छह साल बाद जिहादियों की कैद से रिहा हुआ दक्षिण अफ्रीकी
१८ दिसम्बर २०२३
लीबिया में आतंकियों द्वारा अगवा किए गए एक दक्षिण अफ्रीकी नागरिक को रिहा कर दिया गया है. गार्को वान डेवेंटर छह साल तक जिहादियों की कैद में रहे.
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दक्षिण अफ्रीका के स्वास्थ्यकर्मी गार्को वान डेवेंटर का छह साल लंबा अपहरण खत्म हो गया था. 48 साल के डेवेंटर को 2017 में लीबिया में अगवा किया गया था. अपहरणकर्ताओं ने उन्हें अल कायदा से जुड़े आतंकी संगठन जमात नुसरत अल-इस्लाम वल मुसलीमीन को बेच दिया था.
एक मानवाधिकार संगठन गिफ्ट ऑफ द गिवर्स के मुताबिक वान डेवेंटर को माली और अल्जीरिया की सीमा पर रिहा किया गया. संगठन का दावा है कि दक्षिण अफ्रीका का यह अपहरण का अब तक का सबसे लंबा मामला है.
माली के एक सुरक्षा अधिकारी ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "हमें सूचना मिली है कि दो दिन पहले दक्षिण अफ्रीकी बंधक को रिहा कर दिया गया है.” इस अधिकारी ने बताया कि डेवेंटर को अल्जियर्स के एक अस्पताल में देखरेख के लिए रखा गया है.
ये 6 हैं तालिबान के सरगना
जिस तालिबान ने अमेरिका के जाते ही अफगानिस्तान पर नियंत्रण कर लिया है, उसका नेतृत्व छह लोगों के हाथ में है. जानिए, कौन हैं ये लोग...
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हैबतुल्लाह अखुंदजादा
इस वक्त तालिबान का सुप्रीम लीडर है हैबतुल्लाह अखुंदजादा. 2016 में मुल्लाह मंसूर अख्तर के एक अमेरिकी ड्रोन हमले में मारे जाने के बाद उसे नेतृत्व मिला था. उससे पहले वह पाकिस्तान के कुलचक शहर में एक मस्जिद में मौलवी था. तालिबान में अखुंदजादा का कहा ही पत्थर की लकीर होता है.
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मुल्ला अब्दुल गनी बरादर
मुल्ला अब्दुल गनी बरादर (दाएं) तालिबान के संस्थापकों में से है. कतर में तालिबान की निर्वासित सरकार का अध्यक्ष वही था और अमेरिका के साथ शांति वार्ता में शामिल रहा. 2010 में पश्चिमी सेनाओं ने उसे पकड़ लिया था लेकिन 2018 में छोड़ दिया गया.
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सिराजुद्दीन हक्कानी
बड़े कमांडर जलालुद्दीन हक्कानी का बेटा सिराजुद्दीन हक्कानी शक्तिशाली हक्कानी नेटवर्क का प्रमुख है. यही संगठन अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर सक्रिय है और तालिबान की आर्थिक और सैन्य संपत्तियों की देखरेख करता है. हक्कानी इस वक्त संगठन का उप प्रमुख भी है.
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शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई
स्तानिकजई पिछले करीब एक दशक से दोहा में रह रहा है. उसे पाकिस्तानी सेना और आईएसआई से प्रशिक्षण मिला है. 1996 में वह क्लिंटन प्रशासन से तालिबान की तत्कालीन सरकार को मान्यता दिलाने के प्रयास में अमेरिका भी गया था.
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मुल्ला मोहम्मद याकूब
मोहम्मद याकूब तालिबान के संस्थापक मुल्ला मोहम्मद उमर का बेटा है. उसका काम संगठन के सैन्य अभियान को देखना है. माना जाता है कि उसकी उम्र 31 साल है. 2020 में उसे संगठन का सैन्य प्रमुख बनाया गया था. उसे उदारवादी गुट का माना जाता है, जिसने अमेरिका से बातचीत की.
