हार के बाद बराबरी की लड़ाई जीत पाएंगी जर्मन फुटबॉलर?
१ अगस्त २०२२
जर्मनी की महिला फुटबॉलर खिलाड़ियों को बराबर सैलरी दिलाने की लड़ाई अब सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गई है. लेकिन अंतर इतना बड़ा है कि इसे पाटना आसान नहीं होगा.
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यूरोपीय चैंपियनशिप के फाइनल में जर्मनी की टीम हार गई. अतिरिक्त समय में किए गए विजयी गोल की बदौलत इंग्लैंड की महिला फुटबॉल टीम ने पहली बार यह खिताब जीता और जर्मनी के सपनों को तोड़ दिया. अगर जर्मनी की टीम जीत जाती तो टीम की हर खिलाड़ी को लगभग 90 हजार यूरो मिलते. अब उन्हें 30 हजार यूरो मिलेंगे, जो फाइनल में प्रवेश के साथ ही तय हो गए थे. पर जर्मनी इस वक्त हार जीत से बड़ा एक सवाल पूछ रहा है. सवाल है कि पुरुष जीतते हैं तो उन्हें ज्यादा धन क्यों मिलता है.
पिछले साल जर्मनी की पुरुष फुटबॉल टीम भी यूरोपीय चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंची थी. अगर वे जीतते तो हर खिलाड़ी को लगभग तीन लाख 60 हजार यूरो मिलते. जबकि महिलाओं की टीम पिछली बार यानी 2017 में जीती थी, तो हर खिलाड़ी को लगभग 37,500 यूरो मिले थे. यानी पुरुषों और महिलाओं के इनाम में लगभग दस गुना का फर्क है.
यह फर्क इतना बड़ा है कि देश के चांसलर को भी परेशान कर रहा है और ओलाफ शॉल्त्स ने कहा है कि वह महिलाओं और पुरुषों को बराबर सैलरी दिलाने के लिए देश के फुटबॉल संघ के प्रमुख ओलिवर बियरहॉफ से बात करेंगे. उन्होंने कहा, "बियरहॉफ से मेरी मुलाकात होनी है. मैं इस बात को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हूं कि ऐसी प्रतियोगिताओं में बराबर तन्ख्वाह बेहद महत्वपूर्ण है.”
अमेरिका: जब जानने वाला ही हो महिलाओं का कातिल
अमेरिकी के राष्ट्रीय थिंक टैंक हिंसा नीति केंद्र (वीपीसी) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक देश में महिलाओं के खिलाफ हिंसा एक महामारी की तरह बढ़ रही है. जाने पहचाने पुरुषों से भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं.
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निकोल ने खोई अपनी मां
हिंसा नीति केंद्र (वीपीसी) की रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में 10 में से नौ महिलाओं की हत्या उन पुरुषों ने की थी जिन्हें वे जानते थे. इस तस्वीर में निकोल शार्प मां हीथर हर्ले की एक तस्वीर दिखा रही हैं. जब निकोल छोटी थी, उसकी मां की उसके पिता विंस्टन रिचर्ड्स ने न्यूयॉर्क में हत्या कर दी थी. अब निकोल 46 साल की हो गईं हैं और कहती हैं कि लोग अब भी पीड़ित पर ही इल्जाम लगाते हैं.
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कुछ इस तरह मां को ढूंढती हैं निकोल
निकोल के बिस्तर पर हीथर हर्ले की शादी की ड्रेस टंगी है. अब निकोल अपनी मां को तस्वीरों, कपड़ों आदि में ढूंढती हैं. 1993 में मां की हत्या के दोष में पिता को सजा सुनाई गई थी. पिता ने 16 साल जेल की सजा काटी और उसकी मौत 2012 में हो गई.
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एक दादी का दर्द
मार्च 2020 में टैमी सुओमी डुलुथ की बेटी डेफोए और उनके 21 महीने के बेटे केविन की उसके प्रेमी ने पीट-पीटकर हत्या कर दी. डेफोए 13 सप्ताह की गर्भवती भी थीं.
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उजड़ गया हंसता खेलता परिवार
मई 2022 में अदालत ने डेफोए के प्रेमी शेल्डन थॉम्पसन को दोषी ठहराया. उसे अजन्मे बच्चे की मौत में प्रथम श्रेणी की हत्या का दोषी पाया. उसे लगातार तीन आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी.
