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समाजचीन

कैसे होती है चीन की सबसे कठिन परीक्षा, जो बदल देती है किस्मत

स्वाति मिश्रा
७ जून २०२५

काओखाओ, चीन की सबसे मुश्किल परीक्षा मानी जाती है. यह लाखों छात्रों के लिए किस्मत बदलने का एक दरवाजा है, जो उनकी और उनके परिवार के जीवन की दिशा तय कर सकती है. कैसे एक परीक्षा लाखों लोगों का भविष्य तय करती है?

चीन के वुहान शहर में एक परीक्षा केंद्र के बाहर काओखाओ के पहले दिन परीक्षा देने जा रही एक छात्रा और बाहर खड़े परीक्षार्थियों के अभिभावकों, परिवार वालों और शिक्षकों की भीड़.
चीन में टॉप यूनिवर्सिटी में दाखिला पाना, करियर की बेहतर संभावनाओं के लिए अहम माना जाता हैतस्वीर: AFP via Getty Images

जून 7, 2025 की तारीख चीन में किसी आम दिन जैसी कतई नहीं थी. चीन में लाखों परिवारों को लगता है कि आज का दिन और आने वाले तीन दिन, उनके भविष्य को संवार सकते हैं.

साल 2024 में काओखाओ के लिए 1.34 करोड़ छात्रों ने रजिस्ट्रेशन कराया था. यह रिकॉर्ड संख्या थीतस्वीर: Adek Berry/AFP/Getty Images

दिन शुरू होते ही समूचे चीन में विशेष परीक्षा केंद्रों के बाहर काफी गहमागहमी दिखी. परीक्षा देने आए स्कूली बच्चे अकेले नहीं थे, उनके अभिभावक भी उन्हें सेंटर पर छोड़ने आए. परीक्षा कैसी होगी, नतीजा क्या आएगा, इसकी धुकधुकी उन्हें भी थी. 

हर साल 7 से 10 जून के बीच कमोबेश यही माहौल होता है. इन्हीं तारीखों में चीन की सालाना विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा 'काओखाओ' करवाई जाती है. यह चीन की सबसे मुश्किल प्रवेश परीक्षा मानी जाती है. किस्मत बदलने की चाबी मानी जाने वाली इस परीक्षा पर लाखों परिवार अपने बेहतर भविष्य की उम्मीदें टिकाते हैं.

विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा में टॉप यूनिवर्सिटियों के लिए मुकाबला इतना ज्यादा है कि बच्चे कई साल पहले ही काओखाओ की तैयारी में जुट जाते हैंतस्वीर: Jade Gao/AFP/Getty Images

महीनों नहीं, सालों से बच्चे इस परीक्षा की तैयारी करते हैं. नतीजतन, मुकाबला और दबाव दोनों बहुत ज्यादा होता है. चीन के शिक्षा मंत्रालय के अनुसार, इस साल देशभर में करीब 1.33 करोड़ छात्रों ने काओखाओ के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया है. यह संख्या पिछले साल की तुलना में कुछ कम है. साल 2024 में 1.34 करोड़ छात्रों ने रिकॉर्ड संख्या में इम्तहान दिया था.

काओखाओ परीक्षा की क्या अहमियत है?

चीन में 10वीं से 12वीं तक तीन साल का हाई स्कूल होता है. इससे आगे की पढ़ाई के लिए यूनिवर्सिटी में दाखिला चाहिए, जिसमें घुसने का दरवाजा है काओखाओ. इस परीक्षा को पास करने के बाद ही छात्रों को विश्वविद्यालयों में दाखिला मिलता है. इनमें देश के सबसे प्रतिष्ठित उच्च शिक्षा के संस्थान भी शामिल हैं. यानी, परीक्षा का नतीजा तय करेगा कि बच्चे को टॉप यूनिवर्सिटी में दाखिला मिलेगा या किसी सामान्य से कॉलेज में.

चीनी यूनिवर्सिटियों में मिलेगी प्यार की पढ़ाई, घटती आबादी से निपटने की तैयारी

अपेक्षाओं के मुताबिक नतीजा ना आने पर बहुत सारे छात्र कई बार परीक्षा देते हैंतस्वीर: Adek Berry/AFP/Getty Images

काओखाओ की परीक्षा चार दिनों तक चलती है. इसमें जिन विषयों का इम्तहान होता है उनमें गणित, चीनी भाषा, कोई एक विदेशी भाषा (आमतौर पर अंग्रेजी) शामिल हैं. ये सबसे अहम विषय होते हैं. इनके अलावा छात्र ने हाई स्कूल में जिन विषयों को पढ़ा है, मसलन आर्ट्स और साइंस शाखा के चुनिंदा विषयों की भी परीक्षा देनी होती है.

