अफ्रीका में महिलाओं को पति के मर जाने के बाद जिस तरह की यंत्रणाओं से गुजरना होता है, वे सुनकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे. शव साफ करने से लेकर गैर से सेक्स तक, क्या-क्या करना पड़ता है.
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कैमरून के दौआला शहर में रहने वाली क्लैरिस के पति बीते साल मलेरिया से चल बसे. घरवालों ने उन्हें घर से निकाल दिया. उन्हें अपने देवर से शादी करने को मजबूर किया गया. शादी के बाद उन्होंने अपने नए पति से सेक्स किया और फिर पता चला कि उन्हें सिफलिस हो गया है. सिफलिस एक खतरनाक यौन रोग है जो दृष्टि तक छीन सकता है.
बिलखते हुए क्लैरिस ने बताया, "उसने मुझ पर बेवफाई का आरोप लगाया. परिवार के लोगों को जमा कर लिया और सबके सामने मुझे वेश्या तक कहा." बात करते वक्त क्लैरिस अपनी शादी की अंगूठी को घुमा रही थीं. उन्होंने कहा, "सबने कहा कि मैं चुड़ैल हूं और मैंने ही अपने पति को मार डाला. मेरी सौतेली मां ने तो धमकी दी कि मुझे जान से मार देंगी." क्लैरिस अपनी बेटी के साथ वहां से भाग निकलीं. अब वह शहर के बाहर एक लकड़ी के घर में रहती हैं.
अनजान लोगों का साथ सेक्स
क्लैरिस की इस कहानी में आप बस नाम बदल दीजिए और आपको अफ्रीका में विधवाओं की लाखों कहानियां मिल जाएंगी. पति के मर जाने के बाद उन्हें परिवारों द्वारा त्याग दिया जाता है. उनसे उनकी संपत्ति छीन ली जाती है और उन्हें भटकने के लिए छोड़ दिया जाता है. बहुत सी विधवाओं को पवित्र होने की प्रक्रिया के नाम पर अपने पति के किसी रिश्तेदार के साथ शादी करने के लिए मजबूर किया जाता है. इस रस्म का मकसद विधवा को उसके मृत पति की आत्मा से छुटकारा दिलाना होता है. कुछ समुदायों में तो इन विधवाओं को अनजान लोगों से सेक्स को भी मजबूर किया जाता है. कुछ जगह उन्हें अपने पति का शव साफ करके उस गंदे पानी को पीना होता है.
अफ्रीका का एक सच यह भी है, जननांगों की विकृति
जननांगों की विकृति की परंपरा
आधिकारिक रूप से लगी रोक के बावजूद कई अफ्रीकी देशों में महिलाओं के जननांगों को विकृत किया जाना बंद नहीं हुआ है. घुमक्कड़ जीवन जीने वाले केन्या के पोकोट कबीले में लड़कियों को आज भी ये दर्दनाक रस्म सहनी पड़ती है.
तस्वीर: Reuters/S. Modola
सबके लिए एक ही ब्लेड
केन्या की रिफ्ट घाटी में यह महिला अब तक चार लड़कियों का खतना कर चुकी है, वो भी एक ही रेजर से. पोकोट लोगों की मान्यता है कि खतने किसी लड़की के महिला बनने की प्रक्रिया का प्रतीक है. कई देशों में इस पर पाबंदी लगी होने के बावजूद आज भी कुछ ग्रामीण इलाकों में चलन जारी है.
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'समारोह' की तैयारी
खतने की रस्म वाली एक ठंडी सुबह को पोकोट महिलाएं और बच्चे आग के आस-पास इकट्ठे होकर गर्म होते हैं. जिन महिलाओं का खतना ना हो उनकी शादी होना मुश्किल हो जाता है. अगर कोई खतने के लिए मना करे तो उस पर भारी दबाव डाला जाता है और कई बार समुदाय से बाहर भी निकाल दिया जाता है.
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विरोध है नामुमकिन
खतने से पहले लड़कियों के कपड़े उतरवाए जाते हैं और उन्हें नहलाया जाता है. सबको पता होता है कि इस रस्म के बाद वे कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित रहेंगी. जैसे उनकी मांएं पूरे जीवन सिस्ट, संक्रमण और बच्चे को जन्म देने से जुड़ी तकलीफें झेलती रही हैं. खतने की परंपरा 28 अफ्रीकी देशों में जारी है. यूरोप में रह रहे इन इलाकों के आप्रवासियों में भी ये किया जाता है.
