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करोड़ों खर्च, फिर भी क्यों प्रदूषित हो रहा है गंगाजल

मनीष कुमार
२६ मई २०२३

गंगा सागर तक पहुंचते-पहुंचते तो कई जगहों पर गंगा जल स्नान करने के लायक भी नहीं रह गया है. यह स्थिति तब है, जब नमामि गंगा प्रोजेक्ट के तहत करोड़ों की राशि गंगा नदी के जल को निर्मल बनाने के मद में खर्च की जा चुकी है.

Indien Ganges Fluss Verschmutzung
तस्वीर: Manish Kumar/DW

अगर गंगा नदी में गंदगी ना गिराई जाए तो इसे निर्मल बनाए रखना असंभव नहीं है. लेकिन होता है इसके उलटा. कई जगह गंदगी को गंगा में सीधे बहा दिया जाता है. नदी के किनारे शवों को जलाया जाता है. खतरनाक जीवाणुओं और जैव रासायनिक तत्वों की अत्यधिक मात्रा से गंगा नदी का पानी काफी प्रदूषित हो गया है.

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बीते मार्च महीने में ऋषिकेश से लेकर हावड़ा तक यानी उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के 94 जगहों से गंगा जल का सैंपल लिया था. प्रदूषण का हाल यह था कि कानपुर में तेनुआ (ग्रामीण) के पास प्रति सौ मिलीग्राम जल में टोटल कोलीफॉर्म (टीसी) जीवाणुओं की संख्या 33 हजार के पार थी, जबकि यह संख्या अधिकतम 5000 होनी चाहिए थी.

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हालत यह कि गंगा नदी के पानी को पीना तो दूर, उससे नहाना भी मुश्किल है. सुकून की बात है कि रिपोर्ट के अनुसार ऑक्सीजन की मात्रा मानक से कम नहीं है. बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार देश में चार जगहों, ऋषिकेश (उत्तराखंड), मनिहारी व कटिहार (बिहार) एवं साहेबगंज व राजमहल (झारखंड) में गंगा के पानी को ग्रीन कैटेगरी में रखा गया है. अर्थात इन जगहों के पानी से किटाणुओं को छान कर पीने में इस्तेमाल किया जा सकता है. बाकी सभी जगह रेड कैटेगरी में रखे गए हैं.

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उत्तर प्रदेश का कोई स्थान ग्रीन कैटेगरी में नहीं है. 25 स्थानों पर गंगा जल को उच्च स्तर पर साफ करने के बाद पीया जा सकता है, जबकि 28 स्थानों के पानी को नहाने लायक माना गया है. मानक के अनुसार गंगा नदी का पानी तभी पीने लायक हो सकता है जब उसमें घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा छह मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक, जैव रासायनिक ऑक्सीजन दो मिलीग्राम प्रति लीटर से कम व प्रति सौ मिलीलीटर पानी में कोलीफॉर्म अधिकतम 50 हो.

गंगा नदी के पानी के अध्ययन से जुड़े प्रो. सुनील चौधरी के अनुसार, ‘‘ऑक्सीजन की मात्रा का ठीक रहना संतोषजनक है, किंतु जीवाणुओं का अधिक होना खतरनाक है.''

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दो साल में दस गुना बढ़ा प्रदूषण

बिहार में गंगा नदी का कुल प्रवाह 445 किलोमीटर है. बोर्ड ने राज्य में 33 जगहों पर गंगा जल की शुद्धता की जांच की. पटना के बाद बक्सर से लेकर कहलगांव तक गंगा नदी का पानी मानकों के अनुसार पीना तो दूर नहाने के लायक भी नहीं है. पटना के घाटों पर तो गंगा जल का प्रदूषण बीते दो साल में दस गुना बढ़ गया है.

दो साल पहले 2021 में पटना के गांधी घाट व गुलबी घाट में टोटल कोलीफॉर्म (खतरनाक जीवाणु) की संख्या प्रति सौ मिलीलीटर पानी में 16000 थी वह जनवरी, 2023 में 160000 हो गई है.

इसकी मुख्य वजह बगैर ट्रीटमेंट किए शहर के सीवेज को सीधे गंगा नदी में प्रवाहित किया जाना है. केवल पटना में 150 एमएलडी (मेगा लीटर्स प्रतिदिन) गंदा पानी सीधे गंगा नदी में गिर रहा है. इससे जलस्त्रोत भी प्रदूषित हो रहा है.

बिहार सरकार ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को जानकारी दी है कि राज्य के शहरी क्षेत्रों में करीब 1100 एमएलडी सीवेज यानि नाले का गंदा पानी निकलता है. सीवरेज नेटवर्क और ट्रीटमेंट प्लांटों के जरिए मात्र 234 एमएलडी गंदे पानी का ही ट्रीटमेंट हो पाता है. .

सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए जा रहे हैं लेकिन अभी भी ज्यादातर गंदा पानी गंगा में सीधे जा रहा हैतस्वीर: Manish Kumar/DW

गंगा नदी की मुख्यधारा वाले 23 शहरों में 28 एसटीपी की योजना तैयार की गई है. जिनमें से 17 शहरों में 598 एमएलडी क्षमता की 22 एसटीपी प्रोजेक्ट को स्वीकृति मिल गई है. इनमें करीब 225 एमएलडी क्षमता वाली सात एसटीपी काम करने लगी है. वैसे हालत यह है कि पटना नगर निगम का करीब 60 प्रतिशत हिस्सा आज भी ड्रेनेज नेटवर्क से वंचित है. नगर निगम क्षेत्र के 20 वार्ड ऐसे हैं, जहां ड्रेनेज के साथ-साथ सीवरेज भी नहीं है. एनजीटी ने हाल में ही सॉलिड और लिक्विड वेस्ट का वैज्ञानिक तरीके से निपटारा नहीं कर पाने के कारण राज्य सरकार पर चार हजार करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है.

गंगाजल में मिले 51 खतरनाक केमिकल्स

पटना के महावीर कैंसर संस्थान के रिसर्च डिपार्टमेंट के प्रमुख डॉ. अशोक कुमार घोष और दूसरे 13 वैज्ञानिकों के एक दल को शोध के दौरान उत्तर प्रदेश के वाराणसी से बिहार के बेगूसराय के बीच 500 किलोमीटर की दूरी में गंगा नदी व इसकी उप धाराओं के पानी में 51 तरह के ऑर्गेनिक केमिकल्स मिले.

इन्हें ऑर्गेनिक इमरजिंग कंटामिनेंट्स (ईओसी) कहा गया है. ईओसी ना केवल मानव स्वास्थ्य के लिए, बल्कि जलीय जीव और पौधों के लिए भी उतने ही नुकसानदायक हैं. फार्मास्युटिकल, एग्रोकेमिकल तथा लाइफस्टाइल प्रोडक्ट्स (कॉस्मेटिक) का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल इसकी वजह है.

सीधे गंगा में जा रहा है शहरों का गंदा और विषैला पानीतस्वीर: Manish Kumar/DW

डॉ. अशोक कुमार घोष कहते हैं, ‘‘हमलोग जो दवा खाते हैं उसका मात्र 10 से 15 प्रतिशत शरीर में रह जाता है और शेष हिस्सा मल-मूत्र के जरिए बाहर निकल जाता है. इसको ट्रीटमेंट किए बगैर रिलीज कर दिया जाता है. नदी में पहुंच कर यह ऑर्गेनिक पोल्यूटेंट्स पानी में मिल जाता है. यही स्थिति कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स के साथ है. आप इसका इस्तेमाल करते हैं और जब स्नान करते हैं तो यह धुलकर नालों में पहुंचता है. सीवेज ट्रीटमेंट नहीं किए जाने के कारण यह नदी में पहुंच जाता है.''

यह भूगर्भीय जल को भी प्रभावित कर रहा है. इस पर ध्यान देने की जरूरत है. बिहार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड बायो मेडिकल वेस्ट के निस्तारण के लिए अस्पतालों में ईटीपी (इफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट) लगाने पर सख्ती कर रहा है. फार्मास्युटिकल वेस्ट के निस्तारण के लिए दो स्तर पर काम करने की जरूरत है, पहले ईटीपी के जरिए ट्रीट करना होगा और फिर एसटीपी के जरिए. तभी ऐसे पार्टिकल कम से कम मात्रा में नदी में पहुंच सकेंगे.

घोष कहते हैं, ‘‘बिहार में गंगा और अन्य नदियों में इंडस्ट्रियल पोल्यूटेंट नहीं के बराबर है. बिहार में गंगा नदी के प्रदूषित होने के दो मुख्य स्रोत हैं. एक तो गंगा नदी उत्तर प्रदेश से इंडस्ट्रियल पोल्यूटेंट लेकर आती है और फिर बिहार में बिना ट्रीटमेंट के सीवेज (गंदा पानी) उसमें मिल जाता है. इससे स्थिति बिगड़ जाती है.''

नमामि गंगे मिशन-2 को मंजूरी

नमामि गंगे परियोजना की शुरुआत 31 मार्च, 2021 तक गंगा और उसकी सहायक नदियों को स्वच्छ बनाने के लिए 20,000 करोड़ रुपये के बजट के साथ जून, 2014 में शुरू की गई थी. केंद्रीय मंत्री विश्वेश्वर टुडू ने बीते फरवरी माह में राज्य सभा में लिखित उत्तर में बताया था कि केंद्र सरकार द्वारा एनएमसीजी (नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा) को वित्तीय वर्ष 2014-15 से 31 जनवरी, 2023 तक 14084.72 करोड़ रिलीज किए जा चुके हैं. वहीं 31 दिसंबर, 2022 तक 32,912.40 करोड़ की लागत से कुल 409 प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया गया जिनमें से 232 प्रोजेक्ट को पूरा कर चालू कर दिया गया है.

अब 2026 तक के लिए 22500 करोड़ रुपये के बजटीय प्रावधान के साथ नमामि गंगे मिशन-2 को केंद्र सरकार ने अपनी स्वीकृति दी है.  यह बात दीगर है कि नमामि गंगे प्रोजेक्ट ने कई महत्वपूर्ण आयाम हासिल किए हैं, परिदृश्य बदलेगा भी. लेकिन, यह भी कटु सत्य है कि जनभागीदारी के बगैर गंगा नदी की अविरलता व निर्मलता सुनिश्चित नहीं की जा सकेगी.

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