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रूस से रिश्तों पर विवाद के बीच जर्मन विदेश मंत्री आएंगी भारत

चारु कार्तिकेय
२ दिसम्बर २०२२

जर्मनी की विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक दो दिनों के दौरे पर भारत आने वाली हैं. उनकी भारत यात्रा ऐसे समय पर हो रही है जब अमेरिका और यूरोप में यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में भारत-रूस रिश्तों को लेकर काफी नाराजगी दिख रही है.

अनालेना बेयरबॉक
जर्मनी की विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉकतस्वीर: Thomas Koehler/photothek/IMAGO

जर्मनी की विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक पांच दिसंबर को नई दिल्ली पहुंचेंगी. भारत के विदेश मंत्रालय के मुताबिक बेयरबॉक उसी दिन विदेश मंत्री एस जयशंकर से मिलेंगी और दोनों के बीच औपचारिक वार्ता होगी.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने एक दिसंबर को पत्रकारों को बताया कि दोनों नेताओं के बीच आपसी हित के द्विपक्षीय, प्रांतीय और वैश्विक मुद्दों पर बातचीत होगी. बागची ने किसी विशेष मुद्दे का जिक्र नहीं किया, लेकिन बीते कई महीनों से यूरोप और अमेरिका के नेताओं का ध्यान यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में भारत और रूस के संबंधों पर है.

इसके अलावा हाल ही में मिस्र में हुए कोप27 शिखर सम्मेलन की वजह से एक बार फिर भारत में जीवाश्म ईंधनों के इस्तेमाल को लेकर चर्चा शुरू हो गई है. अक्षय ऊर्जा के स्रोतों के इस्तेमाल को बढ़ाने में जर्मनी भारत की क्या मदद कर सकता है, इस विषय पर भी दोनों देशों के बीच बातचीत चल रही है.

जर्मनी-भारत सहयोग

जिस दिन बेयरबॉक की भारत यात्रा की घोषणा की गई उसी दिन भारत में जर्मनी के राजदूत फिलिप आकरमान जयशंकर से मिले. उसके एक ही दिन पहले आकरमान ने एक प्रेस वार्ता में बताया था कि दोनों देशों ने अगले साल एक अरब यूरो के मूल्य की ठोस विकास संबंधी परियोजनाओं पर साझा रूप से सहमति व्यक्त की है.

इन परियोजनाओं पर हस्ताक्षर हरित और सस्टेनेबल विकास के लिए उस साझेदारी को ध्यान में रखते हुए किए गए जिस पर इसी साल मई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीऔर जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने हस्ताक्षर किए थे.

इस साझेदारी के तहत उन कदमों की ओर ध्यान केंद्रित किया जाएगा जिनसे भारत को एक "सामाजिक रूप से न्यायपूर्ण ऊर्जा परिवर्तन में मदद" मिले. ऐसा "अक्षय ऊर्जा स्रोतों के विस्तार, सुरक्षित और जलवायु अनुकूल सार्वजनिक यातायात और सस्टेनेबल, मजबूत और समावेशी शहरी विकास" के जरिए किए जाने की योजना है.

हालांकि बेयरबॉक की भारत यात्रा के दौरान पर्यावरण के अलावा भू-राजनीतिक विषयों पर भी चर्चा होने की संभावना है. बीते नौ महीनों से भी ज्यादा से चल रहे यूक्रेन युद्ध की वजह से पश्चिमी देश भारत को रूस का दामन छोड़ने के लिए लगातार कह रहे हैं.

भारत-रूस संबंधों पर पश्चिम का रवैया

रूस के खिलाफ पश्चिम द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद भारत-रूस व्यापार का बढ़ते रहना पश्चिम के नेताओं के लिए लगातार चिंता का कारणबना हुआ है. अप्रैल में यूरोपीय आयोग की प्रमुख उर्सुला फोन डेय लायन भारत आई थीं और भारत सरकार को रूस के प्रति उसके रुख को लेकर आगाह किया किया था.

डॉयचे वेले से जर्मन विदेश मंत्री की बातचीत

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फोन डेय लायन ने प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदगी में इशारों में ही रूस पर लगाए गए यूरोपीय प्रतिबंधों को समर्थन देने के लिए भारत से अपील करते हुए कहा था, "हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सभी सदस्यों से अनुनय करते हैं कि वो लंबी चलने वाली शांति के लिए हमारी कोशिशों का समर्थन करें."

साथ ही उन्होंने भारत को इशारों में समझाते हुए चेताया भी था की रूस को समर्थन देने से भारत को चीन के साथ अपने रिश्ते संभालने में दिक्कत हो सकती है. लेकिन इसके बावजूद भारत लगातार अपनी स्थिति पर कायम रहा है.

बल्कि जयशंकर ने कई बार दो टूक भारत के पक्ष को जाहिर करते हुए कहा है कि भारत को अंतरराष्ट्रीय समुदाय को खुश करने की कोशिश करने की जगह दुनिया से लेन देन करने के लिए अपनी पहचान पर विश्वास को आधार बनाना चाहिए.

रूसी तेल के दाम की सीमा का सवाल 

उन्होंने पश्चिमी देशों पर चीन की आक्रामकता को नजरअंदाज करने और अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी जैसी एशिया की सबसे बड़ी चुनौतियों को लेकर बेपरवाह रहने का भी आरोप लगाया है.

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इस समय पश्चिमी देशों के सामने एक बड़ी पहेली है अंतरराष्ट्रीय बाजार में रूसी कच्चे तेल के दाम की अधिकतम सीमा तय करना. इसका उद्देश्य है तेल के व्यापार से रूस को मिलने वाले राजस्व को कम करना ताकि उस पर युद्ध को खत्म करने का दबाव बनाया जा सके.

यह योजना तब तक सफल नहीं होगी जब तक भारत और चीन इसमें शामिल नहीं होते, और दोनों देशों ने अभी तक इसका हिस्सा बनने को लेकर अपनी प्रतिबद्धता नहीं जताई है. बेरबॉक की भारत यात्रा इन कोशिशों को लेकर भी महत्वपूर्ण है.

कश्मीर को लेकर भी विवाद

इसके अलावा अक्टूबर में कश्मीर को लेकर बेयरबॉक के एक बयान को लेकर भी भारत और जर्मनी के बीच विवाद खड़ा हो गया था.

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बेयरबॉक ने बर्लिन में पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी के साथ एक प्रेस वार्ता में बोलते हुए कहा था कि कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच जो तनाव है उसके समाधान के प्रति जर्मनी की भी "भूमिकाऔर जिम्मेदारी है."

उन्होंने यह भी कहा था कि विवाद के शांतिपूर्ण समाधान के लिए जर्मनी "संयुक्त राष्ट्र को शामिल करने" का समर्थन करता है. बेयरबॉक के बयान पर भारत में तीखी प्रतिक्रिया हुई थी.

बागची ने एक बयान में कहा था, "भारत के केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर ने एक आतंकवादी अभियान की मार झेली है और दूसरे देश जब अपने हितों या बेपरवाही की वजह से ऐसे खतरों को मानने से इनकार करते हैं तो वो शांति के आदर्श को नुकसान पहुंचाते हैं."

देखना होगा कि बेयरबॉक की भारत यात्रा के दौरान यह विवाद दोबारा उठता है या नहीं.

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