तीन दिनों तक जर्मनी के श्लॉस एलमाउ में जुटे विश्व के सात सबसे अमीर औद्योगिक देशों के नेताओं ने रूस-यूक्रेन युद्ध और उसके कारण पैदा हुई नई चुनौतियों पर चर्चा की. इसका समापन जलवायु संरक्षण को लेकर साझा वादे के साथ हुआ.
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जर्मनी में तीन दिन तक चले सम्मेलन के दौरान जी7 देशों के नेताओं ने यूक्रेन की मदद और रूस को रोकने पर लंबी चर्चाएं कीं. साथ ही, सम्मेलन के आखिरी दिन वैश्विक स्तर पर पैदा हो रहे खाद्य संकट का मुकाबला करने के लिए खाद्य सुरक्षा के मद में 4.5 अरब डॉलर (4.2 अरब यूरो) जुटाने का प्रण भी लिया. हालांकि कुछ अंतरराष्ट्रीय एनजीओ ने इसे नाकाफी बताते हुए खाद्य सुरक्षा को लेकर जी7 के रवैये पर असंतोष जताया है.
सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए तेज उपाय करने वाले एक क्लाइमेट क्लब के गठन का भी समर्थन किया गया. आशा है कि इसी साल के अंत तक क्लब अस्तित्व में आ जाएगा. एक बयान जारी कर इन देशों ने कहा कि क्लब उन सभी देशों के लिए खुला होगा, जो पेरिस सहयोग समझौते में तय हुए लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्ध हैं. यानि वे सब देश, जो वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री से ऊपर ना बढ़ने देने और 2050 तक कार्बन न्यूट्रल बनना चाहते हैं.
क्लब कल्चर कैसा हो
बवेरियाई आल्प्स पहाड़ियों के इस आयोजन स्थल पर जुटे नेताओं की मेजबानी की, जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने. क्लाइमेट क्लब के प्रस्ताव की अगुवाई करते हुए शॉल्त्स ने कहा कि इससे बिना आपसी प्रतिस्पर्धा के सभी देशों को जलवायु लक्ष्यों को जल्द से जल्द हासिल करने का मौका मिलेगा.
सम्मेलन के आखिरी दिन मीडिया से बातचीत में शॉल्त्स ने कहा कि जब देश अपनी अर्थव्यवस्था को कार्बनमुक्त करने की रणनीतियां बनाते हैं तो "हम यह सुनिश्चित करना चाहेंगे कि हम एक-दूसरे के खिलाफ काम नहीं करें और खुद को दूसरों से अलग-थलग ना करें.”
मिसाल के तौर पर, क्लब मेंबर कार्बन की कीमत मिलकर तय कर सकेंगे, ग्रीन हाइड्रोजन के लिए साझा समानक तय कर सकेंगे. जी7 देशों की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में यह भी कहा गया कि क्लब का "इंडस्ट्री सेक्टर पर विशेष फोकस होगा और अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन कराने पर भी."
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शॉल्त्स का प्रिय प्रोजेक्ट
वहीं, कई पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने ऐसे क्लब को बेकार बताते हुए कहा है कि जलवायु के मुद्दों पर सहयोग के लिए पहले से ही पर्याप्त अंतरराष्ट्रीय प्लेटफॉर्म मौजूद हैं. ग्रीनपीस जर्मनी के कार्यकारी अध्यक्ष मार्टिन काइजर ने कहा, "कार्बन का न्यूनतम मूल्य तय करने और इन्हें ना मानने वाले देशों पर प्रतिबंध लगाए जाने की साफ प्रतिबद्धिता के बिना शॉल्त्स का प्रिय प्रोजेक्ट केवल "एक और क्लब" बन कर रह सकता है.
अभी यह हाल है कि खुद जी7 में शामिल अमेरिका और जापान जैसे अमीर और विकसित देश कार्बन की कीमत तय करने के लिए राष्ट्रीय स्तर की कोई योजना नहीं बना रहे हैं.
रूस को सबक और यूक्रेन का साथ
रूस पर दवाब बनाने के मुद्दे पर भी जी7 सम्मेलन में एकजुटता दिखी. देशों ने यूक्रेन का साथ देने के अलावा इस पर भी सहमति बनाई कि यह युद्ध रूस को महंगा पड़ना चाहिए और उसे "जीतना नहीं चाहिए."