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अब्दुल हकीम हक्कानी
तालिबान के शांतिवार्ता दल का प्रमुख अब्दुल हकीम हक्कानी 2001 से पाकिस्तान के क्वेटा में रहा. उसे सितंबर 2020 में अफगानिस्तान में हो रही बातचीत के लिए नियुक्त किया गया. वह तालिबान के न्याय विभाग का प्रमुख है.
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उनकी पत्नी शिरीन वान डेवेंटर ने कहा कि परिवार इस समाचार से अत्यधिक भावुक है और कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता. दक्षिण अफ्रीकी एनजीओ गिफ्ट ऑफ द गिवर्स इस मामले में मध्यस्थ की भूमिका निभा रहा था. उसने एक बयान जारी कर बताया था कि परिवार के अनुरोध पर वह मध्यस्थ बना था और और उसने जेएनआईएम से संपर्क किया था.
वान डेवेंटर की कहानी
गेर्को वान डेवेंटर नवंबर 2017 में लीबिया की राजधानी त्रिपोली से करीब एक हजार किलोमीटर दूर एक बिजली संयंत्र निर्माण स्थल की ओर जा रहे थे. तब उन्हें जिहादियों ने अगवा कर लिया था. उनके परिवार की ओर से तब जारी एक अपील के मुताबिक उस वक्त वह एक सुरक्षा कंपनी के लिए स्वास्थ्यकर्मी के तौर पर काम कर रहे थे.
उनके साथ तीन तुर्क इंजीनियर भी थे जिन्हें सात महीने बाद रिहा कर दिया गया. लेकिन वान डेवेंटर की रिहाई नहीं हो पाई और अपहरणकर्ता उन्हें माली ले गए. 2018 में अपहरणकर्ताओं ने उन्हें आतंकी समूह अल कायदा से जुड़े संगठन जमात नुसरत अल-इस्लाम वल मुसलमीन को बेच दिया.
पाकिस्तान: एक कबायली महिला का आतंकवाद से संघर्ष
अफगान सीमा से लगे पाकिस्तान के मोहमंद जिले में रहने वाली बसुआलिहा का पति और बेटा आतंकी हमलों में मारे गए थे. आज जब इलाके में तालिबान के लौटने का डर फैलता जा रहा है, 55-वर्षीय बसुआलिहा किसी तरह अपने हालात से लड़ रही हैं.
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एक कठिन जीवन
पाकिस्तान की कबायली महिलाओं के लिए जिंदगी कठिन है. 55 साल की विधवा बसुआलिहा के लिए आतंकवादी हमलों में 2009 में अपने बेटे और 2010 में अपने पति को खो देने के बाद जिंदगी और दर्द भरी हो गई. वो अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली जिले मोहमंद में गलनाइ नाम के शहर में रहती हैं. 2001 में अमेरिका के अफगानिस्तान पर आक्रमण के बाद इस इलाके पर तालिबान के विद्रोह का बड़ा बुरा असर पड़ा था.
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हर तरफ से हमले
बसुआलिहा के बड़े बेटे इमरान खान की 23 साल की उम्र में एक स्थानीय "शांति समिति" ने हत्या कर दी थी. बसुआलिहा ने डीडब्ल्यू को बताया कि वो समिति एक तालिबान-विरोधी समूह थी और उसके लोगों ने उनके बेटे को आतंकवादियों की मदद करने के शक में मार दिया था. पिछले कुछ सालों में यहां थोड़ी शांति आई है, लेकिन तालिबान के लौटने की संभावना से यहां फिर से डर का माहौल कायम हो गया है.
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एक हिंसक दौर
अगले ही साल छह दिसंबर 2010 को बसुआलिहा के पति अब्दुल गुफरान की एक सरकारी इमारत पर आत्मघाती बम विस्फोट में जान चली गई. उन्होंने बताया कि उनके पति अपने बेटे की मौत का मुआवजा लेने वहां गए थे. हमले में बीसियों लोग मारे गए थे. बसुआलिहा कहती हैं कि कबायली इलाकों में पति या किसी और व्यस्क मर्द के बिना एक महिला की जिंदगी खतरों और जोखिमों से भरी हुई होती है.