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डरावना इंतजार
पोकोट समुदाय की लड़कियां रिफ्ट वैली के बारिंगो काउंटी की झोपड़ी में बैठी उस दर्दनाक घड़ी के पल गिनती हैं. केन्या में इसे 2011 में बैन कर दिया गया था. यूनीसेफ बताता है कि देश की 15 से 49 साल के बीच की उम्र वाली करीब 27 फीसदी महिलाओं का खतना हो चुका है. आमतौर पर खतना बेहोशी की दवा दिए बिना ही किया जाता है. साफ औजारों का इस्तेमाल ना होने के कारण महिलाएं जीवन भर कई तरह के संक्रमण झेलती हैं.
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सूक्ष्म पर्यवेक्षण
लड़कियों को बिना चीखे चिल्लाए उनके जननांगों को विकृत किए जाने का दर्द सहना होता है. डब्ल्यूएचओ के अनुसार, इस प्रक्रिया के दौरान करीब 10 फीसदी लड़कियां तुरंत दम तोड़ देती हैं, जबकि दूसरी 25 फीसदी इससे पैदा हुई तकलीफों के कारण कुछ समय बाद मारी जाती है. मौत के असली आंकड़े इससे कहीं ज्यादा होने का अनुमान है.
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पत्थर पर खून
अलग अलग कबीलों में खतने के तरीकों में अंतर है. पोकोट समुदाय में योनि का मुंह सिल दिया जाता है. डब्ल्यूएचओ ने तीन तरह के तरीकों का उल्लेख किया है. पहले में क्लिटोरिस को निकाल दिया जाता है, दूसरे में लेबिया माइनोरा को भी काट देते हैं और तीसरे तरीके में लेबिया मेजोरा को भी निकाल दिया जाता है और केवल एक छेद छोड़कर बाकी घाव को सिल देते हैं.
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सफेद रंग की पुताई
पोकोट परंपरा में लड़की का शरीर सफेद रंग से रंगा जाता है. ये पहले से ही मान के चलते हैं कि इस प्रक्रिया के कारण लड़की की मौत होने की काफी संभावना है. कई देशों में इस बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं. 2014 में केन्या में एक स्पेशल पुलिस टुकड़ी बनाई गई और इन मामलों की रिपोर्ट देने के लिए हॉटलाइन भी बनी है.
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जीवन भर का सदमा
इस दर्दनाक प्रक्रिया के बाद सदमे से ग्रस्त लड़की को ले जाकर जानवर की खाल में लपेटा जाता है. पोकोट अब इस लड़की को शादी के लायक मानते हैं. ऐसी लड़की के मां बाप उसकी शादी के लिए ऊंची कीमत मांग सकते हैं. इनका मानना है कि इससे महिला ज्यादा साफ, ज्यादा बच्चे पैदा करने लायक और पति के लिए ज्यादा वफादार हो जाती है.
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मां से बेटी को?
कोई लड़की कभी वह दर्दनाक अनुभव नहीं भूल सकती. ये छोटी सी लड़की जो खुद खतने को मजबूर थी क्या अपनी बेटी को बचा पाएगी? कुछ देशों में बहुत छोटे बच्चों का खतना किया जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि कई जगहों पर इसे गैरकानूनी घोषित कर दिया गया है और जब एक छोटा बच्चा रोता है तो वह कम ध्यान खींचता है.
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इन सब रस्मों के नतीजे के तौर पर महिलाओं को मिलता है एचआईवी, एड्स और ऐसी ही भयानक बीमारियां. विडोज़ राइट्स इंटरनैशनल नाम की संस्था के लिए काम करने वाली कैरेन ब्रुअर कहती हैं, "विधवाएं इन रस्मों को मानें तो उनका जीवन अभिशप्त हो जाता है. और ना मानें तो भी उनका जीवन अभिशप्त हो जाता है. अगर आप इन अमानवीय और अपमानजनक रस्मों को मानती हैं तो आपको भयानक रोगों का खतरा घेर लेता है. और अगर आप नहीं मानती हैं तो अपने पति को अंतिम विदा न करने के आरोप लगाकर आपको अपमानित किया जाता है और घर से निकाल दिया जाता है."
