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यूक्रेन युद्ध के साये में जी-7 की बैठक

सबीने किंकार्त्स
२६ जून २०२२

जी-7 की बैठक ऐसे वक्त में हो रही है जब यूरोप बड़े संकटों से जूझ रहा है. एक तरफ यूक्रेन में युद्ध चल रहा है तो कई देशों में अनाज और ऊर्जा की सप्लाई बाधित है. इन मुद्दों से कैसे निपटेंगे जी-7 देश?

Symbolbild | Deutschland | G7 Gipfel
तस्वीर: Ole Spata/dpa/picture alliance

आसमान चूमतीं बर्फ से ढकीं पहाड़ियां, कालीनों से बिछे घास के मैदान और नदी घाटियां. दक्षिणी बवेरिया का पूरा मंजर किसी परीकथा का हिस्सा सा लगता है. यहीं है परी-महल जैसा वो पांच सितारा होटल श्लोस एलमाऊ, जहां जी-7 देशों के नेताओं का स्वागत जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स कर रहे हैं. रविवार से शुरू हुई जी-7 की इस साल की बैठक में फ्रांस, ब्रिटेन, इटली, जापान, कनाडा और अमेरिका के नेताओं के साथ भारत, इंडोनेशिया के साथ-साथ अफ्रीका व दक्षिण अमेरिका के नेता विशेष अतिथि के तौर पर शामिल हो रहे हैं.

2015 में इसी होटल में जी-7 का सम्मेलन हुआ था. इस होटल तक पहुंचना आसान नहीं है और इसलिए इसे सुरक्षित बनाना आसान हो जाता है. फिर भी इस होटल की सुरक्षा में 18,000 पुलिसकर्मी लगाए गए हैं जो 16 किलोमीटर लंबी सुरक्षा दीवार के रूप में तैनात रहेंगे.

यह दीवार इस बात को भी सुनिश्चित करने की कोशिश है कि किसी तरह के विरोध प्रदर्शन सम्मेलन में बाधा ना पहुंचा पाएं. होटल तक मेहमानों को हेलीकॉप्टर से पहुंचाया जाएगा. सिर्फ सुरक्षा के लिए जर्मनी की केंद्र सरकार और बवेरिया राज्य ने 19 करोड़ डॉलर यानी करीब 15 अरब रुपये का बजट रखा है.

युद्ध और जलवायु परिवर्तन

सपनों की सी जगहों पर दुनिया के सबसे शक्तिशाली सात देशों के ये नेता जिन मुद्दों पर चर्चा करने के लिए जमा हुए हैं, वे बुरे सपनों से हैं. बैठक का नीति-वाक्य है ‘समानता आधारित दुनिया की ओर बढ़ो'. इस नीति-वाक्य के पसमंजर में यूक्रेन में जारी युद्ध और उसके दुनियाभर दिख रहे विभिन्न परिणामों पर चर्चा होनी है.

जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स को उम्मीद है कि इस बैठक से दुनिया को संदेश दिया जाएगा कि जी-7 संगठित और प्रतिबद्ध है. उन्होंने कहा, "इस साल जी-7 का अतुलनीय महत्व है.” मेजबान होने के नाते इस साल जर्मनी बैठक में अहम भूमिका में होगा. यह उसके लिए अपनी छवि सुधारने का मौका भी होगा जो हाल के हफ्तों में हुई आलोचना के कारण कुछ खराब हुई है.

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फरवरी में यूक्रेन युद्ध शुरू होने के कुछ ही समय बाद शॉल्त्स ने विदेश और सुरक्षा नीति में बड़े बदलावों का ऐलान किया जो उसकी अब तक की नीतियों से एकदम अलग थे. उन्होंने जर्मन सेना को हथियार उपलब्ध कराने पर बड़े खर्च का ऐलान किया और यह भी कहा कि यूक्रेन को भारी हथियार उपलब्ध करवाए जाएंगे. हालांकि ऐलान करने से अमल में आने तक इन फैसलों की रफ्तार बेहद धीमी रही.

ऐसा लगा कि चांसलर फैसलों को लागू करने में झिझक रहे हैं. हथियार देने में देर हुई और कई हफ्तों तक शॉल्त्स यूक्रेन की यात्रा को टालते भी रहे. कई विशेषज्ञों ने कहा कि चांसलर शॉल्त्स ‘टाल-मटोल' कर रहे हैं और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बातचीत पूरी तरह बंद करने से भी बच रहे हैं.

लेकिन एक तथ्य यह भी है कि शॉल्त्स की इस झिझक के कारण घरेलू ज्यादा थे. उनकी पार्टी के भीतर का माहौल इसकी बड़ी वजह था. इस कथित ‘ऐतिहासिक मोड़' के बारे में वामपंथी झुकाव वाली सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी के भीतर बड़ी असहमतियां हैं. बहुत से नेता मानते हैं कि रूस को शामिल किए बगैर यूरोप में शांति संभव नहीं है. वे युद्ध के भी विरोधी हैं.

नेतृत्व की भूमिका में जर्मनी?

यूक्रेन में रूसी सेना की क्रूरता की खबरों ने युद्ध विरोधियों को तो चुप करवा दिया है. 21 जून को जर्मन सरकार ने उन हथियारों की सूची भी प्रकाशित कर दी जो यूक्रेन को भेजे गए थे या उनका वादा किया गया था. इस सूची को लंबे समय तक उजागर नहीं किया गया था और इसी से पता चला कि जर्मन तोप यूक्रेन युद्ध में इस्तेमाल की जा रही हैं.

