इटली के रोम में हुआ जी20 सम्मेलन कोई विशेष प्रगतिशील कदम साबित नहीं हो पाया क्योंकि दुनिया के सबसे ताकतवर 20 देश कोई बड़ा वादा नहीं कर पाए. अब ये नेता ग्लासगो में COP26 सम्मलेन के लिए जमा हो चुके हैं.
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रोम में जी20 नेताओं ने इतना तो कहा कि वे पृथ्वी के तापमान को सदी के अंत तक 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा न बढ़ने देने के लक्ष्य पर टिके रहेंगे. लेकिन कार्बन उत्सर्जन रोकने की कोई समयसीमा तय नहीं की गई है.
जी20 नेताओं ने यह स्वीकार किया कि सम्मेलन के दौरान कोई खास प्रगति नहीं हो पाई. सम्मेलन के बाद आयोजित एक प्रेस वार्ता में इटली के प्रधानमंत्री और जी20 के मौजूदा अध्यक्ष मारियो द्रागी ने जलवायु संकट के बारे में कहा कि बहुपक्षीय कोशिशों के बिना हम कुछ भी हासिल नहीं कर पाएंगे.
जलवायु परिवर्तन का चाय के बागानों पर असर
ताइवान में चाय के बागानों पर जलवायु परिवर्तन के गंभीर असर होने का संदेह है. इस साल मौसम के असर से चाय की लगभग आधी फसल बर्बाद हो गई. क्या उपाय कर सकते हैं चाय उगाने वाले?
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जलवायु के आगे बेबस
ताइवान में चाय के बागान के मालिक चिएन शुन-यीह इस साल की फसल से संतुष्ट नहीं हैं. अतिविषम मौसमी हालात ने उनकी आधी फसल बर्बाद कर दी है. वो कहते हैं, "आप मौसम को नियंत्रित कर ही नहीं सकते, भले ही आप चाय ही क्यों ना उगाते हों." लेकिन वो उम्मीद कर रहे हैं कि खुद बनाई हुई पानी टंकी जैसे उपायों की मदद से वो सूखे से निपटने के विकल्प निकाल पाएंगे.
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ताइवान की चाय
मेशान के आस पास के पहाड़ों में 19वीं शताब्दी से चाय उगाई जा रही है. शुन-यीह ने तीन साल पहले अपने पिता के देहांत के बाद बागान का कार्यभार संभाला था. तब से काफी कुछ बदल गया है. अस्थिर मौसमी हालात के बावजूद अच्छी फसल सुनिश्चित करने के लिए अलग अलग तरीके ढूंढना और जरूरी होता जा रहा है.
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श्रमिकों की घटती आय
बागानों में चाय की पत्तियां चुनने वाले भी जलवायु परिवर्तन से सीधा प्रभावित हो रहे हैं, क्योंकि उनकी कमाई एक किलो चाय के दाम के आधार पर निर्धारित होती है. वो कहते हैं, "कम फसल, कम कमाई." आजकल चाय की पत्तियों को उगने में ज्यादा समय लगता है, इसलिए श्रमिकों को हर मौसम में कई बार बागानों में जाना पड़ता है.
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पानी के पंप से मिल सकती है मदद
शुन-यीह बिना थके हमेशा स्थिति में सुधार लाने के तरीके खोजते रहते हैं. पानी की टंकी में लगे हुए एक पाइप की मदद से वो पंप का इस्तेमाल कर दूर से भी टंकी में पानी भर सकते हैं. इससे उन्हें सूखे के बावजूद बागानों की सिंचाई करने की सुविधा मिलती है.
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नई चुनौतियां
जलवायु से जुड़ी चुनौतियां दूसरी नई चुनौतियां लाती हैं. कीड़े एक बड़ी समस्या हैं क्योंकि सूखे की वजह से वो आसानी से पौधों पर हमला कर सकते हैं. सरकारी शोधकर्ता लिन शियो-रुई कहती हैं, "कीड़ों को सूखा और गर्मी बहुत पसंद है." वो बताती हैं कि कीड़े पहले से कमजोर पौधों पर हमला करते हैं, जिसकी वजह से "चाय के संवेदनशील पौधे भी मर सकते हैं."
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जलवायु से संबंध है भी या नहीं?
शुन-यीह गर्व से पर्यटकों को अपने बागान दिखाते हैं और बार बार कहते हैं कि फसल बदलते मौसमी हालात पर बहुत निर्भर है. लेकिन ताइवान के चाय के बागानों में जो हो रहा है उसके लिए जलवायु परिवर्तन सीधे तौर पर जिम्मेदार है या नहीं इसे अभी तक निसंदेह रूप से साबित नहीं किया गया है.
