फ्रांस ने रूस को शैंपेन का निर्यात रोकने की बात कही है. रूस में एक नए कानून को लेकर फ्रांस के शैंपेन बनाने वाले नाराज हैं और रूस की ‘जबर्दस्ती’ का विरोध कर रहे हैं.
विज्ञापन
रूस चाहता है कि विदेशी शैंपेन को स्पार्कलिंग वाइन के नाम से बेचा जाए और रूस में बनने वाली ‘शंपान्सकोव' को ही शैंपेन कहा जाए. इस बारे में रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन ने बीते दिनों एक कानून पर दस्तखत भी कर दिए हैं. फ्रांस के शैंपेन उद्योग में इस कानून के प्रति नाराजगी है और एक औद्योगिक संगठन ने अपने सदस्यों से रूस को निर्यात रोकने को कहा है.
शैंपेन नाम फ्रांस के एक क्षेत्र शंपान्या के नाम पर रखा गया है, जहां से यह पेय शुरू हुआ है. इस नाम को 120 देशों में कानूनी सुरक्षा हासिल है.
फ्रांसीसी औद्योगिक संगठन की ओर से जारी एक बयान में उपाध्यक्षों माक्सिम टूबार्ट और ज्यां-मारी बैरीले ने कहा, "शैंपेन समिति इस कानून की निंदा करती है जो रूस के उपभोक्ताओं से वाइन के गुणों और उत्पत्ति के बारे में जानकारी छिपा रहा है.”
फ्रांस के व्यापार मंत्री फ्रांक रिएस्टेर ने कहा कि वह रूसी कानून पर नजर रख रहे हैं और वाइन उद्योग व फ्रांस के यूरोपीय साझीदारों के संपर्क में हैं. ट्विटर पर उन्होंने लिखा, "बेशक हम अपने उत्पादकों और फ्रांसीसी उत्कृष्टता की मदद करेंगे.”
तार्किकता पर सवाल
वैसे कुछ फ्रांसीसी उत्पादकों ने रूसी कानून को मान भी लिया है. वॉव क्लिक्वो और डोम पेरिन्योन जैसी शैंपेन बनाने वाली मोए हेनेसी ने रविवार को कहा कि रूसी कानून के तहत वह अपनी बोतलों पर स्पार्कलिंग वाइन लिखना शुरू करेंगे.
जानिए, किस-किस फल से बनती है वाइन
इन सभी फलों से बनती है वाइन
वाइन का नाम सुनते हैं तो अंगूर ही याद आते हैं. हरे अंगूर से व्हाइट वाइन और काले अंगूर से रेड वाइन. लेकिन और भी कई फल हैं जिनका इस्तेमाल वाइन बनाने के लिए किया जाता है.
यूरोप में वाइन का मतलब अंगूर की वाइन से ही होता है लेकिन भारत समेत बहुत से एशियाई देशों में तरह तरह की फ्रूट वाइन प्रचलित हैं जिन्हें लोग घरों में भी बनाते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Stratenschulte
आलूबुखारा
चीन, जापान और कोरिया में प्लम वाइन काफी लोकप्रिय है. इसके अलावा आलूबुखारे से यहां प्लम लिकर भी बनाया जाता है जिसमें अल्कोहल की मात्रा काफी ज्यादा होती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Kalaene
अनार
इस्राएल में अनार से वाइन बनाई जाती है और इसे रिमोन कहा जाता है. यह खास किस्म के अनार से बनती है जो सामान्य अनार से काफी ज्यादा मीठे होते हैं.
तस्वीर: Colourbox
केला
सोचने में थोड़ा अजीब लगता है लेकिन केले से भी वाइन तैयार की जा सकती है क्योंकि बाकी फलों की तुलना में इनमें चीनी की मात्रा काफी ज्यादा होती है. भारत की बनाना वाइन दुनिया भर में जानी जाती है.