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प्रेमी ही हत्यारा बना
डेल कुक के गले की यह हार कभी नहीं उतरती है. क्योंकि इसमें उनकी बेटी हेलेन बकल और पोती ब्रिटनी पासलाक्वा की तस्वीरें हैं. जब हेलेन 34 वर्ष की थी और ब्रिटनी 12 वर्ष की थी, तब उनके प्रेमी जॉन ब्राउन ने दोनों की चाकू मारकर हत्या कर दी थी. जॉन को 2010 में 40 साल जेल की सजा सुनाई गई.
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यादों में जिंदा हैं डेफोए
बेटी डेफोए और पोते केविन की यादें अब टैमी सुओमी डुलुथ के घर पर छाई हुई हैं. दोस्तों ने मृतक मां और बेटे की याद में सम्मान देने के लिए तरह-तरह की चीजें बनाईं हैं.
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जर्मन चांसलर ने पहली बार महिलाओं को लिए बराबर सैलरी पर बात नहीं की है. दो हफ्ते पहले भी उन्होंने ट्वीट कर महिलाओं को बराबर धन की पैरवरी की थी, जिसके बाद बियरहॉफ ने उन्हें बातचीत के लिए बुलाया था. उस ट्वीट के बाद बियरहॉफ ने कहा था, "मैं उस बयान से थोड़ा सा हैरान हूं. मैं बेशक उन्हें मिलने के लिए बुलाऊंगा.”
तभी बियरहॉफ ने इस बात की ओर भी ध्यान दिलाया था कि यदि जर्मन महिला टीम यूरोपीय चैंपियनशिप जीतती है तो हर खिलाड़ी को 60 हजार यूरो का बोनस मिलेगा. हालांकि पुरुषों के मुकाबले यह बेहद कम है. अगर इस साल कतर में होने वाला वर्ल्ड कप जर्मनी की पुरुष टीम जीतती है हर खिलाड़ी को लगभग चार लाख यूरो का बोनस मलेगा.
इस बारे में खिलाड़ी भी गाहे-बगाहे बोलते रहे हैं. जर्मनी की खिलाड़ी लीना मागुल ने हाल ही में कहा था देश की महिला खिलाड़ियों को दो-तीन हजार यूरो का मासिक वेतन जैसा कुछ मिलना चाहिए. उन्होंने स्पेन की टीम को इस तरह की मासिक सैलरी का भी हवाल दिया था.
मागुल का कहना था कि राष्ट्रीय स्तर की महिला खिलाड़ियों को भी खेलने के साथ-साथ पढ़ाई और नौकरी दोनों करनी पड़ती हैं. उनका कहना था कि कम से कम सेकंड डिविजन के ऊपर के खिलाड़ियों के लिए तो यह मजबूरी नहीं होनी चाहिए.
कितना बड़ा है अंतर?
बीलेफेल्ड की यूनिवर्सिटी ऑफ अप्लाइड साइंसेज में शोध करने वालीं योहाना बुर्रे महिला और पुरुष फुटबॉल खिलाड़ियों के बीच अंतर की गहराई नाप रही हैं. उन्होंने गुणात्मक तरीकों से अध्ययन करते हुए पता लगाया है कि महिलाओं और पुरुषों के बीच हालात में असल में अंतर कितना बड़ा है.
खुद भी 15 साल से फुटबॉल खेल रहीं बुर्रे के लिए यह शोध आसान भी था क्योंकि पेशेवर खिलाड़ियों तक उनकी सीधी पहुंच थी और एक लीग क्लब में कोच होने के नाते वह हालात को बहुत करीब से देख सकती थीं. बुर्रे का शोध कहता है कि पुरुष खिलाड़ी महिलाओं के मुकाबले 50 से 200 गुना ज्यादा कमाते हैं. जर्मन अखबार डेवेत्सेट को दिए एक इंटरव्यू में बुर्रे ने बताया कि फुटबॉल खिलाड़ियों को मिलने वाली सैलरी सार्वजनिक नहीं की जाती लेकिन विशेषज्ञों ने इसके बारे में विस्तृत अनुमान लगाए हैं और दोनों के बीच अंतर बहुत बड़ा है. वह कहती हैं, "फुटबॉल में ‘जेंडर पे गैप' किसी भी अन्य खेल और खेल के बाहर के क्षेत्र के मुकाबले कहीं ज्यादा है.”
100 सालों तक में नहीं आ पाएगी लैंगिक बराबरी
दुनिया में पुरुषों और महिलाओं के बीच बराबरी नहीं आ पा रही है और ग्लोबल जेंडर गैप को अगले 100 सालों में भी भरा नहीं जा पाएगा. यह कहना है वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2022 का.
