जर्मनी के रक्षा मंत्री इस बात को लेकर खासे दबाव में हैं कि ब्यूरोक्रेसी में कटौती और जर्मन सेना को एक गंभीर लड़ाकू बल में बदलने के मामले में वह सफल हों.
विज्ञापन
जैसा कि कहा जाता है- युद्धपोत को मोड़ने में समय लगता है. जर्मनी की सशस्त्र सेना, बुंडेसवेयर के लिए और भी ज्यादा समय लग सकता है.
उन्नत हथियारों को पहुंचाने से लेकर जवानों के मोजों तक की खरीद जर्मन सेना के लिए किरकिरी बनी है. बोरिस पिस्टोरियुस ने इसी साल रक्षा मंत्रालय का कार्यभार संभाला है और उनका कहना है कि इन सबको बदलना उनकी प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर है.
इस महीने की शुरुआत में जर्मन शस्त्र निर्माताओं के साथ मंत्रालय की एक बैठक के दौरान उन्होंने कहा, "किसी भी अन्य चीज से ज्यादा, यह बैठक बुंडेसवेयर के लिए खरीद में तेजी लाने के संबंध में है. बहुत सी खाली जगहों को भरना है.”
ये बयान पिस्टोरियुस की उन सार्वजनिक कोशिशों के अनुरूप हैं जिनमें वो कह चुके हैं कि वो उन मामलों में सफल हो सकते हैं जहां उनके पूर्ववर्ती असफल रहे थे. यानी बुंडेसवेयर को युद्ध के लिए तैयार रहने वाली सेना के रूप में तब्दील करने के मामले में.
यूक्रेन युद्ध के साए में जर्मनी में नए रक्षा मंत्री की नियुक्ति
जर्मनी में चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने बोरिस पिस्टोरियुस को नया रक्षा मंत्री नियुक्त किया है. जर्मनी रूसी हमला झेल रहे यूक्रेन को भारी हथियार देने में हिचकिचा रहा है और इसके कारण घरेलू और अंतरराष्ट्रीय आलोचना झेल रहा है.
लोवर सेक्सनी के गृह मंत्री बोरिस पिस्टोरियुस की नियुक्ति राजनीतिक प्रेक्षकों के लिए आश्चर्य लेकर आई. ओलाफ शॉल्त्स की सरकार में लैंगिक समानता पर ध्यान दिया गया है. इसलिए किसी महिला को ही इस पद पर नियुक्त करने की चर्चा थी, लेकिन पिस्टोरियुस का अनुभव काम आया. जर्मनी को इस समय रक्षा के मोर्चे पर घरेलू और अंतरराष्ट्रीय छवि संभालनी है.
तस्वीर: Droese/localpic/IMAGO
क्रिस्टीने लाम्ब्रेष्ट (एसपीडी) 2021-2023
लाम्ब्रेष्ट का एक साल से कुछ ज्यादा का कार्यकाल छोटे-छोटे कांडों के कारण सुर्खियों में रहा. कभी बेटे को साथ हेलिकॉप्टर में ले जाने के कारण तो कभी उनके असामयिक बयानों के कारण. सबसे ज्यादा आलोचना यूक्रेन को भारी हथियार देने में जर्मन सरकार की हिचकिचाहट के कारण हुई. इसकी वजह से चांसलर ओलाफ शॉल्त्स और एसपीडी की लोकप्रियता पर भी आंच आई.
तस्वीर: Sean Gallup/Getty Images
आनेग्रेट क्रांप कार्रेनबावर (सीडीयू) 2019-2021
कार्रेनबावर सीडीयू पार्टी की अध्यक्षता छोड़कर रक्षा मंत्री बनी थीं. लेकिन अपने कार्यकाल में उन्हें स्पेशल फोर्सेस की एक कंपनी को भंग करना पड़ा. पुलिस को उग्र दक्षिणपंथी नेटवर्क से जुड़े स्पेशल फोर्सेस के एक जवान के घर पर हथियारों का जखीरा मिला था. कार्रेनबावर ने सेना के उन जवानों से माफी मांगी, जिनके साथ उनके सेक्सुअल ओरिएंटेशन के कारण भेदभाव किया गया था.
