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जर्मनी की अर्थव्यवस्था पर दोहरी मार

१२ नवम्बर २०२४

जर्मनी की अर्थव्यवस्था दोहरी मार का सामना कर रही है. देश की कंपनियों को मिलने वाले ऑर्डर 2009 की मंदी के बाद सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए हैं.

जर्मनी के हैम्बर्ग में बंदरगाह
तस्वीर: Gregor Fischer/Getty Images

जर्मनी की अर्थव्यवस्था इन दिनों गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है. कच्चे माल, खासकर लिथियम पर बढ़ती निर्भरता और ऑर्डर की कमी से उसकी स्थिति 2009 की मंदी के बाद से सबसे कमजोर हो गई है. यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी का विदेशी संसाधनों, खासकर चीन पर निर्भर रहना प्रमुख उद्योगों, जैसे ऑटोमोबाइल निर्माण के लिए खतरे का संकेत है. साथ ही, ऑर्डर की कमी से आर्थिक परेशानी और बढ़ रही है

सोमवार को जर्मनी के प्रमुख उद्योग संघ, फेडरेशन ऑफ जर्मन इंडस्ट्रीज (बीडीआई), ने चेतावनी दी कि जर्मनी की कच्चे माल, खासकर लिथियम के लिए आयात पर निर्भरता बढ़ रही है. बीडीआई ने बताया कि अगर चीन से लिथियम का आयात रुक जाता है, तो इससे जर्मनी की अर्थव्यवस्था को लगभग 115 अरब यूरो (122 अरब डॉलर) का नुकसान हो सकता है, जो औद्योगिक उत्पादन का लगभग 15 फीसदी है.

कच्चे माल पर निर्भरता का संकट

बीडीआई के अध्यक्ष, सीग्रिड रुस्वुर्म ने इस स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा, "राजनीतिज्ञों को हर संभव प्रयास करना चाहिए ताकि यह स्थिति पैदा ना हो." उन्होंने कहा कि जर्मनी और यूरोप जरूरी कच्चे माल के लिए वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पीछे छूटने के कगार पर हैं. रिपोर्ट के अनुसार, जर्मनी का 50 फीसदी लिथियम आयात चीन से होता है, जो 2014 में केवल 18 प्रतिशत था.

बीडीआई ने बताया कि ऑटोमोबाइल उद्योग पर इसका असर सबसे ज्यादा पड़ेगा. इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण में लिथियम का अहम योगदान है, जिससे जर्मनी के प्रमुख कार निर्माताओं को गंभीर संकट का सामना करना पड़ सकता है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि जर्मनी की अर्थव्यवस्था 23 अन्य खनिजों जैसे रेयर अर्थ मेटल्स पर भी काफी हद तक निर्भर है, जिनमें से अधिकतर चीन से आयात किए जाते हैं.

बीडीआई ने सुझाव दिया कि जर्मनी को एक ही देश पर निर्भरता घटानी चाहिए. इसके लिए उसे अन्य देशों से कच्चे माल के आयात के विकल्प ढूंढ़ने चाहिए. इसके साथ ही, घरेलू उत्पादन और प्रोसेसिंग की क्षमताओं को मजबूत करना भी जरूरी है. हाल ही में जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने भारत की यात्रा की थी, तो इसे भारत को चीन के विकल्प के रूप में तैयार करने की कोशिश माना गया था.

इसके अलावा, रिपोर्ट में कहा गया कि रीसाइक्लिंग तकनीकों में निवेश कर जर्मनी एक सर्कुलर इकोनॉमी स्थापित कर सकता है, जिससे आयात पर निर्भरता कम होगी.

ऑर्डरों में भारी गिरावट

एक और गंभीर स्थिति यह है कि म्यूनिख स्थित इफो इंस्टीट्यूट ने विभिन्न क्षेत्रों में ऑर्डर में भारी गिरावट दर्ज की है. इफो के आंकड़ों के मुताबिक, अक्टूबर में 41.5 फीसदी जर्मन कंपनियों ने ऑर्डर की कमी दर्ज की है, जो जुलाई में 39.4 फीसदी थी. यह आंकड़ा कोविड-19 महामारी के दौरान किसी भी समय से अधिक है और 2009 के वित्तीय संकट के बाद की सबसे खराब स्थिति है.

तस्वीर: Frank Hoermann/SVEN SIMON/picture alliance

इफो के अर्थशास्त्री क्लाउस वोलराबे ने कहा, "किसी भी उद्योग को इससे राहत नहीं मिल रही है. ऑर्डरों की कमी से जर्मनी का आर्थिक विकास बाधित हो रहा है."

रिपोर्ट के अनुसार, लगभग आधे निर्माण क्षेत्र में (47.7 फीसदी) ऑर्डरों की कमी है, जिनमें से बेसिक मेटल उत्पादन क्षेत्र में लगभग 68.3 फीसदी और मेटल प्रोडक्ट्स में 59.9 फीसदी ने ऑर्डर की कमी बताई.

ऑटोमोबाइल और व्यापार क्षेत्र में संकट

जर्मनी का प्रमुख ऑटोमोबाइल और केमिकल सेक्टर भी इस संकट का सामना कर रहा है. दोनों क्षेत्रों में करीब 44 फीसदी व्यवसायों ने ऑर्डर की कमी की बात कही है. व्यापार क्षेत्र की स्थिति भी चिंताजनक है, जिसमें 65.5 फीसदी व्यापारिक कंपनियों और 56.4 फीसदी खुदरा कंपनियों में ऑर्डर की कमी दर्ज की गई है.

सेवा क्षेत्र की स्थिति थोड़ी बेहतर है, जिसमें 32.1 फीसदी कंपनियों ने ऑर्डर कम होने की बात कही है, जो पहले 31.2 फीसदी थी. वोलराबे ने बताया कि भर्ती एजेंसियों पर इसका असर ज्यादा पड़ा है क्योंकि अस्थायी कर्मचारियों की मांग में कमी आई है. इसके विपरीत, कानूनी और टैक्स क्षेत्र के पेशेवर और अकाउटेंट्स स्थिति को लेकर ज्यादा आशावादी हैं, क्योंकि उच्च स्तर की नौकरशाही और नियमों के चलते उनकी मांग बनी हुई है.

आर्थिक असर और जरूरी कदम

विशेषज्ञों के मुताबिक ये दोनों संकट जर्मनी की अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा खतरा हैं. कच्चे माल पर निर्भरता और उद्योगों में ऑर्डर की कमी की वजह से आगे और भी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. बीडीआई और इफो इंस्टीट्यूट दोनों ही तुरंत कदम उठाने की जरूरत पर जोर दे रहे हैं ताकि इन कमजोरियों को दूर किया जा सके.

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बीडीआई ने नेताओं से कहा है कि वे कच्चे माल के लिए अन्य विकल्प तलाशें और घरेलू क्षमताओं को बढ़ाएं ताकि सप्लाई में किसी भी तरह की बाधा से अर्थव्यवस्था सुरक्षित रहे. हाल ही में यूरोपीय संघ ने चीन के इलेक्ट्रिक वाहनों पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने का प्रस्ताव पारित किया है, जिससे चीन सख्त नाराज है. ऐसे में डर है कि वह बदले की कार्रवाई कर सकता है, जिससे सबसे ज्यादा जर्मनी के प्रभावित होने का खतरा है.

वीके/सीके (डीपीए, रॉयटर्स)

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