पद और वेतन के मामले में जर्मनी में महिलाएं पुरुषों से आगे
८ नवम्बर २०२१
जर्मनी में बड़ी कंपनियों के निदेशक मंडल में महिलाओं का वेतन पुरुषों की तुलना में अधिक है. भले ही उनकी संख्या अभी भी पुरुषों की तुलना में कम है, फिर भी लैंगिक समानता हासिल करना अभी बहुत दूर है.
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जर्मनी में व्यापार सलाहकारों और लेखा परीक्षकों के एक समूह ईवाई ने हाल ही में एक सर्वेक्षण किया जिसमें पाया गया कि शेयर बाजार में सूचीबद्ध कंपनियों के कार्यकारी बोर्ड में महिलाएं वेतन वृद्धि के मामले में पुरुषों से आगे हैं. DAX कंपनियों की महिला बोर्ड सदस्यों के वेतन में पिछले साल औसतन 8.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई. यह लगभग 2.31 मिलियन यूरो है.
महिलाओं को वरीयता
दूसरी ओर कार्यकारी बोर्ड के पुरुष सदस्यों के वेतन में 2020 में औसतन 1.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई, जिसका मूल्य लगभग 1.76 मिलियन यूरो है. पुरुषों और महिलाओं की आय में वृद्धि दर या अंतर 31 प्रतिशत है. सर्वे ग्रुप ईवाई के पार्टनर येंस मासमैन के मुताबिक, "पुरुषों के कार्यकारी बोर्ड में महिलाओं का अनुपात पहले की तुलना में काफी कम है. लेकिन यह धीरे-धीरे बेहतर हो रहा है. वहीं वेतन के मामले में महिला अधिकारी बेहतर स्थिति में हैं."
इस स्थिति में सुधार का एक प्रमुख कारण वरिष्ठ पदों पर महिलाओं को वरीयता देने वाली कंपनियों की नीति है. मासमैन कहते हैं, "उच्च शिक्षित महिला अधिकारी व्यापार लेन-देन और सौदेबाजी में उत्कृष्टता प्राप्त करती हैं."
भारत सरकार में किसे मिलता है कितना वेतन
राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की खबरें पढ़ ध्यान ही नहीं रहता कि ये सब वेतन पाने वाले सरकारी मुलाजिम होते हैं. जानिए कितना वेतन पाते हैं राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, दूसरे मंत्री, राज्यपाल, सांसद, जज और वरिष्ठ नौकरशाह.
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राष्ट्रपति
राष्ट्रपति को वेतन 'राष्ट्रपति उपलब्धि और पेंशन अधिनियम, 1951' नाम के कानून के तहत मिलता है. 2018 में राष्ट्रपति का प्रति माह वेतन 1,50,000 रुपए से बढ़ा कर 5,00,000 रुपए कर दिया गया था. इसके अलावा उन्हें सरकारी खर्च पर 340 कमरों के राष्ट्रपति भवन में आवास, गाड़ियों, रेल और हवाई यात्रा की सुविधा, सुरक्षा, टेलीफोन, चिकित्सा और बीमा जैसी सुविधाएं मिलती हैं.
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आजीवन सुविधाएं
राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत्ती के बाद पद के तत्कालीन वेतन के 50 प्रतिशत के बराबर पेंशन और कई सुविधाएं आजीवन मिलती रहती हैं. इनमें शामिल हैं सरकारी खर्च पर आवास, एक गाड़ी, दो टेलीफोन, एक मोबाइल फोन, स्वास्थ्य सेवाएं, एक लाख रुपए प्रति वर्ष तक कार्यालय खर्च, एक निजी सचिव, एक अतिरिक्त निजी सचिव, एक निजी सहायक, दो चपरासी और भारत में कहीं भी एक व्यक्ति के साथ सबसे ऊंची श्रेणी में रेल या हवाई या यात्रा.
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उप-राष्ट्रपति
उप-राष्ट्रपति का वेतन 'संसद अधिकारी वेतन और भत्ता अधिनियम, 1953' के तहत निर्धारित होता है. 2018 में ही उप-राष्ट्रपति का प्रति माह वेतन भी 1,25,000 रुपए से बढ़ा कर 4,00,000 रुपए कर दिया गया था. इसके अलावा सरकारी खर्च पर आवास, यातायात और मेडिकल इलाज जैसी सुविधाएं मिलती हैं.
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प्रधानमंत्री
प्रधानमंत्री के वेतन के लिए अलग से कोई प्रावधान नहीं है. प्रधानमंत्री को एक सांसद का मूल वेतन, प्रति माह 1,00,000 रुपए, ही मिलता है. इसके अलावा प्रधानमंत्री को संसद के सत्र के दौरान प्रतिदिन 2,000 रुपए भत्ता, 3,000 रुपए प्रतिदिन आतिथ्य भत्ता, सरकारी खर्च पर आवास, यातायात और स्वास्थ्य सुविधाएं मिलती हैं. बस ये सब संसद से मिलने की जगह भारत सरकार के कंसॉलिडेटेड फंड से मिलता है.
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अन्य मंत्री
केंद्रीय मंत्रिमंडल के अन्य मंत्रियों को भी मूल वेतन प्रति माह 1,00,000 रुपए ही मिलता है. कैबिनेट मंत्रियों को आतिथ्य भत्ता प्रधानमंत्री से कम यानी 2,000 रुपए प्रतिदिन मिलता है, राज्य मंत्रियों को 1,000 रुपए प्रतिदिन और डिप्टी मंत्री को 600 रुपए प्रतिदिन मिलता है.
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राज्यपाल
2018 में ही राज्यपालों का मूल वेतन भी 1,10,000 रुपए से बढ़ा कर 3,50,000 रुपए कर दिया गया था.
