कनाडा में हुए आम चुनाव में भारतीय मूल के 17 नेताओं को जीत मिली है. इनमें न्यू डेमोक्रैटिक पार्टी के नेता जगमीत सिंह और मौजूदा रक्षा मंत्री हरजीत सिंह सज्जन शामिल हैं.
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जस्टिन ट्रूडो की अल्पतमत सरकार पिछले कार्यकाल में न्यू डेमोक्रैटिक पार्टी के भरोसे चल रही थी, जिसके नेता भारतीय मूल के जगमीत सिंह हैं. ट्रूडो एक बार फिर चुनाव जीत गए हैं लेकिन जगमीत सिंह का सहारा उन्हें फिर लेना पड़ सकता है. 49 वर्षीय ट्रूडो को 156 सीटों पर जीत मिली है या उनकी बढ़त बनी हुई है, जो बहुमत के लिए जरूरी 170 सीटों से कम है.
कनाडा की संसद में इस बार भारतीय मूल के 17 नेता पहुंच रहे हैं. इनमें जगमीत सिंह के अलावा मौजूदा सरकार में रक्षा मंत्री रहे हरजीत सिंह सज्जन भी शामिल हैं जो कनाडा में भारतीय मूल के पहले रक्षा मंत्री बने थे.
जगमीत सिंह की जीत
जस्टिन ट्रूडो को बधाई देते हुए जगमीत सिंह ने कहा कि वह आम आदमी के लिए लड़ाई जारी रखेंगे. उन्होंने कहा, "हम यह सुनिश्चित करने की लड़ाई जारी रखेंगे कि अमीर लोग अपना जायज योगदान दें. हम आपके लिए लड़ते रहेंगे. हम आपको देख चुके हैं. आपकी कहानियां सुन चुके हैं. हम आपके लिए लड़ेंगे."
जगमीत सिंह ने लगभग 40 फीसदी मतों के साथ चुनाव जीता है. मतगणना के बाद अपनी पार्टी के कार्यक्रम में उन्होंने कहा, "मैं सभी कनाडावासियों से कहना चाहता हूं कि आप न्यू डेमोक्रैट्स पर भरोसा कर सकते हैं कि वे आपके लिए संघर्ष करते रहेंगे. जैसे हम तब आपके लिए लड़े जब महामारी के दौरान लोग संघर्ष कर रहे थे और अपने भविष्य को लेकर चिंतित थे."
जगमीत सिंह ने 2107 में तब इतिहास रच दिया था जब उन्हें न्यू डेमोक्रैटिक पार्टी का नेता चुना गया था. ऐसा पहली बार हुआ था कि भारतीय मूल के किसी व्यक्ति को कनाडा की केंद्रीय पार्टी का नेतृत्व मिला.
तस्वीरेंः करतारपुर कॉरिडोर की खासियत
पाकिस्तान के करतारपुर कॉरिडोर की खासियत क्या है
सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव का जन्म मौजूदा पाकिस्तान में हुआ और वहीं उन्होंने आखिरी सांस भी ली. वह जहां पैदा हुए, उसे आज ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है और उन्होंने अपनी जिंदगी के आखिरी साल करतारपुर में बिताए.
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सिख धर्म के संस्थापक
माना जाता है कि गुरु नानक का जन्म 15 अप्रैल 1469 को तलवंडी नाम के एक कस्बे में हुआ. पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित यह कस्बा अब ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है. उनका निधन 22 सितंबर 1539 को करतारपुर में हुआ. उन्होंने अपने जीवन के लगभग आखिरी 18 साल यहीं पर बिताए.
दरबार साहिब करतारपुर को पाकिस्तान में सिखों के सबसे पवित्र स्थलों में गिना जाता है. ननकाना साहिब में जहां गुरु नानक पैदा हुए, वहां गुरुद्वारा जनम अस्थान है. इसके अलावा गुरुद्वारा पंजा साहिब और गुरुद्वारा सच्चा सौदा पाकिस्तान में स्थित सिखों के अन्य पवित्र स्थल हैं.
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दरबार साहिब करतार पुर
सिखों के पहले गुरु नानक देव जी ने करतारपुर गुरुद्वारे की बुनियाद 1504 में रखी. जहां रावी नदी पाकिस्तान में दाखिल होती है, उसके पास ही यह गुरुद्वारा स्थित है. उन्होंने अपने जीवन का आखिरी समय इस जगह पर बिताया, इसलिए सिखों के लिए यह स्थान बहुत महत्व रखता है.
