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भारत को बड़ा झटका देगी मुफ्त की बिजली

ओंकार सिंह जनौटी
१५ जुलाई २०२१

पहले 200 यूनिट की चिंता न करें और खूब बिजली फूंकें. सभी राजनीतिक दल चुनावों से पहले मुफ्त बिजली के वादे कर रहे हैं. मुफ्त बिजली की राजनीति, भारत को अंधकार की तरफ धकेल सकती है.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवालतस्वीर: DW/S. Kumar

सबको मुफ्त बिजली या हर छत में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देना और बिजली की तारों को भूमिगत करना? पहला विकल्प राजस्व को भारी नुकसान पहुंचाता है. कर्ज लेकर, नया टैक्स लगाकर या किसी और जरूरी सेवा के बजट में कटौती कर इसकी भरपाई करनी पड़ती है. चुनाव हारने पर इसका खर्च नई सरकार से सिर फूटेगा. साथ ही अच्छी बिजली सप्लाई के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने पर भी इसका असर पड़ सकता है.

दूसरा विकल्प यानि, बिजली की तारों को भूमिगत करना और सौर ऊर्जा को बढ़ावा देना. ये खर्चीला है लेकिन इससे गंदी हवा के लिए कुख्यात हो चुके तमाम शहरों में पेड़ों को निर्बाध रूप से बढ़ने का मौका मिलेगा. कोयले से चलने वाले पावर प्लांट बंद करने का मौका मिलेगा. अचानक टूटते तार लोगों और मवेशियों की जान नहीं लेंगे. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक भारत में हर दिन कम से कम 30 लोग बिजली के झटके से मारे जाते हैं. खुले तारों से होने वाली सप्लाई के दौरान लॉस होने वाली बिजली बचेगी. तूफान और बरसात के दौरान बिजली गुल होने की संभावना बड़ी कम होगी. कटिया मारकर की जाने वाली चोरी रुकेगी. सोलर पैनलों में रियायत देकर करोड़ों इमारतों को काफी हद तक आत्मनिर्भर बनाने में मदद मिल सकती है.

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की कैंपस में सोलर पावर प्लांटतस्वीर: DW/F. Fareed

बिजली की असली कीमत

दोनों विकल्प मौजूद हैं. लेकिन चुनाव जीतने के लिए कई नेता पहला विकल्प ज्यादा पसंद कर रहे हैं. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इसका उदाहरण हैं. देश की राजधानी और ऐतिहासिक शहर होने के साथ ही दिल्ली गंदी यमुना और जहरीली हवा के लिए भी मशहूर है. राज्य को बिजली और पानी की बड़ी सप्लाई दूसरे राज्यों से मिलती है लेकिन राज्य सरकार इसे वोटबैंक के चक्कर में काफी हद तक मुफ्त कर देती है.

2021 की गर्मियों में दिल्ली में बिजली की मांग रिकॉर्ड 7.40 गीगावॉट तक पहुंच गई. देश की राजधानी अंधेरे में हो, ये कोई नहीं चाहता, इसीलिए हर साल गर्मियों में डिमांड पीक पर आते ही राजधानी को बिजली देने के लिए और राज्यों में बिजली कटौती करनी पड़ती है. उत्तराखंड की 20 से ज्यादा छोटी और विशाल बांध परियोजनाओं से जितनी बिजली बनती है वह भी गर्मियों में दिल्ली की आधी डिमांड ही पूरी कर सकती है. लेकिन इस बिजली की कीमत देखिए, बांधों की वजह से डूबी लाखों एकड़ जमीन, हजारों लोगों का विस्थापन और बदली जलवायु से आती प्राकृतिक आपदाएं.

बड़ी परियोजनाओं के साथ आता बड़ा नुकसानतस्वीर: Sajjad Hussain/AFP/Getty Images

चुनावी माहौल में घुला करंट

अरविंद केजरीवाल अब उत्तराखंड, गुजरात, पंजाब और गोवा की राजनीति में अपनी पार्टी आप की जड़ें जमाना चाहते हैं. इन राज्यों में 2022 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. चुनावों से पहले ही आप ने एलान कर दिया कि अगर उनकी पार्टी की सरकार बनी तो उत्तराखंड, पंजाब और गोवा में एक हद तक बिजली मुफ्त दी जाएगी. प्रति व्यक्ति बिजली खर्च में मामले में गोवा और पंजाब भारत में तीसरे और पांचवें नंबर पर आते हैं.

