जर्मनी का हथियार निर्यात तेजी से बढ़ रहा है. इस साल नया रिकॉर्ड बन सकता है. 2015 में भी रिकॉर्ड निर्यात हुआ था.
विज्ञापन
जर्मनी का हथियार निर्यात पूरे उफान पर है. 2015 में दोगुना हो गया था. इस साल नया रिकॉर्ड बनने जा रहा है क्योंकि पहली छमाही में ही पिछले साल से बेहतर प्रदर्शन हो चुका है. लेकिन जर्मन सरकार ऐसा चाहती नहीं थी.
जर्मन अखबार डी वेल्ट ने एक रिपोर्ट में बताया है कि 2016 की पहली छमाही में देश का हथियार निर्यात बीते साल की पहली छमाही से 50 करोड़ यूरो ज्यादा हो चुका है. 2016 की पहली छमाही में देश ने 4 अरब यूरो से ज्यादा के हथियार बेचने के सौदे कर लिए हैं. 2015 की पहली छमाही में साढ़े तीन अरब यूरो का निर्यात हुआ था.
इस खबर के आने से एक दिन पहले ही सरकार को हथियार निर्यात बढ़ने पर सफाई देनी पड़ी थी क्योंकि वेल्ट अम जोनटाग अखबार ने खुलासा किया था कि 2015 में जर्मनी का हथियार निर्यात 2014 से दोगुना रहा था और यह एक रिकॉर्ड है. ऐसा तब हो रहा है जब सरकार ने वादा किया था कि हथियारों के निर्यात में कमी लाई जाएगी. वित्त मंत्री और वाइस चांसलर जिगमार गाब्रिएल ने पद संभालते ही कहा था कि वह हथियार निर्यात में कमी लाना चाहते है.
हथियार निर्यात रिपोर्ट 2015 बताती है कि साल भर में 7.86 अरब यूरो का निर्यात हुआ. 2014 के मुकाबले यह दोगुना था. समाचार चैनल एआरडी के मुताबिक जर्मनी ने इस सदी का अब तक का सबसे ज्यादा हथियार निर्यात 2015 में ही किया है.
देखिए, रूस के इन हथियारों से कांपती दुनिया
रूस के इन हथियारों से सहम जाती है दुनिया
शीत युद्ध के बाद से रूस को सैन्य रूप से कमजोर माना जाने लगा. लेकिन सीरिया के संघर्ष ने साफ कर दिया है कि रूस सैन्य रूप से बहुत ताकतवर है. रूस के पास ऐसे कई हथियार हैं जो मॉस्को को फिर से सुपरपावर बना सकते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
टी-14 टैंक
यह पांचवीं पीढ़ी का टैंक है. रूस ने इसे 2015 में लॉन्च किया. इस टैंक को रोबोटिक कॉम्बैट व्हीकल में भी बदला जा सकता है. हाल ही में रूस ने इस पर 152 एमएम की तोप लगाने का एलान किया है. रूसी उपप्रधानमंत्री दिमित्रि रोगोजिन के मुताबिक, यह तोप "एक मीटर मोटी स्टील की चादर को भेद सकती है."
तस्वीर: Reuters/Host Photo Agency/RIA Novosti
युद्धपोत प्योत्र वेलिकी
अटलांटिक महासागर में रूस के उत्तरी बेड़े का यह सबसे घातक युद्धपोत है. परमाणु ऊर्जा से चलने वाला यह युद्धपोत किरोव क्लास युद्धपोतों का हिस्सा है. नाटो इसे "विमानवाही पोतों का हत्यारा" कहता है. यह बैलेस्टिक मिसाइल को भी नष्ट कर सकता है.
तस्वीर: AFP/Getty Images
सुखोई टी-50
रूस का यह लड़ाकू विमान अमेरिका के हर तरह के लड़ाकू विमानों पर भारी पड़ता है. 2010 में पहली उड़ान के बाद रूस और भारत ने इसे साथ बनाने का फैसला किया. रणनीतिक साझीदारी के तौर पर रूस और भारत 2017 से इसे बड़े पैमाने पर बनाएंगे. लेकिन इस योजना पर वित्तीय मतभेद भारी पड़ रहे हैं.
तस्वीर: DMITRY KOSTYUKOV/AFP/Getty Images
एस-400 मिसाइल
रफ्तार 17,000 किलोमीटर प्रति घंटा और 400 मीटर के दायरे में किसी भी लक्ष्य को भेदने की क्षमता के चलते पायलट इससे घबराते हैं. सीरिया के उडारान खामेमिम बेस में जब रूस ने इन मिसाइलों को तैनात किया तो अमेरिका को अपने लड़ाकू विमान वहां से हटाने पर मजबूर होना पड़ा. अब रूस एस-400 को और बेहतर कर रहा है.