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श्री करतारपुर साहिब
दुनिया भर के सिखों की ओर से लंबे समय से करतारपुर कॉरिडोर खोलने की मांग चली आ रही थी. इससे पहले वे भारतीय पंजाब से दूरबीनों की मदद से करतारपुर गुरुद्वारे के दर्शन करते थे. तस्वीर में आप इस गुरुद्वारे का एक मॉडल देख सकते हैं जिसे गुरदीप सिंह नाम के एक कलाकार ने बनाया है.
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करतारपुर कॉरीडोर
भारतीय पंजाब में स्थित डेरा बाबा नानक साहब को पाकिस्तान में पड़ने वाले दरबार साहिब से जोड़ने वाले कॉरिडोर को करतारपुर कॉरिडोर का नाम दिया गया है. यह लगभग पांच किलोमीटर लंबी सड़क है. सिख अनुयायी खास वीजा लेकर इसका इस्तेमाल कर सकते हैं.
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गुरु नानक की 550वीं जयंती
गुरु नानक देव की 550वीं जयंती पर दुनिया भर में कार्यक्रम हुए. इसी मौके पर करतारपुर कॉरिडोर को खोला गया. अनुमान है कि दुनिया भर के 50 हजार सिखों ने इस आयोजन में हिस्सा लिया.
तस्वीर: PID
इमरान खान का फैसला
इमरान खान ने प्रधानमंत्री पद संभालने के बाद ही करतारपुर कॉरिडोर को खोलने का फैसला किया था. इसे बनाने का काम नवंबर 2018 में शुरू हुआ. कॉरिडोर बनाने के अलावा यात्रियों के रुकने की व्यवस्था और गुरुद्वारे की साज सज्जा का काम रिकॉर्ड समय में पूरा किया गया.
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जगमीत सिंह वामपंथी रूझान वाले नेता हैं. अमेरिकी चुनाव के दौरान उन्होंने डेमोक्रैटिक पार्टी के नेता बर्नी सैंडर्स का समर्थन किया था. हालांकि बर्नी सैंडर्स को डेमोक्रैटिक पार्टी का नामांकन नहीं मिल पाया था.
जस्टिन ट्रूडो की मौजूदा सरकार में भारतीय मूल के तीन मंत्री थे और तीनों ही चुनाव जीतकर संसद लौट रहे हैं. हरजीत सिंह के अलावा सामाजिक कार्य मंत्री अनीता आनंद और युवा मामलों की मंत्री बार्डिश छग्गर भी लिबरल पार्टी से दोबारा सांसद बन गई हैं.
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लिबरल पार्टी में बड़ी हिस्सेदारी
रक्षा मंत्री हरजीत सिंह सज्जन वैंकुवर साउथ सीट से चुनाव जीते हैं. सीटीवी न्यूज के मुताबिक 49 प्रतिशत के करीब वोटों के साथ वह दोबारा इस सीट से चुने गए हैं, जो पिछली बार से भी बड़ी जीत है. सज्जन यहीं पले बढ़े हैं और इसे आज भी अपना घर कहते हैं.
चुनाव से पहले सज्जन उस वक्त विवाद में फंस गए थे जब विपक्ष ने कनाडा की फौजों को अफगानिस्तान भेजने को लेकर सरकार पर मामले को ठीक ढंग से न संभालने के आरोप लगाए थे. इसके बावजूद सज्जन पिछली बार से अधिक मतों से चुनाव जीते.
अपनी जीत के बाद उन्होंने कहा, "मेरा समुदाय मुझे जानता है. जब हम 10, 15, 20, 30 साल पुरानी बातें करते हैं तो बेशक हम कार्रवाई करेंगे. और अब जबकि ज्यादा संख्या में महिलाएं आगे आ रही हैं, आगे आने का भरोसा रखती हैं, तो हां हम कदम उठा रहे है."
केरल का एक कस्बा बना मिसाल
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लिबरल पार्टी की अनीता आनंद ने 46 प्रतिशत मतों के साथ ओकविल से चुनाव जीता जो वैक्सीन मंत्री के तौर पर उनकी बड़ी उपलब्धि है. पिछली बार वह पहली दफा संसद पहुंची थीं लेकिन उन्हें महामारी के दौरान अहम जिम्मेदारी मिली.
अपनी जीत पर 54 वर्षीय आनंद ने कहा, "मैं बेहद खुश हूं." अपनी टीम के लोगो का शुक्रिया अदा करते हुए उन्होंने कहा कि पांच हफ्ते तक जमकर मेहनत की गई.
चुनाव जीतने वाले भारतीय मूल के अन्य नेताओं में लिबरल पार्टी से कमल खेड़ा, रूबी सहोता, सोनिया सिद्धू, मनिंदर सिद्धू और सुख धालीवाल शामिल हैं. जॉर्ज चहल, आरिफ वीरानी, रणदीप सराय, अंजू ढिल्लों, चंद्र आर्य और पहली बार मैदान में उतरे इकविंदर गहीर भी लिबरल पार्टी से ही चुनाव जीते हैं.