चीन में लीची से बनी वाइन काफी पी जाती है. इसमें 10 से 18 फीसदी अल्कोहल होता है. सुनहरे रंग की इस वाइन को परंपरागत चीनी खाने के साथ पिया जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Arnold
संतरा
वैसे तो अंगूर से बनी एक खास किस्म की वाइन को भी ऑरेंज या ऐम्बर वाइन के नाम से जाना जाता है लेकिन संतरों से बनी ऑरेंज वाइन बनाना बहुत ही मुश्किल होता है. इसमें साफ सफाई का बहुत ख्याल रखना होता है.
तस्वीर: Javier Castro Nido
अनानास
थाईलैंड और अन्य दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में अनानास के रस से बनी वाइन काफी चाव से पी जाती है. इसमें करीब 10 प्रतिशत अल्कोहल होता है. मेक्सिको और कुछ अफ्रीकी देशों में भी यह प्रचलित है.
तस्वीर: Colourbox
चेरी
पिछले कुछ सालों में डेनमार्क और क्रोएशिया में चेरी वाइन का चलन चला है. चीन में भी चेरी की खूब पैदावार होती है, इसलिए वहां भी इसे अच्छी मात्रा में बनाया जाने लगा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Arnold
बेरी
ब्लैकबरी, ब्लूबेरी, क्रैनबेरी, गूजबेरी, सीबेरी और रसबेरी समेत कई तरह के फलों से वाइन बनाई जा सकती है. अमेरिका, पूर्वी अफ्रीका, फिलीपींस और भारत में इनका इस्तेमाल किया जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/ZB
और भी कई फल
भारत के मेघालय में नाशपाती, स्ट्रॉबेरी, अमरूद, तरबूज, टमाटर, काजू और कटहल से भी वाइन बनाई जाती है. भारत सरकार ने घरों में बनने वाली इन वाइनों को कानूनी वैधता प्रदान की है.
इसके बाद कंपनी के शेयरों में सोमवार को 0.2 फीसदी की कमी देखी गई. उधर स्पार्कलिंग वाइन बनाने वाली रूसी कंपनी अबरो-दरसो के शेयरों में तीन प्रतिशत से ज्यादा का उछाल आया.
अबरो-दरसो के अध्यक्ष पावेल तितोव ने रेडियो फ्रांस इंटरनैशनल को बताया था कि उनकी कंपनी ऐसी कोई स्पार्कलिंग वाइन नहीं बानई जाती जिसे शैंपेन कहा जाए. शनिवार को दिए एक इंटरव्यू में तितोव ने उम्मीद जताई कि यह मामला अंतरराष्ट्रीय नियमों और मानकों के हिसाब से इस मसले का हल जल्द निकल आएगा.
तितोव ने कहा, "हमारे बाजार में रूसी वाइन की सुरक्षा बहुत जरूरी है लेकिन कानून तार्किक होने चाहिए ना कि आम समझ के उलट. मुझे इस बारे में कोई संदेह नहीं है कि असली शैंपेन फ्रांस के शंपान्या क्षेत्र में बनती है.”
यूरोपीय आयोग ने भी रूस के वाइन संबंधी कानून को लेकर सख्त रूख अपनाया है. आयोग ने कहा कि रूस के इस कानून का वाइन निर्यात पर बड़ा असर पड़ेगा और अपनी चिंताएं वह असहमतियां जताने के लिए हर संभव मंच का इस्तेमाल किया जाएगा. आयोग की प्रवक्ता मिरियम गार्सिया फेरेर ने कहा, "अपने अधिकारों की रक्षा के लिए हम जो जरूरी होगा करेंगे और यदि कानून अमल में आता है तो आवश्यक कदम उठाए जाएंगे.”
जब गार्सिया से पूछा गया कि रूसी कानून के जवाब में यूरोपीय संघ क्या कार्रवाई करेगा तो उन्होंने कहा कि ऐसी चर्चा करना अभी जल्दबाजी होगी.