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68% सफलता
रिपोर्ट कहती है कि 2022 में ग्लोबल जेंडर गैप को 68.1 प्रतिशत बंद किया जा सका है. इस दर पर पूरी बराबरी हासिल करने में 132 साल लगेंगे. स्थिति में थोड़ा सा सुधार हुआ है. 2021 में यह अनुमान 136 सालों का था.
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राजनीतिक सशक्तिकरण में सबसे बुरा हाल
रिपोर्ट में शामिल किए गए 146 देशों में स्वास्थ्य जेंडर गैप को 95.8 प्रतिशत भरा जा सका है, शिक्षा में 94.4 प्रतिशत, आर्थिक हिस्सेदारी में 60.3 प्रतिशत और राजनीतिक सशक्तिकरण में सिर्फ 22 प्रतिशत गैप को भरा जा सका है.
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सबसे बढ़िया प्रदर्शन
पूरी बराबरी तो कोई भी देश हासिल नहीं कर सका है लेकिन सबसे ऊपर के 10 देशों ने कम से कम 80 प्रतिशत जेंडर गैप को भर लिया है. इनमें 90.8 प्रतिशत के साथ आइसलैंड सबसे ऊपर है. उसके बाद नंबर है फिनलैंड (86 प्रतिशत), नॉर्वे (84.5 प्रतिशत), न्यू जीलैंड (84.1 प्रतिशत) और स्वीडन (82.2 प्रतिशत) का.
तस्वीर: Cavan Images/imago images
प्रांतों में उत्तरी अमेरिका आगे
76.9 प्रतिशत जेंडर गैप को भर कर उत्तरी अमेरिका सभी प्रांतों से आगे है. उसके बाद नंबर है यूरोप (76.6 प्रतिशत), लैटिन अमेरिका (72.6 प्रतिशत) का, मध्य एशिया (69.1 प्रतिशत), प्रशांत (69 प्रतिशत), उप-सहारा अफ्रीका (67.8 प्रतिशत), मध्य पूर्व एशिया और उत्तरी अफ्रीका (63.4 प्रतिशत) का. सिर्फ 62.4 प्रतिशत के साथ भारत समेत दक्षिण एशियाई देशों का प्रदर्शन सबसे बुरा है.
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भारत काफी नीचे
2021 में भारत 140वें स्थान पर था और इस साल भारत ने 146 देशों में 135वां स्थान हासिल किया है. स्वास्थ्य जेंडर गैप में भारत सबसे नीचे यानी 146वें स्थान पर है, आर्थिक हिस्सेदारी में 143वें स्थान पर, शिक्षा में 107वें स्थान पर और राजनीतिक सशक्तिकरण में 48वें स्थान पर है.
तस्वीर: Sanjay Kanojia/AFP
स्वास्थ्य क्षेत्र में बुरा हाल
स्वास्थ्य जेंडर गैप में जन्म के समय लिंग अनुपात और स्वास्थ्य आयु संभाविता का आकलन किया गया. इन मोर्चों पर भारत का प्रदर्शन 146 देशों में सबसे खराब पाया गया.
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भारत में राजनीतिक सशक्तिकरण
राजनीतिक सशक्तिकरण में भारत का स्थान काफी ऊंचा है और वैश्विक औसत से ऊपर है, लेकिन कुल अंक (0.267) काफी कम हैं. यहां तक कि बांग्लादेश ने भी 0.546 अंक हासिल किए हैं.
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हालांकि कई अपवाद भी मौजूद हैं. जैसे कि जर्मन फुटबॉल टीम की कप्तान और मशहूर खिलाड़ी आलेग्जांद्रा पोप सालाना लगभग डेढ़ लाख यूरो कमाती हैं. इसके पीछे उनका खेल और लोकप्रियता दोनों काम करते हैं. इसी तरह इंस्टाग्राम पर उनके तीन लाख से ज्यादा फॉलोअर के साथ देश की सबसे लोकप्रिय खिलाड़ियों में शामिल जूलिया ग्विन को अखबार बिल्ड के मुताबिक हर महीने करीब आठ हजार यूरो की कमाई होती है. साथ ही विज्ञापन आदि से उन्हें 65 हजार यूरो सालाना भी मिलते हैं. लेकिन ये अपवाद हैं और दूसरे देशों के मुकाबले फिर भी बहुत कम हैं. मिसाल के तौर पर फ्रांस में ओलिंपिक ल्योन के लिए खेलने वालीं जेनिफर मारोत्सान की सालाना कमाई लगभग साढ़े तीन लाख यूरो है.