कंजर्वेटिव पार्टी से टिम उप्पल और जसरास सिंह अपनी सीटें बचाने में कामयाब रहे. कनाडा में भारतीय मूल के लगभग 16 लाख लोग रहते हैं जो देश की आबादी का लगभग तीन फीसद है.
रिपोर्टः विवेक कुमार (रॉयटर्स)
तस्वीरेंः जर्मनी में पढ़ने की 10 वजह
जर्मनी में पढ़ने की 10 वजह
विदेश में पढ़ाई का विचार आने पर आप अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा या फिर ऑस्ट्रेलिया के बारे में सोचते होंगे ना? जर्मनी के बारे में सोचिए, क्योंकि यह एक बेहतर विकल्प है.
तस्वीर: Leibnitz Universität in Hannover
कर्ज मुक्त पढ़ाई
जर्मनी में अंतरराष्ट्रीय स्टूडेंट्स के लिए भी उतनी ही फीस है जितनी स्थानीय छात्रों के लिए है. यूरोप के अंग्रेजी भाषी देशों और अमेरिका के मुकाबले तो यह बहुत कम है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J.Woitas
उच्च गुणवत्ता
जर्मनी की किसी भी सरकारी यूनिवर्सिटी का स्तर दुनियाभर में अच्छा कहा जा सकता है. अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग में इसके विश्वविद्यालय बहुत अच्छा स्थान पाते हैं.
तस्वीर: DW/L. Sanders
वजीफे
अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा या ऑस्ट्रेलिया में जब पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति मिलती है तो वह कुल फीस का कुछ फीसदी होती है. ज्यादा से ज्यादा 80 प्रतिशत. जर्मनी में चूंकि फीस ज्यादा नहीं है तो छात्रवृत्ति मिलने पर पढ़ाई ही नहीं, रहने खाने का खर्च भी निकल आता है.
तस्वीर: Universität Heidelberg
अंग्रेजी में पढ़ाई
जर्मनी में एक हजार से ज्यादा ऐसे कोर्स हैं जो अंग्रेजी में होते हैं. अंडरग्रैजुएट और ग्रैजुएट लेवल के ये कोर्स जर्मन भाषा की बाधा नहीं मानते इसलिए विदेशी छात्रों को मुश्किल नहीं होती.
तस्वीर: Klaus Lemke/SSC
जर्मन की पढ़ाई
अगर आप ऐसा कोर्स करना चाहते हैं जो अंग्रेजी में उपलब्ध नहीं है, तब भी यूनिवर्सिटी की ओर से जर्मन कोर्स उपलब्ध होते हैं जिनसे पढ़ाई आसान हो जाती है. साथ ही 'कवियों और फिलॉस्फरों' की भाषा सीखने का मौका भी मिलता है.
तस्वीर: DW/K. Safronova
हेल्थ इंश्योरेंस
जर्मनी में स्वास्थ्य बीमा आवश्यक है. यहां 80 यूरो महीना देकर छात्र फुल हेल्थ कवर पा सकते हैं. अंग्रेजी देशों के मुकाबले यह कुछ भी नहीं है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/P. Zinken
सस्ता और अच्छा यातायात
जर्मनी का पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम बहुत अच्छा और सस्ता है. यहां आपको अपनी निजी कार की जरूरत कभी महसूस नहीं होगी. और यूरोप के बीच में रहने से आप बाकी यूरोपीय देशों में भी आसानी से जा सकते हैं.
तस्वीर: imago/HRSchulz
रहना-खाना
जर्मनी में भी रहना बहुत सस्ता नहीं है लेकिन यदि आप कम खर्च में रहना चाहते हैं तो आपको बहुत सारे सस्ते और अच्छे विकल्प मिल सकते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/H. Tittel
सोशल लाइफ
अंतरराष्ट्रीय स्टूडेंट्स का जर्मनी में लोग दिल से स्वागत करते हैं. यूनिवर्सिटी का माहौल युवाओं के लिए किसी मेले से कम नहीं होता. पढ़ाई के साथ साथ पार्टी और ढेर सारी गतिविधियों का केंद्र हैं विश्वविद्यालय.
तस्वीर: Imago/Horst Rudel
नौकरी के मौके
पोस्ट ग्रैजुएट लोगों के लिए जर्मनी में काम की कमी नहीं है, खासकर तकनीकी शिक्षा के बाद. जर्मनी कुशल विशेषज्ञों की कमी का सामना करने के लिए शिक्षा के बाद नौकरी की संभावना देता है.