शॉल्त्स ने बताया कि यूरोपीय परिषद के साथ मिलकर जर्मनी एक कॉन्फ्रेंस आयोजित करने जा रहा है, जिसका मकसद युद्ध के बाद यूक्रेन के पुनर्निमाण की योजना बनाना होगा.
यूक्रेन में जारी रूसी युद्ध का मुद्दा आने वाली नाटो सम्मेलन में भी छाया रहेगा. यह सम्मेलन स्पेन के मैड्रिड में होना है. जर्मनी से जी7 के ज्यादातर नेता वहीं का रुख करेंगे.
भूख के खिलाफ जंग
रूस- यूक्रेन युद्ध के कारण विश्व भर में अनाजों के निर्यात पर असर पड़ने से भूख का संकट पैदा हो सकता है. इससे निपटने के लिए जी7 नेताओं ने 4.2 अरब यूरो की राशि जुटाने का फैसला किया है.
यूक्रेन के बंदरगाह ब्लॉक होने के कारण गेहूं, सूरजमुखी का तेल, मक्का और ऐसी कई खाद्य सामग्रियां वैश्विक बाजारों तक नहीं पहुंच पा रही हैं. इसके कारण खाने की कीमत महंगी होती जा रही है. विशेषज्ञों ने आशंका जताई है कि अफ्रीका के कुछ देश खाने की कमी से जल्द ही भूखमरी की कगार पर जा सकते हैं. जर्मनी समेत अमेरिका और फ्रांस ने जल्द-से-जल्द ऐसे कई प्रभावित देशों को खाद्य मदद मुहैया कराने का वादा किया है.
नौ युवा ऐक्टिविस्ट जो लड़ रहे हैं दुनिया की सबसे बड़ी समस्याओं से
ग्रेटा थुनबर्ग से लेकर मलाला यूसुफजई तक, कई किशोरों ने जलवायु परिवर्तन और परमाणु युद्ध जैसे विषयों पर अपनी बात रखी है. यह अलग बात है कि दुनिया भर में सत्ता में बैठे वयस्क इनकी बातें सुनने को तैयार हैं या नहीं.
तस्वीर: Hanna Franzén/TT News/picture alliance
ग्रेटा थुनबर्ग
ग्रेटा शायद आज के पर्यावरण संबंधी एक्टिविज्म का सबसे मशहूर चेहरा हैं. 2018 में उन्होंने अपने देश स्वीडन की संसद के बाहर अकेले हर शुक्रवार प्रदर्शनों की शुरुआत की थी. लेकिन उनके अभियान ने एक वैश्विक आंदोलन को जन्म दे दिया जिसके तहत दुनिया भर में किशोरों ने शुक्रवार को स्कूल छोड़ कर अपनी अपनी सरकारों से जलवायु परिवर्तन के खिलाफ निर्णायक कदमों की मांग की.
तस्वीर: Hanna Franzén/TT News/picture alliance
सेवर्न कल्लिस-सुजुकी
1992 में कनाडा में रहने वाली 12 साल की सेवर्न कल्लिस-सुजुकी को "दुनिया को पांच मिनट के लिए शांत कराने वाली लड़की" के रूप में जाना जाने लगा था. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की अर्थ समिट में वैश्विक नेताओं से अपने तरीके बदलने के लिए आग्रह किया था. वो कनाडा के पर्यावरणविद डेविड सुजुकी की बेटी हैं. उन्होंने मात्र नौ साल की उम्र में एनवायर्नमेंटल चिल्ड्रेन्स आर्गेनाईजेशन (ईसीओ) नाम के संगठन की शुरुआत की.