तस्वीर: Michael Kappeler/dpa/picture alliance
उर्सुला फॉन डेय लाएन (सीडीयू) 2013-2019
उर्सुला फॉन डेय लाएन के कार्यकाल में बुंडेसवेयर का एजेंडा था, उसे भर्तियों के लिए आकर्षक बनाना. उसे कर्मचारियों, साजो-सामान और वित्तीय सुविधाओं से लैस करने की शुरुआत हुई. इसी दौरान जर्मन सेना ने इस्लामिक स्टेट के खिलाफ लड़ाई शुरू की और सुरक्षा बलों में जल, थल और वायु सेना के साथ साइबर युद्ध के लिए नई टुकड़ी का गठन किया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. I. Bänsch
थॉमस दे मेजियर (सीडीयू) 2011-2013
थॉमस दे मेजियर ने अनिवार्य सैन्य सेवा को खत्म किए जाने के बाद जर्मन सेना को नया रूप दिया. 2011 में उन्होंने सेना की संख्या घटाने, नौकरशाही को कम करने, अकुशलता को खत्म करने की योजना पेश की ताकि सेना को पूरी तरह पेशेवर सेना में बदला जा सके. बाद में उन्हें गृह मंत्री बना दिया गया.
तस्वीर: Reuters
कार्ल थियोडोर सू गुटेनबर्ग (सीएसयू) 2009-2011
गुटेनबर्ग जर्मनी के सबसे युवा रक्षा मंत्री थे. उन्हें कुंडुस में हुए हवाई हमले के नतीजों से निबटना पड़ा. बाद में उन्हें इन आरोपों से मुक्त कर दिया गया कि घटना के लिए रक्षा मंत्रालय की अपर्याप्त संचार नीति जिम्मेदार थी. उनके कार्यकाल में जर्मन सेना में व्यापक सुधार हुए और 2011 में अनिवार्य सैन्य सेवा को खत्म कर दिया गया. उन्हें अपने डॉक्टरल थीसिस में चोरी के आरोपों के चलते इस्तीफा देना पड़ा.
तस्वीर: picture alliance/dpa
फ्रांस योजेफ युंग (सीडीयू) 2005-2009
फ्रांस योजेफ युंग ने दक्षिणी अफगानिस्तान में लड़ाकू टुकड़ी भेजने की अमेरिका की मांग ठुकरा दी और उसके बदले अपेक्षाकृत शांत उत्तरी अफगानिस्तान में रेपिड रिएक्शन फोर्स भेजने का फैसला किया. उनके कार्यकाल में ही अमेरिकी लड़ाकू विमान ने जर्मन सेना के आग्रह पर कुंडुस में दो टैंकरों पर बमबारी की जिसमें 90 लोग मारे गए. युंग ने हमले की जिम्मेदारी ली.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
पेटर श्ट्रुक (एसीपीडी) 2002-2005
अफगानिस्तान में जर्मनी की सेना की तैनाती को उचित ठहराने के लिए पेटर श्ट्रुक ने कहा था, "जर्मनी की रक्षा हिंदूकुश में भी की जाएगी.“ उनके कार्यकाल में जर्मन सेना का आधुनिकीकरण हुआ और वह छोटे व क्षेत्रीय विवादों में हस्तक्षेप करने लायक बनी. सेना को तेज बनाने के साथ ही पेटर स्ट्रुक ने उसमें 2010 तक 10 फीसदी की कटौती की भी घोषणा की.
तस्वीर: Kurt Vinion/Getty Images
रूडॉल्फ शार्पिंग (एसपीडी) 1998-2002
रूडॉल्फ शार्पिंग के रक्षा मंत्री रहने के दौरान जर्मनी ने सर्बिया पर नाटो के हवाई हमलों में हिस्सा लिया. ये पहला मौका था जब जर्मन सेना ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जर्मनी के बाहर लड़ाकू कार्रवाई में हिस्सा लिया था. लेकिन यही वह समय भी था जब जर्मनी ने अमेरिका पर 09/11 के आतंकवादी हमले के बाद आतंकवाद विरोधी युद्ध में सीधे शामिल होने से इंकार कर दिया था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
फोल्कर रूहे (सीडीयू) 1992-1998
पहले शिक्षक रहे फोल्कर रूहे के नेतृत्व में जर्मन सेना बुंडेसवेयर की भूमिका में बदलाव शुरू हुआ और उसने नाटो के इलाके से बाहर विदेशी अभियानों में भाग लेना शुरू किया. कंबोडिया, सोमालिया और बाल्कन में संयुक्त राष्ट्र मिशनों में भाग लेकर जर्मन सेना ने आरंभिक अनुभव हासिल किए. बाद में उसने अफगानिस्तान और माली जैसे अभियानों में हिस्सा लिया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
गेरहार्ड श्टॉल्टेनबर्ग (सीडीयू) 1989-1992
पहले देश के वित्त मंत्री रह चुके गेरहार्ड श्टॉल्टेनबर्ग, उस समय देश के रक्षा मंत्री थे जब 1990 में कम्युनिस्ट विरोधी जन आंदोलन और साम्यवादी शासन के पतन के बाद जर्मनी का एकीकरण हुआ. 3 अक्तूबर 1990 को वे एकीकृत जर्मनी की संयुक्त सेना के प्रमुख बने. पूर्वी जर्मनी की सेना का पश्चिम जर्मनी की सेना में विलय हो गया और वह वारसॉ संधि से अलग होकर नाटो का हिस्सा बन गई.
