विनोदराज भारतीय सिनेमा के नए सुपरस्टार निर्देशक हैं. अपनी पहली ही फिल्म से उन्होंने दुनियाभर में तहलका मचा दिया है. लेकिन उनकी अपनी कहानी दर्द और संघर्ष से भरी हुई है.
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पीएस विनोदराज की बहुत कम बजट में बनी फिल्म ‘कूजंगल', जिसे अंग्रेजी में ‘पेबल्स' नाम दिया गया है, इस बार के ऑस्कर्स में भारत की आधिकारिक एंट्री है. 32 साल के विनोदराज के लिए अपनी जिंदगी की मुश्किलों से सामना करने का हौसला इस फिल्म के लिए प्रेरणा बना.
वह बताते हैं, "मेरे असल जिंदगी के अनुभवों ने मुझे मजबूत बनाया और इस फिल्म को बनाने में भी मदद की. वैसी जिंदगी ही फिल्म बन गई है." विनोदराज ने अपने परिवार को भीषण गरीबी के कुचक्र से निकाला. अपनी बहन को घरेलू हिंसा से बचाया और एक शराबी पिता की कठोरता को भी झेला. ये सारे अनुभव उनकी इस फिल्म में सिमट आए हैं जिसे आलोचकों ने ‘मास्टरपीस' और ‘सनसनीखेज शुरुआत' जैसे विशेषणों से नवाजा है.
खूब नाम कमा रही है फिल्म
फिल्म पहले ही बहुत नाम कमा चुकी है. इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल रॉटरडम में उसे टाइगर अवॉर्ड मिला. वहां निर्णायकमंडल ने कहा कि देखने में यह बहुत सादी लगती है लेकिन फिल्म शुद्ध सिनेमा का एक सबक है.
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विनोदराज तमिल सिनेमा के उन निर्देशकों में से एक हैं जो बेहद गरीब परिवार से आते हैं. इसका असर उनके सिनेमा पर भी दिखता है. अगर फिल्म को अंतरराष्ट्रीय महोत्सवों में जगह ना मिलती तो विनोद इसे उन गांवों में दिखाने वाले थे जहां इसकी शूटिंग हुई. फिल्म की पूरी शूटिंग में एक्टर और क्रू समेत कुल 40 लोगों ने ही काम किया.
इस फिल्म में विनोद ने एक बच्चे की कहानी सुनाई है जो गरीबी से उठकर फिल्मकार बनता है. विनोद कहते हैं कि उनकी जिंदगी में इतना कुछ हुआ जिसने इस फिल्म के लिए उन्हें तैयार किया. उन्होंने 9 साल की उम्र में अपने पिता की मौत के बाद मदुरै में फूल बेचकर अपने परिवार की आर्थिक जिम्मेदारी उठा ली थी.
एक अनुवादक की मदद से विनोदराज बताते हैं, "मैं अंग्रेजी नहीं बोलता. पढ़ाई भी नहीं की है. जिंदगी ने ही मुझे बहुत कुछ सिखाया है. वही सबक फिल्म में दिखे हैं. यह जिंदगी की कहानी है.”
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दुख में बीता बचपन
अपने बचपन में विनोदराज को शहर दर शहर भटकते हुए काम करना पड़ा. एक बार वह तिरुपुर में एक कपड़ा मिल में मजदूरी कर रहे थे जब उन्होंने बहुत से लोगों को बर्बाद होते देखा. वह बताते हैं, "निजी और आर्थिक परेशानियों के कारण इतने सारे लोगों की जिंदगियों को मैंने अपनी आंखों के सामने बर्बाद होते देखा. कुछ की शादी बहुत छोटी उम्र में हो गई थी. वह सारा संघर्ष हमेशा मेरे साथ रहा. वह वह संघर्ष ही दिखाना चाहता हूं.”
तस्वीरेंः किसिंग सीन के कारण बैन हुई फिल्म
किसिंग सीन के कारण बैन हुई फिल्म
एंजेलिना जोली, गेमा चान, सलमा हाएक और ब्रायन टाइरी हेनरी जैसे स्टार्स से सजी फिल्म ‘इटरनल्स’ को खाड़ी देशों में बैन कर दिया गया. वजह है एक किसिंग सीन.