उसी वक्त शॉल्त्स की सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी के सह अध्यक्ष लार्स क्लिंगबाइल ने एक ऐसा बयान दिया जिसे साहसी माना गया. उन्होंने कहा, "जर्मनी को नेतृत्व की भूमिका में होना चाहिए.” एक भाषण के दौरान उन्होंने जोर देकर कहा कि जर्मनी से दुनिया की अपेक्षाएं लगातार बढ़ रही हैं.

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क्लिंगबाइल ने कहा, "लगभग 80 साल तक संयम बरतने के बाद जर्मनी आज अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में एक नई भूमिका में है." उन्होंने समझाया कि पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी के एकीकरण के बाद के दशकों में देश ने एक भरोसेमंद सहयोगी की छवि बना ली है. क्लिंगबाइल ने कहा, "हमें अंतरराष्ट्रीय उम्मीदों पर खरा उतरना चाहिए."

जी-7 की दशा-दिशा

ओलाफ शॉल्त्स ने बीते दिसंबर में ही जर्मनी के चांसलर का पद संभाला है. अगर वह जी-7 देशों के प्रमुखों और सरकारों को एक साझा रास्ते पर लाने में सफल हो जाते हैं तो उनकी छवि के लिए बहुत बड़ी बात होगी. मेजबान होने के नाते जर्मनी को प्रक्रिया और एजेंडा तय करने का लाभ है जो उनकी मदद करेगा.

यूक्रेन के लिए लंबी अवधि तक जारी रहने वाली मदद और रूस के खिलाफ प्रतिबंध समिट के पहले ही दिन के एजेंडे में शामिल हैं. शॉल्त्स ने जर्मन संसद में बुधवार को दिए भाषण में कहा, "हम पूरे जोर-शोर से यूक्रेन का समर्थन जारी रखेंगे – आर्थिक, वित्तीय, राजनीतिक और हथियारों के जरिए भी. और हम ऐसा तब तक करते रहेंगे जब तक कि यूक्रेन को हमारी जरूरत है."

इसी भाषण में उन्होंने युद्धग्रस्त यूक्रेन के पुनर्निर्माण की योजना भी पेश की थी. अपने भाषण में चांसलर शॉल्त्स उस अमेरिका-प्रायोजित मार्शल प्लान का जिक्र कर रहे थे जिसके जरिए दूसरे विश्व युद्ध के बाद पश्चिमी जर्मनी और अन्य यूरोपीय देशों का पुनर्निर्माण किया गया था.

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युद्ध की शुरुआत से ही जर्मनी और विभिन्न देशों द्वारा किए गए अरबों डॉलर की मदद के वादों के संदर्भ में शॉल्त्स ने कहा, "विनाश बहुत ज्यादा हुआ है. हमें पुनर्निर्माण के लिए आने वाले कई सालों तक और ज्यादा अरबों यूरो और डॉलर चाहिए होंगे. यह तभी हो सकता है जब हम साथ खड़े हों.”

एलमाऊ में हो रही बैठक में यूक्रेन को वित्तीय मदद विमर्श का बड़ा मुद्दा होगी और शॉल्त्स यूक्रेन पर उच्च स्तरीय विशेषज्ञों का सम्मेलन बुलाने की मांग करेंगे. यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की इस विमर्श में वीडियो लिंक के जरिए हिस्सा लेंगे.

जलवायु परिवर्तन, भुखमरी और गरीबी

रूसी नौसेना काला सागर के बंदरगाहों से जहाजों को जाने नहीं दे रही है जिस कारण यूक्रेन से अनाज की आपूर्ति रुकी हुई है. संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि दशकों में सबसे बड़े अकाल का खतरा पैदा हो गया है. दक्षिणी गोलार्ध में कई देश पहले ही महामारी के विनाशक दुष्प्रभाव झेल रहे हैं.

इन हालात में शॉल्त्स ने चेतावनी दी है कि अगर जी-7 के देश एका दिखाने में नाकाम रहते हैं और इन देशों की मदद नहीं करते हैं तो "रूस और चीन जैसी शक्तियां हालात का फायदा उठा सकती हैं.” वैसे भी शॉल्त्स का मानना है कि एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में बड़े लोकतंत्रों की ओर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि अगर आप सिर्फ पारंपरिक पश्चिमी यूरोप पर ही ध्यान देते हैं तो लोकतंत्र की आपकी समझ में कमी रह जाएगी.

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जी-7 बैठक के दूसरे दिन जी-20 के मौजूदा और आने वाले अध्यक्ष इंडोनेशिया और भारत, अफ्रीका संघ का अध्यक्ष  सेनेगल, कैरिबियाई और दक्षिण अमेरिकी देशों के समूह का अध्यक्ष अर्जन्टीना और दक्षिण अफ्रीका भी सम्मेलन में शामिल होंगे. जलवायु परिवर्तन के लक्ष्यों को हासिल करने पर होने वाली चर्चा में ये देश भी हिस्सा होंगे. शॉल्त्स ने कहा, "ग्लोबल वॉर्मिंग से निपटने और कार्बन न्यूट्रल ओद्यौगिक परिवर्तन के साथ-साथ पूरी दुनिया में नौकरियां बनाए रखने के लिए हम मिलकर काम करना चाहते हैं."

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