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बाढ़ के बाद भुतहा कस्बा बना ब्राउंसबाख

२९ जून २०१६

जर्मन कस्बे ब्राउंसबाख के मेयर की शिकायत है कि 'यह भूतों का कस्बा बन गया है.' जानें पिछले म​हीने आखिर ऐसा क्या हुआ इस शहर के साथ कि यहां जिंदगी ठहर सी गई है.

Deutschland Unwetter Braunsbach Baden-Württemberg
तस्वीर: picture-alliance/dpa/F. Kraufmann

धूल और गाढ़ी मिट्टी की परतों में ढंकी ब्राउंसबाख की गलियां भुतहा दिखाई दे रही हैं. पिछले महीने दक्षिणी जर्मनी में बसे इस कस्बे को अचानक आई बाढ़ ने अपनी चपेट में ले लिया था. लोगों को आनन फानन में घरबार छोड़ना पड़ा था.

गांव अब भी खाली है. महज कुछ लोग हालात फिर से सामान्य बनाने के लिए काम पर लगे हैं. एक शख्स बेलचे की मदद से अपने खेतों में जम गए सूखे कीचड़ की परत को खंरोंच रहा है जबकि उसका एक पड़ोसी अपने घर की दीवार पर बन गए छेद को दुरुस्त करने में जुटा है.

तस्वीर: picture-alliance/dpa/B.Beytekin

अधिकतर घर रहने लायक हालत में नहीं हैं और अक्सर सभी के दरवाजों पर लाल स्प्रे पेंट से 'प्रवेश निषेध' लिखा हुआ है. शहर के मेयर फ्रांक हार्श कहते हैं, ''इस समय यह भूतों का कस्बा बन गया है.''

एक महीना पहले 900 लोगों की रिहाइश वाले इस कस्बे में अचानक भयानक बाढ़ आ गई थी. रोड़ी, पेड़ के तने और​ विशालकाल पत्थरों के मलबे घरों से टकराकर वहीं पसर गये. हार्श बताते हैं अब तक तकरीबन 50 हजार टन मलबा कस्बे से हटाया जा चुका है. लेकिन जिंदगी के पटरी पर वापस लौटने से पहले कस्बे का सीवेज सिस्टम, पानी की आपूर्ति और बिजली लाइनों को फिर से दुरुस्त करना अभी भी बाकी है.

तस्वीर: picture-alliance/dpa/C.Schmidt

बाढ़ ने कई तरह से स्थानीय लोगों पर मार की है. प्रभावित लोग दोबारा से हालात सामान्य करने के लिए खूब मेहनत कर रहे हैं, लेकिन तबाही भयानक है. थॉमस हॉप्फ यहां अपनी पार्टनर हाइके फिलिप के साथ पिछले तीन सालों से होटल चलाते थे. यही उनकी आजीविका का जरिया था. वे मायूसी से कहते हैं, ''अब हाल यह हैं कि मलबे को खरोंच कर शुरूआत करनी है.''

ना ही पुराना फर्नीचर बचा है ना ही होटल के कमरों में वैसा माहौल. लेकिन उन्होंने उम्मीद अभी नहीं छोड़ी है. वह अपने मेहमानों का अब भी स्वागत करना चाहते हैं. इमारत की ओर झांकते हुए वह कहते हैं, ''हताश हो जाने का कोई मतलब नहीं है. मैंने एक बार भी इसके बारे में नहीं सोचा. हम दोबारा से सब कुछ ठीक करेंगें.''

तस्वीर: picture-alliance/dpa/C.Schmidt

69 साल के हूगो लेषनर ने भी खेतों को फिर से खेती लायक बनाने के लिए अपने दिमाग में एक टाइम लाइन बना रखी है. पहली मंजिल तक मलबे में डूबे अपने घर की ओर ​इशारा करते हुए वह कहते हैं, ''मैं इस बार के लिए क्रिस्मस ट्री यहीं उगाउंगा.'' लेषनर अपने परिवार के साथ यहीं रहा करते थे. बाढ़ के बाद उन्हें अपने परिचितों से रहने के लिए एक छोड़ा हुआ पुराना घर मिल गया. नगरपालिका अधिकारियों का कहना है कि अधिकतर बाढ़ पीड़ितों ने रहने का इंतजाम अपने निजी संपर्कों के जरिए खुद ही कर लिया.

ब्राउंसबाख के लोग अपनी जिंदगी को पटरी पर लाने में जुटे हैं. अब उन्हें यही उम्मीद है कि ऐसी भयानक बाढ़ फिर से कभी उनके कस्बे को ना छुए.

आरजे/एमजे (डीपीए)

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