तस्वीर: UN
शूतेजकात रॉस्क-मार्तीनेज
शूतेजकात रॉस्क-मार्तीनेज अमेरिका में एक जलवायु एक्टिविस्ट हैं और 'अर्थ गार्जियंस' नाम के संगठन के यूथ डायरेक्टर हैं. 15 साल की उम्र से पहले ही उन्होंने जलवायु परिवर्तन पर तीन बार संयुक्त राष्ट्र को संबोधित कर लिया था. मार्तीनेज एक संगीतकार भी हैं और उन्होंने "स्पीक फॉर द ट्रीज" नामक एक हिप-हॉप गीत भी बनाया है. उनके गीत को 2015 के संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन का थीम सॉन्ग बनाया गया था.
तस्वीर: Lev Radin/Pacific Press/picture alliance
मेलाती और इसाबेल विसेन
इंडोनेशिया के बाली की रहनी वालीं मेलाती और इसाबेल विसेन ने स्कूल में मशहूर ऐक्टिविस्टों के बारे में पढ़ कर उनसे प्रेरित हो 2013 में "बाय बाय प्लास्टिक बैग्स" की स्थापना की. उनकी इस पहल का उद्देश्य है समुद्र तट, स्कूलों और समुदायों से एक बार इस्तेमाल कर फेंक दिए जाने वाले प्लास्टिक को बैन करवाना, ताकि 2022 के अंत तक बाली प्लास्टिक मुक्त हो जाए.
तस्वीर: Britta Pedersen/dpa/picture alliance
मलाला यूसुफजई
17 साल की उम्र में मलाला यूसुफजई मानवतावादी कोशिशों के लिए नोबेल पुरस्कार पाने वाली सबसे कम उम्र की विजेता बन गईं. उन्हें पाकिस्तान में महिलाओं के लिए शिक्षा के अधिकार की मांग करने के लिए तालिबान ने गोली मार दी थी, लेकिन वो बच गईं और अपना काम जारी रखा.
तस्वीर: WAEL HAMZEH/EPA/dpa/picture alliance
इकबाल मसीह
पाकिस्तान के इकबाल मसीह को पांच साल की उम्र में कालीन की एक फैक्ट्री में गुलाम बना दिया गया था. 10 साल की उम्र में आजाद होने के बाद उन्होंने दूसरे बाल गुलामों की भाग निकलने में मदद की और बाल श्रम के खिलाफ संघर्ष के प्रतीक बन गए. लेकिन 12 साल की उम्र में उनकी हत्या कर दी गई. इस तस्वीर में उनकी मां और उनकी बहन उनके हत्यारे की गिरफ्तारी की मांग कर रही हैं.
तस्वीर: STR/AFP/Getty Images
जाम्बियान थांडीवे चामा
जब जाम्बियान थांडीवे चामा आठ साल की थीं तब उनके स्कूल के कई शिक्षकों की एचआईवी/एड्स से मौत हो जाने की वजह से स्कूल को बंद करना पड़ा था. तब उन्होंने 60 और बच्चों को इकठ्ठा किया, उन्हें लेकर दूसरे स्कूल पहुंचीं और सबके शिक्षा की अधिकार की मांग करते हुए उन्हें वहां दाखिला देने की मांग की. वो अपनी किताब "द चिकन विद एड्स" की मदद से बच्चों में एचआईवी/एड्स को लेकर जागरूकता फैलाती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/ dpa
कोसी जॉनसन
जन्म से एचआईवी संक्रमित कोसी जॉनसन को दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग के एक सरकारी स्कूल ने दाखिला देने से मना कर दिया था. 2000 में 11 साल की उम्र में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय एड्स सम्मेलन में कीनोट भाषण दिया और अपनी आपबीती को दुनिया के साथ साझा किया. अपनी पालक मां के साथ उन्होंने एचआईवी संक्रमित माओं और उनके बच्चों के लिए एक शरण स्थान की स्थापना की.
तस्वीर: picture alliance / AP Photo
बाना अल आबेद
24 सितंबर, 2016 को सिर्फ सात साल की बाना अल आबेद ने तीन शब्दों में अपना पहला ट्वीट लिखा था, "मुझे शांति चाहिए." उसके बाद उन्होंने युद्ध ग्रस्त सीरिया में उनके जीवन के बारे में पूरी दुनिया को बताया. तब से वो विश्व के नेताओं से सीरिया में शांति की स्थापना कराने की गुहार लगा रही हैं. आज ट्विटर पर उनके 2,78,000 फॉलोवर हैं.