कैसा हो अगर आपके कपड़े ही आपके फोन को रिचार्ज कर दें. बैट्री उठाने का झंझट ही खत्म हो जाएगा ना. फैशन डिजायनर्स आपकी इसी समस्या का हल निकालने में लगे हैं और इसमें मदद कर रही हैं वेयरेबल मशीनें.
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1941 में जब जर्मनी के कोनराड सूजे ने बाइनरी सिस्टम पर काम करने वाला पहला कंप्यूटर जेड3 बनाया, तब यह कपड़ों की तीन आलमारियों जितना बड़ा था और केवल चार तरह की गणनाएं कर सकता था. आज ऐसे मिनी कंप्यूटर बन चुके हैं, जो कपड़ों तक में फिट किये जा रहे हैं. और भविष्य वेयरेबल डिवाइस यानी पहने जाने वाली मशीनों की ओर बढ़ रहा है. जैसे टेक फैशन डिजायनर लीना वासोंग ने एक ड्रेस बनाई है जिसमें कंप्यूटर छुपा है. वह कंप्यूटर एक एलईडी डिसप्ले को संचालित करता है और उसकी वजह से कपड़ा पहने लड़की की दिल की धड़कन के हिसाब से ड्रेस रंग बदलती है. सेंसर नब्ज के स्पंदन को रजिस्टर करते हैं. ड्रेस में सिला केबल उसे एक माइक्रो कंट्रोलर तक पहुंचाता है और अंत में वह डिसप्ले तक सिग्नल भेजता है. बर्लिन की लीना वासोंग बताती हैं कि हमारी मांसपेशियां स्वाभाविक रूप से सारा समय काम करती रहती हैं, लेकिन हममें से ज्यादातर नहीं सोचते कि वे किस तरह काम करते हैं. इंटेलिजेंट ड्रेस का आधार यही स्वाभाविकता है.
वक्त के साथ कैसे बदली बिकिनी, देखें
वक्त के साथ कैसे बदली बिकिनी
जब स्विमिंग के लिए बनी बिकिनी का आकार वक्त के साथ छोटा होता चला गया, तब एक बार फिर फैशन परिदृश्य में वन पीस स्विमसूटों की वापसी हुई है. जानिए कहां से आई बिकिनी और कैसे बदला इसका रूप.
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फिर लौटा फैशन
कहते हैं कि फैशन का भी चक्र होता है, जो कुछ समय बाद घूम कर फिर वहीं आता है. इस बार स्विमसूट के साथ कुछ ऐसा ही होता दिख रहा है. 2015 में बिकनी की जगह रंगीन वन पीस स्विमसूट का चलन लौटा है.
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शुरुआत
18वीं सदी में पहली बार बेदिंग सूट बने. पूरे तन को ढकने वाले ये बेदिंग सूट ऊन और कपास के बने होते थे. बेहद मोटे फैब्रिक के कारण इन्हें सूखने में बहुत लंबा वक्त लग जाता था.
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बदलाव
20वीं सदी की शुरुआत में जैसे जैसे टूरिज्म का विकास हुआ बेदिंग सूट में भी बदलाव आने लगे. अब ये ढीले ढाले नहीं रह गए थे और इनमें इलास्टिक का इस्तेमाल भी होने लगा था. 1910 की इस तस्वीर में उस समय महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए एक जैसे डिजाइन दिखते हैं.
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मॉडर्न
1920 के दशक में स्विमसूटों ने काफी मॉडर्न लुक ले लिया. बेल्ट, सुनहरे बटन और छोटे छोटे चमकदार सितारों के साथ महिलाओं के स्विमसूट काफी फैशनेबल और अलग दिखने लगे. लेकिन तब ये केवल छोटे साइज में ही उपलब्ध थे यानि मोटी तंदुरुस्त महिलाओं के लिए कोई विकल्प नहीं था.
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हॉलीवुड में
इसके बाद फिल्मों में स्विमसूट के चलन ने जोर पकड़ा. अमेरिकी तैराक एस्थर विलियम्स 1940 की ओलंपिक प्रतियोगिता की तैयारी कर रही थीं लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के चलते यह रद्द हो गयी. इसी दौरान हॉलीवुड एजेंटों का ध्यान उनकी ओर गया और आगे चलकर वह हॉलीवुड की सबसे रईस अभिनेत्रियों में से एक बनीं.
