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जब मेडिकल स्टोर बन गए हलवाई की दुकानें

२ अगस्त २०१९

एक समय ऐसा भी था जब देश के अमीर लोगों के पास भी थोड़ी-थोड़ी चीनी हुआ करती थी और वे इसका इस्तेमाल सिर्फ खास मौकों पर ही किया करते थे. यहां तक की हलवाई की दुकानों से पहले चीनी सिर्फ मेडिकल स्टोर पर मिलती थी.

Zuckerwürfel in einer Tasse
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Bildagentur-online

एक आम जर्मन साल में लगभग 30 किलो चीनी खा लेता है. कोई समय था जब खाने के लिए चीनी पास में होना पैसे और ताकत की निशानी माना जाता था. लेकिन आज ऐसा नहीं है. ज्यादा चीनी खाना इंसान को मोटा और बीमार बनाने लगा है.

जब तक यूरोप के व्यापारी चीनी को यहां नहीं लेकर आए थे, तब तक यहां मिठास के लिए क्या इस्तेमाल होता था? पुरातत्त्वविद कार्ल पाउजे कहते हैं,"करीब दो हजार साल पहले फल ही मीठा खाने का एकमात्र जरिया थे. रोमन लोगों ने जर्मनी में सबसे पहले फल उगाना शुरू किया. यहां सेब, नाशपाती से बेर और अंगूर तक लगाए जाने लगे. धीरे-धीरे फलों का जूस निकाला जाने लगा और इनके गूदे से जैली बनाना शुरू किया गया. इसको ज्यादा दिनों तक रखा जा सकता था और इसे मीठे के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा सकता था." कार्ल पाउजे स्वीट स्टफ: स्नैकिंग इन नॉएस नाम से जर्मनी के नॉएस शहर में एक प्रदर्शनी लगा रहे हैं.

गन्ने से बनने वाली चीनी यूरोप में मध्य पूर्व से आई थी. लेकिन इस चीनी को खरीदना यूरोप के लोगों के लिए मुश्किल था क्योंकि ये महंगी थी. मध्य पूर्व में गन्ने से चीनी बनाना मध्यकालीन युग में शुरू हुआ था. महंगाई की वजह से बड़े अमीर लोग भी इसे सिर्फ खास मौकों पर ही इस्तेमाल करते थे. एक प्रसिद्ध कैंडी बॉनबॉन का नाम भी ऐसे ही एक खास मौके पर पड़ा था. जब फ्रांस के राजपरिवार के एक बच्चे ने इस कैंडी को चखने के बाद बॉनबॉन कहा था. बॉन फ्रेंच भाषा का शब्द है जिसका मतलब है अच्छा.

तस्वीर: Elena Schweitzer - Fotolia.com

मीठे की क्रांति

18वीं शताब्दी में अंग्रेजों ने अपने उपनिवेशों में भारी मात्रा में गन्ना उगाना शुरू किया. पाउजे के मुताबिक फ्रांस ने नेपोलियन के नेतृत्व में ब्रिटेन को व्यापार करने से रोकने के लिए हमला कर दिया था. इसके चलते ही इस महाद्वीप पर चीनी का आयात रुक गया. नेपोलियन के मर जाने के बाद यह आयात फिर से शुरू हो गया और 19वीं शताब्दी के मध्य में चीनी जर्मनी पहुंच गई. अब यह सस्ती भी थी और आम लोगों के लिए उपलब्ध थी.

आज की तारीख में चीनी को सफेद जहर तक कहा जाता है. इसे कई बीमारियों का कारण बताया जाता है. सबसे आश्चर्य की बात यह है कि पुराने समय में यह उन जगहों पर पाई जाती थी जहां इसकी उम्मीद सबसे कम होनी चाहिए थी यानी की दवा की दुकानों पर. माना जाता था की चीनी में चोट ठीक करने की क्षमता थी. इसलिए यह दवा के रूप में इस्तेमाल होती थी. ईसा पूर्व पहली शताब्दी में यही माना जाता था. 12वीं शताब्दी में साइन कंफेक्शन नाम की एक दवाई चलती थी जिसमें 90 प्रतिशत चीनी होती थी.

500 साल पहले दवाइयों में चीनी का इस्तेमाल इन्हें संरक्षित करने और इनके कड़वे स्वाद को कम करने के लिए किया जाता था. इसका उपयोग ऊर्जा के एक स्रोत के रूप में भी किया जाता था. मीठी दवाइयां ज्यादा बिकती थीं. अपनी बिक्री बढ़ाने के चक्कर में केमिस्टों ने दवाई की जगह सिर्फ मीठा बेचना शुरू कर दिया था. इस तरह वे दुकानें मेडिकल स्टोर से हलवाई की दुकान बन गईं.

तस्वीर: picture-alliance/dpa/U. Zucchi

और फिर पाई बन गई केक

जैसे ही हलवाई की दुकान काम करने लगीं तो वहां अलग-अलग मिठाइयां बनने लगीं. इसी क्रम में केक धीरे-धीरे प्रसिद्ध होने लगा. अपने नरम तले, मीठी क्रीम और चेरी की वजह से ये जर्मनी में तेजी से प्रसिद्ध होने लगा. जर्मन केक ने 2015 में अपना 100वां जन्मदिन मनाया है लेकिन 16वीं शताब्दी में भी ऐसे बेकरी उत्पाद उपलब्ध थे. हालांकि तब का केक आज से बहुत अलग होता थी. आज के ब्लैक फॉरेस्ट केक से मिलता जुलता उस केक में कुछ नहीं हुआ करता था.

पाउजे कहते हैं कि उस जमाने में केक पेस्ट्री लोई से बनाए जाते थे और बेक करने के बाद उसमें मीठी चीजों भरी जाती थी. वे पाई का एक प्रकार थे. पाउजे ने 200 साल पुरानी केक रेसिपो से केक बनाने की कोशिश की. उसका नतीजा एक जैम या फलों से भरी हुई आइसिंग की गई केक जैसा था. यह केक स्वाद में भी शुष्क था क्योंकि पुराने समय में खाने की चीजों को ठंडा करने के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी. इसलिए क्रीम का इस्तेमाल नहीं होता था. इसका मतलब है कि ब्लैक फॉरेस्ट केक का अविष्कार तब हुआ होगा जब क्रीम को ठंडा रखने के उपाय हो गए थे.

तस्वीर: Imago/epd

लेकिन चीनी ने धीरे-धीरे अपनी इज्जत खो दी. जहां वह पहले एक स्टेटस सिंबल और लग्जरी की चीज हुआ करती थी, आज यह हर जगह प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है और इसे समस्याओं का कारण माना जाने लगा है. अच्छी बात यह है कि इस सब की चिंता ना करते हुए केक का एक बड़ा सा टुकड़ा खाइए और इन सब चिंताओं को भूल जाइए.

रिपोर्ट: एलिजाबेथ ग्रेनियर/आरएस

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