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जी7 के आयोजन वाली जगह स्थानीय लोग मुश्किल में

२६ जून २०२२

जर्मनी की जिस जगह जी7 सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है, वह बहुत खूबसूरत और पर्यटकों की पसंद है. लेकिन, इस आयोजन ने स्थानीय लोगों को मुश्किल में डाल दिया है.

G7-Gipfel in Elmau -  Eine Region im Ausnahmezustand
जी7 आयोजन से स्थानीय व्यापारी इतना नाराज हैं कि उन्होंने दुकानों पर 'फालतू में शुक्रिया' लिख दिया.तस्वीर: Sabine Kinkartz/DW

जर्मनी में 48वां जी7 सम्मेलन शुरू हो चुका है. तीन दिनों का यह आयोजन बवेरिया के श्लॉस एल्माउ में आयोजित हो रहा है. इसमें जी7 सदस्य देशों के प्रमुखों के अलावा कुछ अन्य देशों के शीर्ष नेता भी शामिल हो रहे हैं. आल्प्स की पहाड़ियों के नजदीक आयोजन की यह जगह खूबसूरत भी है और शांति-सुकून की तलाश में आने वाले पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र भी. लेकिन, जी7 आयोजन ने यहां के निवासियों और कारोबारियों के रंग में भंग जरूर डाल दिया है.

आयोजन वाले कस्बे गार्मिष पारटेनकिर्शेन में फ्रांत्स काएज़र चॉकलेट का काम करते हैं. उनकी दुकान में आपको हर तरफ चॉकलेट ही चॉकलेट नजर आएंगी. बड़ी-बड़ी प्लेटों में तमाम किस्म की चॉकलेट दिखाने के लिए रखी गई हैं. क्रेनबेरी वाइट चॉकलेट, मूंगफली के दानों और दूध वाली चॉकलेट के साथ-साथ लौंग, इलाइची और कालीमिर्च वाली डार्क चॉकलेट. लेकिन काएज़र कहते हैं कि पिछले कई दिनों से कोई ग्राहक उनके पास नहीं आ रहा है. उनका बड़ा नुकसान हो रहा है.

काएजर कहते हैं कि पिछले कुछ हफ्तों में उन्हें बहुत नुकसान हुआ.तस्वीर: Sabine Kinkartz/DW

पर्यटकों की जगह वर्दी वाले लोग

गार्मिष पारटेनकिर्शे पर्यटकों की प्रमुख पसंद है. सर्दियों में यहां स्कीइंग के शौकीन आते हैं, तो गर्मियों में हाइकिंग करने वालों की आमद रहती है. काएज़र बताते हैं, "वैसे तो यहां हमेशा पर्यटकों की बुकिंग रहती है, लेकिन पिछले तीन हफ्तों से पुलिसकर्मी और सुरक्षाकर्मी जी7 आयोजन से जुड़ी तैयारियां कर रहे हैं. अब जाहिर है कि वे न तो हमारा सामान खरीदते हैं और न हमारे साथ खाते हैं, क्योंकि वे तो किसी और मकसद से यहां आए हुए हैं."

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यह सिर्फ काएज़र की ही समस्या नहीं है. वह बताते हैं, "कल रात मैं खाना खाने के लिए बाहर गया, तो देखा कि रेस्तरां में सिर्फ तीन लोग बैठे हैं, जबकि आमतौर पर साल के इस समय तो यहां ग्राहकों की भीड़ लगी रहती है."

आधिकारिक आंकड़ों की मानें, तो आयोजन में करीब 18 हजार पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है.तस्वीर: Sven Hoppe/dpa/picture alliance

स्कूल भी कर दिए गए हैं बंद

जी7 आयोजन में सुरक्षा मुहैया कराने के लिए गार्मिष पारटेनकिर्शेन और एल्माउ में कम से कम 18 हजार पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं. यहां पुलिस की कारों की कतारें लगी हैं और हर थोड़े समय के बाद हेलिकॉप्टरों की गड़गड़ाहट सुनाई देती है.

आयोजन में हिस्सा ले रहे जी7 राष्ट्र और सरकार प्रमुख श्लॉस एल्माउ में हैं, जो एक लग्जरी स्पा रिट्रीट है. वहीं गार्मिष पारटेनकिर्शेन में मीडिया सेंटर बनाया गया है, जहां आयोजन को कवर करने आए तीन हजार से ज्यादा पत्रकारों ने डेरा डाला हुआ है. रास्ते के सैकड़ों मैनहोल को सफेद स्टिकरों से सील कर दिया गया है. सड़कों से कूड़ेदार हटा लिए गए हैं. स्कूल बंद हैं और छात्रों को ऑनलाइन क्लास लेनी पड़ रही हैं.

इस आयोजन की सुरक्षा पर कुल 1.60 करोड़ यूरो का खर्च आया है.तस्वीर: Sven Hoppe/dpa/picture alliance

सुरक्षा के ऐसे इंतजाम

जी7 के आयोजन वाली जगह की ओर जाने वाली सभी सड़कों पर पुलिस ने 16 किलोमीटर के दायरे में नाकेबंदी की हुई है. वाहनों से आ रहे लोगों को रोककर उनकी जानकारी ली जा रही है. इसका एक मकसद यह भी है कि आयोजन में व्यवधान पैदा करने वाला या हिंसक रूप से प्रदर्शन करने वाला कोई शख्स गार्मिष पारटेनकिर्शेन न पहुंच जाए.

तातियाना सूडिंग अपने दोस्त क्रिस्टोफर ओक के साथ गार्मिष पारटेनकिर्शेन के बिल्कुल छोर पर घास के एक मैदान में बनाए गए प्रदर्शन स्थल में अपना कैंप लगा रही हैं. वह बताती हैं, "इतनी नाकेबंदी की वजह से कई प्रदर्शनकारी आए ही नहीं, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि उनकी तलाशी ली जाए. उन्हें प्रदर्शन का दमन किए जाने का भी डर था." यहां बनाए गए कैंप में प्रशासन ने 750 प्रदर्शनकारियों को आने की इजाजत दी है.

तातियाना और क्रिस्टोफर ने प्रदर्शनकारियों को दी गई जगह अपना टेंट लगाया है.तस्वीर: Sabine Kinkartz/DW

सूडिंग ने हाल ही में 'ह्यूमन इकोलॉजी' विषय में मास्टर्ड की डिग्री पूरी की है. वहीं ओक 'इंटरनेशनल पॉलिटिकल इकॉनमी' में डॉक्टरेट कर रहे हैं. ये दोनों 'स्टॉप जी7 एल्माउ' संघ से जुड़े हैं. इस संघ की योजना पूरे सम्मेलन के दौरान कई विरोध प्रदर्शन आयोजित करने की है. ओक कहते हैं, "सात देशों के प्रमुख सिर्फ अपने हित पूरे करने में लगे हैं. उनके फैसलों का असर पूरी दुनिया की आबादी पर होता है, जिनके पास कुछ कहने या करने का मौका ही नहीं होता है. वे जलवायु न्याय की बात करते हैं, जबकि उनके राजनीतिक और आर्थिक हित सही मायनों में जलवायु न्याय होने ही नहीं देते."

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