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फिर आईं मर्लिन मुनरो
1940 के दशक में मर्लिन मुनरो ने मशहूर पिरेली कैलंडर के लिए फोटोशूट किया. इसमें स्विमसूट वाली उनकी तस्वीरों की काफी चर्चा हुई पर साथ ही नग्न तस्वीरों के कारण उन्हें आलोचना भी झेलनी पड़ी. अभिनेत्री के तौर पर उनका करियर इसके बाद ही शुरू हुआ.
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अजीब अजीब पैटर्न
1960 के दशक में पॉप आर्ट अपनी जगह बना चुका था. इसके बीच अमूर्त और ज्यामितीय पैटर्न का रिवाज आया. फ्रांस के ऑन्द्रे कूरैज ने इस दौरान स्विमसूट पर कई रचनात्मक पैटर्न उकेरे. तस्वीर में बर्लिन में पेश हुए उनके स्विमसूट का नमूना देखा जा सकता है.
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स्टाइलिश टोपी
1960 के दशक में नए स्टाइल की टोपियां बाजार में दिखने लगीं. स्विमिंग के दौरान सर ढकने के लिए रबड़ से बनी टोपियां चल पड़ीं. इससे पहले तक बड़ी बड़ी हैट ही एकमात्र विकल्प था.
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नया दौर
अमेरिकी कार्यक्रम बेवॉच ने 90 के दशक में धमाल मचा दिया. फैशन के जानकार इसे स्विमसूट के इतिहास में एक निर्णायक मोड़ मानते हैं. बेहद कम कपड़ों से बने चटक लाल रंग के स्विमसूट के कट काफी गहरा बनाए गए. अभिनेत्री पामेला एंडरसन के लिए तो और भी कम कपड़े का इस्तेमाल हुआ.
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कितना कम?
स्विमसूट बनाने वाले डिजायनरों के लिए यह बड़ा सवाल है कि कितना कपड़ा लगाया जाए. 2011 के मायामी फैशन वीक के दौरान इस तरह के लो-कट स्विमसूट पेश किए गए. लेकिन वन पीस के साथ ही अब एक बार फिर कुछ ज्यादा फैब्रिक का चलन शुरू हुआ है.
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नीदरलैंड्स के बोर आकर्सडिक भी एक इंटेलिजेंट ड्रेस पर काम कर रहे हैं. उन्होंने एक हाईटेक ओवरऑल बनाया है. उसे पहनने वाला जीता-जागता वाईफाई हॉटस्पॉट बन जाता है. इसी तरह डिजायनर पाउलीने फॉन डोंगेन ने सोलर सेल वाली एक ड्रेस बनाई है. उसकी बिजली की मदद से स्मार्टफोन की बैट्री चार्ज की जा सकती है. इस फैशन लाइन का नाम है वीयरेबल सोलर. पाउलीने फॉन डोंगेन कहती हैं, “मैं समझती हूं कि बहुत से लोगों के लिए इस तरह का फैशन दूर का ढोल है. हमें उन्हें दिखाना होगा कि इसकी क्षमता क्या है और इसका उनके लिए क्या मायने हो सकते हैं. जब कंप्यूटर या सेलफोन बाजार में आया था तो बहुत से लोगों को पता नहीं था कि इसका उनकी जिंदगी में क्या अर्थ होगा. और अब तो हम उसके बिना रह ही नहीं सकते.“
डिजिटल इनोवेशन की एक्सपर्ट अग्निएश्का वालोर्स्का कहती हैं कि तकनीक हमारे जीवन का साथी बन चुकी है और हमें इसका अहसास तक नहीं है. इसमें उनके डिजायन का भी अहम रोल है. पिछले दशकों में कंप्यूटर न सिर्फ छोटे और आसान होते गए हैं, बल्कि रंगबिरंगे भी. अमेरिकी कंपनी एप्पल ने 90 के दशक में अपने चॉकलेटी केस के साथ नए मानक बनाए और कंप्यूटर को लाइफस्टायल प्रोडक्ट तथा स्टेटस सिंबल बना दिया. इसी तरह आईफोन और आईपैड के साथ एप्पल ने इंसान और मशीनों के बीच इंटरएक्शन में क्रांति ला दी. अब मशीनें इन्सान की इच्छाओं के आधार पर चलेंगी. वालोर्स्का बताती हैं, “फिलहाल हमें इन मशीनों के साथ पेश आना सीखना पड़ता है. हमारी आदत नहीं है कि हम कहीं टाइप करें, क्लिक करें. हमारी आदत है इशारे करना, बोलना, सुनना. और मैं समझती हूं कि बहुत कुछ इस दिशा में जाएगा. हम इशारे करेंगे और मशीनें समझ जाएंगी.”
