विश्व प्रसिद्ध स्वीडिश युवा पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थुनबर्ग युवाओं का नेतृत्व करने वापस लौट आई हैं. उनके आह्वान पर दुनिया के कई देशों में युवा प्रदर्शनकर्ताओं ने जोर शोर से जलवायु परिवर्तन का मुद्दा उठाया.
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ग्रेटा थुनबर्ग ने स्वीडन की संसद के बाहर शुक्रवार 25 सितंबर को सोशल डिस्टेंसिंग के दौर में अपने पहले फ्राइडेज फॉर फ्यूचर आंदोलन का आगाज किया. एशिया से लेकर अफ्रीका तक विश्व के 3,100 स्थलों पर फ्राइडेज फॉर फ्यूचर के प्रदर्शन हुए. कोरोना महामारी के काल में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए ठोस कदमों की मांग करने वाला स्कूली बच्चों और युवाओं का यह अभियान ऑनलाइन दुनिया में सिमट गया था. संसद के बाहर पत्रकारों से बात करने हुए 17 साल की थुनबर्ग ने कहा, "सबसे बड़ी आशा यह है कि लोगों में जागरूकता के स्तर और आम राय पर असर डाल सकें.''
20 अगस्त 2018 को थुनबर्ग ने स्वीडन की ही संसद के सामने पहली बार अकेले प्रदर्शन किया था. देखते ही देखते इसमें पूरे विश्व के स्कूली बच्चे जुड़ते गए. इसके एक साल के भीतर थुनबर्ग को संयुक्त राष्ट्र ने राजनेताओं और बिजनेस लीडर्स की एक सभा को संबोधित करने बुलाया. स्कूल में पढ़ने वाली थुनबर्ग ने स्विट्जरलैंड के दावोस के विश्व आर्थिक मंच से भी विश्व को संदेश दिया.
पर्यावरण बचाने के प्रदर्शन के दौरान लगे ये प्रसिद्ध नारे
वर्ष 1970 में पहले अर्थ डे मार्च के दौरान लोगों ने एक बैनर फहराया था, जिस पर लिखा था,'धरती को एक मौका दो'. इसके बाद हरित अभियानों के कई नारों ने लोगों का ध्यान खींचा. जलवायु पर अभियान तेज होने पर फिर ऐसे नारे लग रहे हैं.
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'जलवायु के लिए स्कूल की हड़ताल'
यह तस्वीर ग्रेटा थुनबर्ग की है जो 2018 के नवंबर महीने में स्वीडन की संसद के बाहर ली गई. उनके हाथ में जो बैनर है, उस पर लिखा है, 'स्कूल स्ट्राइक फॉर द क्लाइमेट चेंज' यानी जलवायु के लिए स्कूल की हड़ताल. उस समय थुनबर्ग की उम्र 15 साल थी लेकिन उनके इस कदम ने 'फ्राइडे फॉर फ्यूचर' अभियान की शुरुआत की, जो आज पूरी दुनिया में छा गया है.
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'धरती माता ने भी कहा, मीटू'
यह नारा जर्मनी की राजधानी बर्लिन में 2017 में कोयले के विरोध में निकाली गई एक रैली में दिखा था. महिलाओं के यौन शोषण के मुद्दे को उठाने वाले #MeToo की तर्ज पर निकला यह नारा धरती माता के शोषण और प्राकृतिक वातावरण के दुरुपयोग के खिलाफ आवाज उठाता है. इस रैली में कोयले से चलने वाले पावर प्लांट को बंद करने की मांग की गई थी.
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'हम पैसा नहीं खा सकते'
जलवायु संकट को लेकर एक्टिविस्टों ने अप्रैल 2019 में विरोध प्रदर्शन के दौरान लंदन में सड़क को जाम कर दिया था. उनके हाथ में जो बैनर थे, उन पर 'जलवायु आपातकाल' के अलावा एक और स्लोगन लिखा था जो बहुत मशहूर हुआ. यह स्लोगन था- हम पैसा खा नहीं सकते. एक्सटिंक्शन रिबेलियन समूह का यह नारा निरंकुश पूंजीवाद और जलवायु परिवर्तन के संबंध को दिखाता है.
2018 के अक्टूबर महीने में कार्यकर्ताओं ने जर्मनी के राइनलैंड क्षेत्र के हामबाख में कोयला खदान की तरफ मार्च किया. वहां कोयला खनन से एक प्राचीन वन को खतरा है. जर्मनी 2038 तक कोयले के इस्तेमाल को बंद करना चाहता है. इसके बावजूद इस बैनर ने कोयले विरोधी संदेश को व्यापक राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक अर्थों के साथ जोड़ा.