आप के राजनीतिक दांव को कमजोर करने के लिए उत्तराखंड की बीजेपी सरकार ने भी सबको मुफ्त बिजली देने का एलान कर दिया. अपनी सत्ता बचाने के लिए बीजेपी ने राज्य में 100 यूनिट बिजली मुफ्त कर दी है. 200 यूनिट के बिल पर 50 फीसदी सब्सिडी दे दी है.

यह घोषणा उस राज्य में हुई है जहां मार्च से रोडवेज के 5,800 कर्मचारियों को वेतन नहीं मिला है. जहां सरकारी अस्पतालों और मेडिकल स्टाफ की भारी कमी है. जहां आए दिन सरकारी स्कूल बंद होते रहते हैं.

दिल्ली से सटे दादरी में कोयला बिजलीघरतस्वीर: Getty Images/AFP/M. Sharma

राजस्व कम होने के परिणाम

जुलाई 2021 में भारत की बिजली डिमांड 191.24 गीगावॉट के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई. लोग जैसे जैसे संपन्न होंगे यह मांग और बढ़ेगी, लेकिन ये बिजली मुफ्त में कैसे और कहां बनेगी? पहले ही भारी दबाव का सामना कर रहे पर्यावरण को आखिरकार इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी.

इस बिजली को मुफ्त बांटने से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए कई और सरकारी स्कूल बंद होंगे. जरूरी होने के बावजूद सरकारी अस्पतालों में स्टाफ की भर्ती नहीं होगी. राजस्व के लिए लैंड यूज बदलकर वनों की कटाई के बारे में भी सोचा जा सकता है. अत्यधिक खनन करके पहाड़ों और नदियों को छलनी करने के विकल्प पर भी विचार हो सकता है. अगर ऐसा बिल्कुल न किया जाए तो राज्य सरकार कर्ज के बोझ तले दबेगी और लोन के साथ मिलने वाली शर्तें भी माननी पड़ेंगी. राजधानी होने की वजह से दिल्ली सरकार तमाम वित्तीय संकटों से बच सकती है, लेकिन और राज्य क्या करेंगे?

2018 में ग्रिड फेल होने से भारत ने बड़ा पावर ब्लैक आउट झेलातस्वीर: picture-alliance/dpa/N. Kaiser

बिजली की बचत बनाम मुफ्तखोरी

बिजली बचाना आम भारतीयों की जीवनशैली का एक हिस्सा है. जिस कमरे में कोई न हो, वहां लाइट और पंखें ऑन नहीं किए जाते. एयरकंडीशनर और हीटर भी हिसाब लगाकर इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन जब बिजली मुफ्त मिलने लगेगी तो पहले 200 यूनिट की चिंता कौन करेगा. रियायत देनी ही है तो घरों में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने में देनी चाहिए.

गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले परिवारों, सिंचाई के लिए किसानों, अस्पतालों और सरकारी स्कूलों को मुफ्त बिजली दी जानी चाहिए लेकिन जो लोग बिल चुका सकते हैं, उन्हें बिजली का बिल देना चाहिए. उस सुविधा के लिए मूल्य चुकाना चाहिए, जिसके खातिर कहीं बांधों ने जमीन डुबाई है, तो कहीं कोयला बिजलीघरों ने राख उड़ेली है. शिक्षा और स्वास्थ्य को निशुल्क करना लोक कल्याण है, लेकिन बाकी सेवाओं के लिए उचित मूल्य लेना भी एक अच्छे सिस्टम के लिए अनिवार्य है. कहीं ऐसा न हो कि सरकारी व्यवस्थाएं इतनी बर्बाद हो जाएं कि तीसरा विकल्प निजीकरण आखिरी उपाय लगने लगे.

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