तस्वीर: Marvel Studios/imago images
किसिंग सीन के कारण प्रतिबंध
ऑस्कर जीत चुकीं निर्देशक क्लोई जाओ की फिल्म इटरनल्स में एलजीबीटीक्यू किरदार दिखाए गए हैं. समलैंगि किरदार किस भी करते नजर आते हैं.
तस्वीर: Marvel Studios/imago images
सऊदी अरब, कतर, कुवैत
खाड़ी देशों में समलैंगिकता अपराध है, इसलिए यह सीन वहां बर्दाश्त नहीं किया गया. हालांकि सिनेमा के इतिहास में यह फिल्म मील का पत्थर है. इसमें किरदारों को निभाने वाले कलाकारों की खूब विविधता है. अनेक अश्वेत कलाकार हैं और पहली बार एक बहरी सुपरहीरो भी नजर आई.
तस्वीर: Marvel Studios/imago images
ऑनलाइन भी नफरत
फिल्म में अश्वेत समलैंगिक किरदार को किस करते देख काफी लोग नाराज हुए हैं. आईएमडीबी और अन्य वेबसाइटों को अपने रिव्यू सेक्शन को ही बंद करना पड़ा क्योंकि हजारों की तादाद में एक-एक स्टार दिया जा रहा था, जबकि फिल्म सिनेमा में आई भी नहीं थी.
तस्वीर: Marvel Studios/imago images
‘ज्यादा ही विविधता है’
आलोचक कहते हैं कि फिल्म में ज्यादा ही विविधता दिखाई गई है. न्यूज साइट इनसाइडर का कहना है कि कई बार पहले भी ऐसा हो चुका है जब विविधता भरी फिल्मों जैसे स्टार वॉर्स और कैप्टन मार्वल को जानबूझकर खराब रेटिंग दी गई.
तस्वीर: Walt Disney Co./Courtesy Everett Collection/picture alliance
कई अनूठे प्रयोग
फिल्म में कई अनूठे प्रयोग किए गए हैं जैसे कि एक नई साइन लैंग्वेज जिसे पहली बहरी कलाकार लॉरेन रिडलॉफ ने इस्तेमाल किया है. टेकरेडार को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि अपने किरदार के लिए उन्होंने यह नई संकेत भाषा तैयार की थी.
तस्वीर: Marvel Studios/imago images
पहला दक्षिण भारतीय सुपरहीरो
फिल्म में पाकिस्तानी एक्टर कुमैल नानजियानी ने सुपरहीरो किंगो का किरदार निभाया है, जो मार्वल फिल्म का पहला दक्षिण भारतीय सुपरहीरो है.
तस्वीर: Marvel Studios/imago images
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विनोदराज को लगता था कि शिक्षा उन्हें फिल्मकार बनने का उनका सपना पूरा करने में मदद कर सकती है. इसलिए वह दोबारा स्कूल भी गए लेकिन तब तक उनकी उम्र बहुत ज्यादा हो गई थी. फिर वह चेन्नई चले गए और एक डीवीडी स्टोर में काम करते हुए फिल्में देख-देख कर सिनेमा के बारे में सीखा. उसके बाद उन्होंने कई शॉर्ट फिल्म और नाटकों में असिस्टेंट का काम भी किया.
अपनी पहली फिल्म का आइडिया विनोदराज को तब आया जब उनकी बहन दो साल के अपने बच्चे को गोद में लिए रोती हुई अपनी ससुराल से लौटी. विनोद बताते हैं कि उन्हें उनके पति ने घर से निकाल दिया था और वह 13 किलोमीटर पैदल चलकर आई थी.
वह कहते हैं, "मुझे तब बहुत दुख हुआ था. और मैंने सोचा कि असल जिंदगी में इतना संर्ष क्यों है. मुझे अहसास हुआ कि मैं सिनेमा में हूं और मेरे पास यह जरिया है जहां मैं दर्द के बारे में बात कर सकता हूं.” विनोद सीधी-सच्ची फिल्में बनाना चाहते हैं.
‘पेबल्स' में पैदल चलते एक पिता-पुत्र की कहानी है जिसे बच्चे की आंखों से दिखाया गया है. विनोद कहते हैं, "इस फिल्म को टाइगर अवॉर्ड मिलना और भारत की तरफ से ऑस्कर्स के लिए भेजा जाना मुझे गर्व से भर देता है. इस फिल्म को दर्शकों के साथ देखकर बहुत हिम्मत मिली.”