विज्ञापन
क्यों अलग है शैंपेन
रूस में बहुत तरह की स्पार्कलिंग वाइन्स के लिए शंपान्स्कोव नाम का इस्तेमाल किया जाता है. ऐसा सोवियत संघ के समय से ही चला आ रहा है. फ्रांसीसी शैंपेन को शान-ओ-शौकत के साथ जोड़कर देखा जाता है जबकि रूस में शांपान्सकोव कहकर बिकने वालीं कुछ स्पार्कलिंग वाइन्स तो 150 रूबल यानी डेढ़ सौ रुपये में भी मिल जाती हैं.
इसके उलट शैंपेन एक महंगा पेय है. इसकी शुरुआत फ्रांस के शंपान्या इलाके में पांचवीं सदी के दौरान की मानी जाती है. सन् 987 में जब ह्यू कैपे फ्रांस के राजा बने तो वह अपने विदेशी मेहमानों की खातिरदारी के लिए उन्हें इसी इलाके में लाने लगे थे.
उससे पहले बरगंडी इलाके में बनाई जाने वाली वाइन का बोलबाला था, जिसे लेकर शंपान्या के लोग परेशान रहते थे और बरगंडी से बेहतर वाइन बनाना चाहते थे. लेकिन इस इलाके का मौसम बढ़िया रेड वाइन बनाने के अनुकूल नहीं था.
पता है? मेड इन जर्मनी है फैंटा
मेड इन जर्मनी है फैंटा
जर्मनी ज्यादातर अपनी मंहगी कार, बीयर और ऐसी दूसरी चिजों के निर्माण के लिए से जाना जाता है. लेकिन जर्मनी ने दुनिया के कुछ ऐसे आविष्कार भी किए हैं जिसे बहुत कम लोग जानते होंगे.
तस्वीर: Colourbox
फैंटा
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिकियों को लगा कि वे कोका कोला की सप्लाई बंद कर जर्मनी को परेशान कर देंगे. तभी कोका कोला जर्मनी के प्रमुख माक्स काइथ ने जर्मन बाजार के लिए नया प्रोडक्ट उतारने की सोची. उन्होंने स्थानीय चीजों का सहारा लिया और 1941 में फैंटा से तहलका मचा दिया.
तस्वीर: Colourbox
कॉफी फिल्टर
1908 में ड्रेसडेन की एक महिला मेलिटा बेंट्स ने कॉफी के स्वाद को बेहतर करने के लिए उसे बेहद बारीक कागज से छानने की सोची. आइडिया चल निकला. कप में सिर्फ कॉफी आई, उसका बारीक पाउडर फिल्टर में अटक गया. बेंट्स ने इस आइडिया को पेटेंट कराया. उनकी कंपनी मेलिटा ग्रुप आज भी 3,300 कर्मचारियों के साथ चल रही है.
तस्वीर: picture alliance/dpa/A. Warnecke
इलेक्ट्रिक ड्रिल
हथौड़े से मुक्ति इलेक्ट्रिक ड्रिल ने दिलाई. हालांकि इलेक्ट्रिक ड्रिल का आविष्कार 1889 में ऑस्ट्रेलिया में हुआ. लेकिन जर्मनी के लुडविषबुर्ग के विल्हेम एमिल फाइन ने 1895 में इसे पोर्टेबल बना दिया. हाथ में आराम से आने वाली पोर्टेबल ड्रिल आज भी निर्माण और रिपेयरिंग के मामले में अहम औजार है.
तस्वीर: mariusz szczygieł - Fotolia.com
एमपी3
एमपी3 फाइल ने एक झटके में संगीत को कैसेट से निकालकर चिप में डाल दिया. एमपी3 बनाने का विचार कार्लहाइंत्स ब्रांडेनबुर्ग को 1980 के दशक में आया. उन्होंने डाटा फाइल को कंप्रेस करने में सफलता पाई.
तस्वीर: picture-alliance/ dpa/dpaweb
पंच फाइल
आज दफ्तरों में कंप्यूटर लगे हैं, लेकिन इसके बावजूद रिकॉर्ड रखने के लिए फाइलों को इस्तेमाल किया जाता है. पंच फाइल का विचार मथियास थेल का था. लेकिन फ्रिडरिष सोएनएकन ने 14 नवंबर 1886 को इसके लिए पेटेंट फाइल किया. सोएनएकन की फाइल में एक रिंग बाइंडर और दो छेद थे.