तस्वीर: Sepp Spiegl/IMAGO
रूपर्ट शॉल्त्स (सीडीयू) 1988-1989
कम्युनिस्ट ब्लॉक के विघटन के दौर में रूपर्ट शॉल्त्स जर्मनी के रक्षा मंत्री थे. उन्होंने अपने कार्यकाल में दोनों सैनिक गुटों के बीच तनाव शिथिलन की नीति जारी रखी. 1989 में मंत्रिमंडल के पुनर्गठन के दौरान उन्हें हटा दिया गया, लेकिन वह सैन्य मामलों पर बोलते रहे. 2007 में उन्होंने यह कहकर हंगामा मचा दिया कि जर्मनी में परमाणु सत्ता बनाने की कोशिश करनी चाहिए.
तस्वीर: Sven Simon/United Archives/IMAGO
मानफ्रेड वोएर्नर (सीडीयू) 1982-1988
हेल्मुट कोल ने चांसलर बनने के बाद सेना में पाइलट रहे मानफ्रेड वोएर्नर को रक्षा मंत्री बनाया. बाद में वे नाटो के महासचिव भी रहे. वोएर्नर की 1983 में जनरल गुंटर कीसलिंग के मामले को लेकर आलोचना हुई. कीसलिंग पर सैन्य खुफिया सेवा ने समलैंगिक होने का झूठा आरोप लगाया था. उन्हें रिटायर कर दिया गया क्योंकि समलैंगिकता को उस समय सुरक्षा के लिए खतरा माना जाता था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
हंस आपेल (एसपीडी) 1978-1982
हंस आपेल जर्मनी के ऐसे पहले रक्षा मंत्री थे जिन्होंने सेना में काम नहीं किया था. उनके कार्यकाल के दौरान ही पश्चिमी सैन्य सहबंध नाटो का दोहरा फैसला हुआ. इस फैसले के तहत 1979 में कम्युनिस्ट सैनिक सहबंध वारसॉ पैक्ट को बैलिस्टिक मिसाइलों की संख्या में आपसी कटौती का प्रस्ताव दिया गया. लेकिन दूसरी तरफ और ज्यादा परमाणु हथियारों की तैनाती की धमकी भी दी गई.
तस्वीर: dapd
गेयॉर्ग लेबर (एसपीडी) 1972-1978
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान गेयॉर्ग लेबर नाजी वायुसेना में थे. बाद में वे ट्रेड यूनियन में सक्रिय रहे. बुंडेसवेयर के सैनिकों में उनका बड़ा सम्मान था. उनके कार्यकाल में बुंडेसवेयर का विस्तार हुआ और म्यूनिख व हैम्बर्ग में सेना की दो यूनिवर्सिटी शुरू की गईं. अपने मंत्रालय में पूर्वी जर्मन जासूसी के एक मामले में जिम्मेदारी को लेकर उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया.
तस्वीर: Egon Steiner/dpa/picture alliance
हेल्मुट श्मिट (एसपीडी) 1969-1972
बाद में चांसलर बनने वाले हेल्मुट श्मिट वामपंथी एसपीडी के पहले रक्षामंत्री थे. वे द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाजी सेना में अधिकारी थे और बाद में हैम्बर्ग ने मेयर और देश के वित्त मंत्री रहे. उनके कार्यकाल में सेना में अनिवार्य भर्ती के कार्यकाल को 15 महीने से घटाकर 8 महीने कर दिया गया था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
गेरहार्ड श्रोएडर (सीडीयू) 1966-1969
गेरहार्ड श्रोएडर रक्षा मंत्री बनने से पहले देश के गृहमंत्री और विदेश मंत्री रह चुके थे. 1966 में तत्कालीन चांसलर कुर्ट गियॉर्ग कीसिंगर ने उन्हें रक्षा मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी. 1969 में उन्होंने सीडीयू और उग्र दक्षिणपंथी एनपीडी के समर्थन से राष्ट्रपति का चुनाव लड़ा. लेकिन एसीपीडी के गुस्ताव हाइनेमन से चुनाव हार गए.