वीके/एए (एएफपी)
जेम्स बॉन्ड की फिल्मों ने मशहूर कर दीं ये जगह
जेम्स बॉन्ड की फिल्मों में तीन चीजों पर सबकी नजर रहती है – कार, बॉन्ड गर्ल और लोकेशन. फिल्म जिस जगह शूट होती है, वो हिट हो जाती है. देखिए ये 10 जगह...
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ब्रेगेंत्स, ऑस्ट्रिया – क्वॉन्टम ऑफ सॉलेस
2008 की बॉन्ड फिल्म में दुनियाभर के अपराधियों की सीक्रेट मीटिंग इसी जगह हुई थी, ब्रेगेंत्स फेस्टिवल के दौरान.
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ओचो रियोस, जमैका – डॉ. नो
जमैका का यह बीच 1962 की फिल्म डॉ. नो में नजर आया था, जब स्विस अदाकारा उरसूला आंद्रियास ने जलवे बिखेरे थे.
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ऐंडरमाट, स्विट्जरलैंड – गोल्डफिंगर
बॉन्ड सीरीज की तीसरी फिल्म में जेम्स बॉन्ड यानी शॉन कॉनरी अपने एस्टन मार्टिन पर इन्हीं वादियों में विलन का पीछा करते नजर आए थे.
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शिलथॉर्न, स्विट्जरलैंड – ऑन हर मैजिस्टीज सीक्रेट सर्विस
1969 की बॉन्ड फिल्म में जॉर्ज लेजनबी 10 हजार फुट पर बने इस घूमते रेस्तरां से आल्प्स को निहार रहे थे. हालांकि फिल्म में यह रेस्तरां नहीं विलन के छिपने की जगह था.
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खाओ फिंग कान, थाईलैंड – द मैन विद द गोल्डन
अंडमान सागर में यह 20 मीटर ऊंची चट्टान 1974 की फिल्म में दिखी थी. रॉजर मूर ने इस चट्टान को मशहूर कर दिया है.
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एफिल टावर, फ्रांस – अ व्यू टू किल
अपनी आखरी बॉन्ड फिल्म में रॉजर मूर ग्रेस जोन्स का पीछा करते हुए एफिल टावर पर चढ़ गए थे. लेकिन जोन्स पैराशूट के सहारे फुर्र हो गईं.
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कोन्ट्रा डैम, स्विट्जरलैंड – गोल्डन आई
अब तक तो आप समझ ही गए होंगे कि स्विट्जरलैंड से बॉन्ड को कुछ खास लगाव है. 1995 में पियर्स ब्रॉसनन की पहली फिल्म इस बांध पर ही फिल्माई गई थी. यहीं से ब्रॉसनन बंजी जंप करते हैं.
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होटल अटलांटिक, हैमबर्ग जर्मनी – टुमॉरो नेवर डाईज
हैम्बर्ग का यह ऐतिहासिक होटल 1997 की फिल्म में नजर आया था, जब पियर्स ब्रॉसनन ने इश्क फरमाया था.
तस्वीर: Joko/imageBROKER/picture alliance
लोकेट, चेक रिपब्लिक – कसीनो रोयाल
2006 में डेनियल क्रेग ने पहली बार जब बॉन्ड का रोल निभाया तो उसकी ज्यादातर शूटिंग यहीं चेक रिपब्लिक में हुई थी.
तस्वीर: Jiri Hubatka/imageBROKER/picture alliance
पाइनवुड स्टूडियो, लंदन - स्काईफॉल
लंदन जेम्स बॉन्ड का घर है, एमआई 6 का मुख्यालय भी. तो जब सीरीज की 50वीं सालगिरह पर फिल्म आई, तब लंदन को खास तवज्जो मिली. ज्यादातर शूटिंग इस स्टूडियो में हुई थी.
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मातेरा, इटली – नो टाइम टु डाई
इस साल बॉन्ड की अगली फिल्म आने वाली है. इसमें आपको इटली का यह शहर नजर आएगा जहां बॉन्ड अपनी कार की चमक और रफ्तार दिखाएगा.
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