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यदि आप बड़ों की तरह व्यवहार नहीं करोगे, तो हम करेंगे
दुनिया भर में स्कूली बच्चे जलवायु संकट से लड़ने के लिए सड़कों पर निकल रहे हैं. इसी के साथ जलवायु को बचाने के लिए नए नारे भी गढ़े जा रहे हैं. इस साल 15 मार्च को हांगकांग में "फ्राइडेज फॉर फ्यूचर" के प्रदर्शन में एक छात्र ने बताया कि कैसे पुरानी पीढ़ियों के गैरजिम्मेदार रवैये ने उन्हें आगे आने के लिए मजबूर किया है.
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इनकार करना बंद करो. हमारी पृथ्वी मर रही है
15 मार्च को जलवायु परिवर्तन को लेकर दुनिया भर में करीब 200 जगहों पर छात्रों ने प्रदर्शन किए. इस मौके पर दक्षिणी अफ्रीका के शहर केपटाउन में भी छात्रों ने प्रदर्शन किया. कई अन्य नारों के साथ इन्होंने नारा लगाया, 'इनकार करना बंद करो! हमारी पृथ्वी मर रही है!'
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हमारा भविष्य आपके हाथ में है
इस साल की शुरुआत में जर्मनी की राजधानी बर्लिन में 25 हजार लोग एक साथ सड़कों पर निकले. सारी गलियां उन प्रदर्शनकारियों से भर गईं जो अपने शरीर पर पर्यावरण बचाने को लेकर संदेश लिखे हुए थे. इस दौरान एक व्यक्ति ने अपने माथे पर लिखा था, 'चेतावनी-चेतावनी'. दूसरे ने अपनी हाथों पर लिखा था, 'हमारा भविष्य आपके हाथ में है'.
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यह कार्बन जलाने का परिणाम है
जून के अंतिम सप्ताह में जर्मनी और बेल्जियम की सीमा पर स्थित शहर आखेन में लोगों ने फ्राइडेज फॉर फ्यूचर अभियान के तहत मार्च निकाला. इसमें एक बैनर सभी लोगों का ध्यान आकर्षित कर रहा था. इस बैनर ने कार्बन डाइऑक्साइड के गंभीर परिणामों को लेकर चेतावनी दी. इस वक्त मानव इतिहास में वायुमंडल में कार्बन सबसे उच्च स्तर पर पहुंच गया है.
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यहां कोई दूसरा ग्रह नहीं है
संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव बान की मून और अन्य लोगों ने जलवायु एक्टिविस्टों के लिए इस नारे को लोकप्रिय बनाया था. बान ने 2014 के न्यूयॉर्क जलवायु सम्मेलन में कहा था कि "कोई भी प्लान बी नहीं है क्योंकि हमारे पास ग्रह बी नहीं है." यह स्लोगन लेखक माइक बेर्नर्स-ली की 2019 की पुस्तक का शीर्षक भी है, जो बताता है कि मानवता कैसे "सिर्फ इस ग्रह" पर टिकाऊ तरीके से बनी रह सकती है.
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'सड़कों पर निकलिए, या बाद में भुगतिए'
ग्रेटा थुनबर्ग 1 मार्च को हैम्बर्ग में एक प्रदर्शन में शामिल हुई थीं. इसके कुछ सप्ताह बाद उन्होंने दावोस में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में व्यवसायियों और राजनीतिक नेताओं के सामने कहा, "मैं चाहती हूं कि आप घबराएं. मैं चाहती हूं कि हर दिन मुझे जो डर लगता है उसे आप भी महसूस करें. और फिर मैं चाहती हूं कि आप कोई कदम उठाएं." हैम्बर्ग रैली में यह नारा तुरंत कार्रवाई के लिए आंदोलन के आह्वान का प्रतीक बन गया.
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उनके सीधे सवाल विश्व के बड़े बड़े नेताओं से पूछे गए सबसे कड़े सवालों में शामिल माने जाते हैं. वैज्ञानिक तथ्यों की बात कर थुनबर्ग ने विश्व नेताओं से ग्रीनहाउस गैसों में कटौती करने और दूसरी हानिकारक गैसों के उत्सर्जन को घटाने की जवाबदाही तय करने की मांग की. इस कदम के लिए उन्हें दुनिया भर के पुरस्कार और प्रशंसा तो मिली लेकिन साथ ही तमाम आलोचनाओं और जान से मारने की धमकियां तक मिलीं.