काओखाओ, मेरिट आधारित व्यवस्था का हिस्सा है. यानी, ऐसी सामाजिक व्यवस्था जहां इंसान की कामयाबी उसकी योग्यताओं और क्षमताओं से जुड़ी होती है. हालांकि, पिछले एक दशक में खासतौर पर चीन ने अपने शैक्षणिक ढांचे में काफी विस्तार किया है. वह यूनिवर्सिटी की क्षमता भी बढ़ा रहा है. स्टैटिस्टा के 2023 के आंकड़ों के मुताबिक, चीन में सरकारी कॉलेजों और यूनिवर्सिटियों की कुल संख्या 2,822 थी. इनमें विश्वविद्यालय और उच्च व्यावसायिक (वोकेशनल) कॉलेज शामिल हैं.

छात्रों पर केवल परीक्षा पास करने का दबाव नहीं होता. मेरिट लिस्ट में ऊपर आने का दबाव भी काफी होता हैतस्वीर: Wang Zhao/AFP/Getty Images

तकनीक जैसे अहम क्षेत्रों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आगे बढ़ने के लिए भी प्रतिभाओं को तलाशने और तराशने पर जोर दिया जा रहा है. सरकार विश्वविद्यालयों में लगातार नामांकन क्षमता बढ़ाने और शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर करने को प्राथमिकता दे रही है. साल 2023 में ग्रैजुएट होने वालों की संख्या 1.04 करोड़ थी. 2024 में 1.05 करोड़ छात्र, अंडरग्रैजुएट प्रोग्राम्स से पढ़कर निकले. स्टैटिस्टा के अनुसार, छात्रों द्वारा जिन विषयों को सबसे ज्यादा तरजीह दी जाती है उनमें इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट शामिल हैं.

लेकिन टॉप यूनिवर्सिटी में सीटें तो सीमित हैं

शिक्षा ढांचे में किए जा रहे सुधारों का असर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी दिखता है. "टाइम्स हायर एजुकेशन" की 2025 की रैंकिंग में दुनिया की टॉप 15 यूनिवर्सिटियों में चीन के दो विश्वविद्यालय (चिंगह्वा और पेकिंग) हैं. लेकिन बड़ी आबादी के कारण प्रतियोगियों की संख्या ज्यादा है और हर किसी को टॉप यूनिवर्सिटी में दाखिला नहीं मिल सकता.

मसलन, पेकिंग यूनिवर्सिटी को ही लें तो इसमें दाखिलों की संख्या सीमित है. सालाना करीब 7,000 छात्रों को ही दाखिला मिलता है, इनमें भी अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या ज्यादा है. 'चाइना एडमिशन्स डॉट कॉम' के अनुसार, पेकिंग यूनिवर्सिटी में चीनी छात्रों का 'एक्सेप्टेंस रेट' एक फीसदी से भी कम है. एक्सेप्टेंस रेट का मतलब है एक शैक्षणिक सत्र में दाखिले के लिए आवेदन देने वाले छात्रों में से जितने फीसदी आवेदकों को एडमिशन मिला. 

चीन में शीर्ष विश्वविद्यालयों में दाखिला पाना, करियर की बेहतर संभावनाओं के लिए अहम माना जाता है. लोग मानते हैं कि अच्छे करियर से सामाजिक दर्जा और आर्थिक स्थिति बेहतर होगी, जीवनस्तर सुधरेगा.

ग्रामीण इलाकों या कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि के परिवारों को काओखाओ से खास उम्मीद होती है. उन्हें लगता है कि बच्चा अगर काओखाओ में बढ़िया करे, तो उनके जीवन की दशा बदल जाएगी और समृद्धि आएगी. ऐसे में काओखाओ का सामाजिक असर बहुत गहरा है. कामयाब होने का दबाव भी बहुत ज्यादा है. कई विशेषज्ञों के मुताबिक, परीक्षा के नतीजे को परिवार के सम्मान से जोड़कर देखा जाता है.

साल 2025 में चीन के करीब 1.33 करोड़ हाई स्कूल छात्रों ने काओखाओ के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया हैतस्वीर: PENG HUAN/Avalon/picture alliance

कब शुरू हुआ काओखाओ सिस्टम?

स्कूली छात्रों में अकादमिक संभावनाओं को मापने के लिए साल 1952 में यह व्यवस्था लाई गई. "सांस्कृतिक क्रांति" के दौर में करीब एक दशक तक इसे स्थगित कर दिया गया. फिर 1977 में यह वापस शुरू हुआ.

विशेषज्ञों के अनुसार, इसे एक निष्पक्ष, मानकीकृत और योग्यता आधारित व्यवस्था के तौर पर स्थापित किया गया है. ताकि अलग-अलग पृष्ठभूमि, परिवेश और आर्थिक स्तर के अंतरों के बावजूद सभी छात्रों को आगे बढ़ने का एकसमान अवसर मिले. कई जानकार चीन की तेज आर्थिक तरक्की में भी इसका योगदान मानते हैं.