तस्वीर: Kurt Rohwedder/dpa/picture alliance
काई ऊवे फॉन हासेल (सीडीयू) 1963-1966
शुरुआत में जर्मन सेना बहुत से गैर सैनिक अभियानों में शामिल रही. मसलन बाढ़ और भूकंप के समय राहत और बचाव कार्य. काई ऊवे फॉन हासेल के कार्यकाल में ही 1960 के दशक के मध्य से सेना के असैनिक अभियानों की शुरुआत हुई. इसके साथ साथ उन्होंने बुंडेसवेयर के विस्तार और उसे मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
तस्वीर: Fritz Fischer/dpa/picture alliance
फ्रांस योजेफ श्ट्राउस (सीएसयू) 1956-1963
जर्मनी के दक्षिणी प्रांत बवेरिया के रूढ़िवादी नेता फ्रांस योजेफ श्ट्राउस 1953 से 1969 के बीच सरकार में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे. उन्हें पश्चिमी जर्मनी की नई सेना बुंडेसवेयर बनाने की जिम्मेदारी दी गई थी. 1961 में उनपर और उनकी सीएसयू पार्टी पर लॉकहीड कंपनी से रिश्वत लेने के आरोप लगे. दोनों ने आरोपों का लगातार खंडन किया.
तस्वीर: picture-alliance/F. Leonhardt
थियोडोर ब्लांक (सीडीयू) 1955-1956
थियोडोर ब्लांक बढ़ई परिवार में पैदा हुए थे और द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सेना में भर्ती हुए थे. 1945 में सीडीयू पार्टी की स्थापना के समय वे उसके संस्थापक सदस्यों में शामिल थे. रक्षा मंत्री के रूप में छोटे कार्यकाल के बाद वे 1957 से 1965 तक देश के श्रम और समाज कल्याण मंत्री रहे.
तस्वीर: akg-images/picture alliance
20 तस्वीरें1 | 20
पहला नियम: कम नियम
पिस्टोरियुस ने कहा है कि वो उन नियमों को दूर करना चाहते हैं जो शोध और विकास के साथ-साख खरीद में भी बाधक हैं, जो कई सालों से इकट्ठे हो गए हैं और वैधानिक जरूरतों के मामले में सबसे पहले आते हैं. जटिल अनुमोदन प्रक्रियाओं और मंत्रालय के पदानुक्रम की औपचारिकताओं में सुधार लाना है.
विज्ञापन
माना जाता है कि रचनात्मकता, लचीलापन और प्रस्ताव ऐसे कुछ शब्द हैं जो सेना के खरीद विभाग को निर्देशित करते हैं. इस विभाग में 11 हजार से ज्यादा लोग काम करते हैं. यह खुद रक्षा मंत्रालय से छह गुना बड़ा है.
अप्रैल के अंत में रक्षा मंत्रालय ने जिमर डिक्री नाम से न्यूज प्लेटफॉर्म बिजनेस इनसाइडर के साथ एक आंतरिक दस्तावेज प्रकाशित किया. यह दस्तावेज डीडब्ल्यू को मिला है और इसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि टाइम फैक्टर सर्वोच्च प्राथमिकता पर है और इसे तत्काल प्रभाव से लागू किया जाना है. यह सभी नए उपकरणों और परियोजनाओं के लंबित रहने के पीछे भी सबसे बड़ा कारण है.
कम से कम प्रतिरोध का रास्ता
सख्त जरूरत के बावजूद, मेमो महज एक कागज का टुकड़ा भर है. न तो यह मेमो और न ही पिस्टोरियुस के सख्त आदेश सुस्त ब्यूरोक्रेसी यानी नौकरशाही को हरकत में ला सकते हैं.
जर्मन काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशन्स (DGAP) में सेंटर फॉर सिक्योरिटी एंड डिफेंस के प्रमुख क्रिश्चियान मोलिंग कहते हैं, "कागज को समय का पता नहीं होता. डिक्री एक ढांचा बनाती है लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या ये सब चीजें सिस्टम में काम कर रही हैं.”
मोलिंग कहते हैं कि बदलाव में करीब दो साल लग सकते हैं. तब तक जर्मन राजनीति अगले आम चुनाव की तैयारी कर रही होगी और पूरक रक्षा खर्चों में करीब 100 अरब यूरो का इस्तेमाल किया जा सकेगा.
