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जी20 देशों का कार्बन उत्सर्जन बढ़ा

५ सितम्बर २०२३

पर्यावरण संरक्षण के तमाम कसमों-वादों के बावजूद जी20 देशों में कार्बन उत्सर्जन का स्तर बढ़ता ही जा रहा है. हरित ऊर्जा अपनाने की कोशिशें जारी रहने के बावजूद इस गुट का हाल उत्साहजनक नहीं कहा जा सकता.

यूके में एक रिफाइनरी
दुनिया भर के कार्बन उत्सर्जन का 80 फीसदी जी20 देशों से होता हैतस्वीर: K. Fitzmaurice-Brown/blickwinkel/picture alliance

दुनिया भर के कार्बन उत्सर्जन का 80 फीसदी जी20 देशों से होता है जिनके नेताओं की अहम बैठक इस सप्ताह के अंत में दिल्ली में होने वाली है. इससे पहले जुलाई में हुई बातचीत के दौरान 2025 तक उत्सर्जन कम करने या अक्षय ऊर्जा के इस्तेमाल को तेजी से बढ़ाने पर कोई सहमति नहीं बन पाई. 2015 से 2022 के दौरान जी20 देशों में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन नौ फीसदी बढ़ गया. यह रिपोर्ट ऊर्जा मामलों पर काम करने वाले एक थिंकटैंक एंबर ने प्रकाशित की है.

जी20 देशों में 2030 तक अक्षय ऊर्जा को तीन गुना करने पर सहमति बनाने पर जोर दिया जा रहा है तस्वीर: Ajit Solanki/AP Photo/picture alliance

किसका उत्सर्जन ज्यादा

इस गुट के सदस्य देशों में से 12 देश ऐसे हैं जो अपना प्रति व्यक्ति उत्सर्जन कम करने में सफल रहे. इनमें ब्रिटेन, जर्मनी और अमेरिका शामिल हैं. हालांकि दूसरे देश ऐसा कर पाने में विफल रहे जिनमें इस बार जी20 की मेजबानी कर रहे भारत समेत इंडोनेशिया और चीन भी हैं. इन देशों का कार्बन उत्सर्जन कम होने के बजाए बढ़ा है. इंडोनेशिया को पिछले साल कोयले की जगह दूसरे ईंधन इस्तेमाल करने के लिए अमीर देशों से लाखों डॉलर की मदद भी मिली थी लेकिन उसका प्रति व्यक्ति उत्सर्जन 2015 के मुकाबले 56 फीसदी बढ़ा है. जी20 देशों में 2030 तक अक्षय ऊर्जा को तीन गुना करने पर सहमति बनाने पर जोर दिया जा रहा है ताकि कोयला आधारित ऊर्जा का इस्तेमाल बंद किया जा सके.

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किसकी है जिम्मेदारी

एंबर के ग्लोबल इनसाइट लीड डेव जोंस कहते हैं, "चीन और भारत को अक्सर दुनिया के सबसे बड़े प्रदूषक देश के तौर पर बदनाम होते हैं लेकिन जब आप जनसंख्या की ओर ध्यान देते हैं तो पाएंगे कि 2022 में दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया ने दुनिया में सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाया." उत्सर्जन में बढ़ोत्तरी उन चेतावनियों के बावजूद हो रही है जिनमें लगातार कहा जा रहा है कि धरती को रहने लायक बनाए रखने के लिए जरूरी है कि जीवाश्म ईंधनकी वजह से होने वाले उत्सर्जन को कम किया जाए.

तस्वीर: Sri Loganathan/ZUMAPRESS/picture alliance

इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) के मुताबिक कोयले से चलने वाले ऊर्जा प्लांट जो उत्सर्जन को काबू में रखने वाली तकनीक का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं, उन्हें अगले आठ सालों के अंदर 70-90 फीसदी तक कम करने की जरूरत है. लेकिन एंबर का कहना है कि जी20 देशों में कोयले से छुटकारा पाने की रणनीति बनना अभी बाकी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि "पवन और सौर ऊर्जा के इस्तेमाल से प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन कम करने में मदद मिल रही है लेकिन यह बिजली की तेजी से बढ़ती मांग के हिसाब से नहीं हो रहा है."

एसबी/ओएसजे (एएफपी)

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