दुनिया भर में जोर पकड़ते इस अभियान को भी कोरोना के कारण घरों में सिमटना पड़ा. स्कूल बंद हो गए और बच्चे घरों में कंप्यूटर से ही अपने स्कूलों से और इस अभियान से भी जुड़े रहे. अगस्त में थुनबर्ग और कुछ अन्य एक्टिविस्ट ने जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल से बर्लिन में मुलाकात की और अपने सुझावों वाली चिट्ठी सौंपी. इसके पहले अप्रैल में डिजिटल स्ट्राइक का आयोजन हुआ था जिसमें वैसे तो तादाद कम रही लेकिन आंदोलन जिंदा रहा.
अभियान से जुड़े युवा और किशोर कार्यकर्ता कहते हैं कि वे तब तक अपना प्रदर्शन जारी रखेंगे जब तक प्रकृति का दोहन जारी रहेगा.
हर साल कुछ लोग या अभियान ऐसे होते हैं, जो दुनिया को एक नए दौर में ले जाते हैं. कुछ आशा बनते हैं और कुछ निराशा. अमेरिका की मशहूर टाइम मैगजीन साल के अंत में ऐसे ही अहम चेहरे चुनती हैं. एक नजर बीते 10 साल के अहम चेहरों पर.
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2019: ग्रेटा थुनबर्ग
स्वीडन की 16 साल की ग्रेटा थुनबर्ग पर्यावरण और जलवायु संकट का अहम चेहरा बन चुकी हैं. 2018 में जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर लोगों में जागरुकता पैदा करने के लिए ग्रेटा ने स्वीडन की संसद के बाहर विरोध-प्रदर्शन के लिए हर शुक्रवार अपना स्कूल छोड़ा था जिसे देखकर कई देशों में #FridaysForFuture के साथ एक मुहिम शुरू हो गई.
तस्वीर: Reuters/Time
2018: जमाल खशोगी
इस साल टाइम मैगजीन ने उम पत्रकारों को सम्मानित किया जो अपने देश में सरकार या मजबूत ताकतों के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं. वॉशिंगटन पोस्ट के सऊदी स्तंभकार जमाल खशोगी को भी पत्रिका ने श्रद्धांजलि दी. साथ ही में कई अन्य देशों के पत्रकारों को भी टाइम ने इस सम्मान के लिए चुना.
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2017: साइलेंस ब्रेकर
वो लोग जिन्होंने यौन शोषण, उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाई, जो मीटू आंदोलन में मुखर रहे, उन्हें इस साल टाइम के कवर पर जगह मिली. इनमें एक्टर एश्ले जूड, सिंगर टेलर स्विफ्ट, सॉफ्टवेयर इंजीनियर सुजन फाउलर भी शामिल थे.
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2016: डॉनल्ड ट्रंप
हिलेरी क्लिंटन को हराकर, डॉनल्ड ट्रंप ने अमेरिकी राष्ट्रपति पद इसी साल संभाला. ट्रंप "मेक अमेरिका ग्रेट अगेन" के नारे के साथ चुनाव मैदान में उतरे थे. सक्रिय राजनीति के अनुभव के बिना एक कारोबारी का इस तरह जीतना एक नई बात थी.
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2015: अंगेला मैर्केल
2005 से जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल, ग्रीस के आर्थिक संकट और यूरोप में प्रवासियों के संकट पर प्रभावशाली नेता बनकर दुनिया के सामने उभरीं. वह यूरोप की सबसे प्रभावशाली राजनीतिक हस्ती भी हैं.
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2014: इबोला फाइटर्स
ये शब्द उन स्वास्थ्य कर्मचारियों के लिये प्रयोग किया गया जिन्होंने इबोला वायरस के प्रसार को रोकने के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी. इसमें सिर्फ डॉक्टर, नर्स ही शामिल नहीं हैं, बल्कि एंबुलेंस कर्मचारी, मृत लोगों को दफनाने वाले कर्मचारी तक शामिल हैं.
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2013: पोप फ्रांसिस
इस साल पोप बेनेडिक्ट के इस्तीफे के बाद पोप फ्रांसिस को रोमन कैथोलिक चर्च के पोप चुने गए. यह पहला मौका था जब वेटिकन में बतौर पोप, दक्षिण अमेरिकी महाद्वीप के व्यक्ति की नियुक्ति हुई.
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2012: बराक ओबामा
मिट रॉमनी को हराकर बराक ओबामा दूसरी बार अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए.
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2011: आंदोलनकारी
अरब क्रांति, टी पार्टी आंदोलन, जैसे आंदोलन में हिस्सा लेने वाले लोगों को इस साल टाइम मैगजीन ने अपना कवर पेज पर उतारा.
2010: मार्क जकरबर्ग
फेसबुक के सह संस्थापक मार्क जुकरबर्ग टाइम मैगजीन के कवर पेज पर रहे. मार्क ने फेसबुक की शुरुआत 2004 में की और आज दुनियाभर में इसके 241 करोड़ एक्टिव यूजर हैं.