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चाय की फसल
ताजा चुनी हुई चाय की पत्तियों को शुन-यीह और उनकी टीम ताइवान की कड़ी धुप में सुखाते हैं. जहां संभव हो वो खुद भी मदद करते हैं. पत्तियों के सूखने के बाद अगला कदम होता है किण्वन (फर्मेंटेशन).
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रंग सही होना चाहिए
किण्वन कब तक करना है उसकी अवधि बेहद जरूरी है. चाय की पत्तियों का रंग इस बात का संकेत देता है कि स्वाद सही है या नहीं. इसके बाद चाय को तैयार करने के और भी कदम हैं.
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खुशबू से पहचान
एक तजुर्बेकार चाय उगाने वाला सूंघ कर बता सकता है कि उसकी चाय तैयार है या नहीं. हालांकि इसके पीछे एक लंबी और जटिल प्रक्रिया है, शुन-यीह और उनकी टीम को उम्मीद है कि यह परंपरा बदलते मौसम के बावजूद चलती रहेगी. (जूली एच.)
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यूएन महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने जी20 सम्मेलन में कोई ठोस कदम उठाने पर सहमति ना बनने पर निराशा जाहिर की. उन्होंने कहा, "यद्यपि मैं इस बात का स्वागत करता हूं कि जी20 ने वैश्विक हल खोजे जाने को लेकर अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है. लेकिन मैं रोम से अधूरी इच्छाओं के साथ जा रहा हूं. लेकिन, कम से कम वे दफन तो नहीं हुई हैं.”
कोयले की कालिख पोंछने पर कुछ नहीं
ट्विटर पर अपनी टिप्पणी में गुटेरेश ने COP26 सम्मेलन से उम्मीद जताई. उन्होंने लिखा, "अब ग्लासगो की ओर. 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य जिंदा रखने के लिए और वित्त उपलब्ध कराने व लोगों और ग्रह के लिए बदलाव लाने के वादे निभाने के लिए.”
बयान के मुताबिक जी20 देशों के नेता कोयले से बिजली बनाने को खत्म करने के बारे में किसी तरह की तसल्ली नहीं दे सके. बयान में कहा गया, "हम नए कोयला बिजली संयंत्र बनाने से रोकने की भरपूर कोशिश करेंगे लेकिन उसके लिए देश के राष्ट्रीय हालात के मद्देनजर फैसले लिए जाएंगे और उसी हिसाब से कोयले से दूर जाने के लिए और पेरिस समझौते के लक्ष्य हासिल करने के बारे में निर्णय होंगे.”
जी20 का यह बयान लक्ष्य हासिल करने की दिशा में बड़ी बाधा है क्योंकि भारत जैसे कई देश कह चुके हैं कि वे कोयले का इस्तेमाल बंद नहीं करेंगे. भारत ने तो कार्बन उत्सर्जन रोकने के लिए लक्ष्य तय करने तक से इनकार कर दिया है.
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सब सहमत तो हुए
जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल ने इस बात पर खुशी जाहिर की है कि पेरिस समझौते से डिगा नहीं जाएगा. मैर्केल के अलावा अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी रोम में बैठक को लेकर सकारात्मक रुख अपनाया. उन्होंने कहा कि दुनिया की सबसे मजबूत 20 अर्थव्यवस्थाओं का यह कहना है कि पेरिस समझौते के 1.5 डिग्री सेल्सिय के लक्ष्य पर वे सहमत हैं, एक "बहुत बहुत अच्छा नतीजा है” और जी20 नेताओं ने ग्लासगो सम्मेलन से पहले एक अच्छा संकेत दिया है.
10 आपदाएं जो जलवायु परिवर्तन के कारण आईं
10 आपदाएं जो जलवायु परिवर्तन की वजह से आईं
आग हो या बाढ़, शीत लहर हो या टिड्डियों का हमला, विशेषज्ञों का कहना है कि मानव-निर्मित जलवायु परिवर्तन दुनिया के मौसम पर कहर बरपा रहा है. देखिए पिछले दो सालों में कैसी कैसी आपदाएं आईं.
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जंगली आग
इसी साल गर्मियों में ग्रीस में गर्मी की ऐसी लहर देखी गई जैसी पहले कभी नहीं आई. उसकी वजह से घातक जंगली आग फैल गई जिसने करीब 2,50,000 एकड़ जंगलों को जला कर राख कर दिया. अल्जीरिया और तुर्की में तो आग से करीब 80 लोग मारे गए. इटली और स्पेन में भी आग का प्रकोप देखा गया.