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न्यायपालिका
सुप्रीम कोर्ट के जजों का वेतन 'सुप्रीम कोर्ट जज (वेतन और शर्त अधिनियम), 1958' और सभी हाई कोर्ट के जजों का वेतन 'हाई कोर्ट जज (वेतन और शर्त अधिनियम), 1954' के तहत तय होता है. जनवरी 2016 में इन कानूनों में संशोधन के बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश को 2,80,000 रुपए, सुप्रीम कोर्ट के बाकी जजों को 2,50,000, हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों को 2,50,000 और बाकी जजों को 2,25,000 रुपए मूल मासिक वेतन मिलता है.
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कैबिनेट सचिव
कैबिनेट सचिव देश के शीर्ष नौकरशाह का पद होता है. इस पद पर वेतनमान के हिसाब से 2,25,000 से ले कर 2,50,000 रुपए प्रति माह तक मूल वेतन मिलता है.
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लैंगिक समानता की कोशिश
यूरोपीय संघ में लैंगिक समानता पर एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक पिछले कुछ सालों में इस संबंध में किए गए प्रयासों के परिणाम बहुत असंतोषजनक रहे हैं. नए लिंग समानता सूचकांक में यूरोपीय संघ का औसत स्कोर 100 में से 68 था. इस साल यूरोपियन इंस्टीट्यूट फॉर जेंडर इक्वॉलिटी (EIGE) द्वारा जारी किए गए जेंडर इक्वॉलिटी इंडेक्स में यूरोपीय संघ ने अधिकतम 100 में से केवल 68 अंक हासिल किए.
तुलनात्मक स्तर पर इसका अर्थ यह हुआ कि समग्र रूप से संघ के सदस्य देशों के सूचकांक में पिछले वर्ष केवल 0.6 प्रतिशत का सुधार हुआ और पिछले 11 सालों में प्रगति दर पांच प्रतिशत से कम रही है.
यूरोपियन इंस्टीट्यूट फॉर जेंडर इक्वालिटी की निदेशक कार्लिन शेल ने रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि पिछले कुछ सालों में इस क्षेत्र में सुधार असंतोषजनक रहा है. उनके अनुसार इसका एक कारण यह है कि वैश्विक कोरोना वायरस के प्रभाव से महिलाओं को उबरने में पुरुषों की तुलना में अधिक समय लग रहा है, जिससे बहुत आर्थिक नुकसान हुआ है.
एए/वीके (डीपीए)
महामारी में गरीब महिलाओं पर कैसे टूटा कहर
भारत में कोरोना वायरस महामारी ने सभी तबकों को प्रभावित किया है. लेकिन लॉकडाउन में नौकरी सहित सभी परेशानियों के मामले में सबसे ज्यादा अगर किसी ने झेला है तो वह देश के कम आय वाले परिवारों की महिलाएं हैं.
कंसल्टिंग फर्म डालबर्ग द्वारा किए गए शोध के मुताबिक भारत में कम आय वाले घरों में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में अधिक बार नौकरी से हाथ धोना पड़ा, उन्होंने अपने भोजन का सेवन और आराम कम कर दिया. कम आय वाले परिवार की महिलाओं ने घर की देखरेख और अपने बच्चों की देखभाल में ज्यादा समय बिताया. यह वो काम है जिसके लिए उन्हें वेतन नहीं मिलता है.
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दोबारा रोजगार के लिए लंबा इंतजार
शोध में 10 राज्यों में सर्वे में पहली लहर के असर की पड़ताल की गई है. इस शोध के मुताबिक महिलाओं ने बताया कि उन्हें दोबारा से काम या मजदूरी खोजने में भारी दिक्कत पेश आ रही है.
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कम खाया, परिवार के लिए भोजन बचाया
सर्वे में शामिल होने वाली 10 फीसदी महिलाओं ने कहा कि उन्होंने कम खाना खाया या घर पर राशन खत्म हो गया. जबकि 16 प्रतिशत महिलाओं के पास माहवारी के दौरान सैनिटरी पैड नहीं था.
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निजी सेहत पर भी असर
33 प्रतिशत से अधिक विवाहित महिलाएं गर्भनिरोधक का उपयोग नहीं कर सकीं क्योंकि महामारी ने सार्वजनिक स्वास्थ्य तक उनकी पहुंच को बाधित किया.
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वेतन नहीं, घर का काम बढ़ा
43 प्रतिशत पुरुषों की तुलना में लगभग 47 प्रतिशत महिलाओं ने घर के काम में बढ़ोतरी की बात कही. 41 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि बिना वेतन वाला काम बढ़ा है जबकि 37 प्रतिशत पुरुषों ने भी यही बात कही.
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महामारी में मुसीबत
सर्वे में शामिल 27 फीसदी महिलाओं ने कहा कि उन्हें कोरोना वायरस महामारी के दौरान बहुत कम आराम मिला. ऐसा कहने वाले 18 प्रतिशत पुरुष भी थे.
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कार्यबल में महिलाएं
कोरोना वायरस महामारी से पहले 24 फीसदी महिलाएं कार्यबल का हिस्सा थीं, लेकिन नौकरी गंवाने वालों में इनकी संख्या 28 फीसदी थी. इनमें से 43 फीसदी की अब भी नौकरी नहीं लगी है.
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10 राज्यों में हुआ सर्वे
कोरोना महामारी के असर को जानने के लिए डालबर्ग ने भारत के दस राज्यों में कम आय वाले परिवारों की लगभग 15 हजार महिलाओं और 2,300 पुरुषों को सर्वे में शामिल किया.