जेन-जी प्रदर्शन: इतने गुस्से में क्यों हैं एशिया के नौजवान?
डेविड हट
१८ अक्टूबर २०२५
दक्षिण और दक्षिण–पूर्व एशिया के युवाओं में नेताओं के प्रति भारी नाराजगी है. कम होती नौकरियों और बढ़ती असमानता के बीच युवाओं के विरोध प्रदर्शन देशों की राजनीति को हिला रहे हैं.
नेपाल में सरकार को सत्ता से उखाड़ देने वाले जेन-जी विरोध प्रदर्शन की शुरुआत सोशल मीडिया वेबसाइट्स पर लगे बैन से हुई थीतस्वीर: Safal Prakash Shrestha/ZUMA/picture alliance
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पिछले दो महीनों में, युवाओं के प्रदर्शनों ने दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया की राजनीति को हिला कर रख दिया है. काठमांडू से लेकर जकार्ता तक और दिली से लेकर मनीला तक हर जगह इनका असर दिख रहा है. युवाओं के हालिया विरोधों ने जहां एक तरफ नेपाल की सरकार गिरा दी. वहीं, दूसरी तरफ दक्षिण-पूर्व एशिया के कई देशों में नेताओं को मिलने वाली विशेष सुविधाओं पर कार्रवाई करने के लिए सरकार को मजबूर किया है.
हालांकि, हर देश में विरोध की वजह अलग है. लेकिन उसकी जड़ में, देश में पनपने वाला असंतोष ही है. युवाओं के बीच बढ़ रही असमानता और मोबाइल स्क्रीन पर रोज दिखने वाला अमीरों और गरीबों के बीच का अंतर इस आग को हवा देता है.
विश्व बैंक की हालिया रिपोर्ट भी इसी ओर इशारा करती है. जिसके अनुसार, चीन और इंडोनेशिया में हर सातवां युवा बेरोजगार है. फिर इन देशों में ज्यादातर नौकरियों भी कम वेतन वाली आ रही हैं.
हालांकि, सबसे चिंताजनक बात यह है कि जो लोग "गरीबी की कगार पर” है. उस सबसे अधिक संख्या युवाओं की ही है. कई देशों में तो यह हाल है कि ऐसे युवाओं की संख्या देश के मध्यम-वर्ग से भी ज्यादा बड़ी है.
भीषण विरोध प्रदर्शनों को झेलने के बाद अब कैसा है नेपाल का हाल
नेपाल में हुए विरोध-प्रदर्शनों के दौरान प्रदर्शनकारियों ने सुप्रीम कोर्ट और संसद तक को नहीं बख्शा था. अंतरिम सरकार तो बन गई है लेकिन रोजमर्रा की जिंदगी में वापस लौटना देश के लिए मुश्किल हो रहा है.
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आधा झुका रहा नेपाल का झंडा
नेपाल के विरोध प्रदर्शनों के दौरान 70 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी. इनकी याद में अंतरिम सरकार ने बुधवार, 17 सितंबर को राष्ट्रीय शोक दिवस की घोषणा की थी. इस दिन सभी सरकारी इमारतों पर नेपाल का झंडा आधा झुका रहा.
तस्वीर: Navesh Chitrakar/REUTERS
मृतकों को दिया शहीद का दर्जा
अंतरिम पीएम सुशीला कार्की ने मृतकों को शहीद का दर्जा दिया है और उनका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किया जा रहा है. मंगलवार को पशुपतिनाथ मंदिर के पास चार मृतकों का अंतिम संस्कार हुआ, जिसमें हजारों लोगों की भीड़ जमा हुई.
तस्वीर: Navesh Chitrakar/REUTERS
तंबुओं में काम कर रहे कर्मचारी
प्रदर्शनों के दौरान, नेपाल के सुप्रीम कोर्ट की इमारत जला दी गई थी. अब वहां के कर्मचारी, इमारत के बाहर तंबुओं में बैठकर काम कर रहे हैं. आग बुझाने के दौरान, कोर्ट के दस्तावेज भी भीग गए थे, उन्हें सुखाने की कोशिश भी हो रही है.