इसी वजह से पिस्टोरियुस पर परिणाम का दबाव बढ़ गया है. यदि वह सांसदों को यह भरोसा दिलाना चाहते हैं कि उनके मंत्रालय को बड़े, सामान्य वार्षिक बजट की जरूरत है, तो उन्हें यह दिखाना होगा कि वो इसे प्रभावी और कम खर्चीले तरीके से इस्तेमाल कर सकते हैं.
जिमर ने तय किया है कि आगे का रास्ता कम से कम प्रतिरोध का मार्ग है. सबसे पहले तो बिना विशिष्ट उपकरणों के काम करना, जिससे समय और लागत में बढ़ोत्तरी का खतरा रहता है. बजाय इसके डिग्री को तैयार या मुस्तैद उत्पादों के उपयोग की जरूरत होगी.
यह बदलाव कुछ उस तरह का है, जिनकी जर्मनी के सैन्य औद्योगिक परिसर में आलोचनाएं होती हैं, मसलन- इसके लिए कहा जाता है कि यहां पहले से मौजूद सस्ते विकल्पों के इस्तेमाल के बजाय पहिये का फिर से अविष्कार करने पर जोर देते हैं.
एक बोझिल विरासत
जर्मनी के रक्षा क्षेत्र ने मंत्रालय द्वारा किए गए नए बदलावों का स्वागत किया है जिसमें तेज, आसान खरीद और कम से कम नियमों पर जोर दिया गया है. इनका कहना है कि ये बदलाव उनके सुझावों से ही मेल खाते हैं.
फेडरल एसोसिएशन ऑफ द जर्मन सिक्योरिटी एंड डिफेंस इंडस्ट्री के मैनेजिंग डायरेक्टर हंस क्रिस्टोफर एट्जपोडीन ने डीडब्ल्यू को भेजे एक बयान में कहा, "नई जरूरतों का लगातार उपयोग हमें उद्योग के रूप में स्थापित करता है. हम बुंडेसवेयर को पहले से ही अपने उत्पादों को दे रहे हैं और बाजार में भी हमारे उत्पाद हैं जिसमें कई NATO देश भी हमारे ग्राहक हैं और इन सबके बीच हमने खुद को सक्षम साबित किया है.”
अपनी सेना को सशक्त बनाने के लिए बुंडेसवेयर का संघर्ष जर्मन पॉलिसी सर्कल में लंबे समय से मजाक का विषय बना रहा है. इसका असैनिक नेतृत्व तो आता है और चला जाता है, वो शायद ही इसके लिए कुछ प्रयास करते हों.
बुंडेसवेयर की चुनौतियों की जड़ें काफी गहरी हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में रिटायर्ड जर्मन ब्रिगेडियर क्लॉउज विटमन कहते हैं कि इसकी स्थापना नाजी शासन के खात्मे के तुरंत बाद फेडरल रिपब्लिक के साथ ही हुई थी लेकिन सेना में अविश्वास के चलते इसने शुरुआती दौर में ही कानूनी तौर पर घुटने टेक दिए.
जर्मनी के संविधान का अनुच्छेद 87 सशस्त्र सेनाओं और उनके प्रशासन के बीच एक विभाजक रेखा खींचता है. इसने सेना के लिए सामान की खरीद को सेना के ही अधिकार से दूर कर दिया है.
हालांकि तत्कालीन पश्चिमी जर्मनी की सेनाएं शीत युद्ध के दौरान ज्यादा मजबूत थीं लेकिन सोवियत खतरे खत्म होने के साथ-साथ सेना को धन मुहैया कराने की राजनीतिक इच्छाशक्ति समाप्त हो गई.
2022 में यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के चलते मानसिकता में बदलाव आना शुरू हुआ. युद्ध की शुरुआत के कुछ दिनों बाद ही चांसलर ओलाफ शुल्त्ज के अध्याय बदलने वालेसंबोधन ने सैन्य शक्ति को लेकर जर्मन संवेदनशीलता को बदल दिया है.
अपने पूर्ववर्तियों के विपरीत सुरक्षा वास्तविकता को लेकर पिस्टोरियुस के विचार काफी स्पष्ट हैं. विटमन कहते हैं कि उन्होंने चीजों को समझने में दिलचस्पी दिखाई है और सैन्य सहयोगियों की जरूरतों को सुनते हैं. वो कहते हैं, "मैं वास्तव में काफी आशावादी हूं और सोचता हूं कि पिस्टोरियुस ने आगे कदम बढ़ा दिया है.”
सद्भावना के बावजूद, विटमन कहते हैं कि वो परिणामों का इंतजार करेंगे और इससे पहले कि वो मिशन पूरा होने की घोषणा करें, वह सैनिकों से प्रतिक्रिया लेंगे.