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रूस में शैंपेन को शैंपेन कहना हुआ गैरकानूनी

६ जुलाई २०२१

फ्रांस ने रूस को शैंपेन का निर्यात रोकने की बात कही है. रूस में एक नए कानून को लेकर फ्रांस के शैंपेन बनाने वाले नाराज हैं और रूस की ‘जबर्दस्ती’ का विरोध कर रहे हैं.

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शैंपेन के गिलास टकराते रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन (बाएं) की यह तस्वीर फरवरी 2014 की है.तस्वीर: Mikhail Klimentyev/AP Photo/picture alliance

रूस चाहता है कि विदेशी शैंपेन को स्पार्कलिंग वाइन के नाम से बेचा जाए और रूस में बनने वाली ‘शंपान्सकोव' को ही शैंपेन कहा जाए. इस बारे में रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन ने बीते दिनों एक कानून पर दस्तखत भी कर दिए हैं. फ्रांस के शैंपेन उद्योग में इस कानून के प्रति नाराजगी है और एक औद्योगिक संगठन ने अपने सदस्यों से रूस को निर्यात रोकने को कहा है.

शैंपेन नाम फ्रांस के एक क्षेत्र शंपान्या के नाम पर रखा गया है, जहां से यह पेय शुरू हुआ है. इस नाम को 120 देशों में कानूनी सुरक्षा हासिल है.

फ्रांसीसी औद्योगिक संगठन की ओर से जारी एक बयान में उपाध्यक्षों माक्सिम टूबार्ट और ज्यां-मारी बैरीले ने कहा, "शैंपेन समिति इस कानून की निंदा करती है जो रूस के उपभोक्ताओं से वाइन के गुणों और उत्पत्ति के बारे में जानकारी छिपा रहा है.”

फ्रांस के व्यापार मंत्री फ्रांक रिएस्टेर ने कहा कि वह रूसी कानून पर नजर रख रहे हैं और वाइन उद्योग व फ्रांस के यूरोपीय साझीदारों के संपर्क में हैं. ट्विटर पर उन्होंने लिखा, "बेशक हम अपने उत्पादकों और फ्रांसीसी उत्कृष्टता की मदद करेंगे.”

तार्किकता पर सवाल

वैसे कुछ फ्रांसीसी उत्पादकों ने रूसी कानून को मान भी लिया है. वॉव क्लिक्वो और डोम पेरिन्योन जैसी शैंपेन बनाने वाली मोए हेनेसी ने रविवार को कहा कि रूसी कानून के तहत वह अपनी बोतलों पर स्पार्कलिंग वाइन लिखना शुरू करेंगे.

जानिए, किस-किस फल से बनती है वाइन

इसके बाद कंपनी के शेयरों में सोमवार को 0.2 फीसदी की कमी देखी गई. उधर स्पार्कलिंग वाइन बनाने वाली रूसी कंपनी अबरो-दरसो के शेयरों में तीन प्रतिशत से ज्यादा का उछाल आया.

अबरो-दरसो के अध्यक्ष पावेल तितोव ने रेडियो फ्रांस इंटरनैशनल को बताया था कि उनकी कंपनी ऐसी कोई स्पार्कलिंग वाइन नहीं बानई जाती जिसे शैंपेन कहा जाए. शनिवार को दिए एक इंटरव्यू में तितोव ने उम्मीद जताई कि यह मामला अंतरराष्ट्रीय नियमों और मानकों के हिसाब से इस मसले का हल जल्द निकल आएगा.

तितोव ने कहा, "हमारे बाजार में रूसी वाइन की सुरक्षा बहुत जरूरी है लेकिन कानून तार्किक होने चाहिए ना कि आम समझ के उलट. मुझे इस बारे में कोई संदेह नहीं है कि असली शैंपेन फ्रांस के शंपान्या क्षेत्र में बनती है.”

यूरोपीय आयोग ने भी रूस के वाइन संबंधी कानून को लेकर सख्त रूख अपनाया है. आयोग ने कहा कि रूस के इस कानून का वाइन निर्यात पर बड़ा असर पड़ेगा और अपनी चिंताएं वह असहमतियां जताने के लिए हर संभव मंच का इस्तेमाल किया जाएगा. आयोग की प्रवक्ता मिरियम गार्सिया फेरेर ने कहा, "अपने अधिकारों की रक्षा के लिए हम जो जरूरी होगा करेंगे और यदि कानून अमल में आता है तो आवश्यक कदम उठाए जाएंगे.”

जब गार्सिया से पूछा गया कि रूसी कानून के जवाब में यूरोपीय संघ क्या कार्रवाई करेगा तो उन्होंने कहा कि ऐसी चर्चा करना अभी जल्दबाजी होगी.

क्यों अलग है शैंपेन

रूस में बहुत तरह की स्पार्कलिंग वाइन्स के लिए शंपान्स्कोव नाम का इस्तेमाल किया जाता है. ऐसा सोवियत संघ के समय से ही चला आ रहा है. फ्रांसीसी शैंपेन को शान-ओ-शौकत के साथ जोड़कर देखा जाता है जबकि रूस में शांपान्सकोव कहकर बिकने वालीं कुछ स्पार्कलिंग वाइन्स तो 150 रूबल यानी डेढ़ सौ रुपये में भी मिल जाती हैं.

इसके उलट शैंपेन एक महंगा पेय है. इसकी शुरुआत फ्रांस के शंपान्या इलाके में पांचवीं सदी के दौरान की मानी जाती है. सन् 987 में जब ह्यू कैपे फ्रांस के राजा बने तो वह अपने विदेशी मेहमानों की खातिरदारी के लिए उन्हें इसी इलाके में लाने लगे थे.

उससे पहले बरगंडी इलाके में बनाई जाने वाली वाइन का बोलबाला था, जिसे लेकर शंपान्या के लोग परेशान रहते थे और बरगंडी से बेहतर वाइन बनाना चाहते थे. लेकिन इस इलाके का मौसम बढ़िया रेड वाइन बनाने के अनुकूल नहीं था.

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यहां के अंगूरों से बनने वाली वाइन बरगंडी से पतली और फीके रंग की होती थी. इसके अलावा फरमेंटेशन के कारण इसमें कार्बन डाइ ऑक्साइड बनती थी जिसके दबाव में बोतल फट तक जाती थी. 17वीं सदी तक भी शंपान्या के वाइन उत्पादक इन बुलबुलों से छुटकारा पाने की तरकीबें खोज रहे थे.

इसके उलट, लोगों के बीच इस बुलबुलों वाली वाइन की लोकप्रियता बढ़ती जा रही थी. 1715 में लुई चौदहवें की मृत्यु के बाद फिलिप द्वीतीय राजा बने, जो स्पार्कलिंग वाइन के शौकीन थे. उनके शासन काल में शाही घरानों में इस वाइन का चाव बढ़ा और ज्यादा से ज्यादा लोग जानबूझ कर बुलबुलों वाली वाइन बनाने लगे. 19वीं सदी तक आते-आते शैंपेन उद्योग स्थापति हो गया और बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन होने लगा, जिसे अमेरिका, रूस और कई अन्य देशों ने भी अपना लिया.

रिपोर्टः विवेक कुमार (रॉयटर्स)

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