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उम्मीद का दामन
बसुआलिहा को अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है. उनके गांव में गैस, बिजली की स्थिर आपूर्ति और इंटरनेट जैसी सुविधाएं नहीं हैं लेकिन पति और बेटे की मौत के बावजूद उन्होंने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा. उन्हें सरकार से मदद के रूप में 10,000 रुपये हर महीने मिलते थे, लेकिन को सिर्फ इस पर निर्भर नहीं रहना चाहती थीं. सरकारी मदद 2014 में बंद भी हो गई.
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सिलाई का काम
बसुआलिहा चाहती हैं कि उनके बाकी बच्चों को उचित शिक्षा मिले. उन्होंने बताया, "यह आसान नहीं था. एक बार तो मुझे ऐसा लगने लगा था कि मेरी जिंदगी बेकार है और मैं इस समाज में नहीं रह सकती हूं." आज कपड़ों की सिलाई उनकी कमाई का एक अहम जरिया है. वो महिलाओं के लिए सूट सिलती हैं और हर सूट के लिए 150-200 रुपए लेती हैं.
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मर्द का साथ अनिवार्य
बसुआलिहा कहती हैं, "मेरे पति की मौत के बाद मैं रोटियां बनाती थी और मेरी छोटी बेटियां उन्हें मुख्य सड़क पर बेचा करती थीं. फिर मेरी बेटियां थोड़ी बड़ी हो गईं और हमारे इलाके में लड़कियों का 'इधर उधर घूमना' बुरा माना जाता है." वो कहती हैं कि इसके बाद उन्होंने रजाइयां और कंबल सिलना और उन्हें बेचना शुरू किया. जब भी वो बाजार जाती हैं उनके साथ एक मर्द जरूर होना चाहिए, चाहे वो किसी भी उम्र का हो.
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और हिंसा होने वाली है?
पाकिस्तान के उत्तरी और उत्तर-पश्चिमी कबायली इलाकों में ऐसे हजारों परिवार हैं जो हिंसा के शिकार हुए हैं. बसुआलिहा के देवर अब्दुर रजाक कहते हैं उन्हें आज भी याद है जब मियां अब्दुल गुफरान तालिबान के हमले में मारे गए. वो उम्मीद कर रहे हैं कि कबायली इलाके एक बार फिर हिंसा और उथल पुथल में ना डूब जाएं. (सबा रहमान)
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गिफ्ट ऑफ द गिवर्स का कहना है कि शुरुआत में वान डेवेंटर की रिहाई के लिए 30 लाख अमेरिकी डॉलर की फिरौती मांगी गई थी लेकिन बाद में मोलभाव करके इसे पांच लाख डॉलर तक लाया गया. हालांकि यह नहीं बताया गया है कि यह फिरौती दी गई या नहीं. संगठन ने बस इतना कहा कि परिवार इतना पैसा नहीं दे सकता था.
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आखिरकार रिहाई
वान डेवेंटर की रिहाई के लिए अफ्रीका में लोगों ने सड़कों पर प्रदर्शन भी किए थे. कोविड महामारी के दौरान उनकी रिहाई की कोशिशें ठंडी पड़ गई थीं. तब उनकी पत्नी शिरीन ने बयान जारी कर कहा था कि शुरुआत में कोशिशों में तेजी रही लेकिन कोविड के दौरान ये कोशिशें ठंडी पड़ गईं.
अफ्रीका के युद्धग्रस्त इलाकों में विदेशियों की अपहरण की कई घटनाएं हो चुकी हैं. 2016 में 61 साल के एक मानवाधिकार कार्यकर्ता अमेरिकी नागरिक जेफ्री वुडके का अपहरण कर लिया गया था. उन्हें सात साल बाद इस साल मार्च में रिहाई मिली. 48 साल के फ्रांसीसी पत्रकार ओलिवर डुबुऑ को भी इस साल मार्च में दो साल बाद रिहा किया गया.
डुबुऑ ने अपनी रिहाई के बाद बताया था कि अपहरण के दौरान उन्होंने करीब एक साल वान डेवेंटर के साथ बिताया था. वान डेवेंटर की रिहाई के समाचार पर प्रतिक्रिया देते हुए डुबुऑ ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर लिखा, "यह क्रिसमस का शानदार तोहफा है.”