हर 10 में से एक औरत विधवा
इन महिलाओं के लिए काम करने वाले स्वयंसेवी बताते हैं कि ज्यादा अफ्रीकी देशों के कानून विधवाओं को उनके पति की संपत्ति पर हक नहीं देते इसलिए उन्हें घरों से निकाल देना आसान होता है. बहुत से मामलों में तो महिलाओं को अपने अधिकारों की जानकारी ही नहीं होती. कैमरून की राजधानी याऊंदे में रहने वाली बेर्थे की कहानी कुछ ऐसी ही है. बीते साल उनके पति के अंतिम संस्कार के बाद जब उनके देवर और ननद ने उनसे घर के कागज मांगे तो उन्होंने बिना सोचे-समझे दे दिए. एक साल बाद उन्हें पता चला कि उनका घर तो बेच दिया गया है. बेर्थे कहती हैं, "जब मैंने शिकायत की धमकी दी तो उन्होंने मुझे मार-मार कर अधमार कर दिया. मैं बस एक गरीब औरत ही तो थी." वह आज भी लंगड़ाकर चलती हैं.
बूंद बूंद को तरसते लोग
बूंद बूंद को तरसते
न फसल है, न फल हैं, अफ्रीका के कई इलाकों में पानी के लिए हाहाकार मचा है. 1.4 करोड़ लोगों का जीवन पानी के बिना दांव पर है. इथियोपिया में हालात बदतर होते जा रहे हैं.
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वर्षा का इंतजार
कनिस्टर खाली पड़े हैं. कहीं भी ताजा पानी की एक बूंद तक नहीं है. इथियोपिया 30 साल बाद सबसे भयानक सूखे का सामना कर रहा है. ऐसे ही हालात अफ्रीका के कुछ और इलाकों में भी हैं.
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भारी नुकसान
इथियोपिया में ज्यादातर लोग कृषि पर निर्भर हैं. अफार इलाके के एक शख्स के मुताबिक, "आखिरी बारिश रमजान के दौरान हुई थी." जुलाई 2015 के बाद से वहां एक बूंद पानी नहीं बरसा है. खेत वीरान पड़े हैं. मवेशी मर रहे हैं.
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बच्चों पर खतरा
इस सूखे ने 1984 के अकाल की ताजा कर दी है. तब इथियोपिया में लाखों लोग मारे गए थे. देश एक बार अकाल का सामना कर रहा है. सरकार के मुताबिक चार लाख बच्चों को तुरंत मेडिकल सहायता चाहिए.
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अल नीनो का असर
जिम्बाब्वे में मक्के की फसल बर्बाद हो चुकी है. मक्के की फलियां झुलस चुकी हैं. इसके लिए जलवायु के अल नीनो पैटर्न को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. इसकी वजह से दुनिया भर में मौसम असामान्य हो गया है.
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दम तोड़ते मवेशी
ये प्यासी गाय पूरी तरह थक चुकी है. वह खड़ी भी नहीं हो पा रही है. जिम्बाब्वे के किसान किसी तरह उसे उठाकर घर तक ले जाना चाहते हैं. जानवर भी भूख प्यास से बेदम हैं.
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ये रेगिस्तान नहीं, नदी है
दक्षिण अफ्रीका में डरबन से कुछ दूर इस जगह पर हमेशा पानी रहता था. यहां ब्लैक उमफोल्जी नदी का बहाव बहुत तेज था. लेकिन अब लोग नदी की रेत को खोदकर नमी से बूंद बूंद पानी जमा कर रहे हैं.
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अकाल और महंगाई
अफ्रीकी देश मलावी में भी सूखे ने भयावह संकट खड़ा किया है. राजधानी लिलोंगवे में खाद्यान्न की कीमतें आसमान छू रही हैं. कीमतें इतनी ज्यादा हैं कि स्थानीय लोग बड़ी मुश्किल से थोड़ा बहुत खाना खरीद पा रहे हैं.
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वकील यवेलिन नतान्फा बांदजी कहती हैं कि विधवा महिलाएं मरने तक अपने पति की जमीन पर रह सकती हैं लेकिन परिणाम भुगतने के डर से बहुत सी महिलाएं कानूनी लड़ाई लड़ती ही नहीं हैं. और ये बेघर, गरीब महिलाएं बलात्कार और वेश्यावृत्ति के खतरों की जद में सबसे ज्यादा होती हैं. विधवा हो जाना दरअसल एक दुष्चक्र है जिसमें फंसने के बाद जीवन बस एक अभिशाप रह जाता है. लूंबा फाउंडेशन की 2015 की रिपोर्ट है कि दुनियाभर में 25.8 करोड़ विधवाएं हैं. इसमें से 10 फीसदी तो सब-सहारा अफ्रीका में ही रहती हैं. और अफ्रीका में हर 10 में से एक औरत विधवा है. इतनी बड़ी तादाद के बावजूद न इनके अधिकारों की परवाह की जा रही है न स्वास्थ्य की.