तस्वीर: Fotolia/Eisenhans
आधुनिक फुटबॉल बूट
फुटबॉल खेलने के बूट ब्रिटेन में बने. लेकिन एडिडास के संस्थापक एडी डासलेर ने 1954 में स्क्रू तकनीक का इस्तेमाल कर इन बूटों के डिजाइन और तले को पूरी तरह बदल दिया. उसी साल पश्चिमी जर्मनी ने फुटबॉल विश्वकप जीता. एडी के बड़े भाई रुडोल्फ डासलेर इससे खुश नहीं थे. प्यूमा कंपनी के मालिक रुडोल्फ ने दावा किया कि यह खोज उनकी थी.
तस्वीर: imago
सेफ्टी टेप
निविया क्रीम, लाबेलो लिप बाम बनाने के बाद भी फार्मेसिस्ट ऑस्कर ट्रोप्लोविट्स संतुष्ट नहीं हुए. तभी उनके दिमाग में सेलो टेप बनाने का विचार आया. लेकिन इस आइडिया पर और लोग भी काम कर रहे थे. तो ट्रोप्लोविट्स ने 1901 में ल्यूकोप्लास्ट बना दिया. आज मेडिकल क्षेत्र में इसका खूब इस्तेमाल होता है.
तस्वीर: Reuters/E.Alonso
एकोर्डियन
एकोर्डियन भी जर्मन आविष्कार है. 1822 में इसे क्रस्टियान फ्रिडरिष लुडविष बुशमन ने बनाया. कहा जाता है कि बुशमन इससे पहले हार्मोनियम भी बना चुके थे. लेकिन आसानी से कंधे पर लटकने वाले एकोर्डियन जल्द ही दुनिया भर में छा गया.
तस्वीर: Reuters/C. Kern
क्रिसमस ट्री
सेंटा क्लॉज को खोजने का श्रेय फिनलैंड लेता है और क्रिसमस ट्री का जर्मनी. जर्मनी में पुर्नजागरण काल के दौरान टानेनबाउम नामक पेड़ को सजाने का चलन शुरू हुआ. 19वीं शताब्दी के अंत तक यह परंपरा सी बन गई. आज दुनिया भर में क्रिसमस ट्री को फलों, लाइटों और मेवों से सजाया जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/W. Thieme
टैक्सी मीटर
इससे प्यार और नाराजगी बनी रहती है. 1891 में फ्रिडरिष विल्हेम गुस्ताव ब्रून ने डायमलर कंपनी की टैक्सियों के लिए यह मीटर बनाया. तभी से दुनिया भर की टैक्सियों के मीटर लगातार डाउन हैं.
तस्वीर: Imago/Chromorange
10 तस्वीरें1 | 10
यहां के अंगूरों से बनने वाली वाइन बरगंडी से पतली और फीके रंग की होती थी. इसके अलावा फरमेंटेशन के कारण इसमें कार्बन डाइ ऑक्साइड बनती थी जिसके दबाव में बोतल फट तक जाती थी. 17वीं सदी तक भी शंपान्या के वाइन उत्पादक इन बुलबुलों से छुटकारा पाने की तरकीबें खोज रहे थे.
इसके उलट, लोगों के बीच इस बुलबुलों वाली वाइन की लोकप्रियता बढ़ती जा रही थी. 1715 में लुई चौदहवें की मृत्यु के बाद फिलिप द्वीतीय राजा बने, जो स्पार्कलिंग वाइन के शौकीन थे. उनके शासन काल में शाही घरानों में इस वाइन का चाव बढ़ा और ज्यादा से ज्यादा लोग जानबूझ कर बुलबुलों वाली वाइन बनाने लगे. 19वीं सदी तक आते-आते शैंपेन उद्योग स्थापति हो गया और बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन होने लगा, जिसे अमेरिका, रूस और कई अन्य देशों ने भी अपना लिया.