जर्मन शहर फ्रैंकफर्ट में होने वाला अंतरराष्ट्रीय ऑटो मेला कभी यूरोप की सबसे बड़ी ओटोमोबिल प्रदर्शनी हुआ करता था. सभी वहां मौजूद होना चाहते थे, लेकिन इस बार 12 ब्रांड फ्रैंकफर्ट नहीं आ रहे. आखिर क्यों?
क्यों चमक खो रहा है फ्रैंकफर्ट का ऑटो मेला
जर्मन शहर फ्रैंकफर्ट में होने वाला अंतरराष्ट्रीय ऑटो मेला कभी यूरोप की सबसे बड़ी ओटोमोबिल प्रदर्शनी हुआ करता था. सभी वहां मौजूद होना चाहते थे, लेकिन इस बार 12 ब्रांड फ्रैंकफर्ट नहीं आ रहे. आखिर क्यों?
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घटता महत्व
दुनिया का आकर्षण पाने के ठिकाने के रूप में ऑटो मेलों का महत्व कम होता जा रहा है. अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों का बाजार भी लगातार बदल रहा है.
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बढ़ती संख्या
नये देशों और इलाकों में प्रगति के साथ नये बाजार महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं और लगातार नये मेले केंद्र बन रहे हैं. ऑटो कंपनियों के लिए विकल्प बढ़ गये हैं. तस्वीर में शंघाई ऑटो मेला.
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प्राथमिकताएं
कई कंपनियां बड़े अंतरराष्ट्रीय मेलों में जाने के बजाय महत्वपूर्ण बाजारों में रोड शो कर नये ब्रांड का प्रचार करने को प्राथमिकता दे रही हैं. फायदा यह भी है कि वहां कोई प्रतियोगी नहीं होता.
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सस्ते विकल्प
खर्च बढ़ने के साथ दुनिया भर की ऑटो कंपनियां सस्ते विकल्पों की तलाश कर रही हैं. इनमें ब्रांड या कंपनी के लिए महत्वपूर्ण बाजार और उस बाजार के महत्वपूर्ण इलाकों में प्रचार शामिल है.
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घटता महत्व
पिछले सालों में कार सिर्फ कार नहीं रहीं. तेज डिजीटलाइजेशन के कारण वे डिजीटल मशीन बनती जा रही हैं. इस वजह से पारंपरिक ऑटो प्रदर्शनियों का महत्व कम हो रहा है.
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बढ़ती महंगाई
पारंपरिक ऑटो मेले में किराये भी पिछले सालों में तेजी से बढ़े हैं. फ्रैंकफर्ट में 13 दिन के मेले के लिए प्रति वर्गमीटर 166 यूरो लगते हैं. बीएमडब्ल्यू का सिर्फ किराये पर 20 लाख यूरो का खर्च होगा. सजावट पर अलग खर्च.
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बदलते सुर
बहुत सी कंपनियां अब पारंपरिक ऑटो प्रदर्शनी के बदले डिजीटल प्रदर्शनियों में जाना पसंद करने लगी हैं. नयी कारों में जो सुविधाएं आ रही हैं वह डिजीटल मेलों के ज्यादा अनुरूप है.
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युवाओं का आकर्षण
पुराने स्टाइल के मेलों में युवा लोगों का आकर्षण लगातार कम होता जा रहा है. इतना ही नहीं ट्रांसपोर्ट के साधन और स्टेटस सिंबल के रूप में युवाओं में कारों का क्रेज नहीं रहा है.