तस्वीर: picture alliance/dpa/A.Vilf
सुखोई एसयू-35
रूस का यह लड़ाकू विमान अमेरिका के एफ-16 पर भारी पड़ता है. इसका मुकाबला करने के लिए अमेरिका ने एफ-35 बनाया. लेकिन हाल ही में अमेरिकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन के मुताबिक एफ-35 भी सुखोई से कमतर है. सुखोई एसयू-35 की तेज रफ्तार और जबरदस्त चपलता को टक्कर देना बहुत मुश्किल है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
हाइपरसोनिक रॉकेट वाईयू-71
रूस काफी समय से परमाणु हथियारों के लिए हाइपरसोनिक मिसाइल बनाना चाहता था. "प्रोजेक्ट 4204" नाम के सीक्रेट कोड के साथ रूस ने वाईयू-71 बनाया. इसकी रफ्तार 12,000 किलोमीटर प्रतिघंटा है. जैन्स इंटेलिजेंस रिव्यू के मुताबिक यह मिसाइल आराम से नाटो के डिफेंस सिस्टम को भेद सकती है.
तस्वीर: Reuters/Kyodo
लड़ाकू हेलीकॉप्टर एमआई-28एन
अमेरिकी कंपनी बोइंग के अपाचे लॉन्गबो लड़ाकू हेलीकॉप्टर रफ्तार और हथियारों की क्षमता के मामले में इससे पीछे हैं. रूस का यह हेलीकॉप्टर टैंक, बख्तरबंद गाड़ियों पर हमला कर सकता है. यह रात में भी उड़ता है.
तस्वीर: Reuters/T. Makeyeva
विमानवाही एडमिरल कुजनेत्सोव
एडमिरल कुजनेत्सोव दुनिया का अकेला विमानवाही पोत है जो कई तरह की एंटी बैलेस्टिक हथियारों और पनडुब्बी से लैस है. 1990 में पेश किया गया यह पोत अमेरिकी विमानवाही पोतों से उलट अकेला समंदर का सफर कर सकता है. वैसे 1991 में सोवियत संघ के विघटन के वक्त यह पोत यूक्रेन के हाथ लगने वाला था.
तस्वीर: picture alliance/dpa/Sana
Tupolev Tu-160M
टीयू-160एम इस वक्त दुनिया का सबसे बड़ा और भारी बमवर्षक है. रूसी पायलट इसे "सफेद हंस" कहते हैं. 2014 में आधुनिकीकरण के बाद टीयू-160एम की युद्ध क्षमता दोगुनी कर दी गई.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
परमाणु पनडुब्बी यूरी डोग्लोरुकी
बीते दशक में रूस ने बड़ी पनडुब्बियों के बजाए छोटी पनडुब्बियां बनानी शुरू कीं लेकिन यह जानलेवा साबित हुआ. यूरी डोग्लोरुकी के साथ रूस ने इस तकनीकी बाधा को दूर किया. साउंडप्रूफ होने की वजह से समंदर में इसका पता लगाना बहुत ही मुश्किल है. इसमें परमाणु हथियार लगाए जा सकते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
10 तस्वीरें1 | 10
2016 के पहले छह महीनों में ही निर्यात 4 अरब यूरो को पार कर चुका है. इनमें से 1.7 अरब यूरो के हथियार मिडल ईस्ट और उत्तरी अफ्रीका गए हैं जहां युद्ध चल रहे हैं. इनमें अल्जीरिया के साथ हुआ एक अरब यूरो का फ्रिगेट समझौता भी है जिसके तहत लड़ाकू समुद्री जहाज बेचा गया था.
2013 में जब गाब्रिएल वित्त मंत्री बने थे तो उन्होंने शपथ ली थी कि अपने कार्यकाल में वह जर्मनी के हथियार निर्यात में कमी करेंगे. अब नए आंकड़ों के बाद उनसे जवाब देते नहीं बन रहा है. हालांकि उनकी सफाई यह है कि जिन समझौतों के कारण ये आंकड़े बढ़े हैं वे उनके मंत्री बनने से पहले ही हो चुके थे. अल्जीरिया से युद्धपोत का समझौता ऐसा ही है. इसकी मंजूरी गाब्रिएल के पद संभालने से पहले ही दी जा चुकी थी.
जानिए, कौन है हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार
कौन है हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार
स्वीडन के थिंक टैंक सिपरी की रिपोर्ट दिखाती है कि दुनिया में हथियारों का आयात करने वाले देशों में एशिया और मध्यपूर्व के देश सबसे आगे हैं. इनमें भी टॉप पर है भारत जहां पर्याप्त स्वदेशी हथियारों का निर्माण नहीं हो रहा है.
तस्वीर: AFP/Getty Images
#1 भारत
दुनिया भर में आयात किए जाने वाले कुल हथियारों का 14 फीसदी केवल भारत में आता है. हथियारों का आयात भारत में चीन और पाकिस्तान से तीन गुना ज्यादा है. सिपरी की रिपोर्ट में इसका कारण “भारत की अपनी आर्म्स इंडस्ट्री में प्रतिस्पर्धी स्वदेशी हथियार डिजाइन कर पाने में असफल रहना” बताया गया है. सबसे ज्यादा हथियार रूस (70%), अमेरिका (14%) और इस्राएल (4.5%) से आते हैं.