तस्वीर: Navesh Chitrakar/REUTERS
सड़कों पर बढ़ रही चहल-पहल
समाचार एजेंसी एएफपी के मुताबिक, प्रदर्शन रुकने के बाद सड़कों पर फिर से चहल-पहल बढ़ने लगी है. हालांकि, बुधवार को राष्ट्रीय शोक दिवस होने की वजह से माहौल थोड़ा शांत रहा. नेपाल के आम लोग प्रदर्शनकारियों की मौत पर दुख जताते दिखे.
तस्वीर: Arun Sankar/AFP
जेलों में वापस लौट रहे कैदी
विरोध-प्रदर्शनों के दौरान नेपाल की जेलों से 13 हजार से अधिक कैदी फरार हो गए थे. उनमें से कई ऐसे कैदी खुद वापस जेल चले गए, जिन्होंने छोटे अपराध किए थे या उनकी सजा खत्म होने वाली थी. इसके अलावा पुलिस ने भी करीब पांच हजार कैदियों को पकड़ने की बात कही है.
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नुकसान का हो रहा आकलन
नेपाल अब प्रदर्शनों के दौरान हुए भारी नुकसान का आकलन कर रहा है. प्रदर्शन के दौरान, संसद समेत कई सरकारी इमारतों को जला दिया गया था. कई नेताओं के घर भी जला दिए गए थे. कार्की ने कहा है कि देश को जान-माल का भारी नुकसान हुआ है.
तस्वीर: Prabin Ranabhat/AFP
20 से ज्यादा होटल भी जले
नेपाल की होटल एसोसिएशन ने कहा है कि 20 से ज्यादा होटलों को भी नुकसान पहुंचा है, जिसमें नया बना हिल्टन होटल भी शामिल है. अनुमान के मुताबिक, इससे करीब 17.7 करोड़ डॉलर का नुकसान हुआ है. सिर्फ हिल्टन होटल ही 5.6 करोड़ डॉलर की लागत से बना था.
तस्वीर: Prabin Ranabhat/AFP/Getty Images
पर्यटन उद्योग को भारी नुकसान
नेपाल के लिए पर्यटन एक अहम क्षेत्र है, जो करीब 3.7 लाख लोगों को रोजगार देता है. नेपाल के पर्यटन प्राधिकरण और होटल मालिकों आदि ने बताया है कि आने वाले पर्यटकों की संख्या में 30 फीसदी की कमी आई है. बड़ी संख्या में सैलानी अपनी बुकिंग रद्द कर रहे हैं.
तस्वीर: EWN
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संपत्ति की असमानता युवाओं के गुस्से की जड़
एशिया ह्यूमन राइट्स एंड लेबर एडवोकेट्स के निदेशक फिल रॉबर्टसन ने डीडब्ल्यू को बताया कि यह कोई हैरानी की बात नहीं है कि हाल के विरोध प्रदर्शनों की अगुवाई युवा कर रहे हैं. सोशल मीडिया पर अमीरों की चमक-दमक भरी जिंदगी के दिखावे को अक्सर सरकारी भ्रष्टाचार के तौर पर देखा जाता है. यह युवाओं के गुस्से को और भड़काता हैं.
रॉबर्टसन ने कहा, "पूरे इलाके में सरकारों की नाकामी, अमीरों और गरीबों के बीच की खाई बढ़ाती ही जा रही हैं. इससे युवाओं के अंदर विरोध पैदा हो रहा है. और युवा जानते हैं कि उनके पास खोने के लिए कुछ नहीं है, इसलिए ही वह बेधड़क सड़कों पर उतर रहे हैं.”
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युवाओं के नेतृत्व में उठी विरोध की लहर
नेपाल में हुए आंदोलन ने प्रधानमंत्री खड्ग प्रसाद शर्मा ओली की सरकार को गिरा दिया और संसद को भंग करने पर मजबूर कर दिया.
जिसके कुछ समय बाद इंडोनेशिया में भी कई हफ्तों तक हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए. जब वहां आम जनता महंगाई से जूझ रही थी. तब सांसदों को विशेष सुविधाओं दी जा रही थी. जिसके बाद यह गुस्सा फूटा. अगस्त के अंत में शुरू हुए यह विरोध प्रदर्शन देशभर में फैल गए. इस दौरान कम से कम दस लोगों की मौत हुई और अधिकारियों ने हजारों लोगों को हिरासत में लिया.