परीक्षा में बहुत अच्छे नंबर लाने का सामाजिक दबाव बहुत ज्यादा हैतस्वीर: Adek Berry/AFP/Getty Images

उम्मीद, अनिश्चितता, तनाव

काओखाओ परीक्षा के दौरान देशभर में परीक्षाकेंद्रों के बाहर एक तरह का मेला नजर आता है. अभिभावक, परिवार के लोग, दोस्त, टीचर सभी बच्चों का हौसला बढ़ाने और उन्हें शुभकामना देने आते हैं. कई वॉलंटियर भी पोस्टर लेकर आते हैं, जिनपर शुभकामना संदेश और प्रेरक पंक्तियां लिखी होती हैं. परीक्षा देकर आने के बाद कई अभिभावक और शिक्षक बच्चों को फूल-गुलदस्ते देते हैं. कई परिवारवाले तो परीक्षा खत्म होने तक सेंटर के बाहर खड़े रहकर अपने बच्चे का इंतजार करते हैं. 

परीक्षा केंद्रों के बाहर सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए जाते हैं. इस बार भी सेंटरों के आसपास यातायात बंद कर दिया गया है. समाचार एजेंसी एएफपी के अनुसार, कई शहरों में मोटर चालकों को हॉर्न ना बजाने का आदेश दिया गया है, ताकि परीक्षा देते समय छात्रों को परेशानी ना हो. परीक्षा में नकल ना हो, इसके लिए भी सख्त इंतजाम किए गए हैं. कई स्कूल फेशियल रिक्गनीशन तकनीक की भी मदद ले रहे हैं.

7 जून को बीजिंग के एक स्कूल में बने परीक्षा केंद्र के बाहर एएफपी की मुलाकात कई अभिभावकों से हुई. ये सभी अपने बच्चों को परीक्षा केंद्र छोड़ने आए थे. एक्जाम सेंटर के बाहर खड़े बच्चे किताबों और नोट्स के पन्ने पलटते हुए परीक्षा से ऐन पहले भी पढ़ने में लगे थे. ऐसे ही पढ़ाई करती एक हाई स्कूल छात्रा की मां, अपनी बेटी को पंखा झल रही थीं.

चेन नाम की इस महिला ने एएफपी को बताया कि उनकी बेटी 12 साल से इस परीक्षा की तैयारी कर रही है, "हम जानते हैं कि हमारे बच्चों ने कितनी मेहनत की है. मैं नर्वस नहीं हूं, बल्कि काफी उत्साहित हूं. मुझे लगता है कि मेरी बेटी बहुत होशियार है. मुझे यकीन है कि उसे सबसे अच्छे नंबर मिलेंगे."

काओखाओ, मेरिट आधारित व्यवस्था का हिस्सा हैतस्वीर: AFP

परीक्षा केंद्र के बाहर खड़ी एक अन्य छात्रा की आंखों में आंसू थे. एक अन्य महिला वांग ने कहा, "मुझे उम्मीद है कि मेरे बेटे को जल्द कामयाबी मिलेगी और सबसे ज्यादा नंबर पाने वाले छात्रों में उसका नाम आएगा." 

ऐसा नहीं कि सभी छात्र एक बार ही परीक्षा देते हों. अच्छा रिजल्ट ना आने पर कई छात्र दोबारा परीक्षा देते हैं. चूंकि परीक्षा देने के लिए कोई आयुसीमा नहीं है, तो कई छात्र दर्जनों बार भी परीक्षा देते हैं. इसकी वजह फेल होना ही नहीं है. पसंदीदा यूनिवर्सिटी में दाखिला ना मिलने के कारण भी छात्र परीक्षा दोहराते हैं.

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काओखाओ की कई आलोचनाएं भी हैं

परीक्षा के कारण छात्रों पर पड़ने वाले मनोवैज्ञानिक और सामाजिक दबाव के कारण इस व्यवस्था की आलोचना भी होती है. कई आलोचक मानकीकृत परीक्षा को तरजीह देने के लिए भी इसकी आलोचना करते हैं. उनका कहना है कि इसमें स्वतंत्र सोच और रचनाशीलता पीछे चले जाते हैं. बहुत कम उम्र से ही बच्चों की काओखाओ की तैयारी शुरू करवा दी जाती है. स्कूल के अलावा खास कोचिंग दिलवाई जाती है.

एक परीक्षा कामयाब भविष्य का टिकट बन सकती है, इस दबाव के कारण छात्रों का मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होना भी बड़ी चिंता है. कई विशेषज्ञ इस ओर भी ध्यान दिलाते हैं कि सैद्धांतिक तौर पर समान अवसर देने का दावा किया जाता है.

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लेकिन वास्तव में शहरी इलाकों और बेहतर आर्थिक परिवेश से आने वाले बच्चों को स्वाभाविक फायदा मिलता है. इसके अलावा युवा स्नातकों के लिए रोजगार की स्थिति भी चिंता का विषय है. 'नेशनल ब्यूरो ऑफ स्टटिस्टिक्स' के मुताबिक, शहरी इलाकों में रहने वाले 16 से 24 उम्र के बीच के करीब 16 फीसदी युवा बेरोजगार हैं. 

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