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रिकॉर्ड-तोड़ गर्मी
जून में पश्चिमी कनाडा और उत्तर पश्चिमी अमेरिका में अभूतपूर्व गर्मी देखी गई. ब्रिटिश कोलंबिया के लिट्टन शहर में पारा 49.6 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया जो कि एक राष्ट्रीय रिकॉर्ड था. वर्ल्ड वेदर एट्रीब्यूशन (डब्ल्यूडब्ल्यूए) विज्ञान संघ का कहना था कि इस तरह की रिकॉर्ड-तोड़ गर्मी मानव-निर्मित जलवायु परिवर्तन के बिना "वास्तव में असंभव" थी.
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घातक बाढ़
जुलाई में जर्मनी में भारी बारिश के बाद आई बाढ़ में 165 लोग मारे गए. स्विट्जरलैंड, लक्जमबर्ग, नीदरलैंड, ऑस्ट्रिया और बेल्जियम में भी बाढ़ का प्रकोप रहा और 31 लोग मारे गए. डब्ल्यूडब्ल्यूए ने कहा कि धरती के लगातार गर्म होने की वजह से इस तरह की भीषण बारिश की संभावना बढ़ जाती है.
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चीन में तबाही
जुलाई में ही चीन में भी बाढ़ की तबाही देखी गई. केंद्रीय शहर जेनजाउ में एक साल के बराबर की बारिश बस तीन दिनों में हो जाने के बाद ऐसी बाढ़ आई कि उसमें 300 से भी ज्यादा लोग मारे गए. कई लोग तो सुरंगों और सबवे ट्रेनों में अचानक बढ़े पानी में डूब कर ही मर गए.
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ऑस्ट्रेलिया में भी बाढ़
मार्च में पूर्वी ऑस्ट्रेलिया में भारी बारिश के बाद ऐसी बाढ़ आई जो दशकों में नहीं देखी गई थी. कई दिनों तक लगातार हुई बारिश की वजह से देश की नदियों में पानी का स्तर 30 सालों में सबसे ऊंचे स्थान पर पहुंच गया. हजारों लोगों को बाढ़ ग्रस्त इलाकों से दूर भागना पड़ा.
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फ्रांस में शीत लहर
बसंत में फ्रांस में आई शीत लहर ने देश के लगभग एक तिहाई अंगूर के बागीचों को नष्ट कर दिया, जिनसे करीब 2.3 अरब डॉलर का नुकसान हुआ. डब्ल्यूडब्ल्यूए के मुताबिक जलवायु परिवर्तन ने इस ऐतिहासिक ठंड की संभावना को 70 प्रतिशत बढ़ा दिया.
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अमेरिका में तूफान
अगस्त में इदा तूफान ने उत्तरपूर्वी अमेरिका में भारी तबाही फैलाई. कम से कम 100 लोग मारे गए और करीब 100 अरब डॉलर का नुकसान हुआ. अमेरिका के छह सबसे ज्यादा नुकसानदायक तूफानों में से चार पिछले पांच सालों में ही आए हैं.
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टिड्डियों का हमला
जनवरी 2020 में पूर्वी अफ्रीका में अरबों टिड्डियों ने इतनी फसलें तबाह कीं कि इलाके में खाद्य संकट का खतरा पैदा हो गया. विशेषज्ञों का कहना है कि इतनी बड़ी संख्या में टिड्डियों के जन्म के पीछे भी जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाली चरम मौसम की घटनाएं ही हैं.
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अफ्रीका में बाढ़
अक्टूबर 2019 में भारी बारिश की वजह से सोमालिया में हजारों लोग विस्थापित हो गए, दक्षिणी सूडान में पूरे के पूरे शहर जलमग्न हो गए और केन्या, इथियोपिया और तंजानिया में बाढ़ और भूस्खलन में दर्जनों लोग मारे गए.
तस्वीर: Reuters/A. Campeanu
अमेरिका में सूखा
अमेरिका के पश्चिमी हिस्सों में आए 500 साल में सबसे बुरे सूखे का प्रकोप जारी है. 'साइंस' पत्रिका में छपे एक अध्ययन के मुताबिक ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से सूख के ये हालात दशकों तक जारी रह सकते हैं. -सीके/एए (एएफपी)
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डॉयचे वेले संवाददाता आलेग्जांडर फोन नामेन ने कहा कि मैर्केल इस बात से खुश हैं कि सभी नेताओं ने साझा बयान पर दस्तखत किएग. नामेन ने बताया, "हमें इस बात को ध्यान में रखना होगा कि पिछले जी20 सम्मेलन में साझा बयान पर 19 सदस्यों ने ही दस्तखत किए थे.” अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने इस बयान पर दस्तखत करने से इनकार कर दिया था.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि जी20 के नेताओं ने जलवायु परिवर्तन पर ठोस प्रगति की है. हालांकि उन्होंने रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जीन पिंग की गैरहाजरी पर अफसोस जताया. उन्होंने कहा कि यह निराशाजनक है कि रूस और चीन प्रतिबद्धताएं दिखाने नहीं आए.