लेकिन आखिरकार, राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांतो को कार्रवाई करनी ही पड़ी. उन्होंने सांसदों की सुविधाएं कम कीं और अपनी सरकार में भी बड़ा फेरबदल किया.
इसके बाद विरोध की यह लहर तिमोर-लेस्ते पहुंची. यह एशिया के सबसे गरीब देशों में से एक है. सितंबर के अंत में वहां संसद के बाहर छात्रों ने कई दिनों तक प्रदर्शन किए. वह सांसदों के लिए नई गाड़ियां खरीदने और उनको आजीवन पेंशन देने वाले कानूनों का विरोध कर रहे थे.
अंत में सरकार को झुकना ही पड़ा. सांसदों ने पेंशन कानून और कार खरीद की योजना को रद्द करने के लिए मतदान किया.
फिलीपींस में भी यही मंजर देखा जा रहा है. सितंबर में मनीला के रिजाल पार्क में हजारों युवा प्रदर्शनकारी जुट गए. और उन्होंने लगभग 1.8 अरब डॉलर के भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रदर्शन करना शुरू कर दिया.
वंशवाद, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और सोशल मीडिया बैन से यूं उबल पड़ा नेपाल
नेपाल में आम जनता का बरसों से सुलगता गुस्सा ऐसा फूटा कि पीएम ओली को इस्तीफा देना पड़ा. कई मंत्रियों को भीड़ ने दौड़ा-दौड़ाकर पीटा. आखिर नेपाल की युवा पीढ़ी इतने गुस्से में क्यों है.
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल के नेता और पीएम पद से इस्तीफा दे चुके प्रधानमंत्री केपी शर्मा, सोशल मीडिया पर आलोचना को बर्दाश्त नहीं कर रह पा रहे थे. एक सच्चाई यह भी है कि ओली सोशल मीडिया के समर्थक नहीं हैं और अपने पिछले कार्यकाल से ही वह इन डिजिटल प्लेटफॉर्म पर नकेल कसना चाहते थे.
तस्वीर: Amit Machamasi/ZUMA/picture alliance
क्या ओली से बड़ी गलती हो गई?
केपी शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट के एक साल पुराने निर्देश का इस्तेमाल करते हुए उन सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को एक हफ्ते का नोटिस दिया, जिन्होंने नेपाल में सरकारी नियमों का पालन करने के लिए पंजीकरण नहीं कराया था. लेकिन जल्दबाजी में लिए गए इस फैसले में सरकार ने इसके नतीजों का अंदाजा लगाने में चूक की, खासकर युवाओं के मामले में जिनके बीच इंस्टाग्राम और यूट्यूब बेहद लोकप्रिय हैं.
तस्वीर: Subaas Shrestha/NurPhoto/picture alliance
भ्रष्टाचार कितना बड़ा मुद्दा
नेपाल में 8 सितंबर को जब बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए तो सोशल मीडिया पर बैन तो एक मुद्दा था, इन प्रदर्शनों के दौरान भ्रष्टाचार भी एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरा. रिपोर्टों के मुताबिक लगभग सभी शीर्ष नेपाली नेता किसी न किसी भ्रष्टाचार घोटाले में फंसे हुए हैं.
तस्वीर: Skanda Gautam/ZUMA/IMAGO
वंशवाद बनाम आम नेपाली
युवा वर्ग 'नेपो-किड्स' यानी नेताओं के बच्चों की विलासितापूर्ण जीवनशैली से भी नाराज है. यह उस देश में नामंजूर लगता है जो अपनी अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए संघर्ष कर रहा है और जहां रोजाना हजारों युवा रोजगार की तलाश में देश छोड़ रहे हैं. एक अनुमान के अनुसार, हर साल लगभग 8 लाख नेपाली रोजगार के लिए विदेश जाते हैं.
तस्वीर: Diwakar Rai/DW
श्रीलंका और बांग्लादेश से सबक नहीं ले पाई सरकार?
नेपाली नेतृत्व क्षेत्र के बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य, उदाहरण के लिए बांग्लादेश और श्रीलंका में हुए व्यापक परिवर्तनकारी प्रदर्शनों से सबक नहीं ले सका. शीर्ष पदों पर उन्हीं पुराने चेहरों को बैठाना और विकास व सुधारों के मामले में निष्क्रियता ने व्यापक आक्रोश को जन्म दिया.