खतरनाक है यह फैशन
करें इन फैशन आइटम की छुट्टी
नायलॉन की स्टॉकिंग्स करीब 75 साल से चलन में हैं. डीडब्ल्यू की केट म्यूजर की राय में ऐसी ही कई फैशन एक्सेसरी की छुट्टी करने का वक्त आ गया है.
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नायलॉन स्टॉकिंग्स
पतले, झिल्ली जैसे फैलने वाले लंबे मोजे या स्टॉकिंग्स पहनने का चलन पश्चिमी देशों में करीब 75 साल से चला आ रहा है. म्यूजर बताती हैं कि वैसे तो इन्हें पहनना कई बार बहुत आरामदायक नहीं होता लेकिन ये कॉर्सेट जैसी एक्सेसरीज से फिर भी बेहतर हैं.
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क्लच
एक कामकाजी महिला होने के नाते जर्मनी की चांसलर भी समझती हैं कि दिन भर साथ लेकर चलने वाले बैग में जरूरी चीजें रखने के लिए पर्याप्त जगह होना कितना जरूरी है. क्लच को एक बड़े बैग में बाकी चीजों, जैसे मोबाइल फोन, पानी की बोतल वगैरह के साथ रखा जा सकता है.
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बॉडी शर्ट
बटनबंद शर्ट किसी भी ऑफिस की वेशभूषा में शामिल होती है लेकिन इसके एक अवतार, बॉडी शर्ट को पहनना काफी परेशानी भरा हो जाता है. बच्चों की नैपी की तरह नीचे तक लगे बटन को बार बार खोलना पड़े तो काफी वक्त बर्बाद होता है. साधारण शर्ट पहनना कहीं आसान और प्रैक्टिकल है.
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ब्रा के 'अदृश्य’ फीते
पश्चिमी देशों में आमतौर पर महिलाओं के ब्रा के फीते दिखना कोई बड़ी बात नहीं मानी जाती. फिर भी ऑफिस या किसी बहुत फॉर्मल माहौल में इसे ढक कर रखना ही बेहतर माना जाता है. प्लास्टिक के अदृश्य से लगने वाले फीतों का फैशन नहीं रहा. म्यूजर का मानना है कि इन अदृश्य फीतों से बेहतर होगा यदि महिलाएं फीतारहित ब्रा पहनें.
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स्किनी जींस
बेलबॉटम और पलाजो पैंट्स की वापसी एक राहत देने वाला चलन है. स्किनी जींस केवल दुबली पतली मॉडल सरीखे शरीर वाली महिलाओं पर ही जंचती है. कई सर्वे दिखाते हैं कि पुरुष भी बहुत ज्यादा पतली लड़कियों की बजाए ज्यादा स्वस्थ दिखने वाली महिलाओं को अधिक आकर्षक मानते हैं.
तस्वीर: Colourbox/Sigrid Olsson
नकली लंबी पलकें
नाखून से लेकर बालों के रंग तक, महिलाओं के फैशन में सब कुछ रंगा जा सकता है. नकली नाखून लगाने पर कीबोर्ड या फोन में टाइप करना जंजाल हो जाता है, तो वहीं नकली आईलैश लगाने की अपनी चुनौतियां हैं. इन्हें पलकों पर चिपकाने वाला गोंद आंखों में बह कर परेशान कर सकता है, जिससे दूर रहना ही बेहतर है.
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शरीर और तकनीक एक दूसरे में घुलमिल रहे हैं. भविष्य वीयरेबल्स का है. स्मार्टवॉच या फिटनेसट्रैकर दिल की धड़कनों को रिकॉर्ड करते हैं, चले गए कदमों की गिनती करते हैं और इस्तेमाल हुई कैलोरी की गणना करते हैं. स्मार्टफोन ऐप की मदद से इस डाटा का इवैल्यूशन हो सकता है. यहां तक कि नींद पर भी नजर रखी जा सकती है. डिजायनर लीना वासोंग के लिए यह शुरुआत भर है. लीना वासोंग कहती हैं, “बहुत ही अच्छा होगा कि वीयरेबल्स और फैशन तकनीक भविष्य में इस तरह बदले कि कपड़े हमारे शरीर की जरूरतों के अनुरूप बन जाएं. तब सर्दियों में हम ठिठुरेंगे नहीं. हमारे कपड़े को पता चल जाए कि ठंड हो रही है और वह हीटर ऑन कर देगा.“
जिंदगी बदल रही है. हम मशीनों को बदल रहे हैं और मशीनें हमें बदल रही हैं.