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लंबी लड़ाई बाकी है
कुछ विशेषज्ञ इस अंतर की बड़ी वजह दोनों खिलाड़ियों के मैचों के लिए बाजार और दर्शकों में अंतर को मानते हैं. लेकिन बुर्रे इस अंतर को समुचित आधार नहीं मानतीं. वह कहती हैं कि वजह महिलाओं के साथ होने वाला भेदभाव है. इस इंटरव्यू में बुर्रे बताती हैं कि अमेरिका, ब्राजील, इंग्लैंड और नॉर्वे में महिला खिलाड़ियों को पुरुषों के बराबर सैलरी और बोनस मिल रहे हैं लेकिन जर्मनी में यह अंतर अब भी बहुत बड़ा है.
अमेरिका में महिला फुटबॉलरों को पुरुषों के बराबर सैलरी मिलनी भी हाल ही में शुरू हुई है और इसके लिए खिलाड़ियों को छह साल तक लड़ाई लड़नी पड़ी. वर्ल्ड कप जीतने वाली अमेरिका की महिला फुटबॉल टीम के सदस्य और अधिकारियों ने कानूनी लड़ाई के बाद यह बराबरी हासिल की है. इसी साल फुटबॉल संघ ने मुकदमे को अदालत के बाहर ही समझौते के जरिए खत्म किया और महिलाओं को बराबर सैलरी देने पर राजी हुआ.
बुर्रे कहती हैं कि हालात पहले से बेहतर हुए हैं और अब महिला खिलाड़ियों को ज्यादा मीडिया कवरेज, ज्यादा विज्ञापन आदि मिलने लगे हैं लेकिन अभी लंबा रास्ता तय करना बाकी है.
रिपोर्टः विवेक कुमार (एपी, डीपीए)
छोटे बाल, सऊदी की कामकाजी महिलाओं की पसंद
सऊदी अरब में कामकाजी महिलाओं की संख्या बढ़ रही है और इसी के साथ कामकाजी महिलाओं के एक बड़े तबके में छोटे बाल रखने का चलन भी बढ़ रहा है.
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छोटे बाल, नया अंदाज
ये हैं सऊदी अरब की महिला डॉक्टर सफी (बदला हुआ नाम). एक समय में उनके बाल कंधे तक हुआ करते थे. जब उन्होंने रियाद के अस्पताल में नई नौकरी पकड़ी तो उन्होंने लंबे बालों से छुटकारा पाने का फैसला किया. उनका कहना है कि बड़े बालों की देखभाल करना मुश्किल हो रहा था.
तस्वीर: Fayez Nureldine/AFP/Getty Images
"बॉय" कट बाल है पसंद
सऊदी अरब में अधिक से अधिक संख्या में महिलाओं रोजगार के क्षेत्र में आ रही हैं. कई महिलाओं का कहना है कि "बॉय" कट बाल रखना ज्यादा व्यावहारिक है.
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छोटे बाल रखने का ट्रेंड बढ़ा
मध्य रियाद में एक हेयरड्रेसर लैमिस ने बताया "बॉय" कट बाल की मांग बढ़ गई है. उनका कहना है कि हर दिन 30 में से सात या आठ महिला ग्राहक इस तरह की कटिंग की मांग करती हैं.
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काम पर छोटे बाल के फायदे
डॉ. सफी कहती हैं कि काम के दौरान यह लुक अवांछित पुरुष ध्यान से सुरक्षा के रूप में भी काम करता है, जिससे वह अपने मरीजों पर ध्यान केंद्रित कर सकती हैं.
तस्वीर: Fayez Nureldine/AFP/Getty Images
समाज में बढ़ रही है महिलाओं की भागीदारी
मोहम्मद बिन सलमान एक दशक के भीतर देश के कार्यस्थल में कम से कम 30 प्रतिशत महिलाओं की भागीदारी चाहते थे. लेकिन यह लक्ष्य देश ने पहले ही पा लिया. इसी साल मई में दावोस में विश्व आर्थिक मंच में सऊदी पर्यटन मंत्री राजकुमारी हाइफा अल-सऊद ने कहा कि 36 प्रतिशत कार्यबल वर्तमान में महिलाएं हैं.
मोहम्मद बिन सलमान के समय में सऊदी महिलाओं में हिजाब पहनने की प्रवृत्ति में कमी आई है. कई कामकाजी महिलाएं अब सोचती हैं कि कार्यस्थल में हिजाब पहनकर तेजी से चलना मुश्किल है.