तस्वीर: Aryan Dhimal/Zumapress/picture alliance
बेरोजगारी भी एक समस्या
वर्ल्ड बैंक के अनुसार, पिछले साल युवा बेरोजगारी दर लगभग 20 फीसदी थी, और सरकार का अनुमान है कि हर रोज 2,000 से अधिक युवा मध्य पूर्व या दक्षिण-पूर्व एशिया में काम की तलाश में देश छोड़ रहे हैं.
तस्वीर: Amit Machamasi/ZUMA/picture alliance
कैसी है नेपाल की अर्थव्यवस्था
वर्ल्ड बैंक के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, 2024 में नेपाल का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 42.91 अरब अमेरिकी डॉलर का था. नेपाल का जीडीपी मूल्य विश्व अर्थव्यवस्था का 0.04 प्रतिशत है.
तस्वीर: Diwakar Rai/DW
नेपाल: सियासी तौर पर एक अस्थिर देश
2008 में 239 साल पुरानी राजशाही के खात्मे के बाद से नेपाल राजनीतिक रूप से अस्थिर रहा है. 2008 से अब तक 14 सरकारें बनी हैं, जिनमें से एक भी पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई है. 73 वर्षीय केपी शर्मा ओली ने पिछले साल अपने चौथे कार्यकाल के लिए शपथ ली थी.
आर्थिक अन्याय और अमीर वर्ग की सुविधाएं बने बड़े मुद्दे
ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी की शोधकर्ता गीता पुत्री दमयाना के अनुसार, युवाओं ने इन आंदोलनों को ऊर्जा और डिजिटल समर्थन दिया है. लेकिन उनके असली मुद्दे आर्थिक अन्याय और अमीर वर्ग को मिलने वाले विशेष अधिकारों से जुड़े हैं.
इंडोनेशिया और नेपाल में छात्रों के बाद यूनियन सदस्यों, मजदूरों और सामाजिक संगठनों ने भी इन विरोधों में हिस्सा लिया था.
यूनिवर्सिटी ऑफ नॉटिंघम में शोध सहयोगी ब्रिजेट वेल्श ने डीडब्ल्यू को बताया, "तिमोर-लेस्ते और इंडोनेशिया में युवाओं की भूमिका सबसे मजबूत रही है. हालांकि, फिलीपींस में भी उन्होंने अहम योगदान दिया.”
ओसाका के कानसाई गाइडाई विश्वविद्यालय में शांति और संघर्ष का अध्ययन करने वाले एसोसिएट प्रोफेसर मार्क कोगन ने डीडब्ल्यू को बताया कि यह कोई नया चलन नहीं है. 2020–21 के दौरान थाईलैंड में युवा आंदोलन ने सत्ता और राजशाही में सुधार की मांग की थी. लेकिन सरकार ने अंततः दमन का रास्ता अपना लिया था.
हालांकि, उनके अनुसार इन हालिया विरोधों का उद्देश्य तख्तापलट करना नहीं हैं. बल्कि इनका लक्ष्य मौजूदा व्यवस्था में जवाबदेही और बेहतर शासन लाना है.
क्या यह विरोध और बढ़ेंगे?
विश्लेषकों के अनुसार, दक्षिण-पूर्व एशिया की सरकारें अब समझ गई है कि अमीरों की दिखावटी सुविधाएं युवाओं को भड़का सकती हैं. जबकि कई देशों में अधिकारी युवाओं के आंदोलनों को "दंगे” या "विदेशी फंडिंग” बता कर कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन असली चुनौती है, इन विरोधों को ठोस सुधारों में बदलना. जैसे निष्पक्ष चुनाव कराना और भ्रष्टाचार विरोधी संस्था बनाना.
हालांकि, बढ़ती आर्थिक और राजनीतिक असमानताएं विरोधों को जन्म दे सकती हैं. रॉबर्टसन ने कहा कि सोशल मीडिया की मदद से एक देश में सफल युवा आंदोलन अन्य देशों में भी प्रेरणा दे सकते हैं. उनके अनुसार इन आंदोलनों के बाद बढ़ने वाली जवाबदेही, समानता की दिशा में सकारात्मक कदम हो सकता है.