तस्वीर: Getty Images
#2 सऊदी अरब
पहले के मुकाबले बीते पांच सालों में सऊदी अरब में हथियारों का इंपोर्ट 275 प्रतिशत बढ़ा. सीरिया और यमन में जारी युद्ध की स्थिति का भी इस बढ़त में हाथ है. सबसे ज्यादा हथियार अमेरिका और ब्रिटेन से आ रहे हैं. सिपरी की रिपोर्ट के अनुसार "तेल के दामों में आई कमी के बावजूद, मध्य पूर्व में हथियारों की बड़ी खेप आना जारी रहेगा क्योंकि बीते पांच सालों में कई अनुबंधों पर हस्ताक्षर हुए हैं."
तस्वीर: AFP/Getty Images
#3 चीन
विश्व के कुल आयात में करीब 4.7 फीसदी हिस्सेदारी वाला चीन धीरे धीरे अपने हथियारों की जरूरत खुद पूरी करने की ओर अग्रसर है. 2006-11 के मुकाबले 2011-15 में आयात में 25 फीसदी की कमी दर्ज हुई. 21वीं सदी के शुरुआती सालों में चीन दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक हुआ करता था. अब तीसरे स्थान पर है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Images/Color China Photo/Z. Lei
#4 संयुक्त अरब अमीरात
बीते पांच सालों में उसके पहले के पांच सालों की अपेक्षा पूरे मध्यपूर्व इलाके में हथियारों का आयात 61 फीसदी बढ़ा. इसी दौरान केवल संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में आयात में 35 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज हुई. जबकि कतर में यह 279 फीसदी बढ़ गया. सबसे ज्यादा हथियार अमेरिका (65%) से आते हैं. हाल ही में यूएई ने फ्रांस से 60 नए रफाएल लड़ाकू जेट खरीदने का सौदा किया है.
तस्वीर: picture alliance/dpa/Ecpad Handout
#5 ऑस्ट्रेलिया
सरकार हथियारों की खरीद 65 फीसदी तक बढ़ा कर बीते पांच सालों में ऑस्ट्रेलियाई सेना को मजबूत बना रही है. ऑस्ट्रेलिया प्रोजेक्ट कंगारू नाम के एक बड़े प्रोजेक्ट के तहत 12.4 अरब डॉलर की कीमत पर अमेरिका से 72 स्टेल्थ फाइटर जेट एफ-35 खरीदेगा. हालांकि अभी एफ-35 जेटों के निर्माण और विकास की प्रक्रिया में कुछ बाधाएं आती दिख रही हैं. कई सेना विशेषज्ञ इसे रूस के सुखोई सू-35 से कम खूबियों वाला बताते हैं.
तस्वीर: U.S. Navy photo/courtesy Lockheed Martin/Getty Images
#6 तुर्की
तुर्की विदेशी हथियारों पर अपनी निर्भरता कम करने की ओर प्रयासरत है. दो द्वीपों वाले इस देश में अब ज्यादा से ज्यादा द्विपक्षीय टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की योजनाएं चलाई जा रही हैं. ऑस्ट्रेलिया की ही तरह तुर्की भी नाटो का सदस्य देश है. और उसने भी अमेरिका से एफ-35 जेट विमानों की खरीद की है. तुर्की नाटों के साथ मिलकर अपना खुद का युद्धक टैंक बनाने की कोशिश कर रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/AA/Ozge Elif Kizil
#7 पाकिस्तान
चीनी हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार पाकिस्तान ही है. हाल ही में इस्लामाबाद ने डीजल से चलने वाली आठ चीनी पनडुब्बियां, टाइप 41 युआन, खरीदने का सौदा किया है. इसके अलावा पाकिस्तानी तोपखाने और हवाई बेड़े अभी भी अमेरिका से आयात होते हैं.
केवल पांच सालों में आयातकों की सूची में 43वें स्थान से 8वें पर आने वाले इस कम्युनिस्ट देश में सबसे ज्यादा हथियार रूस से आ रहे हैं. पांच सालों के अंतराल में आयात में करीब 700 फीसदी की बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है. दक्षिण चीन सागर में जारी संघर्ष के कारण वियतनाम अपनी जलसेना और वायुसेना की लड़ाकू क्षमता को और मजबूत करने की कोशिश कर रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/Russian Look
8 तस्वीरें1 | 8
लेकिन बात सिर्फ इतनी सी नहीं है. हाल के सालों में जर्मनी ने जिन देशों को हथियार बेचे हैं उनमें गैर नाटो देश ज्यादा हैं. सीडीयू-एफडीपी ने जब 2009 में सरकार बनाई थी तो नाटो सदस्य देशों को ज्यादा हथियार बेचे जाते थे. गैर नाटों देशों को तब कुल हथियारों का 20 से 40 फीसदी बेचा जा रहा था. इस सरकार के आने के बाद यह आंकड़ा बढ़कर 60 फीसदी तक पहुंच गया है.