्रुंडे हाउस में शरणार्थी बच्चों को जर्मन स्कूल प्रणाली में प्रवेश के लिए तैयार किया जाता है. हालांकि कोविड महामारी के दौरान वे नए समाज में एकीकृत होने में मिलनी वाली मदद के इस अहम तत्व से चूक गए.